💐हवन में आम की लकड़ी का प्रयाेग💐🌷*
ये जाे पाेष्ट आई है कि हवन में आम की लकड़ी निषेध है |
*इसमें कुछ अंश नही हैं जिससे भ्रम पैदा हाे रहा है | वल्कि यह भ्रम पैदा करने के लिये ही बनाई गई है |*
आन्हिक सूत्रावली पृष्ट 84 प्रथम वल्ली सूत्र 209
*1. यज्ञीयवृक्ष (सूत्र 209)*
*पलाशफल्गुन्यग्रोधाः प्लक्षाश्वत्थविकंकिताः।*
*उदुंबरस्तथा बिल्वश्चंदनो यज्ञियाश्च ये।।*
*सरलो देवदारुश्च शालश्च खदिरस्तथा।*
*समिदर्थे प्रशस्ताः स्युरेते वृक्षा विशेषतः।।*
*ग्राह्याः कऩ्टकिनश्चैव यज्ञिया एव केचन |*
*पूजिताः सनिदर्थेषु पितृणां वचनं यथा ||*
(आह्निक सूत्रावली 01/209)
उपर्युक्त ये सभी वृक्ष यज्ञीय हैं, यज्ञोंमें इनका इद्ध्म (काष्ठ) तथा इनकी समिधाओंका उपयोग करना चाहिए।
*2. समिधा विचार. ( सूत्र 210)*
*नांगुष्ठाधिका ग्रह्या समित्स्थूलतया क्वचित् |*
*न निर्मुक्त त्वचा चैव न सकीटा न पाटिता |*
( आन्हिक सूत्रावली 01/210)
*3. समिधा प्रमाणम् ( सूत्र 211 )*
*प्रदेशान्नाधिका नाेना न च शाखा समायुता |*
*न सपर्णा न निर्वीर्या हाेमेषु तु विजानता |*
आन्हिक सूत्रावली 01/211
*4. इध्मर्थे समिद्ग्रहणम् (सूत्र 212)*
*पर्णाश्वत्थखदिरराेहितकाेदुम्बराणाम् तदलाभे सर्ववनस्पतीनाम् तिन्दुक- धवलाम्रनिम्बराजवृक्षशाल्मल्यरत्न- कपित्थकोविदारबिभीतकश्लेष्मातक- सर्वकण्टकवृक्षविवर्जितम्।।*
(आह्निकसूत्रावली 01/212)
*5. यज्ञार्थेsग्राह्य वृक्षाः ( सूत्र 213 )*
*निवासा ये च कीटानां लताभिर्वेष्टिताश्च ये |*
*अयज्ञिया गर्हिताश्च वल्मीकैश्च समावृताः ||*
*शकुनीनां निवासाश्च वर्जयेत्तान्महीरुहान् |*
*अन्यांश्चैवं विधान् सर्वान् यज्ञियांश्च विवर्जयेत् ||*
(आन्हिक सूत्रावली 01/213)
*6. अग्राह्य समिधा. (सूत्र 214)*
*विशीर्णा विदला ह्रस्वा वक्राः सशुपिराः कृशाः |*
*दीर्घा स्थूला घुणैर्दुष्टाः कर्मसिद्धविनाशकाः ||*
( आन्हिक सूत्रावली 01/214)
अब विवाद सूत्र क्रमांक 212 में है
क्रमांक 212 का सूत्र किस विषय मे है
*(इध्मर्थे समिद्ग्रहणम् )* यहां समिधा ग्रहण करने के बारे में है न कि समिधा न ग्रहण करने के बारे में |
अतः *( तदभावे सर्व वनस्पतीनां )* में आम नही आता क्या ? इस सूत्र मे जितने लिखे गये हैं सब ग्रहण अर्थे में हैं आैर मन्त्र का अन्तिम पद *( सर्वकण्टकवृक्षविवर्जितम्)* ये ग्रहण न करने के अर्थ में है |
केवल कंटीले वृक्ष छोड़कर वाकी सभी प्रकार की समिधा ग्रहण की जा सकती है |
सूत्र क्रमांक 213 *(यज्ञार्थे अग्राह्य वृक्षः)* इसमें आम का नाम नही है |
सूत्र क्रमांक 214 *(अग्राह्य समिधा )* में आम का नाम नही है | सूत्र 212 *( इध्मर्थे समिद्ग्रहणम् )* में आम का नाम है | ताे आम समिद् ग्रहण मे है , ताे ग्रहण न करने का अर्थ कैसे हाे सकता है?
*हाे सकता है ,🌷🌷🌷कैसे?*
*🌷🌷इस प्रकार🌷🌹*
*मीन मरै गहिरे जल मा,*
*कबहूं न मरै जल बाहर आये |*
*पाप करै त तरै तुलसी*
*कबहूं न तरै हरि के गुन गाये |*
इसका अर्थ करिये 👆👆👆👆
*अब इसका अर्थ करिये 👇👇👇👇*
*मीन मरै गहिरे जल मा, कबहूं ना,*
*मरै जल बाहर आये |*
*पाप करै त तरै तुलसी, कबहूं ना,*
*तरै हरि के गुन गाये ||*
अतः भ्रम में न पड़े आम की लकड़ी हवन में ग्रहण की जा सकती है |
फ्रांस के वैज्ञानिक टेले ने समिधा में आम की लकड़ी काे अधिक श्रेष्ठ माना है |
🌷🌹🌷शिवमस्तु 🌹🌷🌹