चंडी देवी मंदिर, चंडीगढ़, पंचकुला
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जिस माता चंडी देवी के नाम पर चंडीगढ़ शहर को नाम मिला क्या आप जानते हैं कि उस चंडीमंदिर की हालत क्या है? इंटरनेट के इस जमाने में इस मंदिर की तस्वीरें और इतिहास तो आप देख और पढ़ सकते हैं कि मंदिर किस तरह से वीरान और उजाड़ है। हम आपको बताते हैं कि इस चंडीमंदिर की हकीकत क्या है। चंडीगढ़ को बसे 51 साल हो गए पर इस शहर को नाम देने वाले इस मंदिर की ओर न तो सिटी प्रशासन का ध्यान है न ही हरियाणा सरकार का।
मंदिर अब हरियाणा का हिस्सा है। यह मंदिर पुराना पंचकूला से पिंजौर जाने वाली सड़क पर है, लेकिन इस सड़क से मंदिर को जाने वाली सड़क ठीक नहीं है। मंदिर सड़क के साथ रेलवे लाइन के दूसरी ओर है। इसलिए रेलवे फाटक को पार करके यहां जाना पड़ता है। यहां के लोग कहते हैं कि मंदिर के गेट को रेलवे फाटक से सीधे जोड़ना चाहिए था।
बंसीलाल ने बनवाई थी सड़क
काफी समय तक चंडीमंदिर की सुध किसी ने नहीं ली। पहली बार पूर्व सीएम बंसीलाल के ध्यान में मंदिर आया और उनके निर्देश पर अफसरों ने हाईवे से मंदिर तक सड़क का निर्माण कराया। पूर्व गवर्नर बीएन चक्रवर्ती के निर्देश के बाद मंदिर को बिजली का कनेक्शन दिया गया था।
इसके बाद ही श्रद्धालुओं की मंदिर के दर्शन के प्रति रुचि बढ़ी। मंदिर की प्रबंधक माता निर्मला देवी ने बताया कि उन्होंने इस मंदिर का पुनरुद्धार करवाया। उन्होंने बताया कि पहले मंदिर के बाहर पथरीली जगह और तालाब था। धीरे-धीरे उन्होंने मंदिर को सजाया संवारा। इसके लिए न तो उन्होंने किसी से मदद मांगी और न ही किसी ने कोई मदद की।
#मंदिरकाइतिहास
मंदिर की प्रबंधक माता निर्मला देवी ने बताया कि चंडीमाता भगवती का यह स्थान प्राचीन काल 5000 वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि एक साधु जंगल में तप किया करते थे। यहां उनको एक मूर्ति मिली जो मां दुर्गा की थी, वह महिषासुर का वध करके उसके ऊपर खड़ी थीं। मूर्ति देखकर साधु ने मां भगवती की पूजा-अर्चना शुरू कर दी। उन्होंने घास, मिट्टी और पत्थर से यहां चंडी माता का एक छोटा सा मंदिर बना दिया।
इसके बाद आसपास के लोग मंदिर में माथा टेकने लगे। उनकी मनोकामना पूरी होने लगी। कहा जाता है कि 12 वर्ष के बनवास के दौरान पांडव घूमते हुए यहां आए थे और चंडी माता का मंदिर देखा तो अर्जुन ने पेड़ की शाखा पर बैठकर मां की तपस्या की। कहा जाता है कि उनकी तपस्या से खुश होकर माता चंडी ने उनको तेजस्वी तलवार व जीत का वरदान दिया था। यहीं से पांडव कुरुक्षेत्र गए और महाभारत के युद्ध में उनकी जीत हुई।
माता निर्मला देवी ने बताया कि पूर्वज साधु महात्माओं की अब 62वीं पीढ़ी चल रही है। इस समय उनकी बेटी महंत बाबा राजेश्वरी जी गद्दी पर विराजमान है। यह जगह पहले मनीमाजरा रियासत में आती थी। 15वीं पीढ़ी के मनीमाजरा के राजा भगवान सिंह ने मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर एक पत्थर का किला बनवा दिया, जिसे गढ़ कहा जाना लगा। इसके साथ ऊपर ही एक चंडी गांव बस गया।
माता निर्मला देवी ने बताया कि उनके पिता सूरत गिरि जी महाराज के मंदिर की पूजा अर्चना के दौरान 1953 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और पंजाब के गवर्नर सीपीएन सिंह मंदिर का दर्शन करने आए थे। निर्मला देवी ने बताया कि मंदिर का इतिहास और महत्व जानने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि चंडी माता के नाम पर शहर बसाया जाएगा। उन्होंने चंडीमंदिर के नाम पर स्थानीय थाना, रेलवे स्टेशन और गांव का नाम रख दिया। इसके बाद चंडी माता के नाम पर चंडीगढ़ शहर बसाया गया।
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