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मकरसङ्क्रमणं भारतीयानां प्रमुखपर्वसु अन्यतमम् । अस्मात् दिनात् परमपवित्रस्य उत्तरायणकालस्य आरम्भः । इदं पर्व तिलपर्व इत्यपि निर्दिश्यते । तमिळुनाडुराज्ये पोङ्ग्ल इति वदन्ति । एतत् सूर्यस्य चलनसम्बद्धं पर्व । सूर्यस्य एकराशित: अन्यराशिं प्रतिप्रवेशदिनं सङ्क्रमणम् इति उच्यते । सौरमानानुसारं सूर्यस्य मेषादिद्वादशराशिं प्रति प्रवेशदिनम् एव सङ्क्रमणदिनम् ।एवंक्रमेण वर्षे १२ सङ्क्रमणानि भवन्ति । तत्र प्रमुखं सङ्क्रमणद्वयम् । कर्काटकसङ्क्रमणं (दक्षिणायनस्य आरम्भ:) मकरसङ्क्रमणं (उत्तरायनस्य आरम्भ:) चेति । कर्काटकमकरसङ्क्रमणे अयनसङ्क्रमणे, मेषतुलासङ्क्रमणे विषुवसङ्क्रमणे, कन्या-मिथुन-धनु-मीनसङ्क्रमणानि षडशीतिमुखसङ्क्रमणानि, वृषभ-सिंह-वृश्चिक-कुम्भसङ्क्रमणानि विष्णुपदसङ्क्रमणानि इति विभाग: कृत: अस्ति । मकरसङ्क्रमणदिनत: आरभ्य रात्रिकालस्य अवधि: न्यून: भवति । एतद्दिने एव स्वर्गः|स्वर्गस्य]] द्वारोद्घाटनं क्रियते इति । परमपवित्रे अस्मिन् सङ्क्रमणदिने क्रियमाणं स्नान-दान-जप-तप-हवन-पूजा-तर्पण-श्राद्धादिकम् अधिकं फलप्रदम् इति वदन्ति शास्त्रपुराणानि । तद्दिने य: पापाचरणं करोति, य: पवित्रकर्माणि न आचरति स: पापभाक् भवति इत्यपि वदन्ति ज्ञानिन: । अन्यानि सङ्क्रमणानि आचरितुम् अशक्त: एतदेकं सङ्क्रमणं वा आचरेत् इति वदति शास्त्रम् ।शैत्यकाले अस्माकं शरीरे विद्यमान: तैलांश: शाखार्थं व्ययित: भवति । तेन शरीरे तैलांशस्य अभाव: भवति । तस्मात् शीतसम्बद्धा: रोगा: जायन्ते । नारिकेल-गुड-कलायमिश्रितस्य तिलस्य, इक्षुदण्डस्य, शर्कराभक्ष्यस्य च भक्षणेन अभाव: निवार्यते ।
? *सर्वेषां मकरसक्रांतिपर्वस्य हार्दा: शुभाशयाः*?
???मकर संक्रांति???
पं आशिष कमल शर्मा की ओर से आप सभी को
मकर संका्ंति की शुभकामना
माघ कृष्ण द्वितीया शनिवार तदनुसार 14/1/2017 को सुबह 7.39 बजे मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होगा । जिसका पूण्य काल दिन भर मनाया जायेगा ।
*आईये आज आपको मकर संक्रांति से अवगत कराते है।*
मकर संक्रान्ति हिन्दू संस्कृति का बहुत बड़ा पर्व है जिसे सूर्योपासना के रूप में पूरे भारत देश और पड़ोसी देश नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। सूर्य , प्रत्यक्ष दृष्टि गोचर होने वाले एक मात्र देव और सृष्टि नियन्ता है । इसलिये प्रतिदिन सूर्यदेव की पूजा करके ऊर्जा प्राप्त करने का माहात्म्य पुराणों में वर्णित है।
*ज्योतिष शास्त्र के अनुसार -*
संक्रांति का अर्थ होता है सूर्य देव का एक राशि से दूसरे राशि में संक्रमण।
यूँ तो संक्रांति हर माह में होता है लेकिन सूर्य देव का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के साथ ही अयन में भी परिवर्तन होता है।
अयन का अर्थ है गमन । यानि सूर्य देव का दक्षिण से उत्तर की और गमन करना उत्तरायण कहलाता है। इस दक्षिणायन से उत्तरायण की स्थिति को आम बोल चाल की भाषा में , दैत्यों के दिन व देवताओं की रात्रि से देवताओं का दिन व दैत्यों की रात्रि का आरम्भ भी माना जाता है। इसलिये सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को ही मकर संक्रांति कहा जाता है।
उत्तरायण काल को प्राचीन ऋषि-मुनियों ने जप तप व सिद्धि साधना के लिये महत्वपूर्ण समय माना है ।और मकर संक्रांति इस काल का प्रथम दिन है इसलिये इस दिन किया गया दान पुण्य अक्षय फलदायी होता है।
हिन्दी कैलेंडर के पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार अंग्रेजी कैलेंडर के जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है इसलिय इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं।
?भारत में मकर संक्रान्ति?
सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं।
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। बहुएँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'स्नान व दान का पर्व' है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। एक समय था जब उत्तर भारत में १४ दिसम्बर से १४ जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को नहीं किया जाता था। शादी-ब्याह नहीं किये जाते थे परन्तु अब समय के साथ लोग बाग बदल गये हैं। परन्तु फिर भी ऐसा विश्वास है कि १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।
बिहार में भी मकर संक्रान्ति को खिचड़ी के नाम से जाता हैं। इस दिन लोग सुबह स्नान कर भगवान की पूजा करते है। मौसमी फल व तिल के पकवान का भोग लगाते है ।उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करते है। अगले दिन खिचड़ी खाते है।
महाराष्ट्र में तिल संक्रांति के नाम से मनाया जाता है । इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है।
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।
आंध्रप्रदेश में भी संक्रांति को भोगी के नाम से चार दिन तक मनाया जाता है
ओडिसा में संक्रांति को
""मकर चौला"" के नाम से मनाया जाता है।
गोआ में इस दिन इंद्र देव की पूजा करते है।
हिमाचल प्रदेश में संक्रांति को माघी के नाम से मनाया जाता है।
गुजरात में इस पर्व को उत्तरायण के नाम से 2 दिन तक मनाया जाता है। पतंग उड़ाने की परम्परा है।
मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में मकर संक्रांति या सकरायत के नाम से मनाया जाता है।
कर्नाटक में संक्रांति को सुग्गी कहा जाता है।
केरल के सबरीमाला में इस दिन मकर ज्योति प्रज्ज्वलित कर मकर विलाकु का आयोजन होता है। यह 40 दिन का अनुष्ठान होता है। जिसके समापन पर भगवान अय्यप्पा की पूजा की जाती है।
उत्तराखण्ड में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। गुड़ , घी और आटे का पकवान बनाकर पहले पक्षीयो को खिलाया जाता है।
इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक पुरे भारत देश में विविध रूपों में दिखती है।
?मकर संक्रान्ति का महत्व?
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में इस अवसर के महत्व को अपने दोहे में वर्णित किया है।
"" माघ मकर गत रवि जब होई
तीरथ पतिहिं आव सब होई ""
अर्थात - माघ के महीने में जब सूर्य मकर राशि में होता है तब तीर्थराज प्रयाग में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की दैवीय शक्तियां आकर एकत्रित होती है।
इसिलिय इस दिन तीर्थराज प्रयाग में लाखों करोड़ो की संख्या में श्रद्धालु स्नान दान करने के लिये आते है।
महाभारत की कथा के अनुसार बाणों की शैय्या पर सोये हुए पितामह भीष्म ने देह त्याग करने के लिये मकर संक्रांति के ही दिन का चयन किया था।
मकर संक्रांति के दिन ही माँ गंगा , राजा भगीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थी। इसलिये इस दिन गंगासागर में स्नान कर दान करने के लिये भारी कष्ट उठाकर लोग यहाँ आते है। कहा भी गया है -
""सब तीरथ बार बार
गंगासागर एक बार""
खर मास की समाप्ति तथा सभी प्रकार के शुभ कार्यो व मांगलिक कार्यो के आरम्भ करने का पुण्य दिन होता है।
*मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व*
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर मकर राशि में जाते हैं। (शनिदेव मकर राशि व कुम्भ राशि के स्वामी हैं ) तथा 2 माह तक अपने पुत्र के घर में व्यतीत करते है । जिस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते है । इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। चूँकि सूर्यदेव 10 माह तक पुत्र वियोग के बाद इस समय प्रफुल्लित अवस्था में होते है । अतः जो भी भी इस दिन सूर्य देव की पूजा करके अर्घ्य देते है उन पर सूर्य देव के साथ शनि की भी कृपा बनी रहती है।
मकर राशि में सूर्य के संक्रमण के बाद स्वयं स्नान करें , फिर भगवान सूर्य देव को अर्घ्य देवें । *स्कन्द पुराण* के अनुसार सूर्य देव को प्रतिदिन अर्घ्य दिये बिना भोजन नही करना चाहिए।
अर्घ्य ☀☀☀☀
पौरोहित्य शास्त्र के अनुसार किसी भी पात्र में जल लेकर सामने उड़ेल देना अर्घ्य नही कहलाता , बल्कि ताम्बे या पीतल के पात्र में जल, अक्षत, लाल चन्दन, केशर ,कुशा के अग्र भाग , तिल ,जौ व सरसों । इन आठ वस्तुओं का समावेश कर
*ॐ घृणि सूर्याय नमः*मन्त्र का जप करते हुए सूर्योभिमुख होकर अपने दोनों हाथों में पात्र को पकड़े अपने सिर से और ऊपर कर एक धार से जल गिरायें तथा आपकी दृष्टि गिरते हुए जल में से सूर्य की किरणों पर होनी चाहिये। अर्घ्य के पश्चात आदित्य हृदय स्तोत्र का कम से कम 3 बार पाठ करना चाहिये ।
?गुड़ व तिल का महत्त्व ?
मकर संक्रांति के दिन तिल गुड़ युक्त लड्डू का विशेष महत्त्व है। प्राकृतिक दृष्टि से यह मौसम ठंड व शीतलहर का होता है। ठण्ड के कारण शरीर के सभी अंग सिकुड़ जाते है। जिससे रक्तवाहनियाँ रक्त संचार में मंदी ला देता है। परिणाम स्वरूप शरीर रुखा रुखा सा हो जाता है। जिससे त्वचा सम्बन्धी कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते है। ऐसे समय में शरीर को स्निग्धत्ता की आवश्यकता होती है। जिसे पूरा करने की क्षमता तिल व गुड़ में पर्याप्त मात्रा में रहता है। इसलिये तिल- गुड़ युक्त लड्डू खाना , दान करना , तिल का उबटन लगाकर स्नान करने आदि से शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है। साथ ही तिल स्नेह का तथा गुड़ शक्कर मधुरता का प्रतीक है जिसके बाँटने व खिलाने से पारस्परिक स्नेह व मधुरता में वृद्धि होती है।
?स्नान व दान का महत्त्व ?
*वायुपुराण , विष्णु धर्म सूत्र तथा बंग , गर्ग,गालव,गौतम, वृद्ध वशिष्ठ आदि ऋषि मुनियो के अनुसार*
"" विवाह व्रत संक्रांति प्रतिष्ठा ऋतू जन्मसु । तथोपरागपातादौ स्नाने दाने निशा शुभा।। ""
अर्थात - विवाह,व्रत,संक्रांति,प्रतिष्ठा,ऋतू स्नान,सन्तान जन्म,तथा सूर्य - चंद्र ग्रहण आदि के निमित्त रात्रि आदि का विचार न करके किसी भी समय स्नान करना चाहिये।
उसी तरह दान -
""ग्रहणोद्वाह संक्रांति यात्रार्तिप्रसवेषु च । श्रवने चेतिहासस्य रात्रौ दानम् प्रशस्यते।। ""
अर्थात - ग्रहण , विवाह , संक्रांति , यात्रा , प्रसव पीड़ा तथा पुराणों के श्रवण निमित्त रात्रि दान वर्जित नही है। यदि कोई भी , उक्त अवसरों में सन्ध्या या रात्रि आदि का विचार कर स्नान व दान नही करता तो वह चिरकाल (कई वर्षो ) तक रोगी तथा दरिद्री हो जाता है।
*मकर संक्रांति फळ*
वाहन - हाथी , उपवाहन - खर, वस्त्र - लाल, पशु जाति , दूध भक्षण , गोरोचन लेपन , गोमेद रत्न आभूषण , बिल्वपत्र कंचुकी , बुजुर्ग अवस्था ,
दक्षिण से उत्तर में गमन , ईशान कोण में दृष्टि ।
?12 राशियों में संक्रांति का फल ?
मेष - उदर विकार
वृषभ - कार्य सिद्धि
मिथुन - धन लाभ
कर्क - सामान्य सुख
सिंह - धन हानि
कन्या - कार्य सिद्धि
तुला - कार्य सिद्धि
वृश्चिक - प्रवास
धनु - शारीरिक कष्ट
मकर - स्त्री सुख
कुम्भ - अर्थ लाभ
मीन - मनोव्यथा
संक्रांति जिन वस्तुओ को धारण या उपयोग करती है उसकी हानि करती है । संक्रांति फळ श्रवण कर यथाशक्ति दान अवश्य करना चाहिये।
? *मकर संक्रांति का महत्त्व
*14- मकर संक्रांति ( पुण्यकालः सूर्योदय से सूर्यास्त)*
* संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से *
? मकर संक्रांति या उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन कोई रुपया-पैसा दान करता है, कोई तिल-गुड दान करता है । मैं तो चाहता हूँ कि आप अपने को ही भगवान के चरणों में दान कर डालो । उससे प्रार्थना करो कि ‘हे प्रभु ! तुम मेरा जीवत्व ले लो... तुम मेरा अहं ले लो... मेरा जो कुछ है वह सब तुम ले लो... तुम मुझे भी ले लो... ।
?जिसको आज तक ‘मैं और ‘मेरा मानते थे वह ईश्वर को अर्पित कर दोगे तो बचेगा क्या ? ईश्वर ही तो बच जायेंगे...
(ऋषि प्रसाद : जनवरी २००३)
?उत्तरायण महापर्व
उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के
इन नामों का जप विशेष हितकारी है ।
?ॐ मित्राय नमः । ॐ रवये नमः ।
ॐ सूर्याय नमः । ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगाय नमः । ॐ पूष्णे नमः ।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः । ॐ मरीचये नमः ।
ॐ आदिूत्याय नमः । ॐ सवित्रे नमः ।
ॐ अर्काय नमः । ॐ भास्कराय नमः ।
ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः ।
?उत्तरायण देवताओं का प्रभातकाल है । इस दिन तिल के उबटन व तिलमिश्रित जल से स्नान, तिलमिश्रित जल का पान, तिल का हवन, तिल का भोजन तथा तिल का दान- सभी पापनाशक प्रयोग हैं ।
नमस्ते देवदेवेश
?सहस्रकिरणोज्ज्वल । लोकदीप नमस्तेऽस्तु नमस्ते कोणवल्लभ ।।
भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः । विष्णवे कालचक्राय सोमायामिततेजसे ।।
? ‘हे देवदेवेश ! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं । हे कोणवल्लभ ! आप संसार के
लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है । विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करनेवाले आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है ।
(भविष्य पुराण, ब्राह्म पर्व : १५३.५०-५१)
?उत्तरायण का पर्व प्राकृतिक ढंग से भी बडा महत्त्वपूर्ण है । इस दिन लोग नदी में, तालाब में, तीर्थ में स्नान करते हैं लेकिन शिवजी कहते हैं जो भगवद्-भजन, ध्यान और सुमिरन करता है उसको और तीर्थों में जाने का कोई आग्रह नहीं रखना चाहिए, उसका तो हृदय ही तीर्थमय हो जाता है । उत्तरायण के दिन सूर्यनारायण का ध्यान-चिंतन करके, भगवान के चिंतन में मशगूल होते-होते आत्मतीर्थ में स्नान करना चाहिए । ॐ... ॐ... ॐ...
?ब्रह्मचर्य से बहुत बुद्धिबल बढता है । जिनको
ब्रह्मचर्य रखना हो, संयमी जीवन जीना हो, वे
उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण का
सुमिरन करें, जिससे बुद्धि में बल बढे ।
ॐ सूर्याय नमः... ॐ शंकराय नमः...
ॐ गं गणपतये नमः... ॐ हनुमते नमः...
ॐ भीष्माय नमः... ॐ अर्यमायै नमः...
ॐ... ॐ...
क्या आप जानते हैं ?
लोहड़ी का पर्व एक मुस्लिम राजपूत योद्धा दुल्ला भट्टी कि याद में पुरे पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है ,
लोहड़ी की शुरुआत के बारे में मान्यता है कि यह राजपूत शासक दुल्ला भट्टी द्वारा गरीब कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी की शादी करवाने के कारण शुरू हुआ है. दरअसल दुल्ला भट्टी पंजाबी आन का प्रतीक है. पंजाब विदेशी आक्रमणों का सामना करने वाला पहला प्रान्त था ।ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों से यहाँ के लोगों का टकराव चलता था .
दुल्ला भट्टी का परिवार मुगलों का विरोधी था.वे मुगलों को लगान नहीं देते थे. मुगल बादशाह हुमायूं ने दुल्ला के दादा सांदल भट्टी और पिता फरीद खान भट्टी का वध करवा दिया.
दुल्ला इसका बदला लेने के लिए मुगलों से संघर्ष करता रहा. मुगलों की नजर में वह डाकू था लेकिन वह गरीबों का हितेषी था. मुगल सरदार आम जनता पर अत्याचार करते थे और दुल्ला आम जनता को अत्याचार से बचाता था.
दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय पंजाब में स्थान स्थान पर हिन्दू लड़कियों को यौन गुलामी के लिए बल पूर्वक मुस्लिम अमीर लोगों को बेचा जाता था।
दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न सिर्फ मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी कि सभी व्यवस्था भी करवाई।
सुंदर दास नामक गरीब किसान भी मुगल सरदारों के अत्याचार से त्रस्त था. उसकी दो पुत्रियाँ थी सुन्दरी और मुंदरी. गाँव का नम्बरदार इन लडकियों पर आँख रखे हुए था और सुंदर दास को मजबूर कर रहा था कि वह इनकी शादी उसके साथ कर दे.
सुंदर दास ने अपनी समस्या दुल्ला भट्टी को बताई. दुल्ला भट्टी ने इन लडकियों को अपनी पुत्री मानते हुए नम्बरदार को गाँव में जाकर ललकारा. उसके खेत जला दिए और लडकियों की शादी वहीं कर दी।जहाँ सुंदर दास चाहता था. इसी के प्रतीक रुप में रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है.!!
दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। इसी कथा की हमायत करता लोहड़ी का यह गीत है, जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है :
सुंदर मुंदरिए - हो तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया - हो!
दुल्ला भट्टी मुगलों कि धार्मिक नीतियों का घोर विरोधी था। वह सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष था.उसके पूर्वज संदल बार रावलपिंडी के शासक थे जो अब पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था। आज भी पंजाब(पाकिस्तान)में बड़ी आबादी भाटी राजपूतों की है जो वहां के सबसे बड़े जमीदार हैं।