कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग
आगे कि जानकारी
नवमांश कुंडली में
बुध और शुक्रः स्त्री की कुंडली के अनुसार उसके सातवें भाव में बुध के साथ शुक्र के आ मिलने से वह गुप्त अनैतिक तरीके से काम-वसना पूर्ति करती है। इसके लिए चारित्रिक लांछन की चिंता से बेखबर किसी भी हद तक जा सकती है।
शुक्र और मंगलः जिस किसी स्त्री की कुंडली के तीसरे भाव में शुक्र स्थित हो और वह मंगल से प्रभावित हो जाए, तथा छठे भाव में मंगल की राशि होने के साथ-साथ चंद्रमा बारहवें स्थान पर रहे तब उसमें यौनाचार की चरित्रहीनता आ जाती है। कुंडली के सप्तम भाव में मंगल चारित्रिक दोष पैदा करने वाला साबित होता है। इस दोष से ग्रसित स्त्री या पुरुष को नाजायज संबंध रखने वाले जीवनसाथी मिलने के योग बन बन जाते हैं।
शनि-मंगलः स्त्री की कुंडली में यदि शनि लग्न में स्थित हो तो उसमें वासन की अधिकता रहती है। शनि के साथ मंगल के योग होने पर उसकी यौनआकांक्षा प्रबल हो जाती है। शनि का दशवें स्थान पर होना भी स्त्री की कामुकता को बढ़ता है, जबकि शनि के चैथे भाव में होने पर वह यौनाचार करने के लिए बाध्य हो जाती है। शनि शुक्र, मंगल और चंद्रमा के साथ योग कर व्यक्ति की कामुकता को काफी बड़ा कर देता है।
चंद्रमाः कुंडली में चंद्रमा के विभिन्न स्थान में होने से वह व्यक्ति की कमुकता को प्रभावित करता है। विशेषकर यदि चंद्रमा स्त्री की कुंडली के अनुसार बारहवें भाव में मीन राशि में हो, तब वैसी स्त्री कई पुरुषों के साथ यौन संबंध बना लेती है। चंद्रमा के नौंवे भाव मंे होने की स्थिति में स्त्री व्यभिचार करने के लिए प्रेरित हो जाती है। यानि कि यदि स्त्री की कुंडली मंे यदि चंद्रमा उच्च का हो तब उसे प्रेम-प्रसंग में सफलता मिलती है, लेकिन नीच की स्थिति में होने और दूसरे ग्रहों के शुभ नहीं हाने पर वह देह-व्यापर की ओर रूख कर सकती है