ऋण योग
परिभाषा>>> छठे स्थान के स्वामी का तथा छठे से छठे भाव के स्वामी का सबन्ध जब द्वितीय भाव तथा उसके स्वामी, दोनो से हो तो मनुष्य ऋणग्रस्त रहता है ।
हेतु – छठा स्थान " रोग, ऋण, रिपु " का है "भावात् भावम्" के सिद्धान्तानुसार एकादश भाव भी ऋण स्थान हो जावेगा । अत षष्ठेश तथा एकादशेश के धन अथवा धनेश से सबन्ध द्वारा ऋणी होना युक्तियुक्त ही है ।