*श्रद्धेय पंडित श्री नंदकिशोर पाण्डेय जी भागवताचार्य*
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*प्रेरक प्रसङ्ग - 75*
!! *बदलाव ही जीवन हैं* !!
शहर के पास बसे एक छोटे से गाँव में फलों की बहुत कमी थी। वहाँ लोग अमीर तो नहीं थे पर दिल के सच्चे थे। वहाँ फलों के केवल कुछ पेड़ ही दिखाई देते थे। गाँव में फलों की कमी को देखते हुए भगवान ने अपने दूत को बुलाया और कहा, ”तुम गाँव में जाओ और सभी से कहो कि वह एक दिन में केवल एक ही फल खाये और हो सके तो फलों के पौधे लगाये।” दूत ने ऐसा ही किया उसने सभी को एक फल खाने और फलों के पौधे लगाने को कहा। पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा ही चलता रहा, और धीरे धीरे वहां का पर्यावरण संरक्षित होने लगा।
क्यूंकि बचे हुए फलों के बीजो से और नए नए पौधे निकल गए थे, और वहां के लोगो ने भी शहर से फलों के छोटे छोटे पौधे लाकर लगा दिए थे। जो अब बड़े होकर फल देने लगे थे। कुछ वर्षो में ही पूरा गाँव हराभरा हो गया था। अब वहां किसी भी फल की कोई कमी नहीं थी। गाँव के सभी फलों के पेड़ फलों से लदे पड़े थे, परन्तु अब भी गाँव के लोग दिन में केवल एक ही फल खाते थे। दिन में केवल एक फल खाना चाहिये, इस तरह का उन्होंने एक रिवाज बना लिया था। वह वर्षो से चली परम्परा के प्रति आज भी पूरी तरह वफादार थे।
वह खुद तो दिन में केवल एक ही फल खाते थे, और अगर शहर कोई उनसे फल लेने आता, तो वह उसे भी खाली हाथ लौटा देते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि टनो – टन फल बर्बाद होने लगे, और सड़को पर भी इधर -उधर बिखरे दिखाई देते। भगवान को यह सब देखकर बहुत बुरा लगा, और उन्होंने तुरन्त अपने एक दूत को बुलाया और कहा, ” जाओ और गाँव वालो से कहो वह अब जितना मर्जी फल खाये, और बचे हुए फलों को दूसरे शहरों में को बाट दे।”
दूत यह सन्देश लेकर गाँव में गया, परन्तु गाँव वालो ने उसकी एक ना सुनी और उसे मार कर भगा दिया। गाँव वालो के दिमाग में अपने पूर्वजो की बात इतनी गहरी तरह बैठ चुकी थी, कि वह अब किसी की कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं थे। वो फलों को बर्बाद करने के लिए तैयार थे, परन्तु अपनी सोच बदलने को तैयार नहीं थे।
*शिक्षा*
दोस्तों, इस कहानी में काफी सच्चाई हैं, हमारे समाज में आज भी लोग बिल्ली के रास्ता काटने, कौवे के कांव – कांव करने, रात को झाड़ू ना लगाने से लेकर ऊँच-नीच और जात -पात की अनेको मानसिकताओं से जुड़े हैं। जिनका वास्तव में आज कोई अर्थ ही नहीं हैं।
जैसे इस कहानी में इस तरह की चीजो को मानने वाले खुद को बड़ा ही धार्मिक और ईश्वर को मानने वाला समझते हैं, वैसे ही हमारे समाज में भी इन सभी मान्यताओं को मानने वाले लोग खुद को बड़ा ही पवित्र और सबसे बड़ा संत समझते हैं। जबकि सच्चाई कुछ और ही होती हैं। हमें भी समय के बदलते हुए स्वरुप को देखते हुए, अपनी सोच को निरन्तर विकसित करना चाहिए। जो आज सही है, वो कल गलत हो सकता है, और जो कल गलत सकता है, वो परसो सही भी हो सकता है।