#चौदह#
हम कहते रहते है चौदह विधा, चौदह लोक, सात पाताल, सात आसमान(कुल चौदह) ,पद्म पर बैठी लक्ष्मी इत्यादि इत्यादि मगर कभी हमने इसका मर्म जानने की कोशिश की ,नही की है ओर जैसा बताया गया है हम वैसे ही ग्रहण कर लेते है तो हम इसका विज्ञान समझाते है।
यदि किसी गोल पिण्ड का घन बना लेते है तो हम आराम से गणना कर सकते है।
अब घन को देखें छ सपाट, आठ कोण कुल चौदह होते है
आठ तिरछी रेखा से कोण बनते है
ओर छ सपाट से ऊपर ,निचे ,आगे -पिछे ओर दाहिने -बाएं से शरीर बना है।
आठ कोणों में दो दो कोणों से दोनो हाथ ओर दो दो कोणों से दो पैर
छ सपाट में ऊपर से शिश निचे से धड ,आगे पिछे ,बाएं ,दाहिने से शरीर बना हुआ है
ओर घन को मध्य बिंदु से आठ कोणों को काटे तो छ पिरामिड बनते है जिसमें तीन नेगेटिव तीन पोजेटिव बनते है ।
इस तरह छ देवी, देवता बनाये है हमने ।
यह सब व्रत की गणना की है
जिसमें हमने आठ कोटडी दस दरवाजे बताएं है इस शरीर में ।
यह सब विज्ञान पर आधारित है ।
इस तरह हमारे ऋषियों ने सम्पूर्ण चराचर जगत ओर जीव ओर मानव विज्ञान की गणना की है ओर आत्मा ओर परमात्मा को भी परिभाषित किया है की यह जितने रुप है द्रश्य-अद्रश्य वह सब सत्य है तथा काल को छ भागों में बाटकर यह भी सत्य साबित किया की जो जाता है वह वापिस आता है इनकी होरा सदा रहती है ओर हमारी पिक्चर भी ब्रह्माण्ड में हर युग हर जन्म की सदा रहती है।। चि.।।