*?कुंडली में संतान बाधा योग?*

 

*हर स्त्री-पुरुष की यह कामना होती है कि उन्हें एक योग्य संतान उत्पन हो जिससे उनका वंश चले और वह उम्र के आखरी पड़ाव में उनका सहारा बने। निचे दिए गए ग्रह योग जो संतान बाधक योग हैं,*

 

*यदि किसी की कुंडली में मौजूद हो तो उन्हें अवश्य सचेत हो जाना चाहिए और समय रहते उचित उपाय के जरिये उन प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाना चाहिए जिनके वजह यह बाधक योग उत्पन्न हुए हैं।*

 

*1)लग्न से, चंद्र से तथा गुरु से पंचम स्थान पाप ग्रह से यक्त हो और वहाँ कोई शुभ ग्रह न बैठा हो न ही शुभ ग्रह की दृष्टि हो।*

 

*2) लग्न, चंद्र तथा गुरु से पंचम स्थान का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में बैठा हो।*

 

*3) यदि पंचमेश पाप ग्रह होते हुए पंचम में हो तो पुत्र होवे किन्तु शुभ ग्रह पंचमेश होकर पंचम में बैठ जाये और साथ में कोई पाप ग्रह हो तो वह पाप ग्रह संतान बाधक बनेगा।*

 

*4) यदि पंचम भाव में वृष, सिंह, कन्या या वृश्चिक राशि हो और पंचम भाव में सूर्य, आठवें भाव में शनि तथा लग्न में मंगल स्थित हो तो संतान होने में दिक्कत होती है एवं विलंब होता है।*

 

 

*5) लग्न में दो या दो से अधिक पाप ग्रह हों तथा गुरु से पांचवें स्थान पर भी पाप ग्रह हो तथा ग्यारवें भाव में चन्द्रमा हो तो भी संतान होने में विलंब होता है।*

 

*6) प्रथम, पंचम, अष्टम एवं द्वादस । इन चारो भावों में अशुभ ग्रह हो तो वंश वृद्धि में दिक्कत होती है।*

 

*7) चतुर्थ भाव में अशुभ ग्रह, सातवें में शुक्र तथा दसवें में चन्द्रमा हो तो भी वंश वृद्धि केलिए बाधक है।*

 

*8) पंचम भाव में चंद्रमा तथा लग्न, अष्टम तथा द्वादस भाव में पाप ग्रह हो तो भी बंश नहीं चलता।*

 

*9) पंचम में गुरु, सातवें भाव में बुध- शुक्र तथा चतुर्थ भाव में क्रूर ग्रह होना संतान बाधक है।*

 

*10) लग्न में पाप ग्रह, लग्नेश पंचम में, पंचमेश तृतीय भाव में हो तथा चन्द्रमा चौथे भाव में हो तो पुत्र संतान नहीं होता।*

 

*11) पंचम भाव में मिथुन, कन्या, मकर या कुंभ राशि हो। शनि वहां बैठा हो या शनि की दृष्टि पांचवे भाव पर हो तो पुत्र संतान प्राप्ति में समस्या होती है।*

 

*12) षष्टेश, अष्टमेश या द्वादशेश पंचम भाव में हो या पंचमेश 6-8-12 भाव में बैठा हो या पंचमेश नीच राशि में हो या अस्त हो तो संतान बाधायोग उत्पन्न होता है।*

 

*13) पंचम में गुरु यदि धनु राशि का हो तो बड़ी परेशानी के बाद संतान की प्राप्ति होती है।*

 

*14) पंचम भाव में गुरु कर्क या कुंभ राशि का हो और गुरु पर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तो प्रायःपुत्र का आभाव ही रहता है।*

 

*15) तृतीयेश यदि 1-3-5-9 भाव में बिना किसी शुभ योग के हो तो संतान होने में रूकावट पैदा करते हैं।*

 

*16) लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश एवं गुरु सब के सब दुर्बल हों तो जातक संतानहीन होता है।*

 

*17) पंचम भाव में पाप ग्रह, पंचमेश नीच राशि में बिना किसी शुभ दृष्टि के तो जातक संतानहीन होता है।*

 

*18) सभी पाप ग्रह यदि चतुर्थ में बैठ जाएँ तो संतान नहीं होता।*

 

*19) चंद्रमा और गुरु दोनों लग्न में हो तथा मंगल और शनि दोनों की दृष्टि लग्न पर हो तो पुत्रसंतान नहीं होता ।*

 

*20) गुरु दो पाप ग्रहों से घिरा हो और पंचमेश निर्बल हो तथा शुभ ग्रह की दृष्टि या स्थिति न हो तो जातक को संतान होने में दिक्कत होता है।*

 

*21) दशम में चंद्र, सप्तम में राहु तथा चतुर्थ में पाप ग्रह हो तथा लग्नेश बुध के साथ हो तो जातक को पुत्र नहीं होता ।*

 

*22) पंचम,अष्टम, द्वादश तीनो स्थान में पाप ग्रह बैठे हों तो जातक को पुत्र नहीं होता।*

 

*23) बुध एवं शुक्र सप्तम में, गुरु पंचम में तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो एवं चंद्र से अष्टम भाव में भी पाप ग्रह हो तो जातक का लड़का नहीं होता।*

 

*24) चंद्र पंचम हो एवं सभी पाप ग्रह 1-7-12 या 1-8-12 भाव में हो तो संतान नहीं होता ।*

 

*25) पंचम भाव में तीन या अधिक पाप ग्रह बैठे हों और उनपर कोई शुभ दृष्टि नहीं हो तथा पंचम भाव पाप राशिगत हो तो संतान नहीं होता।*

 

*26) 1-7-12 भाव में पाप ग्रह शत्रु राशि में हों तो पुत्र होने में दिक्कत होती है ।*

 

*27) लग्न में मंगल, अष्टम में शनि, पंचम में सूर्य हो तो यत्न करने पर ही पुत्र प्राप्ति होतीहै।*

 

*28) पंचम में केतु हो और किसी शुभ गृह की दृष्टि न हो तो संतान होने में परेशानी होती है।*

 

*29) पति-पत्नी दोनों के जन्मकालीन शनि तुला राशिगत हो तो संतान प्राप्ति में समस्या होती है।*

 

*संतानविचारजातक की कुण्डली का पांचवा घर संतान भाव के रूप में विशेष रूप से जाना जाता है ज्योतिषशास्त्रीइसी भाव से संतान कैसी होगी, एवं माता पिता से उनका किस प्रकार का सम्बन्ध होगा इसका आंकलन करतेहैं।*

 

*जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो, उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है। भाव, भाव स्थित राशि व उसका स्वामी, भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली, इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है।*

 

 *पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए*

 

*पंचम भाव से प्रथम संतान का ,उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए | पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु ,शुक्र ,बुध ,शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि – नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो , भाव स्थित राशि कास्वामी स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश का लग्न से केन्द्र ,त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , संतान कारक गुरु भी स्व ,मित्र ,उच्च राशि – नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो , गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त –दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतानसुख की प्राप्ति होती है |*

 

 *शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व ,मित्र ,उच्च राशि –नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं | पंचम भाव ,पंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम ,दो बलवान हों तो मध्यम ,एक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है|*

 

*सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो ,शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है |*

 

*प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्म कुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है :-*

 

*१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति,दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो।*

 

*२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र ,उच्च राशि नवांश का हो।*

 

*३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो |*

 

*४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो।*

 

*५ जन्म कुंडली में गुरु स्व ,मित्र ,उच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो।*

*६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों।पांचवें घर में सूर्य : पांचवें घर में सूर्य का नेक प्रभाव होने से संतान जब गर्भ में आती है तभी से व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होना शुरू हो जाता है. इनकी संतान जन्म से ही भाग्यवान होती है। यह अपने बच्चों पर जितना खर्च करते हैं उन्हें उतना ही शुभ परिणाम प्राप्त होता है।*

 

 *इस भाव में सूर्य अगर मदा होता है तो माता पिता को बच्चों से सुख नहीं मिल पाता है। वैचारिक मतभेद के कारण बच्चे माता पिता के साथ नहीं रह पाते हैं।*

 

*पांचवें घर में चन्द्रमा : चन्द्रमा पंचवें घर में संतान का पूर्ण सुख देता है। संतान की शिक्षाअच्छी होती है। व्यक्ति अपने बच्चों के भविष्य के प्रति जागरूक होता है। व्यक्ति जितना उदार और जनसेवी होता है बच्चों का भविष्य उतना ही उत्तम होता है। इस भाव का चन्द्रमा अगर मंदा हो तो संतान के विषय मे मंदा फल देता है।*

 

 

*पांचवें घर में मंगल : मंगल अगर खाना संख्या पांच में है तो संतान मंगल के समान पराक्रमी और साहसी होगी, संतान के जन्म के साथ व्यक्ति का पराक्रम और प्रभाव बढ़ता है. शत्रु का भय इन्हें नहीं सताता है।*

 

*पांचवें घर में बुध : बुध का पांचवें घर में होना इस बात का संकेत है कि संतान बुद्धिमान और गुणी होगी, संतान की शिक्षा अच्छी होगी. अगर व्यक्ति चांदी धारण करता है तो यह संतान के लिए लाभप्रद होता है. संतान के हित में पंचम भाव में बुध वाले व्यक्ति को अकारण विवादों में नहीं उलझना चाहिए अन्यथा संतान से मतभेद होता है।*

 

*पांचवें घर में गुरू : पंचम भाव में गुरू शुभ होने से संतान के सम्बन्ध में शुभ परिणाम प्राप्त होता है। संतान के जन्म के पश्चात व्यक्ति का भाग्य बली होता है और दिनानुदिन कामयाबी मिलती है।संतान बुद्धिमान और नेक होती है।अगर गुरू मंदा हो तो संतान के विषय में शुभ फल प्राप्त नहीं होता है। मंदे गुरू वाले व्यक्ति को गुरू का उपाय करना चाहिए।*

 

*पांचवें घर में शुक्र : पांचवें घर में शुक्र का प्रभाव शुभ होने से संतान के विषय में शुभ फल प्राप्त होता है। इनके घर संतान का जन्म होते ही धन का आगमन तेजी से होता है। व्यक्ति अगर सद्चरित्र होता है तो उसकी संतान पसिद्ध होती है।*

 

*पांचवें घर में शनि : शनि पांचवें घर में होने से संतान सुख प्राप्त होता है। शनि के प्रभाव से संतान जीवन में अपनी मेहनत और लगन से उन्नति करती है। इनकी संतान स्वयं काफी धन सम्पत्ति अर्जितकरती है। अगर शनि इस खाने में मंदा होता है तो कन्या संतान की ओर से व्यक्ति को परेशानी होती है।*

 

 

*पांचवें घर में केतु :- केतु भी राहु के समान अशुभ ग्रह है लेकिन पंचम भाव में इसकी उपस्थिति शुभ हो तो संतान के जन्म के साथ ही व्यक्ति को आकस्मिक लाभ मिलना शुरू हो जाता है. यदि केतु इस खाने में मंदा हो तो व्यक्ति को मसूर की दाल का दान करना चाहिए।* 

 

*इस उपाय से संतान के विषय में केतु का मंदा प्रभाव कम होता है।

*पांचवें घर में राहु

 : पांचवें घर में राहु होने से संतान सुख विलम्ब से प्राप्त होता है. अगर राहु शुभ स्थिति में हो तो पुत्र सुख की संभावना प्रबल रहती है। मंदा राहु पुत्र संतान को कष्ट देता मंदा राहु होने पर व्यक्ति को संतान के जन्म के समय उत्सव नहीं मनाना चाहिए।*

 

*माताजी आपका कल्याण करे*