भानु सप्तमी व कर्क संक्रान्ति
16 जुलाई 2017 को
अकाल मृत्यु पर विजयपाने का दिन
भानु सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की आराधना से दीर्घ आयु प्राप्त होती हैं और अकाल मृत्यु पर विजय मिलती हैं सभी दुखो का नाश होता हैं ऐसे सूर्य देव के चरणों में तीर्थ के समान पुण्य मिलता हैं।
जब सप्तमी रविवार के दिन आती हैं उसे भानु सप्तमी कहा जाता हैं। यह किसी भी पक्ष (शुक्ल अथवा कृष्ण) की हो सकती हैं। इस दिन भगवान सूर्य देव पहली बार सात घोड़ो के रथ पर सवार हो कर प्रकट हुए थे। रविवार का दिन भगवान सूर्य देव का माना जाता हैं। इस दिन को सूर्य सप्तमी भी कहा जाता हैं। माघ के महीने में जब भानु सप्तमी होती हैं उसे अचला सप्तमी भी कहा जाता हैं। सूर्य देव उर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत माने जाते हैं इनकी पूजा अर्चना से सौभाग्य मिलता हैं। रविवार के दिन सूर्य को अर्धय देने का महत्व अधिक होता हैं। सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना जाता हैं। यह सभी गृहों के मध्य में स्थित हैं। ब्रह्मण्ड में सूर्य के चारो तरफ ही सभी गृह चक्कर काटते हैं। विभिन्न गृहों में सूर्य की स्थिती में परिवर्तन से दशाओं में भी परिवर्तन आता हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का प्रभाव गृहों पर अधिक होता हैं। इस दिन सूर्य की किरणे जब पृथ्वी पर पड़ती हैं। तब महाभिषेक किया जाता हैं। भानु सप्तमी के दिन, लोग सूर्य देव को खुश करने के लिए आदित्य हृदयं और अन्य सूर्य स्त्रोत पढ़ते एवम सुनते हैं जिसके कारण रोगी मनुष्य स्वस्थ होता हैं एवम निरोगी रहता हैं। यह विशेषतौर पर दक्षिणी एवम पश्चिमी भारत में मनाई जाती हैं।
अचला/भानु सप्तमी पूजा
विधि
सूर्योदय से स्नान करके सबसे पहले सूय देव को जल चढ़ाते हैं । अपनी ही जगह पर परिक्रमा करते हैं। इस दिन लोग उपवास रखते हैं। पवित्र नदियों पर स्नान करते हैं। दक्षिण भारत में सूर्योदय के पूर्व स्नान करके घर के द्वार पर रंगोली डाली जाती हैं | इस दिन गाय के दूध का सूर्य को भोग लगते है | इस दिन गेहू की खीर बर्नाइ जाती है |
भानु सप्तमी पूजा किस
उद्देश्य से की जाती है ?
1. सूर्य देव की अर्चना करने से सदैव स्वस्थ रहते हैं।
2. रोज भगवान सूर्य को जल चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता हैं। मानसिक शांति मिलती हैं।
3. भानु सप्तमी के दिन सूर्य की पूजा करने से स्मरण शक्ति बढ़ती हैं।
4. इस एक दिन की पजूा से ब्राह्मण सेवा का फल मिलता है |
5. इस दिन दान का भी महत्व होता है ऐसा करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है | अच्छे स्वास्थ के लिए, लम्बी आयु के लिए ,अपना यश बढ़ाने के लिए अकाल मृत्यु पर विजय पानेके लिए आज करें भगवान् सूर्य देव का व्रत। प्रातः काल स्नान करके एक लोटे में शुद्ध जल ले उसमे थोडा गंगाजल, थोडा गाय का कच्चा दूध, कुछ साबुत चावल, फूल, थोडा शहद मिला कर सूर्य देव को अर्घ दे और सूर्य के किसी भी मंत्र का जाप करें।
?कर्क संक्रान्ति अथवा 'श्रावण संक्रान्ति'
'सावन संक्रान्ति' का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। सूर्य का एक राशि से दूसरा राशि में प्रवेश 'संक्रान्ति' कहलाता है। सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश ही 'कर्क संक्रान्ति' या 'श्रावण संक्रान्ति' कहलाता है। संक्रान्ति के पुण्य काल में दान, जप, पूजा, पाठ इत्यादि का विशेष महत्व होता है। इस समय पर किए गए दान पुण्य का कई गुना फल प्राप्त होता है। इस विशिष्ट काल में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्त्व हिन्दू धर्म में माना गया है।
सूर्य की स्थिति
सूर्य के 'उत्तरायण' होने को 'मकर संक्रान्ति' तथा 'दक्षिणायन' होने को 'कर्क संक्रान्ति' कहा जाता है। श्रावण से पौष तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना 'दक्षिणायन' होता है। कर्क संक्रान्ति में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं। शास्त्रों एवं धर्म के अनुसार 'उत्तरायण' का समय देवताओं का दिन तथा 'दक्षिणायन' देवताओं की रात्रि होती है। इस प्रकार, वैदिक काल से 'उत्तरायण' को 'देवयान' तथा 'दक्षिणायन' को 'पितृयान' कहा जाता रहा है।
संक्रान्ति पूजन
कर्क संक्रान्ति समय काल में सूर्य को पितरों का अधिपति माना जाता है। इस काल में षोडश कर्म और अन्य मांगलिक कर्मों के आतिरिक्त अन्य कर्म ही मान्य होते हैं। श्रावण मास में विशेष रूप से भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना कि जाती है। इस माह में भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से पुण्य फलों में वृ्द्धि होती है।
श्रावण मास में प्रतिदिन 'शिवमहापुराण' व 'शिव स्तोस्त्रों' का विधिपूर्वक पाठ करके दूध, गंगाजल, बिल्वपत्र, फल इत्यादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही इस मास में ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है। इस मास के प्रत्येक मंगलवार को मंगलागौरी का व्रत, पूजन इत्यादि विधिपूर्वक करने से स्त्रियों के विवाह, संतान व सौभाग्य में वृद्धि होती है।
महत्त्व
'सावन संक्रान्ति' अर्थात 'कर्क संक्रान्ति' से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। देवताओं की रात्रि प्रारम्भ हो जाती है और 'चातुर्मास' या 'चौमासा' का भी आरंभ इसी समय से हो जाता है। यह समय व्यवहार की दृष्टि से अत्यधिक संयम का होता है, क्योंकि इसी समय तामसिक प्रवृतियां अधिक सक्रिय होती हैं। व्यक्ति का हृदय भी गलत मार्ग की ओर अधिक अग्रसर होता है। अत: संयम का पालन करके विचारों में शुद्धता का समावेश करके ही व्यक्ति अपने जीवन को शुद्ध मार्ग पर ले जा सकने में सक्षम हो पाता है।
आहार-विहार
कर्क संक्रान्ति के पुण्य समय उचित आहार-विहार पर विशेष बल दिया जाता है। इस समय में शहद का प्रयोग विशेष तौर पर करना लाभकारी माना जाता है। अयन की संक्रान्ति में व्रत, दान कर्म एवं स्नान करने मात्र से ही प्राणी संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। कर्क संक्रान्ति को 'दक्षिणायन' भी कहा जाता है। इस संक्रान्ति में व्यक्ति को सूर्य स्मरण, आदित्य n विष्णु का चिंतन-मनन शुभ फल प्रदान करता है।