।।ऋषय:ऊचु:।।
धर्मोSस्य मूलं धनमस्य शाखा
पुष्पं च कामः फलमस्य मोक्ष:
असौ सदाचारतरु: सुकेशिन्
संसेवितो येन स पुण्यभोक्ता।।१९।।
【वामनपुराण अध्याय १४】
"सदाचार का मूल धर्म है,धन इसकी शाखा है,
काम (मनोरथ) इसका पुष्प है एवं मोक्ष इसका फल है।
ऐसे सदाचाररूपी वृक्षका जो सेवन करता है। वह जीव पुण्यभोगी बनता है।।
सदाचार का फल मोक्ष(परम् सुख )है। वह परम सुख तभी प्राप्त होगा जब हम सदाचारी बनेंगे।दुराचार का फल दुःख है। इसलिये अपने परम् आनन्द के लिये भी हमें सदाचारी होना अत्यन्त आवश्यक है।।
।।ॐ नमो नारायणाय।।सु प्रभात।।