प्रयागराज में 'कुम्भ' कानों में पड़ते ही गंगा, यमुना एवं सरस्वती का पावन सुरम्य त्रिवेणी संगम मानसिक पटल पर चमक उठता है। पवित्र संगम स्थल पर विशाल जन सैलाब हिलोरे लेने लगता है और हृदय भक्ति-भाव से विहवल हो उठता है। श्री अखाड़ो के शाही स्नान से लेकर सन्त पंडालों में धार्मिक मंत्रोच्चार, ऋषियों द्वारा सत्य, ज्ञान एवं तत्वमिमांसा के उद्गार, मुग्धकारी संगीत, नादो का समवेत अनहद नाद, संगम में डुबकी से आप्लावित हृदय एवं अनेक देवस्थानो के दिव्य दर्शन प्रयागराज कुम्भ का महिमा भक्तों को दर्शन कराते हैं।

प्रयागराज का कुम्भ मेला अन्य स्थानों के कुम्भ की तुलना में बहुत से कारणों से काफी अलग है। सर्वप्रथम दीर्घावधिक कल्पवास की परंपरा केवल प्रयाग में है। दूसरे कतिपय शास्त्रों में त्रिवेणी संगम को पृथ्वी का केन्द्र माना गया है, तीसरे भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि-सृजन के लिए यज्ञ किया था, चौथे प्रयागराज को तीर्थों का तीर्थ कहा गया है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है यहाँ किये गये धार्मिक क्रियाकलापों एवं तपस्यचर्या का प्रतिफल अन्य तीर्थ स्थलों से अधिक माना जाना। मत्स्य पुराण में महर्षि मारकण्डेय युधिष्ठिर से कहते हैं कि यह स्थान समस्त देवताओं द्वारा विशेषतः रक्षित है, यहाँ एक मास तक प्रवास करने, पूर्ण परहेज रखने, अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण करने से और अपने देवताओं व पितरों को तर्पण करने से समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। यहाँ स्नान करने वाला व्यक्ति अपनी 10 पीढ़ियों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर देता है और मोझ प्राप्त कर लेता है। यहाँ केवल तीर्थयात्रियों की सेवा करने से भी व्यक्ति को लोभ-मोह से छुटकारा मिल जाता है। उक्त कारणों से अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित सन्त- तपस्वी और उनके शिष्यगण एक ओर जहाँ अपनी विशिष्ठ मान्यताओं के अनुसार त्रिवेणी संगम पर विभिन्न धार्मिक क्रियाकलाप करते हैं तो दूसरी ओर उनको देखने हेतु विस्मित भक्तों का तांता लगा रहता है।

प्रयागराज का कुम्भ मेला लगभग 50 दिनों तक संगम क्षेत्र के आस-पास हजारों हेक्टेअर भूमि पर चलने के चलते विश्व के विशालतम अस्थायी शहर का रूप ले लेता है। समस्त क्रियाकलाप, सारी व्यवस्थायें स्वतः ही चलने लगती हैं। आदिकाल से चली आ रही इस आयोजन की एकरूपता अपने आप में ही अद्वितीय है। लगातार बढ़ती हुई जनांकिकीय दबाव और तेजी से फैलते शहर जब नदियों को निगल लेने को आतुर दिखायी देते हैं ऐसे में कुम्भ जैसे उत्सव नदियों को जगत जननी होने का गौरव देते प्रतीत होते हैं। सनातन काल से भारतीय जनमानस के रगो में बसी, उनके रक्त में प्रवाहित होती अगाध श्रद्धा एवं आस्था ही अमृत है। उनका अमर विश्वास ही प्रलय में अविनाशी "अक्षयवट" है, ज्ञान, वैराग्य एवं रीतियों का मिल ही संगम है और आधार धर्म प्रयाग है।

स्वतंत्रता के पश्चात् विभिन्न नियमों के बनने से कुम्भ मेला को आयोजित करने में कतिपय परिवर्तन होते गये। सरकार ने तीर्थयात्रियों को मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराने के लिए प्राविधान किये। सरकार ने कुम्भ की महत्ता को महसूस करते हुए और मेला का भ्रमण करने वाले तीर्थयात्रियों की भारी संख्या की आवश्यकता को समझते हुए जनहित में बहुत से कदम उठाये हैं जिससे कि तीर्थयात्रियों को सुविधाओं के साथ-साथ सुरक्षा व्यवस्था, बेहतर यातायात व्यवस्था, प्रकाश व्यवस्था एवं चिकित्सा सेवायें की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। यह कहना मुश्किल है कि सरकार के प्राविधान करने के पूर्व ये सुविधायें उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी किसकी थी। हालॉंकि वांछित कानूनों के पास होने के बाद मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराने का दायित्व सरकार का हो गया है। इसी क्रम में प्रयागराज मेला प्राधिकरण-2018 का गठन कुम्भ जैसे उत्सव आयोजित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सोपान है। प्रयागराज मेला प्राधिकरण के गठन से कुम्भ 2019 कुम्भ मेला भ्रमण करने वाले भक्तों को मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराना सुनिश्चित होगा। कुम्भ की दिव्यता और भव्यता को बढ़ाने के लिए नई तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है।