💐💐वर्गोतम ग्रहः फल 💐💐

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💐वर्गोत्तम ग्रहः का  सही अर्थ  होता है कुंडली के 16 वर्गों में एक ही राशि मे  किसी ग्रह होना होता है इसमें लग्न भी वर्गोत्तम हो सकते है यानी 16 में से कई एक कुंडली समान लग्न की होती है ।

👍जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली दोनो में एक ही राशि मे होगा तब वर्गोत्तम होगा जैसे &&सूर्य लग्न कुंडली मे कन्या राशि का हो तो नवमांश कुंडली मे भी **कन्या राशि का होगा तब यह वर्गोत्तम होगा। 

👍इसी तरह अन्य ग्रह होते है

👌वर्गोत्तम का प्रयोग जब हम वर्ग का प्रयोग करें तो हमें सबसे पहले वर्ग की उस कोटि का चुनाव करना चाहिए जिसके अंतर्गत हम उस वर्ग का अध्ययन कर रहे हैं ।

👍किसी भी जातक /जातिका की कुंडली मे जब कोई ग्रह **लग्न कुंडली और **नवमांश कुंडली में एक ही राशि में होता है तो ऐसा ग्रह **वर्गोत्तम ग्रह होता है

👌जन्म कुण्डली में ग्रह जिस राशि में बैठा हो अगर** नवांश कुण्डली में भी उसी राशि में अवस्थित होता हैं तो, वह ग्रह चाहे** शत्रु क्षेत्री हो या नीचस्थ हो, लेकिन यह वर्गोत्तमी होने से शुभ फलप्रद होगा ।

👌अगर   कुंडली का वर्गोत्तम ग्रह अपनी राशि जैस

**उच्च राशि, **मूलत्रिकोण राशि**, स्वराशि, **मित्रराशि आदि अपनी किसी भी बली राशि में बैठा होगा वह बहुत अच्छे फल देता है

👍👍कुंडली मे वर्गोत्तम ग्रह यदि *अशुभ भाव का स्वामी हो तो **अशुभ भाव में ही बैठा हो तब **अच्छा फल करता है। परन्तु यदि  कोई ग्रहः**अशुभ भाव का स्वामी होकर शुभ भाव में स्थित होने पर अच्छे फल में कमी भी कर सकता है

👍👍वर्गोत्तम ग्रह की स्थिति यदि **अष्टमेश वर्गोत्तम होकर **केंद्र में बैठा हो तो इसकी दशा ज्यादा अच्छी नही होगी ! यदि नवमांश कुंडली में अनुकूल भाव का स्वामी होकर अनुकूल भाव में स्थित है तब ऐसा वर्गोत्तम ग्रह अच्छा फल देने में सक्षम होगा!

👍👌अगर जातक के जन्मलग्न और नवमांश लग्न अनुसार वर्गोत्तम ग्रह अपने अनुकूल भाव में  है तो वर्गोत्तमी ग्रह की शुभता में ज्यादा से ज्यादा वृद्धि हो जाती है। 

👌जातक वर्गोत्तम ग्रह की दशा में सुख भोगने वाला, उन्नति और कामयाबी को हासिल करेगा यदि अगर कुंडली मे अन्य ग्रहो की स्थिति भी अनुकूल हुई तब  फल वर्गोत्तम ग्रह की दशा जातक को उन्नति के शिखर पर लेजाती है

👍👍वर्गोत्तम ग्रह 0 से 4 या 27से 30 इतने प्रारभिक या आखरी अंशो पर नही होना चाहिए वरना ग्रह के पूर्ण फल मिलेंगे में न्यूनता रहती है।

👍वर्गोत्तम ग्रह **अस्त भी नही होना चाहिए यदि वर्गोत्तम ग्रह अस्त है तो वर्गोत्तम ग्रह के अच्छे फल निष्फल होंगे।

👍👍जैसे लग्न कुंडली मेष लग्न की हो और 5वे भाव त्रिकोण का स्वामी सूर्य वर्गोत्तम होकर त्रिकोण भाव 9वे भाव में हो और नवमांश कुंडली धनु लग्न की हो इसमें सूर्य त्रिकोण 9वे भाव का स्वामी होता है अब सूर्य नवमांश कुंडली में 9वे भाव त्रिकोण का स्वामी होकर 5वे भाव त्रिकोण में हो तो तो लग्न और नवमांश दोनों ही कुंडलियो में वर्गोत्तम सूर्य त्रिकोण का स्वामी होकर त्रिकोण में ही है जिस कारण सूर्य की महादशा में और सूर्य से सम्बंधित फल जातक को बहुत शानदार और बेहद शुभ मिलेगे क्योंकि दोनों ही कुंडलियो में सूर्य शुभ भाव का स्वामी होकर शुभ भाव में है।

💐फतेह chand शर्मा