*🙏🏻गीताजी उच्चारण का तरीका🙏🏻*
श्रीमद्भगवद्गीता एक अलौकिक एवं प्रासादिक ग्रन्थ है। हमारे समाजमें ऐसे लाखों लोग हैं जो गीताजीके श्लोकों का पाठ ठीक से नहीं कर पाते हैं। हमारी भावना और प्रयास उन सभी महानुभावोंके लिये है जो गीता पढ़ना चाहते हैं।
सामान्य शिक्षित व्यक्ति भी कम-से-कम श्रीमद्भगवद्गीता ठीक ढंग से पाठ करके अपना कल्याण कर ले। इस गीता पदच्छेद का एकमात्र उद्देश्य सर्व-सामान्यको गीताके श्लोकोंको पढ़नेका अभ्यास कराना है।
श्रीमद्भगवद्गीतामें कुल सात सौ श्लोक हैं। उनमें छःसौ पैंतालीस श्लोक ‘अनुष्टुप्’ छन्दके और पचपन श्लोक ‘त्रिष्टुप्’ छन्द के हैं। प्रत्येक श्लोकमें चार चरण होते हैं। अनुष्टुप छन्दके प्रत्येक चरणमें आठ अक्षर होते हैं और पूरा श्लोक बत्तीस अक्षरोंका होता है तथा त्रिष्टुप छन्दके प्रत्येक चरणमें ग्यारह अक्षर होते हैं और पूरा श्लोक चौवालीस अक्षरोंका होता है। अनुष्टुप छंद श्लोकोंको पढ़ते समय उसे आठ-आठ अक्षर का चार भाग बना लें अर्थात् आठ अक्षर गिनकर एक साथ पढ़ने से एक चरण पूरा होगा। इसी त्रिष्टुप छन्द वाले श्लोको के चौवालीस अक्षरोंवाले श्लोकोंके एक चरणमें ग्यारह अक्षर गिनकर पढ़ना चाहिये। गीताके कुछ श्लोकोंमें अक्षर गणना करते समय कहीं-कहीं एक चरणमें नौ तथा बारह अक्षर भी मिलते है, उसका उच्चारण दिये गये रंगोंके अनुसार ही करना चाहिये। श्लोकाक्षरोंकी गणनामें आधा अक्षर अर्थात् हलन्त अक्षरकी गणना नहीं करनी चाहिये। आठ अक्षर और ग्यारह अक्षरकी गिनती करते समय पूर्णाक्षरको ही गिनना चाहिये। गीताजीका सही उच्चारण सीखनेवाले सामान्य पाठकोंकी सुविधाके लिये प्रत्येक चरणको अलग-अलग विभिन्न रंगोंमें किया गया है। इससे श्लोकके प्रत्येक चरणको समझनेमें सहायता मिलेगी। प्रत्येक श्लोकके नीचे उसका चरणबद्ध ढंगसे पदच्छेद भी किया गया है ताकि पाठकोंको श्लोकोंके पढ़ने और समझनेमें ज्यादा सरलता हो।
वाराहपुराणमें आया है कि नित्य गीताजीका पाठ करनेवाले मनुष्यका पतन नहीं होता है। इसलिए गीताजीका नित्य पाठ यथा सम्भव अवश्य करना चाहिए। आशा है, जो पाठक गीता पढ़ना चाहते हैं, उनके लिये यह विधि और प्रयास उपयोगी होगा।