जिसके माथे पर तिलक ना दिखे, उसका सर धड़ से अलग कर दो.....पुष्यमित्र शुंग एक महान क्रांतिकारी हिन्दू राजा... यह बात आज से 2100 साल पहले की है। एक किसान ब्राह्मण के घर एक पुत्र ने जन्म लिया, नाम रखा गया पुष्यमित्र पूरा नाम पुष्यमित्र शुंग... और वो बना एक महान हिन्दू सम्राट जिसने भारत को बुद्ध देश बनने से बचाया। अगर ऐसा कोई राजा कम्बोडिया, मलेशिया या इंडोनेशिया में जन्म लेता तो आज भी यह देश हिन्दू होते... जब सिकन्दर राजा पोरस से मार खाकर अपना विश्व विजय का सपना तोड़ कर उत्तर भारत से शर्मिंदा होकर मगध की और गया था उसके साथ आये बहुत से यवन वहां बस गए। अशोक सम्राट के बुद्ध धर्म अपना लेने के बाद उनके वंशजों ने भारत में बुद्ध धर्म लागू करवा दिया। ब्राह्मणों के द्वारा इस बात का सबसे अधिक विरोध होने पर उनका सबसे अधिक कत्लेआम हुआ। हज़ारों मन्दिर गिरा दिए गए। इसी दौरान पुष्यमित्र के माता पिता को धर्म परिवर्तन से मना करने के कारण उनके पुत्र की आँखों के सामने काट दिया गया। बालक चिल्लाता रहा मेरे माता पिता को छोड़ दो। पर किसी ने नही सुनी। माँ बाप को मरा देखकर पुष्यमित्र की आँखों में रक्त उतर आया। उसे गाँव वालों की संवेदना से नफरत हो गयी। उसने कसम खाई की वो इसका बदला बौद्धों से जरूर लेगा और जंगल की तरफ भाग गया... अशोक के बौद्ध बनने के बाद अशोक के द्वारा इसे राज धर्म का दर्जा दिलाया गया तथा इससे विमुख होने वाले के लिए दंड का प्रावधान और प्रसासनिक सुविधाओ से वंचित रखा गया जिसके कारन अशोक के काल में ही ये बौद्ध मत / बौद्ध धर्म बन कर पुरे भारत में फ़ैलता गया इसे भी उसी धर्म प्रसार की नीती में रखा जा सकता है...! जिस धर्म प्रसार की नीती में इस्लाम विश्व में फैला... इसमें कोई शक नही के धर्म को राज्य धर्म घोषित करने के बाद बौद्धों द्वारा पुरे भारत में बौध धर्म प्रसार के लिए क्या और कैसे प्रयास किये गए होंगे।इसका प्रमाण स्वय बौध साहित्य अशोक्वंदना में मिल जाता है जो अशोक का जीवन चरित कहा जा सकता है...! जिसमे साफ और स्पष्ट शब्दों में अशोक द्वारा लाखो जैनो और ब्राह्मणों को मौत के घाट उतारने का और उनके सर लाने वालो को सहस्त्र मुद्राए देने का आदेश देते हुऐ लिखा गया... जैनो का गुनाह इतना था की उन्होने महावीर के एक चित्र बुद्ध को उनके शिष्य के तौर पर चित्रित करने का प्रयास किया था। जिससे बौद्ध मठो में बैठे धर्म गुरुओ को अपमान का बोध हुआ और राज धर्म के अपमान का अपराध घोषित कर जैनो को मरवा दिया गया उसमे तो ये भी लिखा है... हजारो जैनियो को सामूहिक बंदी बना उन्हें आग की लपटों में जिन्दा जला दिया गया... बौद्धों के इस अहिंसा के पाठ से हमारी तलवारो ने जंग पकड़ लिया हमारे हाथ कमजोर हो गए और हम सनातनी जिसने भारत को अपने लहू से सींचा सवारा उसी भारत को धूर्त बौद्ध धर्म गुरुओ ने तहस नहस कर दिया इन्हें कोई फर्क नही पड़ता था के अखंड भारत रहे या मिटे क्यों की इनका बाजार तो वेदेशो तक फ़ैल चूका था इतिहास में ये भी वर्णन है की तब बौद्ध मठ हथियार छुपाने और विदेशी सैनिको को छुपाने के अड्डे हुआ करते थे... खैर भारतीय परिवेश में चंद्रगुप्त के अखंड भारत को खंड खंड करने का प्रयास अगर किसी ने किया तो वो बौधिश्तो ने किया... अशोक को धर्म के बंदिश में बाध कर विदेशी ग्रीक शासको को मथुरा तक पहुचाने वाले बौद्ध धर्माधिकारी ही थे। इस प्रकार से विदेशी आक्रमण कारियो को भारत पर शासन का निमंत्रण देने वाले देश के प्रथम गद्दार बौद्ध ही है...! क्यों की चन्द्रगुप्त के सामने तो सिकंदर तक मूत दिया था भारत में शासन करने का ख्वाब तो दूर की बात है किन्तु अशोक को धर्म और बौद्ध प्रसार के बंधन में बाध कर बौद्धों ने भारतीयों के साथ जो क्षल किया उससे भारतीय सीमाए असुरक्षित हो गई और प्रादेशिक राजाओ में विद्रोह उत्पन्न हो गया अखंड भारत खंड खंड होने लगा... सम्राट अशोक से ज्यादा बौद्धों के लिए किसी ने कुछ नही किया जितना ज्यादा त्याग जीतनी आस्था और विश्वास से अशोक ने बौधिज्म के प्रसार लिए किया उसका प्रतिफल बौधिष्ट मठो में बैठे फ़ोकट खाऊ मठाधीशो ने उनके ही राज्य को तहस नहस कर के चुकाया... यही कारण था अशोक के बाद बौद्ध धर्म के लिए किसी ने उतनी तत्परता नही दिखाई तथा अशोक के बाद मौर्य वंशियो ने पुनः जैन धर्म अपना लिया। और ये क्रम बौद्ध जैन से होते हुऐ वृहद्रथ तक पंहुचा... एक दिन मौर्य नरेश बृहद्रथ जंगल में घूमने को निकला। अचानक वहां उसके सामने शेर आ गया। शेर सम्राट की तरफ झपटा। शेर सम्राट तक पहुंचने ही वाला था की अचानक एक लम्बा चौड़ा बलशाली भीमसेन जैसा बलवान युवा शेर के सामने आ गया। उसने अपनी मजबूत भुजाओं में उस मौत को जकड़ लिया। शेर को बीच में से फाड़ दिया और सम्राट को कहा की अब आप सुरक्षित हैं। अशोक के बाद मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। यवन लगातार मगध पर आक्रमण कर रहे थे। सम्राट ने ऐसा बहादुर जीवन में ना देखा था। सम्राट ने पूछा... ” कौन हो तुम” जवाब आया ” ब्राह्मण हूँ महाराज” सम्राट ने कहा “सेनापति बनोगे” पुष्यमित्र ने आकाश की तरफ देखा, माथे पर रक्त तिलक करते हुए बोला “मातृभूमि को जीवन समर्पित है” उसी वक्त सम्राट ने उसे मगध का उपसेनापति घोषित कर दिया... जल्दी ही अपने शौर्य और बहादुरी के बल पर वो सेनापति बन गये शांति अहिंसा का पाठ अधिक पढ़ने के कारण मगध साम्राज्य कायर ही चूका था। पुष्यमित्र के अंदर की ज्वाला अभी भी जल रही थी। वो रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में यकीन रखता था। पुष्यमित्र एक निष्ठावान हिन्दू था, और भारत को फिर से हिन्दू देश बनाना उसका स्वपन था... आखिर वो दिन भी आ गया, यवनों की लाखों की फ़ौज ने मगध पर आक्रमण कर दिया। पुष्यमित्र समझ गया की अब मगध विदेशी गुलाम बनने जा रहा है। बौद्ध राजा युद्ध के पक्ष में नही था। पर पुष्यमित्र ने बिना सम्राट की आज्ञा लिए सेना को जंग के लिए तैयारी करने का आदेश दिया। उसने कहा की इससे पहले दुश्मन के पाँव हमारी मातृभूमि पर पड़ें हम उसका शीश उड़ा देंगे। यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के धार्मिक विचारों के खिलाफ थी। सम्राट पुष्यमित्र के पास गया। गुस्से से बोला ” यह किसके आदेश से सेना को तैयार कर रहे हो”। पुष्यमित्र का पारा चढ़ गया। उसका हाथ उसके तलवार की मुठ पर था। तलवार निकालते ही बिजली की गति से सम्राट बृहद्रथ का सर धड़ से अलग कर दिया और बोला ” " ब्राह्मण किसी की आज्ञा नही लेता” हज़ारों की सेना सब देख रही थी... पुष्यमित्र ने लाल आँखों से सम्राट के रक्त से तिलक किया और सेना की तरफ देखा और बोला... “ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण था, ना पुष्यमित्र, महत्वपूर्ण है, तो मगध, महत्वपूर्ण है,तो मातृभूमि, क्या तुम रक्त बहाने को तैयार हो...” उसकी शेर सी गरजती आवाज़ से सेना जोश में आ गयी। सेनानायक आगे बढ़ कर बोला “हाँ सम्राट पुष्यमित्र । हम तैयार हैं”। पुष्यमित्र ने कहा” आज मैं सेनापति ही हूँ।चलो काट दो यवनों को...” जो यवन मगध पर अपनी पताका फहराने का सपना पाले थे वो युद्ध में गाजर मूली की तरह काट दिए गए। एक सेना जो कल तक दबी रहती थी आज युद्ध में जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही है। मगध तो दूर यवनों ने अपना राज्य भी खो दिया। पुष्यमित्र ने हर यवन को कह दिया की अब तुम्हे भारत भूमि से वफादारी करनी होगी नही तो काट दिए जाओगे... इसके बाद पुष्यमित्र का राज्यभिषेक हुआ। उसने सम्राट बनने के बाद घोषणा की अब कोई मगध में बुद्ध धर्म को नही मानेगा, हिन्दू ही राज धर्म होगा। उसने साथ ही कहा... “जिसके माथे पर तिलक ना दिखा वो सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा...” उसके बाद पुष्यमित्र ने वो किया जिससे आज भारत कम्बोडिया नही है। उसने लाखों गद्दार बौद्धों को मरवा दिया। बुद्ध मन्दिर जो हिन्दू मन्दिर गिरा कर बनाये गए थे उन्हें ध्वस्त कर दिया। बुद्ध मठों को तबाह कर दिया। चाणक्य काल की वापसी की घोषणा हुई और तक्षिला विश्विद्यालय का सनातन शौर्य फिर से बहाल हुआ... शुंग वंशवली ने कई सदियों तक भारत पर हुकूमत की। पुष्यमित्र ने उनका साम्राज्य पंजाब तक फैला लिया।इनके पुत्र सम्राट अग्निमित्र शुंग ने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत भारत का अंग बन गया। वो गद्दार बौद्धों को भगाता चीन तक ले गया। वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके सन्धि की। उनके वंशज आज भी चीन में “शुंग” सरनेम ही लिखते है...! पंजाब- अफ़ग़ानिस्तान सिंध की शाही ब्राह्मण वंशावली के बाद शुंग शायद सबसे बेहतरीन ब्राह्मण साम्राज्य था... !!.जय श्रीराम.!! !!.जय श्री परशुराम.!! !!.मेरा मन स्वदेशी.!!