*पति एक दरगाह पर माथा टेककर घर लौटा,* *तो पत्नी ने बगैर नहाए घर में घुसने नहीं दिया।*

*पत्नी बोली : जब अपने खुद के बाप को शमशान में जलाकर आये थे, तब तो खूब रगड़ रगड़ के नहाये थे।*

 *अब एक मुल्ले की लाश पर मत्था टेक कर आ रहे हो, अब नहीं नहाओगे?*

*पति:   अरी बाबरी, वो तो समाधी है।*

*पत्नी:   उसको जलाया कब ? जलावेगा तभी तो समाधी बनेगी। उसमें तो अभी लाश ही पड़ी है।*

*पति:    अरे, वो तो देवता है।*

*पत्नी:  तो तुम्हारा बाप क्या राक्षस था?*

*पति:   अरी मुझे तो दोस्त अब्दुल ले गया था। अगर नहीं जाऊँगा तो उसे बुरा नहीं लगेगा?*

 

*पत्नी:   तो उस अब्दुल को सामने हनुमान जी के मन्दिर में मत्था टेकवाने ले आना। कल मंगलवार भी है।*

*पति:   वो तो कभी नहीं आवेगा मत्था टेकने।* 

*ला पानी की बाल्टी दे।* 

*पत्नी:  और कान पकड़ के* *10 दंड बैठक और लगाओ।* 

*यह हमारा घर है।*

 *यहाँ केवल बाके बिहारी जी श्री राधे रानी  महादेव जी और मां आदिशक्ति की मर्जी चलती है।*

*सुख आवै तब भी, दुख आवै तब भी।*

*वो मुर्दा अगर सोने कि थाली  भी भर के हीरा जवाहरात भी दे तो भी नहीं चाहिए।*

*जय सनातन धर्म की !*

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