बंगलादेश में हिन्दू-उत्पीड़न
अत्याचार!!
-- प्रतिनिधि
बंगलादेश से हिन्दुओं का पलायन हो रहा है। यह बात भारत सरकार के मंत्रिमण्डलीय सचिव ने भी स्वीकारी है। पर उसका कहना है कि पलायन करने वाले हिन्दू परिवारों की संख्या अखबारों में छपे आंकड़ों से बहुत कम है। सम्बंधित मंत्रालयों को भेजी गई इस रपट में मंत्रिमण्डलीय सचिव का आकलन है कि हिन्दुओं के वर्तमान पलायन के पीछे मुख्य रूप से दो कारण हैं-एक, बंगलादेश की सत्तारूढ़ सरकार द्वारा राजनीतिक बदले की भावना दर्शाना, और दो, हिन्दुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाना।
रपट के अनुसार हिन्दुओं ने दो प्रदेशों, प. बंगाल और त्रिपुरा के कुछ क्षेत्रों में अपने परिजनों अथवा किराए के घरों में शरण ली है। असम, मेघालय और मिजोरम में शरणार्थियों का आना नहीं हुआ है।
बंगलादेश में सत्ता में आने के बाद खालिदा जिया की पार्टी बी.एन.पी. के कार्यकर्ताओं ने शेख हसीना वाजेद की पार्टी अवामी लीग के समर्थकों और मतदाताओं पर अत्याचार शुरू किए। शेख हसीना के समर्थकों में स्थानीय हिन्दुओं की अच्छी-खासी संख्या है, यही कारण है कि खालिदा जिया और उनकी सहयोगी पार्टी जमायते इस्लामी के मुस्लिम समर्थकों ने हिन्दुओं को सताना शुरू कर दिया। विशेष रूप से हिन्दू महिलाओं को बर्बरता का शिकार बनाया गया। (इसका विवरण पाञ्चजन्य के 4 नवम्बर,2001 अंक में प्रकाशित किया जा चुका है।) प्रताड़ित अथवा भयभीत हिन्दू वैध और अवैध, दोनों प्रकार से पलायन करके आए हैं। सचिव की रपट के अनुसार प. बंगाल में अवैध रूप से 250 और त्रिपुरा में 370 लोगों के आने की सूचना है। हालांकि अखबारों में यह संख्या बहुत अधिक बताई गई थी। 24 अक्तूबर के द टाइम्स आफ इंडिया के अनुसार यह संख्या 2000 है।
मंत्रिमण्डलीय सचिव की रपट के अनुसार शरणार्थियों का उत्तरी बंगाल सेक्टर में 14 अक्तूबर से आना शुरू हुआ था। वे अधिकांशत: दक्षिण दिनाजपुर, मालदा और कूच बिहार में आए। समझा जाता है कि करीब 48 परिवारों (कुल 223 सदस्य), जिनमें अधिकांश हिन्दू थे, ने शरण ली है। हालांकि वैध दस्तावेजों के आधार पर आने वाले हिन्दुओं की संख्या बढ़ रही है। दक्षिण दिनाजपुर की पर्वतीय चौकी पर की गई पड़ताल से पता चला कि 535 शरणार्थियों में 404 हिन्दू थे और 131 मुस्लिम। इनमें 113 हिन्दू महिलाएं और 25 मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं। बंगलादेश में हिन्दू महिलाओं के प्रति दुराचारों के मामले बढ़ गए हैं। उनका शील भंग करने, बलात्कार आदि की घटनाओं में वृद्धि हुई है। वहां मंदिरों को भ्रष्ट करना, हिन्दुओं का अपहरण और यातनाओं का सिलसिला चल निकला है। यही कारण था कि गत दिनों वहां दुर्गा पूजा जैसा विशेष उत्सव भी धूमधाम से नहीं मनाया गया। 18 अक्तूबर को वहां के अल्पसंख्यकों ने ढाका में एक विरोध रैली भी निकाली। इस बीच प. बंगाल पुलिस ने गैरकानूनी ढंग से भारत में प्रवेश करने वाले 14 लोगों को कूच बिहार जिले के थाना हल्दीबाड़ी में विदेशी कानून की धारा 14 के अंतर्गत गिरफ्तार किया है।
रपट के अनुसार इसी प्रकार दक्षिण बंगाल में 7 परिवारों के 21 लोग ही आए हैं जिनमें उत्तरी 24 परगना जिले में बोंगांव क्षेत्र से 5 परिवार आए और 2 परिवार मुर्शिदाबाद से आए हैं। 6 अक्तूबर को करीब 370 बंगलादेशी नागरिकों ने त्रिपुरा में शरण ली थी। वे उसी समय सीमा पार कर आए थे जब अवामी लीग के उम्मीदवार चुनाव में हारने लगे थे। फेनी जिले (बंगलादेश) में अवामी लीग की फलगाजी इकाई के अध्यक्ष कमल मजूमदार अपने 150 समर्थकों के साथ दक्षिण त्रिपुरा के बेलोनिया उपखण्ड में आ गए थे। 200 अन्य हिन्दू वनवासी बंगलादेश से त्रिपुरा के धलाई जिले में आए। फेनी जिले के सोनागाजी क्षेत्र में 20 हिन्दू महिलाएं भी दक्षिण त्रिपुरा के पी.आर.बारी थाने के तहत सुपुरीखला गबतली गांव में आईं।
उधर ताजा जानकारी के अनुसार बंगलादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार के विरुद्ध रा.स्व. संघ, प. बंगाल की ओर से कोलकाता सहित सभी प्रमुख जिलों में स्वयंसेवकों ने विरोध प्रदर्शन किए। कोलकाता में तो लगभग 3000 लोगों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया। प. बंगाल में सूचनाओं के अनुसार अधिकांश शरणार्थियों ने नदिया, मुर्शिदाबाद, मालदा, दिनाजपुर जिलों में शरण ली है।
ढाका में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन
बंगलादेश के नडाइल अंचल का एक समाचार इस संदर्भ में गौर करने योग्य है। बंगलादेश के दैनिक जनकंठ (28 मई,2001) में छपा यह समाचार हालांकि मई,2001 की घटनाओं पर आधारित है, पर वर्तमान परिस्थितियों से बिल्कुल अछूता नहीं है। "नडाइल गांव अब हुआ हिन्दूविहीन' शीर्षक से फरवरे आलम द्वारा प्रेषित यह खबर इस प्रकार है-
नडाइल अंचल के अल्पसंख्यक समाज द्वारा चुपचाप देश-त्याग करने का सिलसिला लगातार जारी है। एक के बाद एक परिवारों के अपने पूर्वजों की सम्पत्ति छोड़कर चले जाने के कारण अनेक गांव मानव-रहित हो गए हैं। इन गांवों में अब अन्य पंथ के बस दो-चार लोग ही रह गए हैं। आतंक, सुरक्षा का अभाव, बेकारी की समस्या और काले-कानून के कारण अनेक अल्पसंख्यक (हिन्दू) गांव और देश छोड़ने को लाचार हो रहे हैं, ऐसा प्रत्यक्षदर्शी अनुभव है। लेकिन हजारों लोगों के चले जाने के पश्चात् भी स्थानीय प्रशासन के पास कोई तथ्य नहीं हैं।
स्थानीय स्तर पर खोजबीन द्वारा मालूम चला कि सैकड़ों वर्ष से नडाइल अंचल में अल्पसंख्यक (हिन्दू) निवास करते आ रहे हैं। एक समय इस जिले में लगभग 50 प्रतिशत हिन्दू थे। स्वाधीनता के पश्चात् इस जिले से हिन्दुओं का पलायन प्रारम्भ हुआ। नडाइल सदर थाना में कुल 22 गांव हैं। यहां की जनसंख्या 18,000 है, जिसमें अल्पसंख्यक समाज की जनसंख्या केवल 6 हजार है। इस इलाके के चांदपुर आग्राहरि, डुमादि, कुमाभांगा, बरुआ, कामाल प्रताप, चंदनखाल, छगला डांगा, बलिया डांगा, गोपालपुर, दरियापुर आदि ग्रामों से अनेक हिन्दू गांव छोड़कर जा चुके हैं। ये गांव प्राय: हिन्दूविहीन हो चुके हैं। किसी-किसी गांव में कुछ मुसलमान बचे हैं। हजार-हजार बीघा खेत-बागान, तालाब आदि सब छोड़कर अल्पसंख्यक समाज क्यों जा रहा है? इसका सही कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा है, पर वांशग्राम के अध्यक्ष शेख अजीब रहमान का कहना है कि सुरक्षा के अभाव के कारण अल्पसंख्यक समाज देश छोड़कर भारत जा रहा है। हिन्दुओं का सन'71 के पश्चात् भारत जाने का जो सिलसिला प्रारम्भ हुआ है, वह अभी तक निरन्तर चल रहा है।
1983 में डुमादि और चांदपुर गांव में एक भी मुसलमान नहीं था, उस समय केवल आग्राहरि गांव में 3 लोग मुसलमान थे। वर्तमान में इन गांवों में एक भी हिन्दू नहीं है। जो बचे हैं, वे सभी मुसलमान हैं। ये ही यहां के मालिक हो गए हैं। वे बताते हैं कि हिन्दू अपनी जमीन, घर आदि उनको बेचकर कहां चले गए, उनको नहीं मालूम। खोजबीन करने पर पता चला कि जिले के अन्य गांवों से भी अनेक हिन्दू अपना घर-बार छोड़कर भारत चले गए हैं। हिन्दू-बौद्ध एक्य परिषद् के नडाइल जिला समिति के अध्यक्ष संतोष कुमार दे का कहना है कि पुरानी और वर्तमान सरकार के कुछ काले कानून, आतंक, हिन्दुओं का भारत प्रेम, बेरोजगारी की समस्या और सुरक्षा के अभाव के कारण हिन्दू देश छोड़कर जा रहे हैं। इस संगठन के सचिव और नडाइल थाना अवामी लीग के संयुक्त सचिव एडवोकेट संजीव कुमार बसु का कहना है कि शत्रु-सम्पत्ति कानून, नौकरी में भेदभाव और अन्य कुछ भेदभावपूर्ण नीतियों के कारण हिन्दू देश छोड़कर जा रहे हैं। इस सम्बंध में नडाइल थाने के प्रभारी से मिलने पर उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक लोगों की किसी भी समस्या का हल कानून द्वारा किया जाएगा। देश-त्याग करने की किसी भी घटना का रिकार्ड थाने में नहीं है।
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बंगलादेश के समाचार पत्रों से...
आजकेर कागज (20 अक्तूबर)
साम्प्रदायिक उत्पीड़न के विरोध में चटगांव के अधिवक्ता
चटगांव में 225 अधिवक्ताओं द्वारा हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों का हस्ताक्षरित व लिखित विरोध किया गया।
एक स्थानीय बंगला दैनिक
उल्लापाड़ा की पत्रकार परिषद् में भुक्तभोगी पूर्णिमा ने कहा-
मैं अब लोगों का सामना कैसे करूं?
उल्लापाड़ा क्षेत्र के देवला ग्राम में गत 8 अक्तूबर को कक्षा 10 की छात्रा पूर्णिमा शील का उसके माता-पिता के सामने ही बलात्कार किया गया, मां बासनारानी द्वारा विरोध करने पर उसे पीटा गया, तत्पश्चात् उनका घर लूट लिया गया। पिछले दिनों उल्लापाड़ा में हुए एक पत्रकार सम्मेलन में पीड़ित परिवार ने अपनी यह आपबीती सुनाई।
पत्रकार सम्मेलन में अपनी व्यथा सुनाते हुए पूर्णिमा शील की मां ने बताया कि बलात्कार करने के पश्चात् बी.एन.पी. कार्यकर्ता पूर्णिमा को उठाकर ले गए थे तथा दो घंटे बाद उसे छोड़ा गया। उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे अस्पताल में भी भर्ती करवाना पड़ा। इस पीड़ित परिवार का कहना था कि उक्त घटना के बाद उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था और उन्हें अपने एक रिश्तेदार के घर शरण लेनी पड़ी है।
उल्लेखनीय है कि एक स्थानीय पत्रकार अमीनुल्ला इस्लाम ने पहल करते हुए पीड़ित छात्रा का चिकित्सकीय परीक्षण करवाया तथा इस कुकृत्य के विरुद्ध अदालत में मामला भी दर्ज करवाया, तभी यह मामला प्रकाश में आ सका था। इस मामले में 15 बी.एन.पी. कार्यकर्ता नामजद किए गए हैं। पुलिस ने इस मामले में अब तक मात्र एक व्यक्ति अब्दुल रऊफ को गिरफ्तार किया है। हालांकि पूर्णिमा की मां के अनुसार उनके परिवार को मामला वापस लेने के लिए अब भी लगातार धमकियां मिल रही हैं।
इस पत्रकार सम्मेलन में एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा 10,000 रुपए तथा एक अन्य व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से 5,000 रुपए की सहायता राशि पीड़ित परिवार को दी गई।
अल्पसंख्यक समाज अब भी आशंकित
घर वापसी अब भी सुरक्षित नहीं
एक स्थानीय बंगला दैनिक के अनुसार हिन्दू समुदाय पर लगातार हो रहे हमलों से सहमे अधिसंख्य हिन्दू छात्र-छात्राएं अब भी स्कूल-कालेजों में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। समाचार-पत्र के अनुसार बागेर हाट नामक स्थान के छात्र-छात्राओं में इस तरह का भय अधिक है।
भोरेर कागज (20 अक्तूबर)
हिन्दुओं पर हो रहे इस अत्याचार ने 1971 की सीमा लांघी
... एक आकलन के अनुसार अब तक लगभग 100 महिलाओं से बलात्कार किया गया है। इस अत्याचार के विरोधस्वरूप वि·श्वविद्यालयों में रैली निकाली जा रही है।
शेख हसीना के दिए पांच लाख रुपयों को पांच हजार लोगों में बांटा गया
एक बंगला दैनिक के अनुसार, बरीशाल जिले में गौर नदी नामक स्थान पर अवामी लीग की ओर से 5 लाख रुपए की सहायता राशि 5 हजार लोगों में बांटी गई।
तलपट
जापान ने भारत पर लगाए प्रतिबंध हटा लिए हैं। भारत ने इन प्रतिबंधों को हटाने पर बड़ी ठंडी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और सिर्फ इतना ही कहा है, "हां हमने यह समाचार जान लिया है कि जापान ने भारत पर लगाए प्रतिबंध हटा लिए हैं।' इसकी वजह यह है कि भारत जापान द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंधों को अनावश्यक, अनुचित और अनधिकार चेष्टा मानता है। जापान ने खुद प्रतिबंध लगाए और हटा लिए। इसमें हमारे लिए खुशी से उछलने वाली बात ही क्या है?