*श्रद्धेय पंडित श्री नंदकिशोर पाण्डेय जी महाराज*
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*प्रेरक प्रसंग - 92*
*!! पैरों के निशान !!*
जन्म से ठीक पहले एक बालक भगवान से कहता है, “प्रभु आप मुझे नया जन्म मत दीजिये, मुझे पता है पृथ्वी पर बहुत बुरे लोग रहते हैं… मैं वहाँ नहीं जाना चाहता...” और ऐसा कह कर वह उदास होकर बैठ जाता है।
भगवान स्नेह पूर्वक उसके सर पर हाथ फेरते हैं और सृष्टि के नियमानुसार उसे जन्म लेने की महत्ता समझाते हैं, बालक कुछ देर हठ करता है पर भगवान के बहुत मनाने पर वह नया जन्म लेने को तैयार हो जाता है।
“ठीक है प्रभु, अगर आपकी यही इच्छा है कि मैं मृत लोक में जाऊं तो वही सही, पर जाने से पहले आपको मुझे एक वचन देना होगा।” बालक भगवान से कहता है।
भगवान : बोलो पुत्र तुम क्या चाहते हो ?
बालक : आप वचन दीजिये कि जब तक मैं पृथ्वी पर हूँ तब तक हर एक क्षण आप भी मेरे साथ होंगे।
भगवान : अवश्य, ऐसा ही होगा।
बालक : किंतु पृथ्वी पर तो आप अदृश्य हो जाते हैं, भला मैं कैसे जानूंगा कि आप मेरे साथ हैं कि नहीं?
भगवान : जब भी तुम आँखें बंद करोगे तो तुम्हें दो जोड़ी पैरों के चिन्ह दिखाई देंगे, उन्हें देखकर समझ जाना कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।
फिर कुछ ही क्षणो में बालक का जन्म हो जाता है।
जन्म के बाद वह संसारिक बातों में पड़कर भगवान से हुए वार्तालाप को भूल जाता है। पर मरते समय उसे इस बात की याद आती है तो वह भगवान के वचन की पुष्टि करना चाहता है।
वह आखें बंद कर अपना जीवन याद करने लगता है। वह देखता है कि उसे जन्म के समय से ही दो जोड़ी पैरों के निशान दिख रहे हैं। परंतु जिस समय वह अपने सबसे बुरे वक़्त से गुजर रहा था उस समय केवल एक जोड़ी पैरों के निशान ही दिखाई दे रहे थे, यह देख वह बहुत दुःखी हो जाता है कि भगवान ने अपना वचन नहीं निभाया और उसे तब अकेला छोड़ दिया जब उनकी सबसे अधिक ज़रुरत थी।
मरने के बाद वह भगवान के समक्ष पहुंचा और रूठते हुए बोला, “प्रभु ! आपने तो कहा था कि आप हर समय मेरे साथ रहेंगे, पर मुसीबत के समय मुझे दो की जगह एक जोड़ी ही पैर दिखाई दिए, बताइये आपने उस समय मेरा साथ क्यों छोड़ दिया?”
भगवान मुस्कुराये और बोले, “पुत्र ! जब तुम घोर विपत्ति से गुजर रहे थे तब मेरा हृदय द्रवित हो उठा और मैंने तुम्हें अपनी गोद में उठा लिया, इसलिए उस समय तुम्हें सिर्फ मेरे पैरों के चिन्ह दिखायी पड़ रहे थे।”
*शिक्षा:-*
मित्रों, बहुत बार हमारे जीवन में बुरा वक़्त आता है, कई बार लगता है कि हमारे साथ बहुत बुरा होने वाला है, पर जब बाद में हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो पाते हैं कि हमने जितना सोचा था उतना बुरा नहीं हुआ, क्योंकि शायद यही वो समय होता है जब ईश्वर हम पर सबसे ज्यादा कृपा करते हैं। अनजाने में हम सोचते हैं कि वो हमारा साथ नहीं दे रहे पर हकीकत में वो हमें अपनी गोद में उठाये होते हैं।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*