देवेन्द्र स्वरूप बौद्ध आवरण में ईसाईकरण


जान दयाल की जेब में रामराज

अविश्वसनीय कहानी-

भारत में ईश्वरीय चमत्कार

23 अक्तूबर को इन्टरनेट पर प्रसारित समाचार। (ऊपर बायीं ओर अ.भा. क्रिश्चियन काउंसिल, ए.आई.सी.सी. के अध्यक्ष डा. डिसूजा और गोस्पेल फार एशिया के अध्यक्ष डा. के.पी. योहन्नान के मध्य रामराज का चित्र)

जरा कल्पना कीजिए कि अगर एक विशाल झुंड आकर आपसे कहे कि "हम ईसाई बनना चाहते हैं -क्या आप हमारी मदद कर सकते हैं?' तो आप कैसे रोमांचित हो उठेंगे। पिछले कुछ महीनों से भारत के 30 करोड़ दलितों के नेता अ.भा. क्रिश्चियन काउंसिल के पास जाकर केवल एक प्रार्थना कर रहे हैं कि, "जाति-व्यवस्था की 3 हजार साल पुरानी गुलामी से मुक्त होने का हमारे लोगों के पास अब एक ही मार्ग बचा है कि हम मतपरिवर्तन कर लें। ईसाई मत में हम आशा पाते हैं। हमारे लोग ईसाई बनने को तैयार हैं। क्या आप हमारी मदद कर सकते हैं?'

दलित नेताओं के साथ निरंतर सम्पर्क और वार्तालाप की परिसमाप्ति कुछ सप्ताह पहले भारत में 7 सितम्बर को एक ऐतिहासिक सभा के रूप में हुई। इस सभा में भारतभर से 740 से अधिक शीर्ष ईसाई मतप्रचारक एकत्र हुए और उनका दलित नेताओं के साथ विचार-विमर्श हुआ। इस सभा के समाप्त होने पर आई.सी.सी. और गोस्पेल फार एशिया ने दलित नेताओं को सहायता देने का वचन दे दिया। "ई·श्वर ने दरवाजा खोल दिया है और अब कोई इसे बंद नहीं कर सकता। अगर इनमें से एक तिहाई भी ईसा के चरणों में आ गए तो 10 करोड़ नए ईसाई पैदा होंगे।' इस समय मेरे सामने दिल्ली से प्रकाशित एक अंग्रेजी साप्ताहिक "इंडियन करेंट्स' का ताजा अंक (4 नवम्बर) है। यह साप्ताहिक ईसाइयत का प्रचार करता है। कट्टरवादी ईसाई पत्रकार जान दयाल का नाम इसके राजनीतिक सम्पादक की जगह छपता है। इसलिए यह आश्चर्य की बात है कि इस ईसाई पत्रिका के इस अंक के कुल 48 पृष्ठों में से 10 पृष्ठ की सामग्री दिल्ली में 4 नवम्बर को होने वाली एक दलित रैली को अर्पित की गयी है। समाचार पत्रों के अनुसार इस रैली का आयोजक एक रामराज नामक सज्जन हैं जो अनुसूचित जाति के माने जाते हैं। आरक्षण की बैसाखी के सहारे उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि अर्जित कर ली है और इस समय दिल्ली में आयकर विभाग में उपायुक्त जैसे प्रभावशाली पद पर आसीन हैं। वे स्वयं को बौद्ध बताते हैं। किसी लार्ड बुद्धा क्लब के अध्यक्ष हैं और अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ का भी स्वयं को अध्यक्ष कहते हैं। इसी परिसंघ के तत्वावधान में उन्होंने इस रैली का आयोजन किया है, यद्यपि यह परिसंघ दो गुटों में बंट चुका है। दूसरे गुट के अध्यक्ष सोमनाथ हंस ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा है कि रामराज को वित्तीय घोटाले के आरोप में सन् 1999 में परिसंघ से निष्कासित कर दिया गया था। अत: उन्हें परिसंघ का बैनर इस्तेमाल करने का कोई अधिकार नहीं है। परिसंघ के उपाध्यक्ष डी.सी. कपिल ने कहा कि रामराज को धर्मपरिवर्तन सम्मेलन का आयोजन परिसंघ के बैनर के बजाय लार्ड बुद्धा क्लब के मंच से करना चाहिए। अनुसूचित जाति के एक विधायक रूपचंद का कहना है कि दलितों का धर्मपरिवर्तन कराने के पूर्व रामराज अपने पद से इस्तीफा दें। जानकार सूत्रों का कहना है कि रामराज पहले बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष कांशीराम के नेतृत्व में बामसेफ नामक संस्था में काम करते थे। किन्तु अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण उन्होंने कांशीराम से अलग होकर अलग रास्ता चुन लिया और 4 नवम्बर की रैली का भारी प्रचार करके वे अपने नेतृत्व को स्थापित करना चाहते हैं। रामराज की घोषणा है कि 4 नवम्बर को 10 लाख दलित हिन्दू समाज से सम्बंध विच्छेद कर बौद्ध मत में दीक्षा ले लेंगे।

महत्वाकांक्षाओं का टकराव

दलित आन्दोलन के इन भीतरी मतभेदों और महत्वाकांक्षाओं के टकराव को यदि हम कुछ देर के लिए नजरअंदाज कर दें तो भी प्रश्न उठता है इस दलित रैली और दलितों के बौद्ध मतान्तरण में "इंडियन करेंट्स' जैसी ईसाई पत्रिका की इतनी रुचि क्यों है? इस अंक में चार पन्ने यह बताने के लिए खर्च किए गए हैं कि ब्राह्मण धर्म का ही दूसरा नाम हिन्दू धर्म है और वह भारत का मूल धर्म नहीं है। लेख में वैदिक, हड़प्पा, हिन्दू, जैन और बौद्ध मतों में भिन्नता दिखाते हुए कहा गया है कि जैन मत सबसे पुराना है और एक समय बौद्ध मत भारत में बहुमत में था। अन्त में डा. अम्बेडकर के कुछ पुराने कथनों को उद्धृत कराके यह बताया गया है कि दलित वर्ग का उद्धार हिन्दू धर्म को छोड़ने और बौद्ध मत की दीक्षा लेने में ही है। "इंडियन करेंट्स' की रामराज और उनकी रैली में रुचि इतनी अधिक है कि उसने अपने दो प्रतिनिधि रामराज के घर भेजकर उनसे दो पृष्ठों की भेंटवार्ता प्रकाशित की। इस भेंटवार्ता को ध्यान से पढ़ने पर स्पष्ट हो जाता है कि इस रैली के आयोजन में रामराज को चर्च का पूरा सहयोग मिल रहा है। उनसे प्रश्न पूछा गया कि "यह कहा जा रहा है कि यह रैली ईसाई षड्यंत्र का हिस्सा है। इस पर आपका क्या कहना है?' "रामराज इस आरोप का खण्डन करने के बजाय कहते हैं, "किसी की मदद के बिना इतनी विशाल जनसंख्या को जुटाना संभव ही नहीं है। किसी से मिलने वाली मदद को कौन ठुकराएगा।' उनसे दूसरा प्रश्न पूछा गया, "क्रिश्चियन ब्राडकास्टिंग नेटवर्क की वेबसाइट पर कहा गया है कि इस रैली में सेंट जान की गोस्पेल का वितरण होगा', रामराज कहते हैं कि "आर.एस.एस. वाले चाहें तो वे भी अपना साहित्य वितरित कर सकते हैं।'

इस अंक के सम्पादकीय में कहा गया है कि "रामराज के नेतृत्व में दलितों के मतान्तरण अभियान पर हिन्दुत्ववादियों की चुप्पी रहस्यपूर्ण है। क्या वे इसलिए चुप हैं कि वे बौद्धमत को भारतीय मानते हैं? या वे इस अभियान के पीछे ईसाई या मुस्लिम षड्यंत्र का आरोप लगाने का इंतजार कर रहे हैं? सामूहिक मतान्तरण की पहली तिथि के स्थगन के बाद भी उनकी चुप्पी सचमुच अर्थपूर्ण है।' हिन्दुत्ववादी शक्तियों को उकसाने के उद्देश्य से स्वयं जान दयाल ने "रामराज और वि·श्व हिन्दू' शीर्षक से तीन पृष्ठों का लम्बा लेख लिखा है। जिसमें वे 24 अक्तूबर को इन्टरनेट पर किसी हिन्दू प्रतिक्रिया को पूरे विस्तार से उद्धृत करके यह बताना चाहते हैं कि मन ही मन हिन्दुत्ववादी रामराज के इस आयोजन से बहुत अधिक चिन्तित हैं और उसमें विघ्न डालने की योजनाएं बना रहे हैं। पर वे यह नहीं बताते कि इसके पूर्व इन्टरनेट पर कई विदेशी चर्च संगठनों के द्वारा क्या सामग्री प्रसारित की गयी है। वस्तुत: 4 नवम्बर को होने वाली रैली की सच्ची कहानी विदेशी ईसाई संगठनों की वेबसाइटों पर प्रसारित सामग्री को पढ़कर ही जानी जा सकती है। यह सामग्री "बाइबिल फार दि वल्र्ड' (वि·श्व के लिए बाइबिल), गोस्पेल फार एशिया, दि 700 क्लब एवं क्रिश्चियन ब्राडकास्टिंग नेटवर्क द्वारा 22 और 23 अक्तूबर को प्रसारित की गयी है। इस सामग्री को पढ़कर लगता है कि चर्च इस रैली को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना के रूप में देख रहा है। उसे पूरा वि·श्वास है कि इस रैली का वास्तविक

लक्ष्य बौद्धमत में दीक्षा न होकर ईसाई मत में दीक्षा है। बौद्धमत में दीक्षा का आवरण अपनाना आवश्यक है, क्योंकि ईसाई मत में दीक्षा लेने पर भारतीय संविधान द्वारा आरक्षण नीति के तहत प्रदत्त सब सुविधाओं और विशेषाधिकारों से ईसाई मतान्तरित वंचित हो जाएंगे। जबकि बौद्ध मत में दीक्षा का आवरण ओढ़ लेने पर वे उनसे वंचित नहीं होंगे। यह बात क्रिश्चियन ब्राडकास्टिंग नेटवर्क द्वारा 23 अक्तूबर को प्रसारित आल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल के अध्यक्ष डा. जोसेफ डिसूजा के साथ गार्डन राबर्टसन की भेंटवार्ता में स्पष्ट शब्दों में स्वीकार की गयी है। "इंडियन करेंट्स' में भी रामराज के साथ भेंटवार्ता में इस तथ्य को उभारा गया है।

23 अक्तूबर को "बाइबिल्स फार दि वल्र्ड' द्वारा प्रसारित एक वक्तव्य में कहा गया है कि 4 नवम्बर को 10 लाख दलित हिन्दू धर्म को त्याग देंगे। अमरीका में भारतीय मूल के एक ईसाई प्रचारक डा. रोचुंगा पुडाईट इस रैली को सम्बोधित करेंगे और ईसाई मत की श्रेष्ठता बताएंगे। एक अन्य ईसाई बुद्धिजीवी विशाल मंगलवाडी की कृति "दि क्वेस्ट फार फ्रीडम एण्ड डिग्निटी' (मुक्ति और प्रतिष्ठा की भूख) की प्रतियां मुफ्त वितरित की जाएंगी। देशभर से ईसाई कार्यकर्ताओं, विद्यार्थियों और उपासकों को इस रैली में साहित्य वितरण एवं रैली में भाग लेने वालों को ईसाई मत की दीक्षा लेने में लगाया जाएगा। इनमें दिल्ली से बाहर के किसी क्रिश्चियन बाइबिल कालेज के छात्रों को 10-12 बसों में भरकर लाया जाएगा। जान की गोस्पेल की 10 लाख प्रतियां वितरित की जाएंगी। इसके लिए विदेशों में भारी मात्रा में धनराशि इकट्ठी की जा रही है।

प्रसारित सामग्री में कहा जा रहा है कि चर्च के सामने एक महान अवसर उपस्थित हो गया है। रामराज को अम्बेडकर के बराबर में ऊंचे बैठाया जा रहा है। डिसूजा कहते हैं कि "पचास साल पहले अम्बेडकर के समय वे मौका चूक गए थे। उस समय अम्बेडकर चर्च का दरवाजा खटखटा रहे थे किन्तु दुर्भाग्य से उस समय चर्च में फूट थी और वह जनजातीय भेद से ग्रस्त था और इसलिए हमने उनके लिए दरवाजा नहीं खोला। यदि उस समय खोल दिया होता तो आज स्थिति बहुत भिन्न होती। अब फिर वह मौका आया है। रामराज बहुत प्रभावशाली स्थिति में पहुंच गए हैं इसलिए उनके माध्यम से दलित वर्गों को ईसा की शरण में लाना संभव होगा। इसके 10 लाख लोग 4 नवम्बर को हिन्दू धर्म छोड़ेंगे कोलराडो (अमरीका) स्थित बाइबिल्स फार दि वल्र्ड का प्रसारण ,23 अक्तूबर,2001

थ् रविवार, 4 नवम्बर,2001 को नई दिल्ली में 10 लाख दलित एक ऐतिहासिक रैली में हिन्दू धर्म छोड़कर किसी और मत में जाने की खुली घोषणा करेंगे।

थ् इस रैली के मुख्य आयोजक रामराज हैं जो नई दिल्ली में आयकर उपायुक्त के ऊंचे पद तक पहुंच गए हैं। भारत में इतनी प्रभावशाली स्थिति तक उठने वाले वे विरले व्यक्ति हैं।

थ् ईसाई कार्यकर्ता, छात्र और सामान्य उपासक पूरे भारत से वहां पहुंच रहे हैं। इनमें दिल्ली के बाहर किसी ईसाई बाइबिल कालेज के छात्र भी 10-12 बसों में भरकर वहां पहुंचेंगे। वे ईसाई मत में परिवर्तन के काम में सहयोग देंगे।

थ् इस अवसर पर 10 लाख बाइबिल प्रतियों के वितरण के लिए धन संग्रह किया जा रहा है।

थ् डा. पुडाईट ने विशाल मंगलवाडी नामक एक भारतीय ईसाई विद्वान को "दि क्वेस्ट फार फ्रीडम एण्ड डिग्निटी' नामक पुस्तक इस रैली में वितरण के लिए लिखने का निर्देश दिया है। हमारे सामने निम्न लक्ष्य हैं-

थ् दलित नेता रामराज को ईसाई बनाना।

थ् अन्य सब प्रभावों की काट करके दलितों को ईसाई बनाना।

थ् रैली में भाग लेने वाले दलितों और स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की व्यवस्था करना।

थ् बाइबिल वितरण, रैली के आयोजन और बाद की गतिविधियों के लिए धनसंग्रह करना।

लिए पहला कदम होना चाहिए कि वे हिन्दू समाज से नाता तोड़ें।' स्पष्ट ही डिसूजा का इतिहास-ज्ञान बहुत गलत है।सत्य यह है कि अम्बेडकर ने कभी चर्च का दरवाजा नहीं खटखटाया, जबकि चर्च ने उनको ईसाई मत में लाने के लिए जीतोड़ कोशिश की। इसी प्रकार डिसूजा कहते हैं कि जब संविधान बना तब दलित ईसाइयों को समान अधिकार दिए गए थे। किन्तु बाद में गोस्पेल फार एशिया द्वारा 23 अक्तूबर को प्रसारित सन्देश क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि दस लाख लोग एक जगह इकट्ठा होंगे। यह कल्पना तो और भी कठिन है कि उनमें से लाखों लोग गोस्पेल को सुनकर ईसा के चरणों में आ जाएंगे। ई·श्वर कृपा से यही चमत्कार 4 नवम्बर को होने जा रहा है, दसियों लाख लोग ईसा के चरणों में आने वाले हैं। दो साल से भी अधिक समय से ए.आई.सी.सी. का नेतृत्व रामराज एवं अन्य दलित नेताओं से वार्तालाप चला रहा था। पहले वे डा. अम्बेडकर का अनुसरण करते हुए बौद्ध मत में जाना चाहते थे। किन्तु जैसे-जैसे ए.आई.सी.सी. के साथ उनका संवाद आगे बढ़ा तो उन्होंने अपने अनुयायियों को ईसा की शरण में जाने की छूट देने का निश्चय कर लिया। सितम्बर के प्रारम्भ में दलित नेताओं और ए.आई.सी.सी. के बीच एक बैठक में रामराज और उसके नेताओं ने ए.आई.सी.सी. के नेतृत्व से प्रार्थना की कि वे दलित आन्दोलन में चर्चों के निमंत्रण को पहुंचाने की व्यवस्था करें ताकि विभिन्न चर्चों के बीच छीनाझपटी और भ्रम की स्थिति पैदा न हो।

एक राष्ट्रपतीय अध्यादेश के द्वारा उनके विशेषाधिकार छीन लिए गए। यह कथन बिल्कुल असत्य है। सत्य तो यह है कि ब्रिटिश काल में ही 1935 के अधिनियम में आरक्षण की सुविधा केवल हिन्दू समाज की अंगभूत अनुसूचित जातियों तक सीमित थी। चर्च के बहुत अनुरोध करने पर भी ब्रिटिश सरकार ने मतान्तरितों को आरक्षण की परिधि में लाने से इनकार कर दिया था। 300 वर्ष बाद भी चर्च मतान्तरितों को सामाजिक समता और आर्थिक सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाया है। इसीलिए वह सैकड़ों साल पहले के मतान्तरित दलितों के असन्तोष का समाधान नहीं कर पा रहा है। अपनी असफलताओं को स्वीकार करने के बजाय दलित ईसाइयों के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है। इसीलिए अब वह आरक्षण की सुविधा बनाए रखने के लालच में छद्म बौद्ध आवरण में मतान्तरण करने का षड्यंत्र रच रहा है।

डा. जोसेफ डिसूजा से भेंटवार्ता

अक्तूबर,22, दि 700 क्लब द्वारा। सी.बी.एन. द्वारा 23 अक्तूबर को प्रसारित।

दस लाख हिन्दुओं का ईसाइयत में सामूहिक मत-परिवर्तन

गोर्डन राबर्टसन की अखिल भारतीय क्रिश्चियन काउंसिल के अध्यक्ष डा. जोसेफ डिसूजा से भेंटवार्ता-

राबर्टसन-डा. डिसूजा दस लाख या अधिक दलित 4 नवम्बर को हिन्दू धर्म छोड़ रहे हैं। आपके मत से तब क्या होगा? क्या हम ईसाई मत में मतान्तरण की अभूतपूर्व लहर देखेंगे?

डिसूजा- अवश्य, मैं यही सोचता हूं। 4 नवम्बर को मतपरिवर्तन का एक बड़ा दृश्य दिखायी देगा। दलित नेताओं के सामने इस समय दो विकल्प हैं-बौद्ध या ईसाई मत।

राबर्टसन-मैंने सुना है कि यदि वे ईसाई बनते हैं तो वे शिक्षा एवं नौकरियों की विशेष सुविधाओं से वंचित हो जाएंगे। किन्तु यदि वे बौद्ध बनते हैं तो ये सब सुविधाएं बनी रहेंगी।

डिसूजा-यह बिल्कुल सही है। 1950 में जब हमारा संविधान बना तब दलित ईसाइयों को भी ये सब सुविधाएं प्राप्त थीं। किन्तु एक राष्ट्रपतीय आदेश से वे सुविधाएं छीन ली गयीं।

राबर्टसन-क्या भारत में चर्च 4 नवम्बर की बड़ी घटना के लिए तैयार है? हम उसकी क्या मदद कर सकते हैं?

डिसूजा-मेरे विचार से चर्च के इतिहास में यह बहुत ही ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण क्षण होगा। 50 साल पहले ऐसा ही एक क्षण हम गंवा बैठे थे। संविधान के पिता और दलित नेता ने चर्च का दरवाजा खटखटाया था किन्तु हम आपसी फूट और जातिभेद से ग्रस्त होने के कारण उस क्षण को गंवा बैठे। यदि उस क्षण को पकड़ लेते तो इतिहास बिल्कुल भिन्न होता।

अब वैसा ही ऐतिहासिक क्षण दोबारा आया है। हमारी काउंसिल के सभी घटक, संगठन और पंथ इस बारे में सतर्क हैं। यद्यपि चर्च में एक उदारवादी वर्ग मतान्तरण पर रोक लगाने, दलितों को अपनाकर सामाजिक संतुलन को न बिगाड़ने पर जोर दे रहा है। किन्तु हमने स्पष्ट बता दिया है कि ईसाई समुदाय सभी आने वालों को अपनायेगा। अब चर्च पहले जैसा दब्बू नहीं है। अब उसमें हिम्मत आ गयी है। छद्म आवरण

इन्टरनेट पर चर्च संस्थाओं द्वारा प्रसारित सामग्री से पता चलता है कि इस सामूहिक मतान्तरण की दिशा में आल इंडिया चर्च काउंसिल लगभग दो वर्ष से दलित नेताओं से वार्ता कर रही थी। पहले तय हुआ कि दलाई लामा को सामने रखकर बौद्धमत में मतान्तरण का नाटक किया जाए। इसके लिए 14 अक्तूबर की तिथि भी निर्धारित हो गयी थी। किन्तु जब दलाईलामा को यह बात पता चली तो उन्होंने सार्वजनिक वक्तव्य देकर स्पष्ट कर दिया कि वे हिन्दू और बौद्ध धाराओं को एक ही प्रवाह का अंग मानते हैं और वे मतान्तरण के पक्ष में कतई नहीं हैं। उन्हें इस कार्यक्रम की सूचना ही नहीं दी गयी अत: उनकी सहमति का सवाल ही नहीं उठता। दलाईलामा का आवरण न मिल पाने की स्थिति में यद्यपि तर्क दिया जा रहा है कि सरकार ने स्थान की अनुमति देने से मना कर दिया।

किन्तु चर्च ने अपने प्रयास जारी रखे। 7 सितम्बर,2001 को हैदराबाद में एक बड़ी सभा बुलायी जिसमें 740 प्रमुख ईसाई नेताओं और 26 दलित नेताओं के बीच भावी कार्यक्रम के बारे में विचार-विमर्श हुआ। इन्टरनेट पर प्रसारित साहित्य में कहा गया है कि उस बैठक में इस सम्मेलन के आयोजन और व्यवस्था का पूरा दायित्व अखिल भारतीय क्रिश्चियन काउंसिल ने संभाल लिया। अर्थात् रामराज केवल मुखौटा है। भीड़ जुटाने और सम्मेलन के पूरे प्रबंध का काम चर्च कराने वाला है। चर्च की नयी रणनीति के पहले चरण का लक्ष्य दलित वर्गों को हिन्दू समाज से काटना है। इसके लिए उनके मन में हिन्दू समाज के प्रति वितृष्णा और कटुता पैदा करना आवश्यक है। हिन्दू समाज को लांछित करने के लिए डरबन में आयोजित नस्ल और रंगभेद विरोधी सम्मेलन का पूरा उपयोग किया गया। जान दयाल आदि अनेक ईसाई नेता दलितों के प्रवक्ता बन गए। डरबन पहुंचकर उन्होंने हिन्दू समाज और भारत की छवि को पूरे वि·श्व के सामने खराब करने का भरसक प्रयास किया। अभी पिछले सप्ताह एक लम्बा पत्रक मेरे एक मित्र के कार चालक को चाय के एक ढाबे पर प्राप्त हुआ। इस पत्रक को शीर्षक दिया गया है-

"हिन्दू धर्म संसद द्वारा अनुमोदित गोपनीय दस्तावेज'। अंत में लिखा है, "मुद्रक, अखिल भारतीय प्रचार संघ'। 10,000/- गोपनीय, वाराणसी। ऊपर नोट दिया गया है, "यह पूर्णत: गोपनीय दस्तावेज है। किसी भी हालत में यह अनु.जाति/जनजाति/अन्य पिछड़े वर्ग या हिन्दू धर्म के विरोध में काम करने वाले व्यक्ति के हाथों में नहीं लगना चाहिए।' पत्रक के प्रारम्भ में लिखा है,"हिन्दुत्व की पवित्र देवभूमि प्रयाग में हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.), वि·श्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल एवं अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा एक सामूहिक हिन्दू धर्म संसद के रूप में एकजुट होकर यह संकल्प करते हैं कि भविष्य में हमारा एकमत संगठित प्रयास एवं लक्ष्य आरक्षण की समाप्ति, भारतीय संविधान को नष्ट करने, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, मुस्लिम धर्म के बहुत प्रभाव को समाप्त करने और दलित आंदोलन में फूट डालने और उन्हें विभाजित करने का होगा।' इतनी पंक्तियों से ही इस पत्रक के पीछे के दिमाग की दिशा स्पष्ट हो जाती है। पूरे पत्रक में हर जगह हिन्दू परम्पराओं, रीति-रिवाजों और वि·श्वासों का मजाक बनाने, हिन्दू समाज में फूट डालने और अनुसूचित जातियों/जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के मन में सन्देह व कटुता पैदा करने का प्रयास किया गया है। ऐसे न जाने कितने जाली पत्रक इन्हीं वर्गों के बीच बांटे जा रहे होंगे।

प्रचार का बवंडर

जान दयाल की अब तक की राजनीति को देखकर स्पष्ट है कि उनका एकमात्र लक्ष्य हिन्दू समाज और ईसाई समाज के बीच कटुता पैदा करना है। उन्होंने ही राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पिछले अध्यक्ष डा. ताहिर महमूद के साथ मिलकर ईसाई संस्थानों और मत प्रचारकों पर हिन्दू हमलों का प्रचार-बवंडर खड़ा किया। जब-जब शान्ति स्थापित हुई, उन्होंने नेशनल क्रिश्चियन फोरम नामक कागजी संस्था के महासचिव के नाते ईसाइयों पर हमलों के झूठे समाचार प्रचारित किए। जब नए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने जांच करने पर इन समाचारों को गलत पाया तो जान दयाल और उनके साथियों ने आयोग की निष्पक्षता पर अंगुली उठाना शुरू कर दिया। जब आयोग ने सौहाद्र्र पैदा करने के लिए हिन्दू-ईसाई संवाद की पेशकश की तो जान दयाल ने आयोग के ईसाई सदस्य जान जोसेफ को हिन्दुओं का दलाल घोषित कर दिया। किन्तु उनके शोर की उपेक्षा करके भी जब कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और सीरियन चर्च के नेताओं ने राट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ संवाद का स्वागत किया और उस संवाद से आपसी सद्भाव बनने लगा तो जान दयाल ने चर्च नेतृत्व की भी कटु आलोचना की। कैथोलिक चर्च के नेताओं ने तो यहां तक कहा कि जान दयाल उनके प्रवक्ता नहीं हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि जान दयाल का नक्सली व कम्युनिस्टों से गहरा रिश्ता है। शायद अपनी कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि के कारण ही वे हिन्दुत्व और संघ-परिवार को अपना एकमात्र शत्रु मान कर चल रहे हैं और उसके लिए कम्युनिस्टों व मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। शायद इसीलिए शमसुल इस्लाम के संघ विरोधी लेखों को "इंडियन करेंट्स' और कम्युनिस्ट साप्ताहिकों में समान रूप से स्थान मिलता है। हम पहले भी कई बार लिख चुके हैं कि वि·श्वभर के ईसाई समाज पर मुस्लिम आक्रमण हो रहे हैं पर भारत में हिन्दू समाज के विरुद्ध मुल्ला-पादरी गठबंधन का अजीब दृश्य दिखाई दे रहा है। क्या इस आत्मघाती नीति को चर्च का आशीर्वाद प्राप्त है? जान दयाल का चर्च में क्या स्थान है, इसकी पूरी तरह छानबीन होना आवश्यक है।

रामराज की डा. पुडाईट से भेंट

सी.बी.एन. द्वारा 23 अक्तूबर को प्रसारित गोर्डन राबर्टसन की डा. रोचुंगा पुडाईट से भेंटवार्ता।

डा. पुडाईट-मैंने रामराज से कहा कि क्या तुम विघ्न रहित पूरे तीन दिन मेरे साथ रहकर ईसाई विकल्प पर चर्चा करना चाहोगे। उसने कहा, "अवश्य'। और तब वह भारत से उड़ान भर कर हमारे घर आए और तीन दिन के बजाय पांच दिन और ठहरे। ईसाई मत के संदेश पर हमने गंभीर चर्चा की। और वापसी में मैं भी उनके साथ भारत गया ताकि हमारा संवाद बना रहे।

गोर्डन-यह तो चमत्कार हुआ। पता नहीं लोग इस सबका अर्थ समझते हैं या नहीं।

डा. पुडाईट- रामराज ने पिछले सप्ताह मुझे फोन करके कहा, "आपको उस दिन 2 लाख लोगों का मतान्तरण करने की तैयारी रखनी चाहिए।'

गोर्डन-इस भारी फसल को काटने के लिए आपके बहुत अधिक कार्यकर्ता लगेंगे। सचमुच यह भारत के लिए चमत्कारिक क्षण होगा।

इसी प्रकार रामराज की असलियत का पता लगाना भी जरूरी है। इन्टरनेट पर प्रसारित सामग्री में कहीं उनको ईसाई कहा गया है, कहीं बौद्ध। एक जगह कहा गया है कि दलितों को ईसाई बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। डा. रोचुंगा पुडाईट के साथ उनके वार्तालाप को भी प्रसारित किया गया है। उन्होंने सेंटजान की गोस्पेल की दस लाख प्रतियां वितरित करने की मांग की। डा. पुडाईट को ईसाई मत की श्रेष्ठता पर प्रवचन देने की प्रार्थना की।

भारतीय समाज को विभाजित करने के ऐसे अनेक षड्यंत्र चल रहे हैं। जिस समय देश अन्दर-बाहर आतंकवाद से घिरा है, राष्ट्रीय एकता की महती आवश्यकता है, उस समय जान दयाल और डिसूजा जैसे लोग आपसी फूट का वातावरण पैदा कर रहे हैं। दुर्भाग्य से इस समय मीडिया की भूमिका रचनात्मक न होकर नकारात्मक दिखायी दे रही है। मीडिया विभाजनकारी प्रवृत्तियों का पोषण कर रहा है। सन्तोष की बात है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के वर्तमान नेतृत्व ने बहुत सकारात्मक भूमिका अपनायी है। आयोग अल्पसंख्यकवाद को बढ़ावा देने के बजाय अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के भेद को कम करने का प्रयास कर रहा है। उनके बीच संवाद और सद्भाव के पुल बना रहा है। इसी राष्ट्रभक्तिपूर्ण दृष्टि के कारण आयोग ने इस मतान्तरण रैली के पीछे विद्यमान षड्यंत्र को पहचान लिया। आयोग ने सरकार को चेतावनी दी कि आज के संकट काल में राष्ट्रीय एकता पहली आवश्यकता है और उस एकता को कमजोर करने वाले कार्यक्रमों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। इन्टरनेट पर प्रसारित ईसाई साहित्य में षड्यंत्र खुल जाने का भय भी दिखायी देता है। एक जगह कहा गया है कि "ई·श्वर से प्रार्थना करो कि इस बार यह रैली टलने न पाए'। प्रसन्नता की बात है कि दिल्ली पुलिस ने इस रैली को रोक कर अनुमति को वापस ले लिया है, किन्तु रामराज अब भी रैली करने पर अड़े हुए हैं। क्या ई·श्वर जान दयाल-रामराज युति को सद्बुद्धि देगा कि वे अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए राष्ट्रहित की बलि न दें। (2 नवम्बर,2001)

तलपट

अफगानिस्तान के दिनोंदिन बिगड़ते हालात को देखते हुए बहुत बड़ी संख्या में अफगानिस्तान में बसे भारतीयों में जल्द से जल्द स्वदेश पहुंचने की होड़ है लेकिन उन्हें वीसा प्राप्त करने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास में लगभग 112 परिवारों द्वारा वीसा के लिए आवेदन किया गया था, किन्तु केवल 47 परिवारों के नाम ही दिल्ली से स्वीकृत किए गए। उक्त 47 परिवारों में से 12 परिवार भारत पहुंचे हैं, जबकि 35 परिवार अफगानिस्तान के गजनी में ठहराए गए हैं।