श्री भरतजी को माँ ने कन्धा पकड़कर उठाया है, भरत धैर्य धारण करो, शत्रुघ्नजी को तो माँ ने ह्रदय से लगाकर इतना लाड दुलार दिया है, सामान्यतः शत्रुघ्नजी की आँखों में आँसू नहीं देखे जाते लेकिन आज माँ के ह्रदय से लगकर शत्रुघ्नजी बहुत रोये हैं।
जानकीजी ने अतिशय दुलार किया, पूरा का पूरा वातावरण जैसे प्रेम सागर में डूब गया हो, सब एक दम मौन, शान्त हैं, जब प्रेम की अतिशयता हो जाती है तो बाणी मौन हो जाती है, केवल एक दूसरे को जड़वत देखते हैं, प्रेम सागर में जहाज मानों डूबने ही जा रहा था, केवट सावधान हो गया कि ये जहाज कहीं डूब ना जायें।
डूबते को तो केवट ही बचाता है, केवट बोल पडे़ भगवन! भरत भइया अकेले नहीं आये हैं, गुरुदेव भी आये हैं, मातायें भी आयी हैं और पूरी अयोध्या के नागरिक भी साथ हैं, प्रभु बहुत बड़ा काफिला इस समय चित्रकूट की तलहटी में प्रतीक्षा में हैं
भगवान ने जानकीजी की रक्षा के लिये शत्रुघ्नजी को वहाँ छोड़ा है, भरतजी को भी कहा तुम यहाँ रूको, लक्ष्मणजी को साथ लेकर भगवान दौड़कर आये हैं गुरुदेव का स्वागत करने के लिये, दूर से गुरुदेव को दण्डवत प्रणाम किया है, गुरुदेव भी रथ से दौड़कर गये हैं, भगवान को ह्रदय से लगाया, एकदम नेत्र डबडबा गये।
राजसी वेश के स्थान पर आज मुनिवेश देखा, गुरुदेव को लगा कि हम तो केवल ऊपर के ही साधु हैं, मुनि हैं, असर मुनि तो ये राघव हैं, केवट तो साथ थे, यहाँ भगवान समाज का मार्ग दर्शन करने के लिये हटकर थोड़ी लीला करते हैं।
भगवान जानते हैं कि गुरुदेव केवट को स्पर्श नहीं करेंगे, जब तक समाज के वशिष्ठ अथवा विशिष्ट तथा समाज के अविशिष्ट अथवा निकृष्ठ (ये समझाने के लिये है कि समाज जिनको ऐसा कहता आया है) इन दो के बीच दूरी बनी रहेगी कि मैं बड़ा और ये छोटे, जब तक ऊँच और नीच की, छुआछूत की खाई बनी रहेगी तब मैं लाख उपदेश करूँ राम राज्य की स्थापना हो नहीं सकती
धर्म राज्य की तो हो सकती है, महाराज दशरथजी का राज्य धर्म का राज्य था लेकिन मुझे तो प्रेम का राज्य चाहिये, प्रेम में दूरी नहीं होती, प्रेम में समानता होती है, प्रेम का अर्थ ही यही है कि जो छोटा था वो आपके बराबर खड़ा हो गया, ह्रदय के बराबर हो गया, परमात्मा यही करने चले हैं अयोध्या छोड़कर, सबको राम रूप देने चले हैं।
भगवान श्री रामजी की मान्यता है कि जब तक जगत का प्रत्येक प्राणी राम रूप नहीं हो जायेगा तब तक राम राज्य कैसे आयेगा? भगवान सबको अपना रूप देने चले हैं, सबको राम बनाने चले हैं, भगवान चाहते हैं कि जब तक वशिष्ठजी केवट को ह्रदय से स्वीकार नहीं करेंगे दूर से तो कोई भी आशीर्वाद दे देता है, ये दूरी नहीं मिटेगी।
ये दूरी मिटनी चाहिये, मैं तो सेतुबन्ध के लिये आया हूँ लेकिन गुरुदेव को तो कह नहीं सकते कि गुरुदेव ये छुआछूत छोडिये, गुरुजनों को आज्ञा देना, निर्देश करना या बड़े लोगों को अंगुली के संकेत से बोलना ये अपराध माना गया हैं, हमेशा शीश झुका कर निवेदन करें।
रामजी जानते हैं कि जब तक वशिष्ठजी केवट को स्वीकार नहीं करेंगे तब तक राम राज्य स्थापित नहीं हो सकता, गुरुदेव को बोल नहीं सकते, उनसे ज्यादा शास्त्र जानते हैं क्या? सच तो यह है कि हम शास्त्रों का भी अपने स्वार्थ के अनुसार दुरूपयोग करते हैं, भगवान चाहते हैं वशिष्ठजी व केवट बराबर हो जायें।
भगवान ने क्या किया कि केवट को अपनी बगल में लिया, गुरुदेव से पूछा आप इसे पहचानते हैं या नहीं? ये मेरा मित्र है गुह केवट, श्रंगवेरपुर का राजा, इतना जब भगवान ने कहा कि मेरा मित्र तब वशिष्ठजी ने कहा कि सिर्फ जानता और पहचानता ही नहीं हूँ बल्कि मैं तो इसका ही हूँ और वशिष्ठजी रथ से उतर कर दौड़े हैं, केवट पीछे हटा, दूर से नाम लेकर प्रणाम करने लगा।
प्रेम पुलकि केवट कहि नामू।
कीन्ह दूरी ते दंड प्रनामू।।
राम सखा रिषि बरबस भेंटा।
जनु महि लुठत सनेह समेटा।।
केवट बोल रहा है गुरुदेव मैं अछूत हूँ, अरे भाई जिसको राम ने अपना कह दिया हो वो कैसे मेरा पराया हो सकता हैं, एक दम दौड कर अपने अंक में समेट लिया।
जैसे धरती पर कई बार तेल फैल जाता है और हम दोनों हाथों से उसे समेटते हैं आज प्रेम की भूमि चित्रकूट में मानों राम प्रेम जमीन पर फैल रहा हो और श्री वशिष्ठजी उसको दोनों हाथों से समेत रहे हों, बटोर रहे हों, इतने प्रेम से मिले हैं।
जेहि लखि लखनहु ते अधिक मिले मुदित मुनि राउ।
सो सीतापति भजन को प्रगट प्रताप प्रभाऊ।।
गोस्वामीजी कहते हैं भजन का प्रताप तो देखिए, आज वशिष्ठजी लक्ष्मणजी से भी ज्यादा प्यार से मिले हैं, वास्तव में चित्रकूट से ही राम राज्य की शुरुआत हो गयी है, राम राज्य के भवन का शिलान्यास श्रंगवेरपुर में हुआ है जहाँ भगवान ने गुह को स्वीकार किया है, यहाँ आज राम राज्य रूपी भवन के निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ हो रही हैं।
जब हम भवन निर्माण कराते है तो पाँच ईट गुरुजनों से रखवाते हैं, आज इस भवन की पाँच ईट वशिष्ठजी के द्वारा रखी गयीं जब वशिष्ठजी ने केवट को ह्रदय से लगाकर समानता के स्तर पर खड़ा किया है, भगवान के नेत्र सजल हो गये, मेरा मिशन पूरा होने का गुरुदेव ने आशीर्वाद दिया है।
माताओं को प्रणाम किया है, कोई किसी से बोल नहीं रहा, पूरे नगर वासियों को प्रभु ने दर्शन दिया है, जहाँ-जहाँ जिसको स्थान मिला है मंदाकिनी के किनारे वहाँ-वहाँ सबने अपना पडाव डाला है, कितना सुन्दर वन प्रदेश, कितना आनन्द, लोग अयोध्या के दुख को भूल गये।