*श्रद्धेय पंडित श्री नंदकिशोर पाण्डेय जी भागवताचार्य*
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*प्रेरक प्रसंग - 54*
*!! नींव का पत्थर !!*
लाल बहादुर श्रास्त्री बड़े ही हँसमुख स्वाभाव के थे | लोग प्रायः ही उनसे उनके हँसमुख स्वाभाव और निःस्वार्थ सेवा भावना के लिए प्रभावित हो जाया करते थे | एक बार लाल बहादुर शास्त्री को लोक सेवा मंडल का सदस्य बनाया गया | लेकिन लाल बहादुर शास्त्री बहुत संकोची थे वे कभी नहीं चाहते थे की उनका नाम अखबारों में छपे और लोग उनकी प्रसंशा और स्वागत करे | एक बार शास्त्री जी के मित्र नें उनसे पूछा, “शास्त्री जी! आप अख़बारों में नाम छपवाने में इतना परहेज़ क्यों करते हैं |
शास्त्री जी मुस्कुराए और बोले, “लाला लाजपत राए जी ने मुझे लोक सेवा मंडल के कार्यभार को सोंपते हुए कहा था की, लाल बहादुर! ताजमहल में दो तरह के पत्थर लगे हैं| एक बढ़िया संगमरमर के पत्थर हैं, जिन्हें दुनियां देखती है और प्रशंशा करती है | और दुसरे ताजमहल की नींव में लगे हैं जो दिखते नहीं और जिनके जीवन में अँधेरा ही अँधेरा है | लेकिन ताजमहल को वे ही खड़ा किए हुए है | लालजी के ये शब्द मुझे हमेशा याद रहते हैं और मैं नींव का पत्थर बना रहना चाहता हूँ |
शिक्षा :-
इसलिए हमें भी ज़िन्दगी में दिखावे से बचकर वो कार्य करना चाहिए जो असल में ज़रूरी है |