राम मंदिर निर्माण का विरोध करने वाले कई हिन्दु है, उनसे कुछ सवाल?? इनका एक ही तर्क कुतर्क है यह समाज की भलाई का काम नही है क्योंकि शांति बनी रहे,वर्ना कट्टरपंथी जेहादी दंगा करेगे, मतलब इनको उन गुंडों से डर है इसलिए इस मुद्दे को छोड़ दो। यह तो यह भी कहते है कि गाय को भी कटने दो। सिर्फ डर के मारे यह सब कुछ छोड़ने को तैयार है। जब तक कट्टरपंथी इनके घर में गुस कर चाहने वालो और घर पर ही कब्जा नही कर लेंगे तब तक यह डर के मारे अपने मन सोच दिमांग और दिल के दरवाजे बंद रखेगे। आँख बंद करने से अँधेरा नही हो जाता। सच्चाई से भाग रहे है, पर कब तक भागेंगे। एक सवाल - 1200 की गुलामी (पहले आक्रमण, मुगलो, अंग्रेजो की रियासते) + 60 साल (कुनबो की रियासत) तक अयोध्या में राम मंदिर नही बना। तो क्या समाज के लिए कोई फायदे और भलाई के काम हुए के नही ?? अगर हुए, तो फिर अब ओर कितना फायदा चाहिए आपको। पर असल में नही हुए। अगर नही हुए, इसका मतलब फायदे और भलाई के काम के तर्क कुतर्क का मंदिर निर्माण से कोई लेना देना नही। सिर्फ दो मुद्दे है, हिन्दु चाहता क्या है, गाय वंश की रक्षा हो और मंदिरो के सम्मान को पुनः स्थापित किया जाए। बल्कि मंदिर नही बनने से सिर्फ नुकसान जरूर हुआ है कि लोग अपना धर्म, इतिहास और अपने आराध्य के घर को ही भूल गए। जहाँ राम नही - वहा सीता नही, जहाँ सीता (लक्ष्मी) नही , वहाँ समाज में भलाई, विकास, धन, प्यार नही रह सकता। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी और सीता माता जी की रामायण की कथा को समाज भूल गया और समाज में गिरावट आ गई, सब ने अपनी मर्यादाओं को तोड़ दिया। भाई, बच्चे, माता पिता, लोग ,जनता अपना कर्तव्य, मर्यादा और अनुशासन भूल गए। 1947 से राम मंदिर नही बना, कुनबो की सरकार रही 60 साल तक भारत में। आज भारत, दुनिया के गरीब देशों में आता है, क्योंकि 33 करोड़ गरीब लोग है भारत में, यह सरकारी आंकड़ा है। इनमे अधिकतर गरीब रिज़र्व लोग है। कुंनबो की रियासते और मुगलो, अंग्रेजो की रियासतों में एक समानता जरूर रही बांटो, राज करो और लूटो। बाँटने और राज करने में कुनबो की रियासतों ने शकुनि की तरह कुबुद्धि और षडयंत्र का उपयोग अधिक किया जाति,धर्म , भाषा, क्षेत्र आदि पर लड़वाने की चाल चली, लोग खुद ही आपस में लड़ मर रहे है। जबकि मुगलो और अंग्रेजो ने हिंसा का उपयोग अधिक किया। ब्राह्मणवाद, मनुवाद, मूल निवासी, आर्य आक्रमण आदि अनादि झूठ आधारित कहानियां गड़ी गई अंग्रेजो द्वारा और उन कहानियों को लेफ्ट तथाकथित फुदुजीवियो ने बहुत बड़ा चढ़ा कर स्कूल कॉलेज मदरसों आदि में बच्चो को गुमराह करके नफरत, हिंसा का जहर सोच में भर दिया हैं। जैसे कॉलेज में ग्रुप (लड़ने वालों के) बन जाते है ऐसे ही समाज को बाँट दिया ,जो अब राजनीतिक रूप ले चुका है और मुद्दा बन चूका है। पर एक अटल सत्य यह है कि जन्म आधारित जाति प्रथा और जातिवाद एक अंदविश्वास, कुप्रथा है जो सिर्फ अंतर्जातीय विवाह, रोटी बेटी का रिश्ता और जाति सूचक शब्दो के त्याग से ही सम्भव है। यह एक सत्य उनके सब अर्ध सत्यों और झूठ पर भारी पड़ जाता है। क्योंकि उनकी हर बार इस सत्य में जाकर खत्म होती है। (ऐसा फलाना फलाना हुआ = कोरा झूठ और अर्ध सत्य) तभी आज समाज में जातिवाद और जन्म आधारित जातिप्रथा (सत्य) है। बटा हुआ हिन्दु समाज और सिकुलर बस खुद को झूठा दिलासा दे रहा है की मंदिर नही बने तो समाज में शांति बनी रहेगी। जबकि हम सबको एक जुट हो कर राम मंदिर निर्माण के लिए जागरूकता का आंदोलन करना होगा। शांति विकास तो पाक बंगलदेश कश्मीर अफ़ग़ान अर्ब आदि में भी नही है, वो तो विशव हिंसा के केंद्र है, जहाँ अब हिन्दु बचा ही नही, कोई जाति पाति नही, वहाँ कोई मंदिर नही, कोई इतिहास नही बचा। फिर कहेंगे स्कूल, हॉस्पिटल बनवाओ। अभी MP में माहौल खराब हुआ क्योंकि हॉस्पिटल की जगह पर कट्टरपंथी अपना धर्मिक स्थान चाहते थे। यह तो हाल है कट्टरपंथी गुंडों का। जैसे दावूद के गुंडे डरा कर हफ्ता वसुलते है, यही काम कट्टरपंथी करते है। बाबर ने मंदिर तोड़ दिया, उसकी जगह स्कूल और हॉस्पिटल नही बनाया था। एक मंदिर बनने से भविष्य में बाकि जगह हॉस्पिटल, स्कूल आदि बनने बन्द नही होंगे। एक मंदिर बनने में सरकार का कोई पैसा नही लगना है, भक्त खुद बनायेगे। मंदिर निर्माण न्याय का मुद्दा है। कट्टरपंथी, नफरत, हिंसा की सोच को जवाब है कि उनके जुल्म, नफरत, हिंसा , डर से किसी के विश्वास और आस्था को मिटा नही सकते। जब कुनबो की सरकार ने अमृतसर में BS किया, जो आज भी विवाद का कारण क्योंकि धर्मिक स्थान को बहुत नुकसान हुआ। पर उसको भी कुनबो के कुकर्म की जगह, कट्टरपंथियो ने इसको दो धर्मो के आपसी नफरत का मुद्दा बना दिया गया जबकि दोनों समुदाय भाई भाई है। हजारो मंदिर टूटने के बाद भी हिन्दू समुदाय किसी धर्म विशेष के लिए नफरत हिंसा नही रखता, उल्टा कुछ सिकुलर हिन्दु तो झूठी शांति और कायरता के कारण अपने मंदिर को त्यागने की माँग कर देते है। कट्टरपंथी (खुनी दरिंदे है) बकरे की माँ (कायर स्वार्थी अज्ञानी सिकुलर) कब तक खैर मनाए गे)। समय आने पर यह लोग धर्म भी त्याग देगे जैसे पाक कश्मीर बंगलदेश अफ़ग़ान अर्ब में हुआ। जिस झूठी शांति के लिए यह मरे जा रहे है, वो शांति हमारे पूर्वजो को इसी सोच की वजह से,आज वहाँ भी नही मिली। उनके वंशज आज भी नर्क , हिंसा, लडाई, गरीबी में जी रहे है। शांति,आजादी सिर्फ और सिर्फ बलिदान,शहादत, क़ुरबानी दे कर मिलती है कभी खुद के पंच तत्व शरीर की तो और कभी अपनी बुराइयों, निजी स्वार्थ, अज्ञान,काम, क्रोध, अहंकार, लालच, मोह की। हर पीढ़ी में कुछ पुण्य आत्माएं अपने देश समाज की भलाई के अपनी क़ुरबानी देती रहती है, तब जा कर कोई समाज अपने आप को आंतरिक और बाहरी खतरों से बचा पाता है। यह सील सिला चलता है, जब रुकता है तब उस देश समाज का अस्तित्व खत्म हो जाता है। खुद के घर पर अगर कोई कब्जा कर के तो पूरी दुनिया को हिला देने वाले प्रयत्न करेंगा इंसान। जब तक खुद को न्याय नही मिलता। क्या भक्त अपने आराध्य के सम्मान और खुद की श्रद्धा और भवनाओं को पहुचाई ठेस के लिए न्याय की मांग भी नही कर सकता। ?? न्याय यही है की राम मंदिर निर्माण हो। भक्त सैकड़ो मंदिर नही, हर जगह मंदिर बनाने की मांग नही कर रहा। वो किसी को सजा देने की भी माँग नही कर रहा। सिकुलर हिन्दु अपने घर के लिए लड़ने मरने को तैयार है, पर भक्त अपने आराध्य के घर की बात भी नही कर सकता। मंदिर समाज को जोड़ते है, हर व्यक्ति आकर अपने आराध्य से मिलता है, उनकी अनुभूति करता है, उनकी कही बातों और उपदेशो को पढता ,याद करता और जीवन में अपनाने का प्रयत्न करता है। मंदिर भक्ति, आस्था और विश्वास का विषय है, जो भक्त के जीवन का आधार होते है। जैसे खुद की पुरानी फोटो देखकर, पुरानी यादें ताजा हो जाती है। ऐसे ही भक्त अपने आराध्य को याद कर लेता है। चींटी का घर भी जब टुटता है, वह फिर उसको बनाना शुरू कर देती है क्योंकि चींटी को अपने घर पर विश्वास और प्रेम है। तोड़ने वाले को कुछ नही कहती। अरे भक्त भी चींटी की तरह मंदिर निर्माण चाहता है।किसी के लिए कोई नफरत नही। सिर्फ कट्टरपंथी और कुनबो की रियासते ही विरोध कर रहे हैं। बाकि कुछ अज्ञानी हिन्दु है, जो मंदिर विरोध में है। उदारवादी शिया सूफी समुदाय भी हिन्दुओ के साथ है। उसमे कोई दो राय नही की कुछ के लिए मंदिर दुकान है, कारोबार है। पर जिसके लिए श्रद्धा, विश्वास है वो तो गलत नही। कुछ की गलती की सजा को, भक्त क्यूँ सहे। यह कारोबार हर जगह है जीवन के क्षेत्र में स्कूल, हॉस्पिटल, राजनीति आदि सब कारोबार बन गए जो कभी समाज और मानव सेवा का केंद्र थे। अब क्या स्कूल, हॉस्पिटल बनाना बन्द कर दोगे। लोकतंत्र बन्द करके राजा रानी की तानाशाही वापिस लाओगे (वैसे कुनबो की रियास्ते जो परिवारिक धंधा बन चुकी है वो राजा रानी वाली व्यवस्था ही है, पर नमो ने जनता में उम्मीद जगाई लगा और लोकतंत्र को मजबूत किया है)। नही करोगे क्योंकि कुछ के कुकर्मो की सजा सब को नही मिलनी चाहिए।व्यवस्था में समय के अनुसार सकारात्मक सुधार के लिए प्रयत्न हमेशा करो, जिम्मेदारी उठाओ, सकारात्मक सोचो, सिर्फ नकरात्मक सोचने से कभी हालात नही सुधरेगे। जन जागरण करो सामाजिक बुराइयों,अंदविश्वासो, कुरीतियो और कुकर्मो को रोकने के लिए। जिनके मुँह में 60 साल कुनबो का बईमानी का खून और सोच में कुविचार कुबुद्धि घर कर गई है वो नही बदलने वाले और सुधरने वाले। दूसरे को देखते रहते है वो बईमान है, तो मै क्यूँ ईमानदार बनू। दूसरा अगर गलत -सही है, तो वो उसके कर्म है,हम जो है वो हमारे कर्म है। खुद के बारे में सोचो और प्रतिदन खुद की नकारात्मक सोच को बदलो, धीरे धीरे खुद में सकरात्मक बदलाव अपने आप दिखेगा। इसलिए युवा ही इस देश समाज और सनातन धर्म का भाग्य निर्माता बनेगा। चिंतन करो और शेयर करो