♦️जन्मकुंडली में धन योग स्थिति विचार👇🏼👇🏼

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जातक की कुंडली से जातक के जीवन के हर पहलु का अध्ययन किया जाता है।धन जीवनयापन करने के लिए मूल अवश्यक्ताओ को पूर्ण करने के लिए धन की आवश्यक्ता जीवन के हर मोड़ पर पड़ती है।किसी भी जातक की कुंडली गहराई से अध्ययन करके उसकी आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।

🔸कुंडली का दूसरा भाव और ग्यारहवाँ भाव जातक की आर्थिक स्थिति से मुख्य रूप से सम्बन्ध रखता है।इसके अतिरिक्त कुंडली का नवम भाव भी विचारणीय आवश्यक होता है।

🔸नवम भाव भाग्य का स्थान है यदि भाग्य ही साथ न दे तो धन मिलने पर भी जातक उसका उपभोग नही कर सकता।इसके साथ दसवे भाव की स्थिति भी बली होनी चाहिए, दसवा भाव रोजगार है।

🔸यदि नोवा भाव, दसवाँ भाव और इन भावो के स्वामी ठीक स्थिति में हो, दूसरे भाव का स्वामी दूसरे भाव में ही दोष रहित होकर बैठा हो, ग्यारहवे भाव का स्वामी ग्यारहवे भाव में ही दोषरहित होकर बैठा हो तब जातक अतुल्य धन संपत्ति का स्वामी होता है।

🔸द्वितीय भाव धन का स्थान है तो ग्यारहवा भाव धन लाभ और अन्य लाभों का।जब धन भाव का स्वामी धन भाव में ही हो ग्यारहवे भाव का स्वामी ग्यारहवे भाव में ही दोषरहित होकर बैठा हो तब यह स्थान अपने-अपने स्थान की वृद्धि करते है या दूसरे और ग्यारहवे भाव के स्वामी एक दूसर के भाव में बैठे हो मतलब आपस में स्थान परिवर्तन कर ले। ऐसी स्थिति होने पर जातक अच्छा धन कमाने के सम्बन्ध में भाग्यशाली होता है।उपरोक्त दूसरे, नवे, दसवें,ग्यारहवे भाव, भावेशों की स्थिति इसी प्रकार की होने पर आर्थिक रूप से अच्छे परिणाम मिलते है।इसके अतिरिक्त अन्य कई मजबूत धन स्थितियां जातक की कुंडली में बनती है।

🔸दूसरे और ग्यारहवे भावो के स्वामियों का नवे भाव के स्वामी से बली और शुभ सम्बन्ध अच्छा पैसा देता है कारण नवा भाव जातक का भाग्यभाव और कुंडली का अति शुभ लक्ष्मी स्थान होता है।

🔹 कुंडली के त्रिकोण भावो को लक्ष्मी नाम की उपाधि ज्योतिष में दी गई है।जिस कारण दूसरे और ग्यारहवे भावेशों दोनों का बली और शुभ सम्बन्ध नवे भाव या इसके स्वामी से हो जाने से जातक अपने भाग्य के बल से अच्छा धन कमाता है।

🔸केंद्र- त्रिकोण के संबंध होने से राजयोग बनता है यदि केंद्र त्रिकोण के स्वामियों से द्वितीय भाव और ग्यारहवे भाव का सम्बन्ध बन जाने से भी राजयोग की वजह से जातक अच्छे धन का स्वामी होता है।

🔸राजयोग के साथ द्वितीय भाव का सम्बन्ध धन वृद्धि कारक होता है या कुंडली में राजयोग होने के साथ साथ दूसरे भाव का स्वामी दूसरे भाव में हो, ग्यारहवे भाव का स्वामी ग्यारहवे भाव में हो या उच्च, वर्गोत्तम होकर यह ग्रह केंद्र त्रिकोण भावो में ही बैठे हो तब भी अच्छी धन स्थिति होती है।ऐसी धन स्थितियां कुंडली में होने पर अच्छे धन प्राप्ति के लिए जातक की कुंडली में चल रही महादशा, अन्तर्दशा भी जातक के अनुकूल होनी चाहिए यदि अस्त, नीच(नीचभंग न हुआ हो तब), आदि प्रतिकूल ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा के दौरान अच्छा धन कमाने में कमी रहेगी।

🔸दूसरे, ग्यारहवे और केंद्र त्रिकोण भावो की शुभ और बली स्थितियां भी बहुत श्रेष्ठ धन योग बनाती है।इसके अतिरिक्त होरा कुंडली से भी जातक के धन की स्थिति पर विचार किया जाता है लग्न कुंडली में अच्छे धन योग होने के साथ-साथ होरा कुंडली में भी अच्छी धन स्थितियां बन रही हो तब धन की स्थिति के सम्वन्ध में जातक राजाओ का भी राजा होता है।