वैसे अगर इतिहास देखा जाए तो रीवा के महाराजा मार्तंड सिंह जी अंग्रेजों के चमचे से लगते थे लेकिन इनके पूर्वजों ने कभी अंग्रेजो का समर्थन नहीं किया परिणाम हुआ ही हुआ आज भी इनका नाम इस राजघराने का नाम भारत के संवैधानिक इतिहास के पन्नों में दबा पड़ा है
रीवा। मध्यप्रदेश का रीवा राजघराना अपनी विशिष्ट पहचान के
लिए जाना जाता रहा है। यहां एक ऐसी परंपरा है जो शदियों से
चली आ रही जिसमें राजाओं की जगह गद्दी पर भगवान राम को
विराजा जाता है। रीवा में बाघेल वंश के राजाओं ने 35 पुस्त तक
शासन किया। यहां के राजा भगवान राम के अनुज लक्ष्मण को
अपना अग्रज मानते रहे हैं। उनके कुल देवता लक्ष्मण माने जाते
हैं। इस कारण यहां के राजा लक्ष्मण के नाम पर ही शासन करते
रहे हैं।
मान्यता है कि लक्ष्मण ने अपने शासनकाल में भगवान श्रीराम को
आदर्श माना और गद्दी पर स्वयं नहीं बैठे। इसी परंपरा को कायम
रखते हुए रीवा राजघराने की जो गद्दी है उसमें अब तक कोई राजा
नहीं बैठा है। यह गद्दी राजाधिराज(भगवान श्रीराम) की मानी
जाती है। गद्दी के बगल में बैठकर शासक राज करते रहे हैं।
बांधवगढ़ में भी थी परंपरा
राजघराने की गद्दी में राजाधिराज को बैठाने की परंपरा शुरुआत से
रही है। पहले राघराने की राजधानी बांधवगढ़ (उमरिया) ही थी। सन्
1618 में शताब्दी में महाराजा विक्रमादित्य रीवा आए तब भी
यहां पर परंपरा वही रही। शासक की गद्दी में राजाधिराज को
बैठाया जाता रहा और उनके सेवक की हैसियत से राजाओं ने
शासन चलाया। यह परंपरा रीवा राजघराने को देश में अलग पहचान
देती रही।
लक्ष्मण का बनवाया मंदिर
राजघराने के कुलदेवता लक्ष्मण थे इस वजह से अवसर विशेष पर
पूजा-पाठ के लिए बांधवगढ़ जाना पड़ता था। महाराजा रघुराज सिंह
ने लक्ष्मणबाग संस्थान की स्थापना की और वहां पर लक्ष्मण
मंदिर बनवाया। देश के कुछ चिन्हित ही ऐसे स्थान हैं जहां पर
लक्ष्मण के मंदिर हैं उनकी पूजा होती है।
गद्दी का निकलता है चल समारोह
रीवा किले से अभी भी राजाधिराज की गद्दी का पूजन किया जाता
है और दशहरे के दिन चल समारोह निकलता है। गद्दी का दर्शन
करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। राजघराने के प्रमुख पुष्पराज
सिंह, उनके पुत्र दिव्यराज सिंह एवं बाघेल खानदान के लोग पहले
गद्दी का पूजन करते हैं और बाद में पूरे शहर में चल समारोह
निकलता है। शदियों की परंपरा अभी भी यहां जीवित है।
राजाधिराज ने हर समय संकट से बचाया
पुजारी महासभा के अध्यक्ष अशोक पाण्डेय कहते हैं कि
राजाधिराज को गद्दी में बैठाने का यह फायदा रहा कि रीवा राज
विपरीत परिस्थतियों से हर बार उबरता रहा। कई बार संकट की
स्थितियां पैदा हुई लेकिन उनका सहजता से निराकरण हो गया।
यहां की पूजा पद्धतियां भी अन्य राज्यों से अलग पहचान देती रही
हैं।
शेरोँ का शहर रीवा: जो कभी गुलाम नही बना
आज हम बात कर रहे हैँ एक ऐसे शहर की जिसने पूरे विश्व को
सफेद शेरोँ का नायाब तोहफा दिया है। रीवा के घने जंगलोँ मेँ सबसे
पहले सफेद शेर देखे गये थे। महाराजा गुलाब सिंह ने वैज्ञानिकोँ
की सहायता से सफेद शेरोँ की किस्म विकसित कराया। आज
विश्व के बडे बडे चिडियाघरोँ मेँ सफेद शेर रीवा रियासत की ही
देन है। पहले सफेद शेर मोहन का अस्थि पंजर आज भी रीवा के
म्यूजियम मेँ संग्रहीत है। रीवा के बारे मेँ एक बात यह भी है कि
जब पूरे भारत मेँ अंग्रजोँ की हुकूमत थी तब भी रीवा रियासत
स्वतंत्र थी।
रीवा का इतिहास बहुत पुराना है। एक बार महाराजा विक्रमादित्य
अपने शिकारी कुत्तोँ के साथ शिकार पर जंगल मेँ निकले थे। शिकार
पर वो अपने राज्य से बहुत दूर निकल आये थे। तभी महाराजा
विक्रमादित्य के शिकारी कुत्तोँ ने एक खरगोश को दौडा लिया।
खरगोश आँगे- आँगे और कुत्ते पीँछे-पीँछे। महाराजा विक्रमादित्य
इस दृश्य को बडे ध्यान से देख रहे थे। तब एक आश्चर्यजनक
घटना घटी। खरगोश अचानक निर्भय खडा हो गया और शिकारी
कुत्तोँ की तरफ क्रोध से देखने लगा। महाराजा विक्रमादित्य को
इस घटना से बडा विस्मय हुआ। उन्होने सोचा कि जब एक
साधारण सा खरगोश इस स्थान पर पहुँचकर इतना साहसी हो
सकता है तो यह स्थान हमारे लिये कितना अच्छा साबित होगा।
आज उसी स्थान पर उपरहटी मेँ रीवा का किला बना है। रीवा एक
ऐसा ही राज्य था जहाँ हर एक इंसान शेर और आजादी उनकी शान
थी।
ऐसी भी मान्यता
माना जाता है की रीवा मेँ बडे प्रतापी राजा हुये। महाराजा रघुराज
सिँह के बारे मेँ सुना है कि एक बार युद्ध के समय सोन नदी मेँ
बाढ थी तो उन्होने सोन नदी से उस पार जाने के लिये रास्ता
माँगा। सोन नदी ने उनको रास्ता दे दिया था। इसी प्रकार एक बार
अंग्रजोँ ने उन्हे आमंत्रित किया था। उनके अस्त्र शस्त्र बाहर
रखा लिये गये थे। उन पर संधि के लिय दबाव डाला गया तो
उन्होने अपनी पेन से एक फायर किया तो एक बडी सी चट्टान के
दो टुकडे हो गये। अंग्रेज भी भयभीत हो गये थे कि जहाँ के पेन
मेँ ऐसी शक्ति है वहाँ की तोपोँ मेँ भला कैसी शक्ति होगी।
महाराजा रघुराज सिँह की मृत्यु के बारे मेँ मैने एक आश्चर्य जनक
घटना सुनी है। कहते हैँ मृत्यु के समय वो बहुत बीमार पड गये थे
। एक साधू किला के बाहर भिक्षा माँगने आया। उसने अपने
कमंडल मेँ घी माँगा। उसके कमंडल मेँ घी डाला गया परंतु वो
कमंडल भरने का नाम नही ले रहा था। महाराजा रघुराज सिँह को
जब इस बारे मेँ बताया गया तो उन्होने कमंडल के ही आकार का
दूसरा कमंडल बनाने का आदेश दिया। उसके बाद महाराज ने अपने
कमंडल को घी से भरा। महाराज ने अपने कमंडल से घी साधू के
कमंडल मेँ डालना शुरु किया। कहते हैँ कि न तो साधू का कमंडल
भर रहा था और न ही महाराज का कमंडल खाली हो रहा था।
अंततः साधू का कमंडल भर गया। साधू ने कहा तुम धन्य हो पर
अब तुम्हारे धरती से चलना का समय आ गया है। उसी रात
महाराज का स्वर्गवास हो गया। ऐसे ही प्रतापी महाराजा गुलाब
सिंह जू राव और महाराजा मार्तण्ड सिँह थे। इलाहाबाद मेँ जमुना
किनारे के अंग्रजोँ के किले की जेल की मोटी सलाख को महाराज
मार्तण्ड सिँह ने अपने तंबाखू रखने वाले पात्र से काट दिया था।
था।
रीवा रियासत मेँ चेतक के समान ही एक घोडा था जो युद्ध के
समय अपने मुख के जबडोँ मेँ तलवार को फँसाकर दुश्मनोँ की सेना
को गाजर मूली की तरह काट डालता था। इस घोडे के मृत्यु के
बाद राजकीय विधि से इनका अंतिम संस्कार किया गया और और
उसके सम्मान मेँ एक पार्क बनाया गया।
अकबर के नवरत्नो मेँ शामिल प्रसिद्ध बुद्धिमान बीरबल और
संगीतकार तानसेन रीवा रियासत की ही देन हैँ। मैहर के मशहूर
अलाउद्दीन खाँ का नाम कौन नही जानता है, ये भी हमारे रीवा के
ही देन है।
रीवा राज्य की प्रसिद्धियों को इतिहास में जगह नहीं दी गई, माना
जाता है की अंग्रेजो के चाटुकारिता न करने का यह परिणाम है की
रीवा राज्य के राजघरानो को रीवा तक ही सिमित रखा
गया...आज भी इतिहास के पन्नो में मात्र रीवा का नाम शफेद शेर
के कारण ही आता है, जबकि रीवा राज्य ने कई रत्न देश को
दिए....
शाहरुख खान और करीना कपूर अभिनीत फिल्म 'अशोक' मेँ शहरुख
खान के हाँथ मेँ जो तलवार थी वो रीवा राजघराने की ही थी।
पर्यटकोँ के लिये रीवा मेँ विभिन्न आकर्षण केन्द्र है जैसे बघेला
म्यूजियम, बाणसागर बाँध, व्येँकट भवन, उपरहटी का किला, रानी
तालाब, होटल रीवाराज विलास, कोठी कम्पाउण्ड (महामृत्युंजय
धाम) शिल्पी प्लाजा मार्केट, चिरहुला दरबार मंदिर, रामसागर
मंदिर, विशाल भैँरो बाबा, भगवान बसावन मामा आदि बहुत हैँ।
जलप्रपात बनाते है आकर्षण का केंद्र
रीवा में अत्यंत सुन्दर प्राकृतिक सुंदरता से ओतप्रोत जलप्रपात
हैँ जो अपनी सुंदरता से किसी के भी मन को मोह लेते हैँ, जैसे चचाई
जलप्रपात, क्योटी जलप्रपात, बहूती जलप्रपात, पूर्वा जलप्रपात,
बलौची जलप्रपात आदि! रीवा मेँ नदियोँ की बात करेँ तो रीवा का
प्राण कहलाने वाली 'टमस नदी' जो किसानोँ के लिये माँ के समान
है। रीवा रियासत मेँ अन्य कई नदियाँ भी शामिल हैँ जैसे अत्यंत
सुंदर बीहर नदी, सोन नदी, सतना नदी। रीवा के आस पास के
धार्मिक स्थलोँ मेँ रामवन, देवतालाब के शिव, बिरसिँहपुर के
महादेव, धारकूँडी, अत्यन्त पवित्र मंदाकिनी गंगा के किनारे बसा
चित्रकूट के कामतानाथ, हनुमान धारा, स्फटिक शिला, लक्ष्मण
पहाडिया, सती अनुसूइया आश्रम,गुप्त गोदावरी आदि हैँ। मैहर की
शारदा, इलाहाबाद का संगम आदि भी पास ही हैँ।
भगत सिँह के समान ही अमरशहीद ठाकुर रणमत सिँह हुए है,
जिनके नाम पर स्वशासी कालेज भी है। शिक्षा की बात करेँ तो
सैनिक स्कूल, सरकारी इंजीनियरिँग कालेज, सरकारी मेडिकल कालेज