सभी भूदेवो को समर्पित
: गणपति वंदना
पहले श्री गणपति गुण गाऊं /
पद वंदन कर शीश झुकाऊं //
बुद्धि विनायक गौरी नन्दन शुभ फल दायक हे जगवंदन
ज्ञान निधान भक्त चित रंजन प्रभो गजानन भव भय भंजन
ह्रदय सुमिरि प्रभु ध्यान लगाऊं ---------------------------//१//
शीश किरीट परसु कर भाये मंगल मूरति विघ्न नशाये
स्वर्ण कान्ति द्युति वरणि न जाये पीट वसन उपवीत सुहाये
स्तुति कर प्रभु तुम्हें मनाऊं ------------------------------//२//
जय जय जय हे मंगलकर्ता प्रभु तुम रिद्धि सिद्धि के भर्ता
प्रथम पूज्य ;दानव संहर्ता ;भुवन दीप्ति सब संशय हर्ता
भाव सुमन प्रभु चरण चढाऊं ----------------------------//३//
जय लम्बोदर कलि अघहारी ;माँ गिरिजा के आज्ञांकारी
मधुकर है प्रभु शरण तुम्हारी ;करें कामना पूर्ण हमारी
भजन करत प्रभु बलि बलि जाऊं ---------------------//४//
: हे शारद माँ धुन में मेरी अपनी कला निखार दे
मेरे कंठ बैठ के मैया स्वर के तार सँवार दे
अगर ;सुगंध ;पुष्प की माला कर में धरे सँवार के
काव्य कलश धर तुम्हें मनाऊँ अपना तन मन वार के
चरण कमल रस पी पी गाऊँ वाणी में रस डार दे
हे शारद'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//१//
स्वेत वस्त्र कमलासन राजे वाहन हंस सवार हो
सोहत मुकुट हाथ में वीणा ; पुस्तक वेद अधार हो
अपने वरद हस्त से मेरे ज्ञान के नेत्र उघार दे
हे शारद ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//२//
वीणा की झंकार सुनादे भाव भरी गागर छलका दे
इस अज्ञानी मूरख जन केअंतर्मन में ज्योतिजगादे न
ह्रदय कमल कोमल आसन में निज प्रतिबिंब उतार दे
हे शारद '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//३//
हे ब्रह्माणी जन कल्याणी जननी जगदाधार हो
तालछन्द लय करदो रसमय तुम स्वर की श्रंगार हो
भावभक्ति की गले में मेरे मोहन माला डार दे
हे शारद''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//४//
मैं बालक तू मेरी मैया कहके वत्स पुकार दे
एक बार वात्सल्य भाव से मेरी ओर निहार दे
माँ मधुकर की स्वर लहरी से सब के हिय झंकार दे
हे शारद ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//५//
काव्य सिन्धु मैं थाह न पाऊँ तुम्हें मनाऊँ शारदे
होजाए भव पार नैया ऐसी तू पतवार दे
परम पुनीत गीत की गंगा बहती पंथ सुधार दे
हे शारद '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//६//
[03/09, 11:30 PM] Pt Mangleshwar: शारदा देवी गीत
माँ शारद भईं सहाय आज हमने जानी/
राग उमग लहराय रागनी मचलानी //
घिरी प्रेमघटा घन घोर झूम रस छलकाये
नाचे मन भाव विभोर कुहक कोयल गाये
तन रोम रोम हर्षाय जाग मन अज्ञानी
माँ शारद ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//१//
गूँजे अनहदनाद ध्यान में जब जाते
उमगे अति आनंद नयन जल छलकाते
हिय मूरति गई समाय अलख छवि झलकानी
माँ शारद ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//२//
भाव-सुमन बन शब्द छन्द में ढल आते
मिलकर सुर सँग साज गीत को सरसाते
चित निज में लिया रमाय सकल सुधि बिसरानी
माँ शारद '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//३//
दिव्य ज्ञान की ज्योति मातु जब दिखलाये
मन चंचलता तजे शान्ति मन को भाये
मधुकर स्वर मधुर बनाय छन्द में छलकानी
माँ शारद '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//४//
द्वादश नाम सरस्वती वन्दना
नमोस्तु माँ सरस्वती नमामि मातु शारदे /
ब्रह्म देवि वेद ब्रह्मज्ञान तत्त्व सार दे /
शुभ्र वस्त्र धारिणी हे वीणापाणि भारती ;
बुद्धि दायिनी हे माँ उतारूँ तेरी आरती
कर प्रदान सिद्धि मेरी बुद्धि को निखार दे
नमोस्तु ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//१//
नमामि वाक-ईश्वरी कौमारि वेद वेत्ता
ब्रह्मचारिणी शरण गहें तुम्हारि देवता
दिव्य दृष्टि दे के ज्ञानचक्षु माँ उघार दे
नमोस्तु ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//२//
नमोस्तु चन्द्रघंटिके नमामि भुवनेश्वरी
जगविख्याता देवि तव चरण शरण सुरेश्वरी
विवेक बुद्धि दे के काव्य का सृजन सँवार दे
नमोस्तु ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//३//
स्वर तरंग में बसीं तुम्हारे राग रागिनी
मंत्र मुग्ध करती तेरी वीणा हंसवाहिनी
वह तरंग भाव मातु मेरे हिय उतार दे
नमोस्तु ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//४//
करूँ तुम्हारि वन्दना हे दिव्य ज्ञानदायिनी
तुम्हें चढ़ाऊँ पुष्पहार देवि वर प्रदायिनी
मधुकर को देवि जन्म मृत्यु सिंधु से उतार दे
नमोस्तु '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//५//
[03/09, 11:30 PM] Pt Mangleshwar: सरस्वती आवाहन
हे हंस वाहिनी सरस्वती हम करते माँ तेरा वन्दन /
कर ज्योति प्रज्ज्वलित सुमन लिए कर रहे तुम्हारा अभिन्दन//
आजाओ आसन ग्रहण करो दो शक्ति बढे मन का स्यंदन/
हे हंसवाहिनी सरस्वती हम करते मन तेरा वन्दन //
तन श्वेत वस्त्र निर्मल काया ;द्युति चन्द्र छटा सी अविकारी /
कमलासन शोभित शीश मुकुट ;कर में वीणा छवि मनहारी//
हे वीणावादिनी आ जाओ बनजाओ माँ चित का चन्दन /
हे हंसवाहिनी सरस्वती हम करते माँ तेरा वन्दन //१//
तुम बुद्धि दायिनी देवी हो ; अरु अंतर्मन की तमहारी
दो ऐसा ज्ञान प्रकाश हमें ;विकसे हिय कुमुद कली प्यारी
माँ चन्द्रकान्तिके आजाओ ;स्वर निखरे भाव बने कुंदन
हे हंसवाहिनी सरस्वती हम करते माँ तेरा वन्दन //२//
तुम राग रागिनी स्वरलहरी ;शब्दों की तुम हो फुलवारी /
हो वेद मंत्र की शक्ति तुम्हीं ;गन्धर्व ; दैव ; मुनि बलिहारी //
माँ छेड़ो ऐसी तान खिले; जन मानस का हिय नन्दनवन /
हे हंसवाहिनी सरस्वती हम करते माँ तेरा वन्दन //३//
हैं तुम बिन कलाविहीन सभी ;ज्यों नयनकोर बिन कजरारी /
हो मधुकर पुष्पपराग तुम्हीं ;प्रिय काव्यसुधा रस मनहारी //
आजाओ माँ अब मधुकर मन रस पीने को करता गुन्जन /
हे हंसवाहिनी सरस्वती हम करते माँ तेरा वन्दन //४//
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: ।।गुरू वन्दना।।
नाश करौ उर के तम कौ अब, जीवन हो उपहार गुरू जी।
ज्ञान-प्रकाश भरौ मम जीवन, आपहि बुद्धि सुधार गुरू जी।
जानत नाहिं अबोध-अकिंचन, मो पर हो उपकार गुरू जी।
आठहुँ सिद्धि नवों निधि कौ सुख, छोड़ करौ भव-पार गुरू जी।।
आय गयौ पद-पंकज मांहि जु, लोभ-सँसारिक ते अब तारौ।
हाथ धरौ मम शीश गुरूवर, मेटि देओ जग कौ तम सारौ।
ज्ञान-विवेक जगाय भरौ उर, ‘तेज’ प्रकाश महा-उजियारौ।
दास करै पद-वंदन आपकुँ, बांह गहो भव-पार उतारौ।।
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *आदिदेव जगत्कारणं श्रीधरं लोकनाथं विभुं व्यापकं शंकरम्। सर्वभक्तेष्टदं मुक्तिदं माधवं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे।।1।।*
*सर्वदा लोककल्याणपारायणं देवगोविप्ररक्षार्थसद्विग्रहम। दीनहीनात्मभक्ताश्रयं सुन्दरं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे।।2।।*
*दक्षिणे यस्य गंगा शुभा शोभते राजते सा रमा यस्य वामे सदा। य: प्रसन्नाननो भाँति भव्यश्च तं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे।।3।।*
*संकटे संगरे यं जन: सर्वदा स्वात्मभीनाशनाय स्मरेत् पीडित:। पूर्णकृत्यो भवेद् यत्प्रसादाच्च तं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे।।4।।*
*वाञ्छितं दुर्लभं यो ददाति प्रभु: साधवे स्वात्मभक्ताय भक्तिप्रिय:। सर्वभूताश्रयं तं ही विश्वम्भरं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे।।5।।*
*ब्रह्मण: साधुवैश्यश्च तुंगध्वजो येऽभवन् विश्रुता यस्य भक्त्यामरा:। लीलया यस्य विश्वं ततं तं विभुं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे।।6।।*
*येन चाब्रह्मबालतृणं धार्यते सृज्यते पाल्यते सर्वमेतज्जगत्। भक्तभावप्रियं श्रीदयासागरं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे।।7।।*
*सर्वकामप्रदं सर्वदा सत्प्रियं वन्दितं देववृन्दैर्मुनीन्द्रार्चितम्। पुत्रपौत्रादिसर्वेष्टदं शाश्वतं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे।।8।।*
*अष्टकं सत्यदेवस्य भक्त्या नर: भावयुक्तो मुदा यस्त्रिसन्ध्यं पठेत्। तस्य नश्यन्ति पापानि तेनाग्निना इन्धनानीव शुष्काणि सर्वाणि वे।।9।।*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *बालमुकुंदाष्टकम्*
*करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् । वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ १॥*
*संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् । सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ २॥*
*इन्दीवरश्यामलकोमलाङ्गं इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् । सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ३॥*
*लम्बालकं लम्बितहारयष्टिं शृङ्गारलीलाङ्कितदन्तपङ्क्तिम् । बिंबाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ४॥*
*शिक्ये निधायाद्यपयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् । भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ५॥*
*कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररङ्गे नटनप्रियन्तम् । तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ६॥*
*उलूखले बद्धमुदारशौर्यं उत्तुङ्गयुग्मार्जुन भङ्गलीलम् । उत्फुल्लपद्मायत चारुनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ७॥*
*आलोक्य मातुर्मुखमादरेण स्तन्यं पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् । सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ८॥*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *१-पवित्र-त्रिआचम्य*
---------------------------
*२-शिखा स्पर्श:*
---------------------
*३-पवित्रिधारणं*
---------------------
*४-स्वस्तिभाले तिलकं*
--------------------------------
*५-यजमान दक्षिण हस्ते यजमान पत्न्या वाम हस्ते कंकणबंधनम्*
---------------------------
*६-प्राणायाम:*
*प्रणवस्य परब्रह्म ऋषि: परमात्मा देवता दैवी गायत्रीच्छन्द: सप्तानांं व्याहृतिनां विश्वामित्र जमदग्नि* *भरद्वाजगौतमात्रिवशिष्ठकश्यपाऋषय: अग्नि वायु सूर्य वृहस्पति* *वरूणेन्द्रविश्वेदेवादेवता: गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीपंक्तित्रिष्टुब्जगत्यश्छन्दांसि तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्र* *ऋषि: सवितादेवता गायत्री छन्द: आपोज्योतिरित्यस्य प्रजापति ऋषि:* *ब्रह्माग्निवायुसूर्यादेवता यजुश्छन्द: सर्वेषाम् प्राणायामे विनियोग:।*
*ऊँ भू: ऊँ भूव: उँ स्व: उँ मह: ऊँ जन: ऊँ तप: ऊँ सत्यम्*
*ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।*
*ऊँ आपोज्योति रसोमृतं ब्रह्मभुर्भुवः स्वरोम्।*
*यथापर्वतधातूनां दोषां दहति पावकः।एवमन्तर्गतं पापं प्राणायामे दह्येत।*
*एवं पूरक: कुम्भक: रेचकः*
*।इति क्रमेण त्रिवारं प्राणायामं विधाय शांतिपाठं पठेत्।*
*हस्तेपुष्पाण्दाय स्वस्ति वैदिक मंगलमंत्राणि संस्मरणं कुर्यात्।*
*हरि: ऊँ आनोभद्रा: .......ऊँ शान्ति:*
*देवता नमस्कार:*
*ऊँ सिद्ध श्री गणाधिपतये नम: .......!*
*सुमुखश्चैक दन्तश्च........सर्वकार्यार्थ सिद्धये।*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *दिग्रक्षणम्*
----------------------
*वामहस्ते गौरसर्षपान् गृहित्वा तदुपरि दक्षिण हस्तम् अधोमुखम् कृत्वा दक्षिण जानोरुपरि संस्थाप्य मंत्रम् पठेत।*
*ऊँ अपसर्पन्तु ते भूता: ये भूता:भूमि संस्थिता:।*
*ये भूता: बिघ्नकर्तारस्तेनश्यन्तु शिवाज्ञया॥*
*अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम।*
*सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्मसमारभे॥*
*ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहःआग्नेयां गरुड़ध्वजः ।* *दक्षिणे पद्मनाभस्तु नैऋत्यां मधुसुदनः ॥* *पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः।* *उत्तरे श्री पते रक्षेत् ईशाने तु महेश्वरः ॥* *उर्ध्व रक्षतु धाता वोह्यधोऽनन्तस्तु रक्षतु ।* *एवं दश दिशो रक्षेत् वासुदेवो जनार्दनः ॥*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *संकल्प*
*ॐ* *विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:श्रीमद्भगवतो *महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया *प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवराहकल्पे *वैवस्वत *मन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे* *आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे श्रीरामक्षेत्रे परशुरामाश्रमे* *दण्डकारण्यदेशे पुण्यप्रदेशे महाराष्ट्रमहामण्डलान्तर्गते .......ग्रामे गोदावर्या:* *दक्षिणदिङ्भागे श्रीमल्लवणाब्धे सिन्धुतीरे*
*श्रीसंवत्* *द्वयसहस्त्र *तपंचसप्तति:शालिवाहनशाकेऽस्मिन् वर्तमाने विलम्बी नामसंवत्सरे श्रीसूर्ये उत्तरायणे* *वसन्त ऋतौ महामांगल्यप्रदेज्येष्ठमासे शुभेशुक्लपक्षे अष्टम्यांतिथौ श्रीभौमवासरान्वितायाम् मघानक्षत्रे व्याघातयोगे भावकरणे सिंहराशि स्थितेश्रीचन्द्रे वृषभराशिस्थितेश्रीसूर्ये शेषेषुग्रहेषु भौम बुध गुरू शुक्र शनि राहु केत्वादि यथायथं राशिस्थितेेषु सत्सु एवंगुणविशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ, नाना नामगोत्रोत्पन्नो शर्मा/वर्मा/गुप्तो/दासो वा सपत्नीको यजमानोऽहम्* *--मम आत्मन:श्रुति स्मृति *पुराणोक्त पुण्य फल प्राप्त्यर्थम् धर्माऽर्थ काम मोक्ष *पुरूषार्थचतुष्टयप्राप्त्यर्थं अप्राप्तलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं प्राप्तलक्ष्म्याः चिरकालसंरक्षणार्थम् एेश्वर्याभिः वृद्'ध्यर्थं* *सकल *इप्सित कामना संसिद्'ध्यर्थम् लोके सभायां राजद्वारे वा *सर्वत्र विजयलाभादि प्राप्त्यर्थं इह जन्मनिजन्मान्तरे वा *सकल दुरितोपशमनार्थं मम सभार्यस्य सपुत्रस्य सबान्धवस्य *अखिलकुटुम्बसहितस्य सपशो: समस्त भय व्याधि जरा पीड़ा मृत्यु *परिहार द्वारा आयु: ऐश्वर्याभि वृद्'ध्यर्थं मम जन्मराशे: *अखिलकुटुम्बस्य वा जन्मराशे: सकाशात् केचिद् विरूद्ध *चतुर्थाऽष्टमद्वादशस्थानस्थित क्रूर ग्रहा: तै: सूचितम् सूचयिष्यमाणं च यत् सर्वाऽरिष्टं तद्विनाशद्वारा* *एकादश स्थान स्थितिवत् *शुभफल प्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्रादि सन्तते: अविच्छिन्न वृद्धि अर्थं आदित्यादि नवग्रहाणां अनुकूलता सिद्धि अर्थं इन्द्रादि दशदिक्पालानां प्रसन्नता सिद्धि अर्थं* *आधिदैहिक आधिभौतिक आध्यात्मिक त्रिविधतापोपशमनार्थं तथा च अद्य शुभ लग्ने शुभ मुहूर्ते सर्वाभीष्ट सिद्धये श्री भवानी शंकर महारुद्र देवता प्रीतये श्री साम्बसदाशिवोपरि *अविछिन्न शुद्धवारिणा,गंगोदकेन,दुग्ध मिश्रित *जलेन,गोदुग्धेन,सहित यथालब्धसामग्रभि:सहितपंचवैदिकब्राह्मणैर्द्वारा रूद्राभिषेकं अहम् करिष्ये। तदंगभूतं निर्विघ्नता सिध्यर्थम् गणपतिपूजनं तथा च वसोर्धारा *सहित सगणेशगौर्यादि मातॄणां पूजनं तथा च *ब्राह्मण वरणं । तत्रादौ आसनविधि दिग्रक्षणं कलशार्चनम् *गणेश अंबिकयोः पूजनम् सगणेशगौर्यादि वसोर्धारा *सहित षोडस मातृका पूजनं *स्वस्तिपुण्याहवाचनम् दीपपूजनं आकाशमण्डले सूर्यपूजनं* *शंख घण्टार्चनं उत्तरे *हनुमत ध्यानं दक्षिणे कालभैरव ध्यानं च करिष्ये। *सर्वेषां देवानां सर्वाषाम्देवीनां ध्यायामि* *यथालब्ध सामग्रीभि: पूजनं *महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वती समन्विता* *चतुष्षष्टियोगिनीदेवता: ध्यायामि पूजनं* *असंख्यातरूद्र सहित नवग्रहाणां मण्डलस्थ देवानां ध्यानम् पूजनं *कुण्डस्थदेवतापूजन सहित अग्निस्थापनं पूजनं* *श्रीसर्वतोभद्रमंण्डलस्थ देवानां ध्यानम् आवाहनम् पूजनं च करिष्ये !*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *भैरवनमस्कारः*
--------------------------
*भैरव ध्यान*
*वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासिवक्त्रम्।* *दिव्याकल्पैर्नवमणिमयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥* *दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।* *हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल -दण्डौ दधानम्॥*
*सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि*
*येषु धूप येषु दीप येषु नैवेद्यम् निवेदयामि प्रदक्षिणा नमस्कारः*
*प्रार्थयेत*
देवराज्यसेव्मान............
*अनेन् पूजनेन् श्री भैरवः प्रीयेतांनमम्*
------------------------
*हनुमत ध्यानम्*
*काहे विलम्ब........*
*सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि*
*येषु धूप येषु दीप येषु नैवेद्यम् निवेदयामि प्रदक्षिणा नमस्कारः*
हे हनुमान महा बलवान.....
*अनेन् पूजनेन् श्री हनुमतः प्रीयेतांनमम्*
--------------------------
*कर्मपात्र पूजनम्*
*ततः स्ववामभागे अक्षतपुंजोपरि कलशं संस्थाप्य तत्र वरूणं आवाहेत्*
हरिःऊँ तत्वायामि.......
अस्मिन कलशे वरुणं *सागंसपरिवारं सायुधं सशक्तिकं आवाहयामि स्थापयामि*
*सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि*
*हस्ते जलमादाय*
*अनेन पूजनेन् वरुणः प्रीयेतांनमम्*
*ततः अनामिकया कलशं स्पृष्ट्वा अभिमंत्रयेत्*
*कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठे रुद्रळ समाश्रित:,मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।*
*कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा,ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण:।*
*अंगेश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:,अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा।*
*आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारका:,गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।*
*नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन संनिधिं कुरु।*
*सर्वे समुद्रा: सरितीर्थानि जलदा नदा:,आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारका:।*
*चतुर्दिक्षु चतुर्वेद पूजनम्*
*ऊँ पूर्वे-ऋग्वेदाय नमः*
*ऊँ दक्षिणे- यजुर्वेदाय नमः*
*ऊँ पश्चिमे-शामवेदाय नमः*
*ऊँ उत्तरे-अथर्ववेदाय नमः*
*मध्ये वरुणाय नमः वरूणं पूजयामि*
*प्रार्थयेत्*
*त्वत्प्रसादादिमां पूजा कर्तुमिहे जलोद्भव।सानिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा।।*
*अंकुश मुद्रया सूर्यामंण्लान्तर्वर्ती सर्वाणि तीर्थानि आवाह्य।वं इति धेनुमुद्रया अमृतीकृत्य हुम् इति कवचेन अवगुण्ठ्य मत्स्य मुद्रया आक्षाद्य वं वरूणाय नमः इति मंत्रेण अष्टवारम्अभिमंत्र्येत् तस्मात् उदकात् उदकम् गृहीत्वा तज्जलं वामहस्ते गृहीत्वा पूजाद्रव्याणि स्वात्मानं भूमिं संप्रोक्षयेत्*
*आपो हिष्ठा मयो भुवस्ता नSऊर्जे दधातन महेरणाय चक्षसे।।*
*यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयते हनः। उशती रिव मातरः।।*
*तस्याSअरं गमां वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः।।*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *दीपध्यानं*
दीपज्योति परंब्रह्म......पूजा दीप नमोस्तुते।
*सर्वोपचारार्थे गंधाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि।*
*येषु धूप दीप नैवेद्यं निवेदयामि दक्षिणा प्रदक्षिणा नमस्कारः।*
*।।दीप प्रार्थना।।*
दीप जलाई उजास करौ तब। दूर करै मन का अँधियारा।।
नेह-सनेह बढ़ै उर मांहि जु। पापहिं ताप घटै अपढारा।।
दीपकमाल जरात लखें जनु। व्योम भरा रजनीचर तारा।।
मंगल दायक दीप प्रकाशित। ‘तेज’ प्रकाश हरै तम सारा।।
*अनया पूजया दीपनारायणः प्रीयेतांनमम्*
*सूर्यध्यानम्*
यनमंडलंवेदविदोप गीतं....तत्सवितुर्वरेण्यं।
*विशेषार्घ:*
येहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशिजगत्पते।अनुकंप्योहं मामभक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकरः।।
*अनया पूजया दीपनारायणः प्रीयेतांनमम्*
*शंखध्यानम्*
पान्चजन्याय विद्महे.....प्रचोदयात्।
*सर्वोपचारार्थे गंधाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि।*
*येषु* *धूप दीप नैवेद्यं निवेदयामि दक्षिणा प्रदक्षिणा नमस्कारः।*
अव्यासनः कुन्द....जघनस्थलेषु।
*अनया पूजया शंखदेवाय प्रीयेतांनमम्।*
*गरूण ध्यानम्*
आगमार्थम् तुदेवानां.......प्रपूजयेत्।
*सर्वोपचारार्थे गंधाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि*
*येषु धूप दीप नैवेद्यं निवेदयामि दक्षिणा प्रदक्षिणा नमस्कारः।*
श्री विष्णुवाहं....घनंप्रसान्तम्।
*अनया पूजया गरूण: प्रीयेतांनमम्*
*गणेश अंबिका पूजनम्*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *।।श्री गणेश स्त्रोत।।*
*प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।*
*भक्तावासं स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।*
*प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।*
*तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।*
*लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।*
*सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।*
*नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।*
*एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।*
*द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।*
*न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।*
*विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।*
*पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।*
*जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।*
*संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।*
*अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।*
*तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।*
*।।श्री लक्ष्मी स्तोत्र।।*
*नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।* *शख्डचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥१॥*
*नमस्ते गरूडारूढे कोलासुरभयंकरि।* *सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥२॥*
*महालक्ष्मी सर्वज्ञे सर्व दुष्ट भयंकरि।* *सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥३॥*
*सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।* *मन्त्रमूर्ते महादेवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥४॥*
*आद्यन्तरहितेदेवि आद्यशक्ति महेश्वरि।* *योगजे योगसंभूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥५॥*
*स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।* *महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥६॥*
*पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।* *परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥७॥*
*श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।* *जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥८॥*
*महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं य: पठेभ्दक्तिमान्नर:।* *सर्वसिद्धिमवान्पोति राज्यं प्रान्पोति सर्वदा॥९॥*
*एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।* *द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥१०॥*
*त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।* *महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥११॥*
*प्रार्थना*
*जय श्री गणेश*
================
*पूजत है प्रथमे जग जाकहुँ। कीर्ति त्रिलोकहुँ छाइ रही है !!*
*सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!*
*रिद्धि बसै दहिने अरु बामहिं।सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!*
*हे इक दन्त कृपा करियो अब, आश मोरि तुमही से रही है !!*
*जय माता दी*
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*अम्ब सुनो जगदम्ब सुनो अब।बालक द्वार खड़ा गुहरावै !!*
*चाँउर कुंकुम लै चुनरी पट, वेद- विधान लिखे गुण गावै !!*
*मातु भरी ममता हिय में इक।बूँद झरै मम प्यास बुझावै !!*
*ब्यास-भुसुण्डि कहैं ऋषि नारद,तोरि निहोर सदासुख पावै !!*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: धीर-वीर, रक्षक प्रबल, बलशाली-हनुमान।
जिनके हृदय-अलिन्द में, रचे-बसे श्रीराम।।
--महासिन्धु को लाँघकर, नष्ट किये वन-बाग।
असुरों को आहत किया, लंका मे दी आग।।
--कभी न टाला राम का, जिसने था आदेश।
सीता माता को दिया, रघुवर का सन्देश।।
--लछमन को शक्ति लगी, शोकाकुल थे राम।
पवन वेग की चाल से, पहुँचे पर्वत धाम।।
--संजीवन के शैल को, उठा लिया तत्काल।
बूटी खा जीवित हुए, दशरथ जी के लाल।।--
बिगड़े काम बनाइए, बनकर कृपा निधान।
कोटि-कोटि वन्दन तुम्हे, पवनपुत्र हनुमान।।
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: *कजरा बनके बस जा श्याम आजा मोरी अखियन मे।2*
*नैनो को खोलू तो तुमको ही देखू।*
*रखू पलक जो तो तुमको ही देखूं।।2*
*तुझे देखु मै, तुझे देखु मै, तुझे देखू मै आठो याम,* *आजा मोरी अखियन मे।2*
*कजरा बनके बस जा श्याम आजा मोरी अखियन मे।2*
*तेरे दरश को तरसती है अंखिया।2*
*कर कर के यादे बरसती है अंखिया।।2*
*तेरी मस्ती का,तेरी मस्ती का,तेरी मस्ती का छलके जाम, आजा मोरी अखियन मे।2*
*कजरा बनके बस जा श्याम आजा मोरी अखियन मे।2*
*मै तो हुई रे श्याम तेरी दीवानी।*
*कह ना सकु मै किसी से कहानी।।2*
*मन के मंदिर मे, मन के मंदिर मे, मन के मंदिर मे गूँजे तेरा नाम,*
*आजा मोरी अखियन मे।2*
*कजरा बनके बस जा श्याम आजा मोरी अखियन मे2*
*तेरे दरश को जन्मो से प्यासे।*
*नैना भी प्यासे मन मेरा प्यासा।।2*
*तेरा पागल मै, तेरा पागल मै, तेरा पागल मै खड़ा दिल थाम, आजा मोरी अखियन मे।2*
*कजरा बनके बस जा श्याम आजा मोरी अखियन मे2✍*
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: यज्ञ रूप प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए।
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए॥
वेद की बोलें ऋचाएँ, सत्य को धारण करें।
हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें॥
अश्वमेधादिक रचाएँ, यज्ञ पर उपकार को।
धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को॥
नित्य श्रद्धा- भक्ति से, यज्ञादि हम करते रहें।
रोग पीड़ित विश्व के सन्ताप सब हरते रहें॥
कामना मिट जाए मन से, पाप अत्याचार की।
भावनाएँ शुद्ध होवें, यज्ञ से नर- नारि की॥
लाभकारी हो हवन, हर जीवधारी के लिए।
वायु- जल सर्वत्र हों, शुभ गन्ध को धारण किए॥
स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो।
‘इदं न मम’ का सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो॥
हाथ जोड़ झुकाय मस्तक, वन्दना हम कर रहे।
नाथ करुणारूप करुणा, आपकी सब पर रहे॥
यज्ञ रूप प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए।
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए॥
[05/08, 1:02 AM] Pt Mangleshwar: दिव्यकुण्डलसंकाशा, दिव्यज्वाला त्रिलोचना।
मूर्तिमती ह्यमूर्ता चे,
उग्रा चैवोग्ररूपिणी॥
अनेकभावासंयुक्ता, संसारार्णवतारिणी।
यज्ञे कुर्वन्तु निर्विघ्नं, श्रेयो यच्छन्तु मातरः॥
दिव्ययोगी महायोगी, सिद्धयोगी गणेश्वरी।
प्रेताशी डाकिनी काली, कालरात्री निशाचरी॥
हुङ्कारी सिद्धवेताली, खर्परी भूतगामिनी।
ऊर्ध्वकेशी विरूपाक्षी, शुष्काङ्गी धान्यभोजनी॥
फूत्कारी वीरभद्राक्षी, धूम्राक्षी कलहप्रिया।
रक्ता च घोररक्ताक्षी, विरूपाक्षी भयङ्करी॥
चौरिका मारिका चण्डी, वाराही मुण्डधारिणी।
भैरव चक्रिणी क्रोधा, दुर्मुखी प्रेतवासिनी॥
कालाक्षी मोहिनी चक्री, कङ्काली भुवनेश्वरी।
कुण्डला तालकौमारी, यमूदूती करालिनी॥
कौशिकी यक्षिणी यक्षी, कौमारी यन्त्रवाहिनी।
दुर्घटे विकटे घोरे, कपाले विषलङ्घने॥
चतुष्षष्टि समाख्याता, योगिन्यो हि वरप्रदाः।
त्रैलोक्ये पूजिता नित्यं, देवामानुष्योगिभिः॥ १०॥
[19/05, 15:11] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत ।
संकट बेगि में होहु सहाई ।।
नहिं जप जोग न ध्यान करो ।
तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।।
खेलत खात अचेत फिरौं ।
ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।
हेरत पन्थ रहो निसि वासर ।
कारण कौन विलम्बु लगाई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी सुत ।
संकट बेगि में होहु सहाई ।।
जो अब आरत होई पुकारत ।
राखि लेहु यम फांस बचाई ।।
रावण गर्वहने दश मस्तक ।
घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।
निशिचर मारि विध्वंस कियो ।
घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।।
जाइ पाताल हने अहिरावण ।
देविहिं टारि पाताल पठाई ।।
वै भुज काह भये हनुमन्त ।
लियो जिहि ते सब संत बचाई ।।
औगुन मोर क्षमा करु साहेब ।
जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।
भवन आधार बिना घृत दीपक ।
टूटी पर यम त्रास दिखाई ।।
काहि पुकार करो यही औसर ।
भूलि गई जिय की चतुराई ।।
गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु ।
रोषित देखि के जात डेराई ।।
छाड़े हैं माता पिता परिवार ।
पराई गही शरणागत आई ।।
जन्म अकारथ जात चले ।
अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।।
मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी ।
भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।
पूज कोऊ कृत काशी गयो ।
मह कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।।
जानत शेष महेष गणेश ।
सुदेश सदा तुम्हरे गुण गाई ।।
और अवलम्ब न आस छुटै ।
सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।।
संतन के दुःख देखि सहैं नहिं ।
जान परि बड़ी वार लगाई ।।
एक अचम्भी लखो हिय में ।
कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।।
कहुं ताल मृदंग बजावत गावत ।
जात महा दुःख बेगि नसाई ।।
मूरति एक अनूप सुहावन ।
का वरणों वह सुन्दरताई ।।
कुंचित केश कपोल विराजत ।
कौन कली विच भऔंर लुभाई ।।
गरजै घनघोर घमण्ड घटा ।
बरसै जल अमृत देखि सुहाई ।।
केतिक क्रूर बसे नभ सूरज ।
सूरसती रहे ध्यान लगाई ।।
भूपन भौन विचित्र सोहावन ।
गैर बिना वर बेनु बजाई ।।
किंकिन शब्द सुनै जग मोहित ।
हीरा जड़े बहु झालर लाई ।।
संतन के दुःख देखि सको नहिं ।
जान परि बड़ी बार लगाई ।।
संत समाज सबै जपते सुर ।
लोक चले प्रभु के गुण गाई ।।
केतिक क्रूर बसे जग में ।
भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई ।।
नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो ।
बनमाहिं इकन्तहि जाई ।।
केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर ।
धन्य गुरु जिन पन्थ दिखाई ।।
स्वारथ जन्म भये तिनके ।
जिन्ह को हनुमन्त लियो अपनाई ।।
का वरणों करनी तरनी जल ।
मध्य पड़ी धरि पाल लगाई ।।
जाहि जपै भव फन्द कटैं ।
अब पन्थ सोई तुम देहु दिखाई ।।
हेरि हिये मन में गुनिये मन ।
जात चले अनुमान बड़ाई ।।
यह जीवन जन्म है थोड़े दिना ।
मोहिं का करि है यम त्रास दिखाई ।।
काहि कहै कोऊ व्यवहार करै ।
छल-छिद्र में जन्म गवाईं ।।
रे मन चोर तू सत्य कहा अब ।
का करि हैं यम त्रास दिखाई ।।
जीव दया करु साधु की संगत ।
लेहि अमर पद लोक बड़ाई ।।
रहा न औसर जात चले ।
भजिले भगवन्त धनुर्धर राई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत ।
संकट बेगि में होहु सहाई ।।
[19/05, 15:13] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: जय श्री गणेश
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पूजत है प्रथमॆ जग जाकहुँ, कीर्ति त्रिलॊकहुँ छाइ रही है !!
सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!
रिद्धि बसै दहिनॆ अरु बामहिँ,सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!
हॆ इक दन्त कृपा करियॊ अब, आश मोरि तुमही से रही है !!
जय माता दी
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अम्ब सुनॊ जगदम्ब सुनॊ अब,बालक द्वार खड़ा गुहरावै !!
चाँउर कुंकुम लै चुनरी पट, वॆद- विधान लिखॆ गुण गावै !!
मातु भरी ममता हिय मॆं इक,बूँद झरै मम प्यास बुझावै !!
ब्यास-भुसुण्डि कहैं ऋषि नारद,तॊरि निहॊर सदासुख पावै !!
[19/05, 15:13] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: ।।दीप प्रार्थना।।
दीप जलाई उजास करौ तब, दूर करै मन का अँधियारा।
नेह-सनेह बढ़ै उर मांहि जु, पापहिं ताप घटै अपढारा।
दीपकमाल जरात लखें जनु, व्योम भरा रजनीचर तारा।
मंगल दायक दीप प्रकाशित, ‘तेज’ प्रकाश हरै तम सारा।
[19/05, 15:13] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: ।।गुरू वन्दना।।
नाश करौ उर के तम कौ अब, जीवन हो उपहार गुरू जी।
ज्ञान-प्रकाश भरौ मम जीवन, आपहि बुद्धि सुधार गुरू जी।
जानत नाहिं अबोध-अकिंचन, मो पर हो उपकार गुरू जी।
आठहुँ सिद्धि नवों निधि कौ सुख, छोड़ करौ भव-पार गुरू जी।।
आय गयौ पद-पंकज मांहि जु, लोभ-सँसारिक ते अब तारौ।
हाथ धरौ मम शीश गुरूवर, मेटि देओ जग कौ तम सारौ।
ज्ञान-विवेक जगाय भरौ उर, ‘तेज’ प्रकाश महा-उजियारौ।
दास करै पद-वंदन आपकुँ, बांह गहो भव-पार उतारौ।।
[19/05, 15:13] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: ।।श्री गणेश स्त्रोत।।
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।
[19/05, 15:13] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते। शख्डचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥१॥ नमस्ते गरूडारूढे कोलासुरभयंकरि। सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥२॥ सर्वज्ञे सर्व दुष्ट भयंकरि। सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥३॥ सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी। मन्त्रमूर्ते महादेवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥४॥ आद्यन्तरहितेदेवि आद्यशक्ति महेश्वरि। योगजे योगसंभूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥५॥ स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥६॥ पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥७॥ श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥८॥ महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं य: पठेभ्दक्तिमान्नर:। सर्वसिद्धिमवान्पोति राज्यं प्रान्पोति सर्वदा॥९॥ एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्। द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥१०॥ त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥११॥
[19/05, 15:13] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *बालमुकुंदाष्टकम्*
*करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् । वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ १॥*
*संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् । सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ २॥*
*इन्दीवरश्यामलकोमलाङ्गं इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् । सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ३॥*
*लम्बालकं लम्बितहारयष्टिं शृङ्गारलीलाङ्कितदन्तपङ्क्तिम् । बिंबाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ४॥*
*शिक्ये निधायाद्यपयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् । भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ५॥*
*कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररङ्गे नटनप्रियन्तम् । तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ६॥*
*उलूखले बद्धमुदारशौर्यं उत्तुङ्गयुग्मार्जुन भङ्गलीलम् । उत्फुल्लपद्मायत चारुनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ७॥*
*आलोक्य मातुर्मुखमादरेण स्तन्यं पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् । सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ ८॥*
*वास्तु सान्ति संकल्प*
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे श्रीरामक्षेत्रे परशुरामाश्रमे दण्डकारण्यदेशे पुण्यप्रदेशे महाराष्ट्रमहामण्डलान्तर्गते ........ग्रामे गोदावर्या: दक्षिणदिङ्भागे श्रीमल्लवणाब्धे सिन्धुतीरे
श्रीसंवत् द्वयसहस्त्र तपंचसप्तति:शालिवाहनशाकेऽस्मिन् वर्तमाने विलम्बी नामसंवत्सरे श्रीसूर्ये उत्तरायणे वसन्त ऋतौ महामांगल्यप्रदेज्येष्ठमासे शुभेकृष्णपक्षे षष्टम्याम्तिथौ श्रीरविवासरान्वितायाम् उत्तराषाढ़ानक्षत्रे साध्ययोगे वाणिजकरणे मकरराशि स्थितेश्रीचन्द्रे मेषराशिस्थितेश्रीसूर्ये शेषेषुग्रहेषु भौम बुध गुरू शुक्र शनि राहु केत्वादि यथायथं राशिस्थितेेषु सत्सु एवंगुणविशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ, नाना नामगोत्रोत्पन्नो शर्मा/वर्मा/गुप्तो/दासो वा सपत्नीको यजमानोऽहम् --मम आत्मन:श्रुति स्मृति पुराणोक्त पुण्य फल प्राप्त्यर्थम् धर्माऽर्थ काम मोक्ष पुरूषार्थचतुष्टयप्राप्त्यर्थं अप्राप्तलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं प्राप्तलक्ष्म्याः चिरकालसंरक्षणार्थम् एेश्वर्याभिः वृद्'ध्यर्थं सकल इप्सित कामना संसिद्'ध्यर्थम् लोके सभायां राजद्वारे वा सर्वत्र विजयलाभादि प्राप्त्यर्थं इह जन्मनिजन्मान्तरे वा सकल दुरितोपशमनार्थं मम सभार्यस्य सपुत्रस्य सबान्धवस्य अखिलकुटुम्बसहितस्य सपशो: समस्त भय व्याधि जरा पीड़ा मृत्यु परिहार द्वारा आयु: ऐश्वर्याभि वृद्'ध्यर्थं मम जन्मराशे: अखिलकुटुम्बस्य वा जन्मराशे: सकाशात् केचिद् विरूद्ध चतुर्थाऽष्टमद्वादशस्थानस्थित क्रूर ग्रहा: तै: सूचितम् सूचयिष्यमाणं च यत् सर्वाऽरिष्टं तद्विनाशद्वारा एकादश स्थान स्थितिवत् शुभफल प्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्रादि सन्तते: अविच्छिन्न वृद्धि अर्थं आदित्यादि नवग्रहाणां अनुकूलता सिद्धि अर्थं इन्द्रादि दशदिक्पालानां प्रसन्नता सिद्धि अर्थं आधिदैहिक आधिभौतिक आध्यात्मिक त्रिविधतापोपशमनार्थं तथा च अस्मिन् गृहनिर्माणकाले नानाविध जीवहिंसादि जन्य सकल पातक निरसन पूर्वकं सर्वारिष्ट शांत्यर्थम् सुवर्ण रजत ताम्र त्रपु सीसक कांस्य लौह पाषाणादि अष्ट शल्य मेदिनी दोष परिहार पूर्वकम् आयव्यादि भवनदोष परिहारार्थम् अस्मिन् गृहे सुखपूर्वक सपरिवार चिरकाल निवासार्थम् श्री वास्तुदेवता प्रीत्यर्थम् सग्रहमखं वास्तुशान्त्यख्यं कर्म करिष्ये तथा च अद्यदिवसे शुभ वेलायां मंगलवेलायां प्रातःकालेऽस्मिन् नूतनगृहे तदंगभूतं निर्विघ्नता सिध्यर्थम् गणपतिपूजनं तथा च वसोर्धारा सहित सगणेशगौर्यादि मातॄणां पूजनं तथा च ब्राह्मण वरणं च करिष्ये। तत्रादौ आसनविधि दिग्रक्षणं कलशार्चनम् गणेश अंबिकयोः पूजनम् सगणेशगौर्यादि वसोर्धारा सहित षोडस मातृका पूजनं स्वस्तिपुण्याहवाचनम् दीपपूजनं आकाशमण्डले सूर्यपूजनं शंख घण्टार्चनं उत्तरे हनुमत ध्यानं दक्षिणे कालभैरव ध्यानं च करिष्ये। सर्वेषां देवानां सर्वाषाम्देवीनां ध्यायामि यथालब्ध सामग्रीभि: पूजनं शिख्यादिवास्तुमंण्डलस्थ देवानां ध्यानम् पूजनं महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वती समन्विता चतुष्षष्टियोगिनीदेवता: ध्यायामि पूजनं एकोऽनपंचाशत् अजरादि क्षेत्रपाल मण्डल देवता ध्यानम् पूजनम् असंख्यातरूद्र सहित नवग्रहाणां मण्डलस्थ देवानां ध्यानम् पूजनं कुण्डस्थदेवतापूजन सहित अग्निस्थापनं पूजनं श्रीसर्वतोभद्रमंण्डलस्थ देवानां ध्यानम् आवाहनम् पूजनं च करिष्ये !
*॥ गणनायकाष्टकम् ॥*
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एकदन्तं महाकायं तप्तकाञ्चनसन्निभम् ।
लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ १॥
मौञ्जीकृष्णाजिनधरं नागयज्ञोपवीतिनम् ।
बालेन्दुसुकलामौलिं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ २॥
अम्बिकाहृदयानन्दं मातृभिः परिवेष्टितम् ।
भक्तिप्रियं मदोन्मत्तं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ३॥
चित्ररत्नविचित्राङ्गं चित्रमालाविभूषितम् ।
चित्ररूपधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ४॥
गजवक्त्रं सुरश्रेष्ठं कर्णचामरभूषितम् ।
पाशाङ्कुशधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ४॥
मूषकोत्तममारुह्य देवासुरमहाहवे
योद्धुकामं महावीर्यं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ५॥
यक्षकिन्नरगन्धर्वक्ष् सिद्धविद्याधरैस्सदा
स्तूयमानं महाबाहुं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ६॥
सर्वविघ्नहरं देवं सर्वविघ्नविवर्जितम् ।
सर्वसिद्धिप्रदातारं वन्देऽहं गणनायकम् ॥ ८॥
गणाष्टकमिदं पुण्यं यः पठे सततं नरः
सिद्ध्यन्ति सर्वकार्याणि विद्यावान् धनवान् भवेत् ॥
*इति श्रीगणनायकाष्टकं सम्पूर्णम् ।*
॥ श्रीशारदाप्रार्थना श्रीशङ्कराचार्यविरचिता ॥
नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुरवासिनि ।
त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे ॥ १॥
या श्रद्धा धारणा मेधा वग्देवी विधिवल्लभा ।
भक्तजिह्वाग्रसदना शमादिगुणदायिनी ॥ २॥
नमामि यामिनीं नाथलेखालङ्कृतकुन्तलाम् ।
भवानीं भवसन्तापनिर्वापणसुधानदीम् ॥ ३॥
भद्रकाल्यै नमो नित्यं सरस्वत्यै नमो नमः ।
वेदवेदाङ्गवेदान्तविद्यास्थानेभ्य एव च ॥ ४॥
ब्रह्मस्वरूपा परमा ज्योतिरूपा सनातनी ।
सर्वविद्याधिदेवी या तस्यै वाण्यै नमो नमः ॥ ५॥
यया विना जगत्सर्वं शश्वज्जीवन्मृतं भवेत् ।
ज्ञानाधिदेवी या तस्यै सरस्वत्यै नमो नमः ॥ ६॥
यया विना जगत्सर्वं मूकमुन्मत्तवत्सदा ।
या देवी वागधिष्ठात्री तस्यै वाण्यै नमो नमः ॥ ७॥
॥ इति श्रीशारदाप्रार्थना श्रीशङ्कराचार्यविरचिता ॥
*।।श्री गणेश स्त्रोत।।*
*प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।*
*भक्तावासं स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।*
*प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।*
*तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।*
*लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।*
*सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।*
*नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।*
*एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।*
*द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।*
*न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।*
*विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।*
*पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।*
*जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।*
*संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।*
*अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।*
*तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।*
*।।श्री लक्ष्मी स्तोत्र।।*
*नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।* *शख्डचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥१॥*
*नमस्ते गरूडारूढे कोलासुरभयंकरि।* *सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥२॥*
*महालक्ष्मी सर्वज्ञे सर्व दुष्ट भयंकरि।* *सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥३॥*
*सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।* *मन्त्रमूर्ते महादेवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥४॥*
*आद्यन्तरहितेदेवि आद्यशक्ति महेश्वरि।* *योगजे योगसंभूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥५॥*
*स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।* *महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥६॥*
*पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।* *परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥७॥*
*श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।* *जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥८॥*
*महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं य: पठेभ्दक्तिमान्नर:।* *सर्वसिद्धिमवान्पोति राज्यं प्रान्पोति सर्वदा॥९॥*
*एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।* *द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥१०॥*
*त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।* *महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥११॥*
*प्रार्थना*
*जय श्री गणेश*
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*पूजत है प्रथमे जग जाकहुँ। कीर्ति त्रिलोकहुँ छाइ रही है !!*
*सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!*
*रिद्धि बसै दहिने अरु बामहिं।सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!*
*हे इक दन्त कृपा करियो अब, आश मोरि तुमही से रही है !!*
*जय माता दी*
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*अम्ब सुनो जगदम्ब सुनो अब।बालक द्वार खड़ा गुहरावै !!*
*चाँउर कुंकुम लै चुनरी पट, वेद- विधान लिखे गुण गावै !!*
*मातु भरी ममता हिय में इक।बूँद झरै मम प्यास बुझावै !!*
*ब्यास-भुसुण्डि कहैं ऋषि नारद,तोरि निहोर सदासुख पावै !!*