मंगल_और_साहस
ग्रहो के कारकत्व में आज बात करते है, मंगलदेव जी के बारे में👮👮
किसी भी कुंडली मे फलित करने हेतु कारक विचार फलादेश की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है,
इसी सम्बन्ध में आज मंगल जी के भाव कारको के बारे में आपको अवगत कराया जाएगा।
️☸️️मंगल देव कुंडली के बारह भावो में से तीसरे( पराक्रम) भाव, षष्ठ( रोग ओर शत्रु ) भाव के कारक माने जाते है।
☸️ तीसरा भाव- इस भाव का कारक मंगल है। इसे सहज भाव भी कहते हैं। कुण्डली को ताकत देने वाला भाव इसे ही कहा गया है।
☸️भाग्य के ठीक विपरीत अपनी बाजुओं की ताकत से कुछ कर दिखाने वाले लोगों का यह भाव बहुत शक्तिशाली होता है। भाग्य से लड़ने की शक्ति भी इसी भाव से देखी जाती है।
☸️षष्ठ भाव- इसे रोग का घर भी कहते हैं। रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी मंगल प्रधान लोगो मे अच्छी होती है।
✴️ऐसे में यदि मंगल कमजोर हो जाये तो जातक अपने भाग्य का तो खा लेता है परन्तु मेहनत से उसे बदलने की चेष्ठा नही कर पाता।
☸️शत्रुता ओर उनके द्वारा परेशान या शत्रुहंता विचार सभी में मंगल जी ही विशेष रूप से विचारणीय होते है।
जाते हैं। बड़ी बड़ी परीक्षाओ ओर जंग में इसी भाव से हार जीत सुनिश्चित होती है।
कालपुरुष की कर्म राशि मकर में
यह आपको हमेशा विजयी आपकी मेहनत के फलस्वरूप ही बना पाते है।
कोई भी ग्रह चाहे मारक भले ही हो, लेकिन आपकी जिंदगी में उसकी उपयोगिता बहुत मायने रखती है।
✍️ प्रणाम🙏🙏