गहरे पानी पैठ
बुरे फंसे दिग्विजय
मध्य प्रदेश में विधायक और मंत्रियों के बीच बनी दूरी ने राज्य मंत्रिमण्डल को दो गुटों में बांट दिया है। एक तरफ स्वयं मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हैं तो दूसरी तरफ का मोर्चा उपमुख्यमंत्री जमुना देवी ने संभाल रखा है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राज्य विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह में विधायक दल की बैठक में कांग्रेसी विधायकों को एक प्रपत्र वितरित किया था, जिसमें राज्य मंत्रिपरिषद् के सदस्यों के आचरण व उनकी कार्यश्ौली के बारे में विधायकों से राय मांगी गई थी। कांग्रेसी विधायकों ने मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सर्वश्रेष्ठ मंत्री और गृहमंत्री महेन्द्र बौद्ध को सबसे निकृष्ट मंत्री माना। मगर आकलन रपट पहले ही लीक हो गई और मंत्रिमण्डल दो फाड़ हो गया। इस आकलन से कांग्रेस में जहां घमासान हो गया है, वहीं इससे पता चलता है कि दिग्विजय सरकार का दूसरा कार्यकाल निष्फल रहा है। उपमुख्यमंत्री जमुना देवी, जो स्वयं जनजातीय हैं, ने मुख्यमंत्री पर खुला आरोप लगाया है कि इस तरह रायशुमारी करवाकर दिग्विजय जानबूझकर कुछ मंत्रियों को अपमानित करना चाहते हैं, विशेषकर हरिजन एवं वनवासी मंत्रियों को। इस गुट के अन्य मंत्रियों ने भी खुलकर दिग्विजय सिंह की आलोचना की है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ जहां इसे प्रदेश की जनता के मनोरंजन का बढ़िया साधन बताते हैं, तो वहीं इस प्रक्रिया को यह कहकर निरर्थक करार देते हैं कि मुख्यमंत्री को इस तरह के मनोरंजन करने की आदत सी बन गई है। मुख्यमंत्री के इस प्रयोग ने स्वयं उनके लिए सरदर्द पैदा कर दिया है। मंत्रिमण्डल के अनेक सदस्य उनसे खिन्न हैं लेकिन वे खुलकर अपने गुस्से का प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस के प्याले में तूफान आ गया है और कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता इसे हवा दे रहे हैं।
किसके सहारे हिमाचल प्रदेश कांग्रेस?
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में भी मध्य प्रदेश कांग्रेस की तरह फूट चरम सीमा पर है। यहां पार्टी और विधायक दल से लेकर खण्ड स्तर तक दो गुटों में बंटी कांग्रेस ने अपने संगठन को श्रीमती सोनिया गांधी पर छोड़ दिया है। चूंकि विधायक दल पर पूर्व मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह का वर्चस्व है तो प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर श्रीमती विद्या स्टोक्स विराजमान हैं। अधिकांश विधायक श्री वीरभद्र सिंह के साथ हैं, परन्तु श्रीमती विद्या स्टोक्स अध्यक्ष के नाते पार्टी को अपने ढंग से हांकना चाहती हैं। ऐसे में सब गुड़-गोबर हो रहा है। अभी पिछले दिनों कांग्रेस की परिवर्तन यात्राएं "फ्लाप शो' सिद्ध हुईं। दोनों बड़े नेता एक मंच पर नहीं बैठ पाए। बजाए सरकार की कमियां निकालने के वे एक-दूसरे पर ही कीचड़ उछालते रहे। हद तो तब हो गई जब कांग्रेस नेता श्री माधवराव सिंधिया के निधन पर बुलाई गई शोक सभा पर भी दोनों गुट एक-दूसरे पर सभा "फ्लाप' करने के आरोप लगाते रहे। हमीरपुर में पूर्व कांग्रेस जिला अध्यक्ष श्रीमती अनीता वर्मा ने श्रद्धाञ्जलि पुस्तिका पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। मामला इतना तूल पकड़ गया कि अब दिल्ली में श्रीमती सोनिया गांधी तक इसकी सुगबुगाहट पहुंच गयी है। इधर श्री वीरभद्र सिंह ने श्रीमती स्टोक्स के गुट के विधायकों पर अनुशासन भंग करने का आरोप लगाया है।
हरिद्वार के बिना...?
उत्तराञ्चल को बने 11 माह हो गए हैं, परन्तु हरिद्वार को उत्तराञ्चल से अलग करने की आवाजें आज भी उठ रही हैं। इनमें से कुछ मजहबी हैं तो कुछ राजनीतिक। बसपा नेता काजी मोइयूद्दीन, सपा विधायक रामसिंह सैनी, भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष विजयपाल सिंह, मजहबी नेता असद मदनी व उनके पुत्र मसूद मदनी-ये सब इस मुद्दे को मुस्लिम हितों से जोड़कर दिखाने में लगे हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि हरिद्वार की लगभग 80 प्रतिशत जनता उत्तराञ्चल में ही रहना चाहती है।
किन्तु कुछ नेता किसानों में, विशेषकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में, यह भ्रांति फैला रहे हैं कि उत्तराञ्चल राज्य में किसानों की जमीनों पर परिसीमन अधिनियम लागू कर उसके अधिकार अन्यों को दे दिए जाएंगे। इस आंदोलन को सपा व मुसलमानों के अलावा लोकदल के भी कुछ लोग चला रहे हैं, जो हरित प्रदेश के पक्षधर हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यदि सहारनपुर का उत्तराञ्चल राज्य में समावेश कर दिया जाए तो हरित प्रदेश की मांग समाप्त हो जाएगी।