ज्योतिष शास्त्र में कई ऐसे योग हैं जो व्यक्ति को धनवान बनाने का काम करते हैं| धन की प्राप्ति के बारे में जानने के लिए ग्रह योगों की जानकारी अति आवश्यक है| निम्न योगों में से अधिकतम योग वाली कुंडलियां आकस्मिक धन प्राप्त कराने में समर्थ पाई जाती है,
कुंडली में धनभाव, पंचम भाव, एकादश भाव, नवम भाव के स्वामियों का किसी भी प्रकार से सम्बन्ध हो तो जातक अकस्मात धन प्राप्त करता है,
पंचम भाव में शुभ ग्रह हों और उस भाव पर लाभेश व बुध की दृष्टि हो तो अकस्मात धन प्राप्ति का योग बनता है|
यदि पंचम, एकादश या नवम भाव में राहु, केतु हो तो लॉटरी, सट्टा आदि से आकस्मिक धन लाभ होता है, क्योंकि राहु आकस्मिक धन लाभ के कारक हैं,
अष्टम भाव में शुक्र तथा चंद्र और मंगल कुंडली के किसी भी भाव में एक साथ होते हैं तो अकस्मात धन लाभ होता हैं,
अष्टम भाव में धन भाव का स्वामी स्थित हो तो जातक को जीवन में दबा हुआ, गुप्त धन, वसीहत से धन प्राप्त कराता हैं|
चंद्र-गुरु की युति कर्क राशि में द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम या एकादश भाव में से किसी भी भाव में होती हैं तो जातक अकस्मात धन पाता हैं,
जिनकी कुंडली में सप्तम स्थान में वृष राशि का चंद्रमा हो और लाभ स्थान में कन्या राशि का शनि हो तो ऐसे व्यक्ति की पत्नी को भारी आकस्मिक धन-लाभ होता है,
चंद्रमा और बुध धन स्थान में हों तो बहुत लाभ होता है। दशम स्थान में कर्क राशि का चंद्र और धन स्थान में शनि हो तो अचानक धन-लाभ होता है।
धन स्थान में पांच या इससे अधिक ग्रह हों तो बड़ा धन-लाभ होता है।
लग्न से पांचवीं राशि शुक्र की हो तथा शुक्र एवं शनि पांचवें या ग्यारहवें भाव में हों तो धन प्राप्ति का योग बनता है, ऐसा जातक जीवन में प्रयाप्त धन हासिल करता है,
लग्न से पांचवीं राशि धनु या मीन हो तथा ग्याहरवें भाव में चन्द्र मंगल का योग हो तो अखंड धन योग बनता है इस योग के प्रभाव से जातक निस्संदेह लखपति बनता है,
कुंडली में द्वितीय भाव का अधिपति लाभ स्थान में और लग्नेश द्वितीय भाव में होता है, तो अकस्मात धन लाभ कराता है,
लग्नेश धनभाव में तथा धनेश लग्न भाव में हों तो भी अचानक धन लाभ होता है,
चंद्र-मंगल, पंचम भाव में हों और शुक्र की पंचम भाव पर दृष्टि हो तो जातक अचानक धन पाता है,
धनेश और लाभेश केन्द्रों में हो तो भी जातक को धन-लाभ होता है।
यदि धनेश लाभ भाव में अथवा लाभेश धन भाव में हो तो जातक धनी होता है।
द्वितीय एवं पंचम स्थान के स्वामी की युति या दृष्टि सम्बन्ध या स्थान परिवर्तन योग बने तो जातक लॉटरी से धन प्राप्त करता है,
एक भी शुभ ग्रह केन्द्रादि शुभ स्थानों में स्थित होकर, उच्च का हो व शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो धनाढ्य तथा राजपुरुष बना देता है।
यदि जन्मकुंडली में लाभेश और धनेश लग्न में हो व दोनों मित्र हों तो धन-योग बनता है
यदि लग्न का स्वामी धनेश और लाभेश से युक्त हो तो महाधनी योग बनता है।
अगर किसी जन्म कुंडली में द्वितीयेश और चतुर्थेश शुभ ग्रह की राशि में स्थित हैं तो अकस्मात धन प्राप्ति के योग बनते हैं|
धनेश शनि का सुखेश मंगल पंचमेश शुक्र से योगात्मक रूप जन्म के शनि के साथ बने, तो अत्यधिक शुभ होता है|
पंचम भाव में चंद्र एवं मंगल दोनों हों तथा पंचम भाव पर शुक्र की दृष्टि हो|
धनेश व लाभेश एक साथ चतुर्थ भाव में हों तथा चतुर्थेश शुभ स्थान में शुभ दृष्ट हों।
यदि जन्मकुंडली में कर्क राशि में बुध और शनि 11वें भाव में हों तो जातक महाधनी होता है।
कार्येश शुक्र का लाभेश मंगल सुखेश मंगल लग्नेश शनि पंचमेश शुक्र धनेश शनि से गोचर से जन्म के कार्येश शुक्र के साथ गोचर हो|
कुंडली में लाभेश, धनेश और पंचमेश की युति पंचम भाव में हों तो सट्टा आदि से अकस्मात धनलाभ का योग बनता है|
द्वितीयेश पंचमेश और भाग्येश की लाभ भाव में युति का होना व्यक्ति को लाभ दिलाने वाला होता है|
लग्नेश की द्वितीय और पंचम भाव के स्वामी के साथ केंद्र में युति हो तो धन प्राप्ति का योग बनता है|
मकर लग्न की कुंडली में भाग्येश और षष्ठेश बुध एक ही ग्रह हैं,यह धन आने का कारण तो बनायेंगे लेकिन अधिकतर मामले में धनेश, लग्नेश, सुखेश, धन को नौकरी से प्राप्त करवाएंगे|
धन का कारक ग्रह गुरु है, और धन के प्रदाता स्थान 1, 2, 5, 6, 10, 11 हैं, धन योग/ राजयोग के द्वारा धन कैसे प्राप्त होगा और कहां से प्राप्त होगा और किस दिशा में और किसके द्वारा व कितना प्राप्त होगा|
इसके विपरीत व्यय स्थान में बारहवें केतु हो, जन्मकुंडली में कालसर्प योग हो। चंद्र, बुध और शनि नीच स्थान में हों तो रेस, सट्टा, लॉटरी से कोई लाभ नहीं होता। व्यक्ति को तभी आकस्मिक लाभ होगा जब कुंडली में पंचम भाव, द्वितीय भाव तथा एकादश भाव व उनके स्वामी ग्रह बलवान व शुभ हों।
यदि लग्न का स्वामी 10 वें भाव में हो तो जातक अपने माता-पिता से अधिक धनवान होगा।
यदि जातक के 7 वें भाव में मंगल या शनि और 11 वें भाव में केतु को छोड़कर किसी भी ग्रह के साथ हो तो जातक व्यापार से बहुत धन कमाएगा।
यदि केतु को 11 वें भाव में रखा जाए तो जातक विदेश में कमाएगा।
जातक अपनी कड़ी मेहनत और प्रयासों से समृद्ध होगा यदि दूसरे भाव का स्वामी 8 वें घर में है।
बुध कर्क या मेष राशि में हो तो जातक समृद्ध होगा।
यदि जातक कुंडली में सूर्य पांचवे घर में, चौथे में मंगल या 11 वें भाव में बृहस्पति हो तो जातक पैतृक संपत्ति से कमाएगा।
यदि जातक की कुंडली के सभी केंद्रों पर ग्रहों का कब्ज़ा है, तो जातक धनवान होगा।
जातक धार्मिक साधनों के माध्यम से कमाएगा यदि बृहस्पति, बुध और शुक्र किसी भी घर में एक साथ हैं।
7 वें घर में शनि या मंगल होने पर जातक जुए और खेल के माध्यम से कमाई करेगा।
कुंडली के 10 वें भाव का स्वामी वृष, तुला या शुक्र में आ जाए तो जातक पत्नी की कमाई से धनवान बनेगा।
7 वें घर में मंगल, शनि और राहु होने पर जातक कमीशन लेकर अमीर बनेगा।
कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें घर के स्वामी का छठें, 8 वें, 12 वें या 11 वें घर के साथ जुड़ने पर जातक अचानक धन लाभ होगा।
यदि जातक तुला, मकर और कुंभ राशि से चौथे भाव में हो तो जातक गणितज्ञ, लेखाकार या सांख्यिकीविद बन सकता है।
यदि 10 वें घर में पांचवें घर का स्वामी हो तो जातक अपने पुत्र / पुत्री के माध्यम से धनवान होगा।
यदि जातक 10 वें या 11 वें घर में हो या 4 वें या 5 वें घर में सूर्य / बुध हो तो प्रशासनिक चालाकी से धन कमाएगा।
कुंडली में यदि ग्रहों के बीच एक धन योग बनता है, तो ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण करना अति आवश्यक है। यदि एक धन योग हालांकि केंद्र और त्रिकोण के स्वामी के साथ बनता है, लेकिन यह दुर्बल ग्रहों के प्रभाव में है, तो धन योग इच्छित परिणाम देने में सक्षम नहीं होगा। यदि योग बनाने वाले गृह स्वामी लाभकारी प्रभाव में हैं तो वे निश्चित रूप से अच्छे परिणाम देंगे।