सूर्य कथा 

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वेदों में है वर्णित, ‘सूर्य अनेक हैं’

हिंदू धर्म के आधार यानी चारों वेदों में सूर्य को ऊर्जा का विशाल स्त्रोत माना गया है। सौर मंडल का केंद्र सूर्य ही है जिसके चारों और सभी ग्रह परिक्रमा करते हैं। सूर्य सौर मंडल को ऊर्जा देता है।

ऋग्वेद(1.112.1), यजुर्वेद(7.42) और अथर्ववेद(13.2.35) में एक श्लोक है

‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च’

जो कि क्रमशः सूर्य को ऊर्जा मानने की पुष्टि करता है।

ठीक इसी तरह ब्रह्मांड में सूर्य अनेक हैं। इस बात का प्रमाण ऋग्वेद(9.114.3) में मिलता है। यह एक मंत्र में इस बात को बताया गया है। यह मंत्र है,

‘सप्त दिशो नानासूर्या:। देवा आदित्या ये सप्त।’

यानी सूर्य अनेक हैं। यहां हमारे सुर्य को छोड़कर और सात सूर्य से आशय सात सौरमंडल से है। लेकिन विज्ञान ने अभी तक एक ही सौर मंडल को खोजा है।

विज्ञान से पहले हमारे वेदों में यह वर्णित था कि सूर्य के चारों ओर विशाल गैस का भंडार है। यह बात ऋग्वेद(1.164.43) में मंत्र,

‘शकमयं धूमम् आराद् अपश्यम्, विषुवता पर एनावरेण।’

यानी सूर्य के चारों और दूर-दूर तक शक्तिशाली गैस फैली हुई हैं। यहां गैस के लिए धूम शब्द का प्रयोग किया गया है।

सूर्य प्रदूषण नाशक भी है इस बात का उल्लेख अथर्ववेद (3.7) में मिलता है। इसे मंत्र,

‘उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन् अदृष्टान् च, सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।’

से उल्लेखित किया गया है। यानी इसका अर्थ है सूर्य का प्रकाश दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है।

सूर्य चंद्रमा को प्रकाश देता है। यह बात सदियों पहले हमें इन्हीं वेदों से मिलती है। यजुर्वेद(18.40) में मंत्र है,

‘सुषुम्णः सूर्य रश्मिः चंद्रमा गरन्धर्व, अस्यैको रश्मिः चंद्रमसं प्रति दीप्तयते।’ निरुक्त( 2.6) ‘आदित्यतोअस्य दीप्तिर्भवति।’

यानी सूर्य की सुषुम्ण नामक किरणें चंद्रमा को प्रकाश देती हैं।

चंद्रमा का स्वयं का प्रकाश नहीं है। वह पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। वह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होता है। यही बात को यास्क ने निरुक्त में कही है जो कि ऊपर दिए मंत्र में वर्णित है।

इसी तरह सामवेद में उल्लेखित है कि सूर्य संसार का धारक और पालक है।

इसे मंत्र, सामवेद ‘धर्ता दिवो भुवनस्य विश्पति:’ में बताया गया है।