दानवी साये में पाकिस्तान:-दानवी साये में पाकिस्तान

-- हो.वे. शेषाद्रि

तालिबान पर अमरीका के प्रत्याक्रमण के दृश्य तो टेलीविजन चैनलों पर दिनभर दिखाये जा रहे हैं। साथ-साथ पाकिस्तान के अंदर अमरीका विरोधी भारी जनप्रदर्शन के भी दृश्य दिखाए जा रहे हैं। पाकिस्तान सरकार ने अपनी अमरीका समर्थक नीति का विरोध करने वाली संस्था जमाते-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाकर उसके प्रमुखों को गिरफ्तार किया है। विद्यालयों को भी इस भय से अनिश्चित काल तक वे बंद किया गया है, ताकि देश की युवा पीढ़ी सरकार विरोधी प्रदर्शनों में भाग न ले सके। पाकिस्तानी सेना में भी तालिबान समर्थक ऐसे कई अति उच्चपदस्थ अधिकारियों को या तो प्रभावहीन पदों पर नियुक्त किया गया है या उन्होंने सेवानिवृत्ति स्वीकार कर ली है। उनमें से एक ने तो मुशर्रफ को पाकिस्तान का सैनिक सर्वाधिकारी बनाने में अग्र भूमिका भी निभाई थी। सबसे महत्त्वपूर्ण पद, जो आई.एस.आई. प्रमुख का है, उसके वर्तमान प्रमुख को भी हटाया गया है।

इसका अर्थ इतना ही है कि सामान्य जनता का एक प्रभावी वर्ग ही नहीं सेना का एक बहुत प्रभावी अधिकारी वर्ग भी सरकारी नीति के खिलाफ है यानी तालिबान का पक्षधर है। इसका कारण भी स्पष्ट है। ताबिलान जो इस्लाम के नाम पर मजहबी उन्माद का प्रतीक बन गया है, उससे यह विरोधी वर्ग सहमत है, इनके अंदर भी वही उन्माद भड़क उठा है। यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान सरकार भी अपने देश में इसी इस्लामी उन्माद को पोषित करती आयी है। वर्तमान मुशर्रफ सरकार ही नहीं, वरन् पाकिस्तान के जन्मकाल से ही उसके नेता यही नीति अपनाते रहे हैं। पाकिस्तान के अलग देश के नाते अस्तित्व में आने पर मोहम्मद अली जिन्ना ने जो संविधान तैयार किया था उसमें मजहब के आधार पर किसी भी समुदाय को विशेष अधिकार नहीं दिया गया था। पाकिस्तान के सभी प्रजा वर्ग को मत-स्वातंत्र्य का आ·श्वासन-एक मूलभूत अधिकार के रूप में दिया गया था। संविधान सभा में जिन्ना ने इस नीति के समर्थन में यह घोषणा भी की थी कि "पाकिस्तान निर्माण के पूर्व की सारी बातें हम भूल जाएं। अब हमें एक आधुनिक, प्रजातांत्रिक देश के नाते आगे बढ़ना है।' परन्तु पाकिस्तान के गठन के एक वर्ष के अन्दर जिन्ना की मृत्यु होते ही वहां के संविधान में आमूल-चूल परिवर्तन करके इसे मजहबी राज्य का रूप दिया गया।

यही घटनाक्रम बंगलादेश के स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के थोड़े समय बाद भी दिखाई दिया। शेख मुजीबुर्रहमान जो भारत के साथ मित्रता और अपने देश के हिन्दुओं को भी पूर्ण रूप से मतीय स्वातंत्र्य एवम् संरक्षण देने के समर्थक थे, उनकी हत्या कर दी गई। और क्रमश: बंगलादेश को इस्लामी देश घोषित किया गया। तब से हिन्दुओं पर आक्रमण, हिन्दू स्त्रियों से बलात्कार, हिन्दुओं का मतांतरण, उनको बांग्लादेश से भगाना, हिन्दुओं की संपत्ति को कानून के बल पर मुसलमानों को सौंपना, पूर्वांचल के असमी, त्रिपुरी, बोडो उग्रवादी संगठनों के सशस्त्र प्रशिक्षण केन्द्रों को प्रश्रय देना एवं सहायता करना, वहां से मुस्लिम प्रजा को लगातार भारत के अन्दर घुसाना जैसी नीतियां सरकार अपनाती आयी है। जिस देश के अपार सैन्य शौर्य, पराक्रम एवं बलिदान के कारण बंगलादेश पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्त हुआ और जिसने उसके एक स्वतंत्र सार्वभौभ राज्य के नाते खड़े होने में निर्णायक भूमिका निभाई, ऐसे अपने पड़ोसी देश भारत के साथ-बंगलादेश का विरोधी व्यवहार रहा है। इसका भी कारण स्पष्ट है- तालिबान! जिस इस्लामी मजहबी उन्माद का प्रतीक तालिबान बना हुआ है, उसी की हवा बंगलादेशियों के अंदर भी भर गई है।

इस सारे घटनाक्रम से यही निष्कर्ष निकलता है, कि एक बार किसी भी मजहब के नाम पर विद्वेष की आग भड़क जाती है, तो वह आगे चलकर उन्माद का उद्रेक करने वालों को भी लपेट लेती है। स्वयं पं. नेहरू ने कहा था कि "पाकिस्तान का जन्म हिन्दुस्थान के प्रति विद्वेष से हुआ'। उस राज्य के अस्तित्व का और कोई आधार ही नहीं था। जब तक वह विद्वेष बनाकर रखेगा तब तक ही उसका अस्तित्व का बना रहेगा। एक बार हिन्दुस्थान और हिन्दुओं के साथ प्रेम से, आदर से रहना प्रारम्भ करेंगे तो हिन्दुस्थान के साथ मिलकर रहना, यानी देशविभाजन-पाकिस्तान के निर्माण का वैचारिक आधार ही नहीं बचेगा, यह कथाकथित द्विराष्ट्र सिद्धान्त ही नकारने जैसा होगा।

कश्मीर पर पाकिस्तान का अघोषित युद्ध भी इस मनोवृत्ति की एक कड़ा मात्र है। वहां के निर्दोष महिला-बच्चों को मारना-मुशर्रफ के कथन के अनुसार कश्मीर की स्वतंत्रता का संग्राम है। भारत के अंदर आई.एस.आई. का जाल फैलाना, जगह-जगह पर बम विस्फोट कराना, हर प्रकार की भारत विरोधी विभाजनकारी शक्तियों को प्रशिक्षण देना आदि सभी बातें भी पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ खोले हुए विभिन्न मोर्चों का प्रमाण हैं। साथ में यहां के मुसलमानों में भी वही उन्माद भड़काने के लिए "सिमी' जैसे मुसलमान विद्यार्थियों के संगठन को आगे बढ़ाना उसी रणनीति का एक अंग है।

परन्तु इस मार्ग पर चलते हुए अपने ऊपर ही कितना भयानक इस्लामी उग्रवाद का खतरा आने वाला है-इसका अनुभव स्वयं पाकिस्तान को हो रहा है। अमरीका के खिलाफ दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा उन्माद और प्रदर्शनकारियों द्वारा मुख्य रूप से प्रदर्शित किया जाने वाला चित्र बिन लादेन का है। अब यह रोष अमरीका के खिलाफ तो प्रत्यक्ष रूप में दिखाना संभव नहीं है- इसलिए पाकिस्तान सरकार के खिलाफ वह रोष मोड़ ले रहा है। वहां के पुलिस थाने पर आक्रमण करने निकली भीड़ पर पाकिस्तानी पुलिस ने गोली चलायी जिससे तीन प्रदर्शनकारी मारे गए। धीरे-धीरे और भी जननेता इस उद्रेक के शिकार होकर सरकार के खिलाफ आन्दोलन को और हिंसक बना रहे हैं।

कई वर्ष पहले "फ्रैंकस्टीन' नामक एक फिल्म काफी लोकप्रिय हुई थी। फिल्म में एक वैज्ञानिक ने प्रयोग करके एक भयानक विनाशकारी राक्षस का निर्माण किया था जो आगे चलकर उस वैज्ञानिक की ही आहुति ले लेता है। उसी प्रकार के संकट का सामना अब पाकिस्तान को करना पड़ रहा है। पिछले 50 वर्षों से पाकिस्तान भारत के खिलाफ जिस आग में घी डालता रहा है, उसकी लपटें अब स्वयं पाकिस्तान को झुलसाने लगी हैं। यह पाठ अन्य इस्लामी देश भी सीख रहे हैं, और अपने-अपने देश में इस्लामी उग्रवाद भड़काने के हर एक प्रयास को दबाने का प्रयास भी कर रहे हैं। भारत में रहने वाले मुसलमानों को भी यह एक बड़ी चेतावनी देने वाला घटनाक्रम है।