सोमनाथ पुनर्निर्माण स्वर्ण-जयन्ती समारोह में गूंजी वाजपेयी की वीरवाणी


विजय-संकल्प  2001/11/11

सोमनाथ मंदिर पुनर्निर्माण स्वर्ण- जयंती समारोह में प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने भारत की विजय का संकल्प दोहराते हुए देश को आ·श्वस्त किया कि आतंकवादी उसी प्रकार धूल में मिल जाएंगे जिस प्रकार सोमनाथ विध्वंसक समाप्त हुए। इस अवसर पर श्री वाजपेयी ने जो प्रेरक उद्बोधन दिया उसका प्राय: अविकल एवं सम्पादित अंश यहां प्रस्तुत है-

आज का दिन बड़े आनंद का दिन है। आज के दिन भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ भगवान की मूर्ति-प्रतिष्ठापना को पचास वर्ष हो गए हैं। आनंद का एक दूसरा कारण भी है, आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है। यह मणिकांचन का संयोग है। अगर सरदार न होते तो शायद सोमनाथ इस रूप में न होता। किस रूप में होता, मैं नहीं कह सकता। लेकिन सोमनाथ प्रतीक है हमारी सनातन संस्कृति का, हमारे शा·श्वत धर्म का, भारत के इतिहास में निरंतर होने वाले परिवर्तनों का। इतिहास ने वह क्षण भी देखा था, जब आक्रमणकारियों ने सोमनाथ को भंग कर दिया था। आज भी इस तरह की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है। लेकिन जिस तरह से सोमनाथ का हमने पुनर्निर्माण किया, नवनिर्माण किया और इसे खण्डित व ध्वस्त करने वाले परास्त हो गए, उसी तरह से जो आतंकवादी प्रवृत्ति के बल पर आगे बढ़ना चाहते हैं, मूर्तियों का पूजन नहीं, भंजन करना चाहते हैं उनका भी एक दिन वही हाल होगा जो सोमनाथ मंदिर को तोड़ने वालों का हुआ था।

सोमनाथ प्रतीक है चिरंजीवी संस्कृति का, सोमनाथ प्रतीक है सतत् संघर्ष का, सोमनाथ प्रतीक है हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान का। आज सोमनाथ भगवान की देखभाल अच्छी तरह हो रही है। सारे देश से यात्री आ रहे हैं। यह बड़ी प्रसन्नता की बात है। हम तो चाहते हैं कि सोमनाथ और उससे लगा ये सारा परिसर एक नया रूप धारण करे, एक नया कलेवर धारण करे। सोमनाथ के पास अन्य तीर्थस्थल हैं, ये सब जुड़े हुए हैं, यद्यपि थोड़ी मात्रा में फैले हुए भी हैं। यहां पोरबंदर है, यहां कृष्ण देहविसर्जन का पवित्र स्थल है, यहां गिर का देखने लायक दृश्य हैं, पालिताना है, जूनागढ़ है। मैं देख रहा हूं कि अतीत में सोमनाथ बार-बार खण्डित होने के बाद भी फिर से आसमान से बातें करता हुआ खड़ा है, वहीं खड़ा है जहां उसका मान हरण करने का विफल प्रयास हुआ था। इस समारोह में नए मुख्यमंत्री आए हैं। मुझे वि·श्वास है कि इस क्षेत्र के विकास की दिशा में वे कदम उठाएंगे, थोड़ी-बहुत सहायता की जो आवश्यकता होगी उसे भारत सरकार जरूर पूरा करेगी। यह पावन क्षेत्र है, द्वारिका है यहां, पालिताना का उल्लेख मैंने पहले किया है। यह पवित्र भूमि है। गुजरात के पर्यटक बड़ी संख्या में देश के अन्य भागों में जाते हैं। उतनी ही मात्रा में देश के अन्य क्षेत्रों से पर्यटक गुजरात आने चाहिए, इसका प्रबंध बहुत जरूरी है। इसमें एक बाधा है कि सोमनाथ तक "ब्राडगेज' रेलपथ नहीं है। इसका अभाव उस समय भी खला था जब आडवाणी जी यहां से रेलगाड़ी के बजाय रथ पर बैठकर गए थे। उनका रथ पर जाना पहले से तय था, लेकिन "ब्राडगेज' होना चाहिए यह मैं मानता हूं। "ब्राडगेज' यहां होगा, उसका मैं वि·श्वास दिलाता हूं।

गुजरात में विकास की अनेक संभावनाएं हैं। यह सही है कि प्रकृति के हाथों गुजरात को बहुत कुछ झेलना पड़ा है। यहां ऐसा भयंकर भूकम्प आया। लेकिन मैं गुजरात व कच्छ के लोगों को बधाई व धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने इतनी हिम्मत के साथ प्रकृति के प्रकोप को सहा और पुन: उन खण्डहरों से नया कच्छ और गुजरात बन रहा है। मुझे वे दिन याद हैं, जब लोग मदद देने के लिए आते थे और स्वाभिमानी लोग, जो पीड़ित जरूर थे पर जिनका स्वाभिमान अपनी जगह पर कायम था, उन्होंने कहा नहीं, हमें सहायता की आवश्यकता नहीं है, हम अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं, हम अपनी मदद कर सकते हैं। उस समय हमने वि·श्व का ऐसा रूप देखा जैसे मानो सारी दुनिया पर संकट आया है और वह उसका निवारण करने के लिए दौड़ पड़ी। मतभेद भुला दिए गए, छोटे-मोटे झगड़े विलीन हो गए। भूकम्प के पहले बाढ़, सूखा! गुजरात सतत् संघर्ष करता रहा है प्रकृति से, लेकिन प्रकृति की चुनौती को मानव ने कभी पराजय के रूप में स्वीकार नहीं किया। इस दृष्टि से गुजरात के लोगों को मैं बधाई देना चाहता हूं। दुनिया में आज कहीं चले जाइए, आपको गुजरात से आए लोग जरूर मिलेंगे, बड़े प्रेमभाव से मिलेंगे और अगर आपको यह पहचानने में थोड़ी सी कठिनाई हो कि भोजन किस तरह का बना है, तो जब आप मीठी दाल खाएंगे तो आपको पता लग जाएगा कि ये गुजरात का भोजन है। इतनी मिठास! कभी-कभी ऐसा लगता है कि अगर थोड़ी सी खटास भी होती तो ज्यादा अच्छा था। शायद नरेन्द्र भाई वह पैदा कर सकें। मगर एक परिश्रम की धार है। आगे बढ़ने का एक हौसला है, चुनौतियों का सामना करने का एक संकल्प है। और यह संकल्प सरदार पटेल के जीवन में दिखाई दिया था। सरदार न होते तो भारत एक नहीं होता। अंग्रेज तो जाने से पहले भारत को पांच सौ टुकड़ों में बांटना चाहते थे। उस समय के राजे-रजवाड़े, नवाब-हरेक उन टुकड़ों को अपना राज्य बनाकर आगे बढ़ने का सपना देख रहे थे। लोगों ने कहा भारत बंट जाएगा, सरदार ने कहा कि "नहीं, जो विभाजन हमने स्वीकार किया वह ठीक है। लेकिन अब भारत नहीं बंटने पाएगा।' जब कश्मीर यहां रहे या वहां रहे जैसी बातें होती हैं तो लोग यह भूल जाते हैं। आडवाणी जी ने इसका उल्लेख किया कि जम्मू-कश्मीर की जनता ने अपनी इच्छा से भारत के साथ मिलने का फैसला किया था। अब वह फैसला बदला नहीं जा सकता, वह अटूट है। अब हम दुबारा देश का बंटवारा नहीं होने देंगे। एक बार हुआ, वह भी दुर्भाग्यपूर्ण था। विदेशी सत्ता थी, फूट का खेल था। लेकिन सरदार पटेल थे। उनके नेतृत्व में भारत की राष्ट्रीय एकता की धुरी रखी गई। उन्होंने छोटे-बड़े सब रजवाड़ों को मिलाकर एक विशाल भारत का रूप दिया।

आज भारत सुदृढ़ व संगठित है। आज भारत समृद्धि की ओर आगे बढ़ रहा है। आज भारत दुनिया में किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है। किसी को भ्रम में नहीं रहना चाहिए। कुछ लोगों को भ्रम हो जाता है, जब वे हमारी बहनों को चूड़ियां पहने हुए देखते हैं। तब उन्हें चूड़ियां याद आती हैं। हम ऐसी भाषा नहीं बोलते। लेकिन हम ये कहते हैं कि पंजाब में, जहां चूड़ियों का बहुत रिवाज है, प्रचलन है, जिसको सम्बोधित करके ये बात कही गई थी वहां चूड़ियों के साथ एक कड़ा भी पहना जाता है जो लोहे का कड़ा होता है। बात चूड़ी तक पहुंच जाए, ये मर्दानगी की बात नहीं है।

लेकिन हम अपने संयम को बनाए हुए, सेनाओं को सन्नद्ध रखते हुए, वैज्ञानिकों पर भरोसा करते हुए व जवानों को बधाई देते हुए, सरदार पटेल ने हमें जो विरासत में दिया है उसकी रक्षा करेंगे, उसका विकास करेंगे। मुझे वि·श्वास है कि यह क्षेत्र और विकसित होगा। इस क्षेत्र की योजनाएं अगर कुछ और हैं तो मुख्यमंत्री जी के साथ बैठकर उनके बारे में चर्चा करेंगे। मुझे यहां आने का अवसर मिला, मैं आपका बहुत आभारी हूं। भगवान सोमनाथ को अपनी श्रद्धा अर्पित करता हूं।

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यह गौरव और अभिमान का दिवस है


- लालकृष्ण आडवाणी

केन्द्रीय गृहमंत्री

सोमनाथ पुनर्निर्माण स्वर्ण जयन्ती समारोह में केन्द्रीय गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने बहुत भावपूर्ण भाषण में कहा कि इस मंदिर के पुनर्निर्माण की 50वीं जयन्ती समस्त भारत के लिए गौरव का विषय है। उनके भाषण के मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं-

श्री सोमनाथ ट्रस्ट की पिछले वर्ष हुई बैठक में ही यह विचार था कि आने वाला वर्ष 2001 महत्वपूर्ण है। इस बैठक में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री केशुभाई पटेल भी उपस्थित थे। यह मंदिर 1951 में बनकर तैयार हुआ। सरदार वल्लभ भाई पटेल 13 नवम्बर,1947 के दिन सोमनाथ प्रभास पाटन आए थे और यहां समुद्र का जल अंजलि में लेकर सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प किया था। उनके साथ कन्हैया लाल माणिकलाल मुंशी और एन.वी. गाडगिल भी आए थे। मंदिर 1951 में बनकर तैयार हुआ, तब सरदार पटेल हमारे बीच नहीं रहे थे। मंदिर का उद्घाटन भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति करें, यह सबकी इच्छा थी, जो बाबू राजेन्द्र प्रसाद जी ने सहज स्वीकार की और 11 मई, 1951 को मंदिर का उद्घाटन किया। इसलिए 11 मई,2001 को मंदिर पुनर्निर्माण की स्वर्ण जयन्ती मनाना तय हुआ था। परन्तु भूकम्प के कारण कुल मिलाकर स्थिति कुछ ऐसी बनी कि वह समारोह संभव नहीं हो सका। उसी समय तय किया गया था कि स्वर्ण जयन्ती समारोह के उद्घाटन हेतु प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी से अनुरोध किया जाए। और फिर यदि 11 मई के बाद ही कोई तिथि तय करनी हो तो ऐसी तिथि तय की जाए जिसका सार्वजनिक जीवन में महत्व हो। तब सरदार पटेल के जन्मदिवस 31 अक्तूबर को इस कार्य के लिए उपयुक्त माना गया।

आडवाणी की श्रद्धा और भक्ति

इस दिन के समारोह को पचास साल प्रतीक्षा करनी पड़ी थी। गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ ट्रस्ट के न्यासी हैं। आडवाणी का भगवान सोमनाथ के आशीर्वाद पर अटूट वि·श्वास है। 25 सितम्बर 1990 को उन्होंने यहां से रथयात्रा प्रारंभ की थी। वह रथयात्रा जिसने भारत की राजनीति का रंग और कलेवर बदल दिया। तब से वे हर साल बिना नागा 25 सितम्बर को श्री सोमनाथ के दर्शन करने जाते हैं। इस वर्ष उन्होंने वहां की आगंतुक पुस्तिका में जो लिखा वह किसी भी श्रद्धालु के चित्त को आनंदित करने वाला होगा। उसका अविकल पाठ इस प्रकार है-

"गत 11 वर्ष से, प्रति वर्ष आज के दिन अर्थात् स्व0पं0दीनदयाल जी उपाध्याय के जन्मदिन पर, मैं यहां भगवान सोमनाथ के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने आता रहा हूं।

"इन वर्षों में मैंने स्वयं अनुभव किया है कि भगवान की कृपा कितने चमत्कारी परिणाम ला सकती है। आज मैं पुन: प्रार्थना करता हूं कि भगवान सोमनाथ मेरे इस देश भारत को एक महान, शक्तिशाली व समृद्ध राष्ट्र बनाएं और मेरे सहयोगियों को, मेरे परिवार को और मुझे इस हेतु योगदान करने का सामथ्र्य दें।' सोमनाथ का इतिहास कई दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है। जब आजादी आई तो साथ-साथ विभाजन भी आया। देश के दो टुकड़े हुए। अंग्रेजों की कुटिलता ने भारत के विघटन के बीज बोए। 530 रजवाड़ों को अंग्रेजों ने कहा कि भारत स्वतंत्रता अधिनियम के अन्तर्गत मुस्लिमबहुल क्षेत्र पाकिस्तान में गए और हिन्दूबहुल क्षेत्र भारत में रहे। अब हम 530 रजवाड़ों को उनकी सार्वभौमिकता, उनकी सम्प्रभुता वापस देते हैं। यह तो देश का सौभाग्य था कि सरदार पटेल जैसे नेता हुए, जिन्होंने विघटन की इस पूरी कल्पना को ही ध्वस्त कर दिखाया। वरना हैदराबाद और जूनागढ़ जैसे राज्य भी थे, जो पाकिस्तान में मिलना चाहते थे। जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में विलय की घोषणा भी कर दी। पर वहां की प्रजा ने इस घोषणा के विरुद्ध जनविद्रोह किया और कहा कि हम नवाब को अमान्य करते हैं। वहां कांग्रेस के प्रमुख नेता थे शामलदास गांधी, उन्हीं के नेतृत्व में शासन चलाने की घोषणा की गई। नवाब इस घोषणा से डरकर पाकिस्तान भाग गया और भारतभक्त शामलदास गांधी ने विजयी जनता की ओर से सरदार पटेल को तार भेजा-जूनागढ़ भारत में विलय होने की घोषणा करता है। उस समय दिल्ली में सरदार पटेल के पास कन्हैयालाल मुंशी भी बैठे हुए थे। सरदार पटेल ने मुंशी को तार दिखाते हुए कहा-"जय सोमनाथ!' ऐसा माहौल था उस समय।

संयोग यह रहा कि मेरी आरंभिक पुस्तकों में "जय सोमनाथ' पुस्तक थी। मेरी शिक्षण की भाषा अंग्रेजी और मातृभाषा सिंधी थी। हिन्दी सीखने के लिए जिन पुस्तकांे को मैंने प्रारम्भ में पढ़ा उनमें "जय सोमनाथ' थी, जिसमें सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रखर संदेश था। आक्रमणकारियों ने यदि संस्कृति के चिन्ह ध्वस्त किए तो उनका पुनर्निर्माण हमारा कर्तव्य था। यह संदेश निहित था। उसी पुनर्निर्माण जयन्ती का यह समारोह इस बात का प्रतीक है कि भारत की संस्कृति और भारत के लोगों की इच्छाशक्ति अजेय और सदा विजयी है। यह दिन हम सबके लिए अत्यन्त गौरव और अभिमान का दिन है।