वाराणसी : मृत्यु की नगरी क्यों करते हैं मणिकर्णिका घाट पर साधना?
किसी इंसान की मौत हो जाए और कुछ समय तक उसके मृत शरीर को रोककर रखा जाए तो आप देखेंगे कि उसके नाखून, उसके चेहरे और सिर के बाल 11 से 14 दिनों तक बढ़ते रहेंगे। आपको पता है यह सब? कहने का मतलब यह है कि प्राण शरीर को एकदम से पूरी तरह नहीं छोड़ पाता। व्यावहारिक रूप से इंसान की मौत हो जाती है। दुनिया के लिए तो इंसान अब नहीं रहा, लेकिन खुद अपने लिए वह अभी पूरी तरह मरा नहीं होता। मृत होने में उसे 11 से 14 दिन का समय लग जाता है। मरने के बाद तमाम तरह के कर्मकांड और क्रियाएं जिस तरीके से की जाती हैं, उसके पीछे यही वजह है। जब आप शरीर का दाह संस्कार कर देते हैं तो सब कुछ तुरंत समाप्त हो जाता है।
मणिकर्णिका घाट पर जाकर देखिए। वहां रोजाना औसतन 40 से 50 मृतकों का दाह संस्कार होता है। अगर आप वहां बैठ कर तीन दिन भी साधना कर लें तो आपको उस स्थान का असर समझ आ जाएगा। इसकी सीधी सी वजह यह है कि वहां बड़ी मात्रा में और बहुत वेग के साथ शरीरों से उर्जा बाहर निकल रही है। यह एक तरह से मानव-बलि की तरह है, क्योंकि ऊर्जा जबरदस्ती बाहर आ रही है। इसी के चलते वहां जबरदस्त मात्रा में ऊर्जा की मौजूदगी होती है।
यही वजह है कि शिव समेत कुछ खास किस्म के योगी हमेशा श्मशान घाट में साधना करते हैं, क्योंकि बिना किसी की जिंदगी को नुकसान पहुंचाए आप जीवन ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं। ऐसी जगहों पर खासकर तब जबर्दस्त ऊर्जा होती है, जब वहां आग जल रही हो। अग्नि की खासियत है कि यह अपने चारों ओर एक खास किस्म का प्रभामंडल पैदा कर देती है या आकाश तत्व की मौजूदगी का एहसास कराने लगती है। मानव के बोध के लिए आकाश तत्व बेहद महत्वपूर्ण है। जहां आकाश तत्व की अधिकता होती है, वहीं इंसान के भीतर बोध की क्षमता का विकास होता है।
यहां दो चीजें हो रही हैं। पहली चीज यह कि बहुत सारी ऊर्जा बाहर निकल रही है। प्राण का बचा हुआ हिस्सा बाहर निकल रहा है, क्योंकि शरीर, जो आधार है, उसी का नाश हो रहा है। और दूसरी यह कि वहां अग्नि की मौजूदगी भी है। जो लोग ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, जो लोग अपनी ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठाना चाहते हैं, उनके लिए ये दोनों स्थितियां मिलकर एक बेहतरीन वातावरण पैदा कर देती हैं। श्मशान घाटों की यही खासियत रही है।: सदगुरु