🌷🌷क्या स्त्रियों को भी श्राद्ध तर्पण करने का अधिकार है l🌷🌷आचार्य पण्डित सुनील मिश्र

गांव उचडीह जौनपुन मुंबई ठाणे 

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"आज महिलाओं को हर जगह बराबर का दर्जा प्राप्त है 

ऐसे में सबकेमन में एक प्रश्न उठता है कि महिलाएं श्राद्ध करें या नही l

प्रश्न भ्रम की स्थति उत्पन्न करता है !

अक्सर देखने में आता है कि परिबार के पुरुष सदस्य या पुत्र पौत्र न होने पर कई बार रिस्तेदार के पुत्र पौत्र का सहारा लिया जाता है !!कुल मिलाकर मृतक की कन्या या धर्म पत्नी भी मृतक का अंतिम संस्कार व श्राद्ध कर सकती है !!यदि आप सोच रहे हो कि ये तो आधुनिक युग की सोच है तो आप गलत हो !ये आधुनिक युग की सोच नही वल्कि "हिन्दू धर्म ग्रंथ "धर्मसिंधु "सहित मनुस्मृति और पुराणों में भी स्त्रियों को पिण्डदान आदि करने का अधिकार प्राप्त है !!यहां तक कि शंकराचार्य ने भी इस व्यवस्था को तर्क सम्मत माना है !ताकि श्राद्ध करने की परंपरा जीवित रहे और लोग अपने पितरो को भूल नही !!

         

"किसी मृतक के अंतिम संस्कार और श्राद्ध कर्म की व्यवस्था के लिए गरुण पुराण में उल्लेख है कि 

"पुत्राभावे वधू कुर्यात भार्यभावे च सोदनः 

शिष्यों वा ब्रह्मणः सपिंडों वा समाचरेत !!

ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रात: पुत्रष्य: पौत्रके

श्रद्धया मात्र दिकम कार्य पुत्रहीनेत खगः!!

अर्थात ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में वहू पत्नी को श्राद्ध का अदिकार है !इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एक मात्र पुत्री भी शामिल है !!यदि पत्नी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा भांजा नाती पोता आदि कोई भी श्राद्ध कर सकता है "!इन सबके अभाव में रिस्तेदार अथवा कुलपुरोहित भी मृतक का श्राद्ध कर सकता है !!

इस प्रकार परिबार के मुख्य पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला व्रत लेकर पितरो का श्राद्ध तर्पण और तिलांजलि देकर मोक्ष की कामना कर सकती है !!

       

जब राम ने नही सीता ने किया था राजा दशरथ का पिण्ड दान 

वाल्मीक रामायण में भी सीता द्वारा पिण्ड दान देकर दसरथ की आत्माको मोक्ष मिलने का प्रसंग आया है 

पौराणिक कथानुसार वनवास के टाइम राम लक्ष्मण सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने हेतु गया धाम पहुंचे वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम लक्ष्मण नगर की ओर चल दिये !उधर दोपहर हो गई थी पिण्ड दान का समय निकला जा रहा था और सीता की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी अपराह्न में तभी दसरथ जी की आत्मा ने पिण्ड दान की मांग कर दी !गया जी में विष्णु पद मंदिर के नजदीक "फल्गु नदी "के तट पर अकेली सीता जी अस मंजस में पड़ गई !उन्होंने फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिण्ड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिण्ड दान दे दिया !!

            

कुछ देर बाद राम लक्ष्मण लौटे तो सीता ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने खुद ही पिण्ड दान कर दिया ,राम बोले विना सामग्री के पिण्ड दान कैसे हो सकता है ,इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा ,

तब सीता ने कहा कि फल्गु नदी की रेत ,केतकी के फूल,गाय और बात वटवृक्ष मेरे द्वारा किये गए कर्म की एविडेंस दे सकते है !!इतने में फल्गु नदी गाय और केतकी के फूल तीनो मुकर गए !सिर्फ वटवृक्ष ने सच बात कही !

तब सीता ने दसरथ का ध्यान करके उनसे भी गवाही देने की प्रार्थना की,दसरथ जी ने सीता की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की की सीता ने ही मुझे पिण्ड दान दिया है !तब राम आस्वत हुए!!लेकिन सीता ने तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर उनको क्रोधित होकर श्राप दिया !!

की फल्गु नदी जा तू सिर्फ नाम की रहेगी !तुझमें पानी नही रहेगा इसलिए फल्गु नदी गया में आज भी सुखी ही रहती है !!गाय को कहा तू पूज्य होकर भी लोगो का झूठा खाएगी और केतकी के फूलों को श्राप दिया कि तुझे पूजा bh में कभी चढ़ाया नही जाएगा !!और वटवृक्ष को आशीर्बाद दिया कि तुझे लंबी आयु प्राप्त होगी तू प्राणियों को छाया पप्रादान करेगा  l

🌷आचार्य पण्डित सुनील मिश्र

गांव उचडीह जौनपुर

मुंबई ठाणे 9869905967

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