जयपुर में दिखा राष्ट्र शक्ति का अद्भुत संगम
-- जयपुर से लौटकर आलोक गोस्वामी
"अमरूदों' का बाग मैदान में राजस्थान के कोने-कोने से आए स्वयंसेवकों को
मंच से सम्बोधित करते हुए रा.स्व. संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन
अद्भुत, ऐतिहासिक, भव्य, अतुलनीय और अपूर्व। जयपुर (राजस्थान) में 13 अक्तूबर को सम्पन्न हुए राष्ट्र शक्ति संगम के विषय में बताने के लिए शायद ये विशेषण भी पर्याप्त नहीं रहेंगे। वह दिन संघ-इतिहास का एक अविस्मरणीय दिन था। गुलाबी शहर जयपुर उस दिन मानो खाकी हो गया था। शहर में जहां देखो वहीं गणवेशधारी स्वयंसेवकों के समूह ही नजर आते थे। मुख्य मार्गों, गलियों, उपनगरों, चौराहों व बाजारों से गुजरतीं स्वयंसेवकों की टोलियां एक अनूठा दृश्य उपस्थित कर रही थीं।
राष्ट्र शक्ति संगम के सार्वजनिक समारोह में मंच के पृष्ठ भाग में पाञ्चजन्य का जयघोष करते हुए शंख-चक्र-गदा-पद्मधारी श्रीकृष्ण
संचलन से पूर्व जलेबी चौक पर सुप्रसिद्ध गोविन्द देव मन्दिर के सामने अलवर व भरतपुर विभागों के स्वयंसेवक
चौगान स्टेडियम में संघ प्रार्थना करते हुए सीकर, चुरू, झुंझनूं, हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर के स्वयंसेवक
विभिन्न दिशाओं से संचलन करते हुए स्वयंसेवकों की वाहिनियों का शहर के प्रसिद्ध रामबाग चौराहे पर संगम का दृश्य मानो राष्ट्र शक्ति का साक्षात् संगम ही था
स्वागत द्वारों से सजे जयपुर के एक प्रमुख मार्ग से गुजरता पथ संचलन
समारोह स्थल के बाहर अग्निशमन केन्द्र के वाहन से जल पीने को कतारबद्ध खड़े स्वयंसेवक
आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने को तैयार एक चिकित्सा वाहन
चाक-चौबंद चौकसी-समारोह स्थल पर पुलिस के श्वान दस्ते द्वारा सघन तलाशी की गई
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भैरोंसिंह शेखावत पथ संचलन मार्ग में
पथ संचलन मार्ग में एक प्रमुख चौराहे पर राष्ट्रसेविका समिति की बहनें "भारत माता की जय' के नारे लगाती हुईं
समारोह की तैयारी
अवसर ही ऐसा था। राष्ट्र शक्ति संगम में राजस्थान के कोने-कोने से स्वयंसेवक आए थे। मारवाड़, मेवाड़, ढूंढाड़, हाड़ोती व शेखावटी। सभी क्षेत्रों से, यहां तक कि वनवासी क्षेत्रों के स्वयंसेवक भी बड़ी संख्या में जयपुर पहुंचे थे। 13 अक्तूबर की भोर से ही स्वयंसेवक अपने वाहनों, बस, जीप, कार, ट्रैक्टर, जिसे जो उपलब्ध हुआ, से जयपुर महानगर के ग्यारह निर्दिष्ट स्थानों पर पहुंचने लगे थे। कुल 4413 स्थानों से 62052 स्वयंसेवक आए थे।
शहर के विभिन्न हिस्सों में ग्यारह स्थानों पर स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण हुआ। वहीं से तय समय पर उन्हें पथ संचलन आरम्भ करना था। चौगान स्टेडियम, विक्रम सर्किल, पारीक महाविद्यालय, केजड़ीवाल भवन, ईसरदा भवन, विवेक विहार, सूर्यनगर, जयपुरिया विद्यालय, सूरज मैदान, खण्डेलवाल विद्यालय व जलेबी चौक।
सुबह के ग्यारह बज रहे थे। संचलन के आरम्भ होने में कुछ समय शेष था, सोचा, क्यों न ग्यारह नहीं, तो जितने संभव हैं उतने स्थानों पर जाकर अलग-अलग क्षेत्रों से आए स्वयंसेवकों से मिला जाए व संचलन की तैयारियों को देखा जाए। जोधपुर से आए भागीरथ भाई मिल गए थे, वे भी चलने को तैयार हो गए। हमने स्थानीय स्वयंसेवक श्री देवकी नंदन और श्री मोहन गोयल को साथ ले लिया। श्री देवकी नंदन भारतीय प्रोद्यौगिकी संस्थान से यांत्रिक अभियंता की उपाधि लेकर जयपुर में ही मारुति कारों के एक विक्रेता की कार्यशाला में कार्यरत हैं और श्री मोहन गोयल वकील हैं।
जयपुर में उस दिन मुख्य मार्गों पर विशेष व्यवस्था की गई थी, कुछ मार्ग बंद थे संचलन के लिए, तो कुछ थोड़ी देर के लिए खुले रखे गए थे। हम जलेबी चौक पहुंचे। प्रसिद्ध गोविन्द देव मंदिर के सामने अलवर विभाग और भरतपुर विभाग के स्वयंसेवक संचलन की तैयारियों में जुटे थे। भिवाड़ी, दौसा, अलवर, कोटपुतली, धौलपुर, भरतपुर व डीग शहरों के स्वयंसेवकों के चेहरों पर उत्साह झलक रहा था। जलेबी चौक से चौगान स्टेडियम बहुत दूर नहीं है। रास्ते में स्वागत द्वारों की कतार व भगवा पताकाएं लहराती दिखीं। जगह-जगह चौराहों, जैसे बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़, पांच बत्ती आदि को गेंदे के फूलों से सजाया गया था।
चौगान स्टेडियम में सीकर, चुरू, झुंझनूं, हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर से आए 4,550 स्वयंसेवक तैयारियों में जुटे थे। सुंदर सजी जीप पर स्वामी दयानंद सरस्वती का बड़ा चित्र लगा था। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भैरोंसिंह शेखावत व राज्यसभा सांसद श्री महेश चंद्र शर्मा स्वयंसेवकों से भेंट करने पहुंचे थे। दोपहर की धूप तीखी हो चली थी। मुख्य शिक्षक की लम्बी सीटी बजी और संघ प्रार्थना शुरू, "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे...'। प्रार्थना समाप्त हुई और हम शहर के मध्य सार्वजनिक समारोह स्थल "अमरूदों का बाग' के निकट एक बड़े चौराहे-रामबाग चौराहे-की ओर बढ़ चले। देवकी नंदन जी ने बताया कि वहां तीन दिशाओं से आने वाले संचलनों का भव्य संगम होगा।
ग्यारह स्थानों से आरम्भ हुए पथ संचलनों में सर्वप्रथम 12.54 बजे खण्डेलवाल विद्यालय से संचलन प्रारम्भ हुआ। कर्नल आर.के. सिंह (से.नि.) ने भगवान महावीर के चित्र पर पुष्प चढ़ाए और आज्ञा मिलते ही स्वयंसेवक बढ़ चले। सभी स्थानों पर संचलन से पूर्व सेना के सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारियों ने महापुरुषों के चित्रों का पूजन किया। 1.19 बजे सबसे आखिर में चौगान स्टेडियम से स्वयंसेवक पंक्तिबद्ध निकले। समय का ऐसा सटीक अनुपालन देखते ही बनता था। यह जरूरी भी था, क्योंकि विभिन्न चौराहों पर संचलनों का संगम तय समय पर ही होना था। और ठीक यही हुआ। बड़ी चौपड़ पर 1.18 बजे दो दिशाओं से आए संचलन मिले। ठीक वैसे, जैसे दो नदियों की धाराएं आत्मसात हो जाएं। विभिन्न संचलनों में कुल 2,800 घोषवादक शामिल हुए। प्रत्येक संचलन में कुल 560 वाहिनियां थीं, प्रत्येक वाहिनी में सौ स्वयंसेवक। सबसे आगे संचलन के मुख्य शिक्षक थे, उनके पीछे एक वाहिनी, उसके बाद घोष का एक गण। प्रत्येक वाहिनी के पीछे शान से लहराता भगवा ध्वज।
रामबाग चौराहे का दृश्य अद्भुत था। सैकड़ों नागरिक उस चौराहे के चारों ओर जमा थे। बालक, बालिकाएं, वयस्क, वृद्ध, महिलाएं सभी तो थे वहां, हाथों में फूल लिए, मार्ग पर निगाहें जमाए। चेहरों पर एक अपूर्व दृश्य देखने की ललक। व्यवस्था में लगे स्वयंसेवक विनती करके लोगों को कुछ पीछे करते, लेकिन उत्सुकता ऐसी थी कि कुछ क्षण में स्थिति पूर्ववत् हो जाती। चार-छह पुलिसवाले तो थे, पर स्वयंसेवकों की व्यवस्था देखकर संतुष्ट थे, उन्हें करने को कुछ था ही नहीं। एक ओर वीर सावरकर का बड़ा सा चित्र पुष्पहार से सज्जित। दो बजकर ग्यारह मिनट हुए ही थे और उधर से सूरज मैदान से संचलन में आते हुए स्वयंसेवक नजर आ गए। माहौल में जैसे कोई जादू सा हो गया। उत्साह और हर्ष अपनी सीमाएं तोड़ चला, स्वयंसेवक हाथ जोड़-जोड़कर लोगों को थोड़ा पीछे होने को कहते थे, पर आनन्द के आगे किसका वश! 2.13 बजे नहीं कि जयपुरिया विद्यालय से निकला संचलन रामबाग चौराहे के मुहाने तक आ पहुंचा, उधर त्रिमूर्ति होते हुए दो संचलन सम्मिलित रूप में रामबाग चौराहे की ओर बढ़ते दिखे। इधर घड़ी में 2.14 बजे और उधर तीन दिशाओं के संचलनों का मिलन हुआ। तीनों दिशाओं की वाहिनियों के मुख्य शिक्षक एक साथ और कंधे से कंधा मिलाते हुए, भिन्न दिशाओं की वाहिनियों के स्वयंसेवक अम्बेडकर सर्किल की ओर बढ़ चले। तीन धाराओं का मिलन। 16 पंक्तियों का एक साथ संचलन। चौराहे पर "भारत माता की जय' के गगनभेदी उद्घोष। संचलनों पर फूलों की पंखुरियों की वर्षा होने लगी। यूं लगा जैसे घोष की ताल से कदम मिलाते स्वयंसेवकों का मानो सागर एक दिशा में बढ़ता जा रहा था। किनारे खड़े लोगों में कुछ उत्साही युवक वहां खड़े स्वयंसेवकों के साथ उद्घोष कर उठे-"कौन चले, भई कौन चले, भारत मां के लाल चले'। भारत मां के हजारों लाल एक साथ, एक ताल में, कंधे से कंधा मिलाकर बढ़ रहे थे। उनके कदमों में लम्बी राह की थकान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता के रक्षार्थ शौर्य का भाव झलक रहा था। माथे पर पसीने की बूंदें, कड़ी धूप से लाल हुए चेहरे और पसीने से तर सफेद कमीज, लेकिन संचलन में सुघड़, दृढ़ और पंक्तिबद्ध स्वयंसेवक। गणवेश पहने राष्ट्र सेविका समिति की बहनें पुष्प-वर्षा कर रही थीं, नारे लगा रही थीं। विभिन्न समाचार पत्रों व टेलीविजन चैनलों के छायाकार इस अनूठे दृश्य को कैमरों में कैद करने को उतावले थे।
संचलनों का समापन सार्वजनिक समारोह स्थल अमरूदों का बाग के निकट स्टेच्यु सर्किल, सहकार भवन व रामबाग चौराहे के आगे हुआ। उसके बाद स्वयंसेवक कार्यक्रम स्थल की ओर बढ़े। हमने एक ऊंचे स्थान से वह दृश्य देखा। दण्ड और टोपियों का अथाह सागर। कहीं ओर-छोर नहीं। शाम 4 बजे सार्वजनिक समारोह आरम्भ हुआ। 12 फुट ऊंचे मंच पर क्षेत्र संघचालक श्री ओम प्रकाश आर्य व प्रांत संघचालक श्री वीरेन्द्र प्रसाद अग्रवाल के साथ सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन बैठे। मंच के बाईं ओर छायाकारों के लिए ऊंचा स्थान बनाया गया था और उसके सामने नीचे पत्रकारों के बैठने की व्यवस्था। मंच के दाईं ओर विशिष्ट आमंत्रितों के
मंच के विचार सुनते स्वयंसेवक का-एक विहंगम दृश्य
सबल भुजाओं में रक्षित है नौका की पतवार चीर चलें सागर की छाती, पार करें मंझधार
लिए कुर्सियां लगाई गई थीं। श्री भैरोंसिंह शेखावत के साथ केन्द्रीय संचार राज्यमंत्री श्री तपन सिकदर बैठे थे। और अमरूदों के बाग का तो दृश्य ही अनोखा था। अग्रिम पंक्ति तो दिखाई देती थी, परन्तु मैदान के दूर कोने पर अंतिम पंक्ति का अनुमान मुश्किल था। 62,052 गणवेशधारी स्वयंसेवकों के अलावा 31,935 आम नागरिक भी उपस्थित थे, जिनमें 28,743 पुरुष थे और 3,192 महिलाएं।
अमरूदों का बाग 7 दिन पूर्व तक एक बंजर भूखण्ड था, कंटीली झाड़ियों व कूड़े-करकट के ढेर वहां लगे थे। राज्य सरकार के सौतेले व्यवहार के कारण निकट का सवाई मानसिंह स्टेडियम उपलब्ध न हो सका था। तब प्रयास हुए और अमरूदों का बाग सुनिश्चित किया गया। स्वयंसेवकों ने दिन-रात अथक परिश्रम कर उस अशोभनीय भूखण्ड को समतल करके फूल-पौधे लगाकर समारोह स्थल तैयार कर लिया था।
सरसंघचालक का विस्तृत उद्बोधन हुआ, जिसमें उन्होंने हिन्दू संस्कृति, हिन्दू दर्शन, शिक्षा नीति, आतंकवाद व राष्ट्र रक्षा पर विचार रखे। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की रक्षा के लिए जहां अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों की जरूरत है, वहीं प्रखर राष्ट्रनिष्ठा भी जरूरी है। (श्री कुप्.सी. सुदर्शन का विस्तृत वक्तव्य पढ़ें पृष्ठ 14 पर)
शाम को करीब छह बजे कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। बाहर से आए स्वयंसेवकों को भोजन पैकेट वितरित किए जाने थे। लेकिन उसके लिए कोई आपा-धापी नहीं, भाग-दौड़ नहीं। प्रत्येक नगर का एक स्वयंसेवक अपने स्वयंसेवक साथियों के लिए पैकेट ले जाकर वितरित कर रहा था, कुछ तो अपने वाहनों में ही वितरण कर रहे थे। विसर्जन के बाद एक बार फिर जयपुर के सभी मार्ग वापस लौटते हुए स्वयंसेवकों से पट गए। टोलियों में लौटते हुए स्वयंसेवकों के कदमों में थकान नहीं दिख रही थी, बल्कि वे या तो संघ गीत गुनगुनाते हुए चल रहे थे या जयघोष-"भारत माता की जय'। उधर सूर्य देव भी पश्चिम दिशा में गहरे उतरे जा रहे थे, गोधूलि की इस वेला पर वह अद्भुत दृश्य, बस अनुभव ही किया जा सकता था, उसे शब्दों में बांधना संभव ही नहीं है। जयपुर का आतिथ्य धर्म
राष्ट्र शक्ति संगम में शामिल होने के लिए बाहर से आए हजारों स्वयंसेवकों को शहर के पैंतीस हजार परिवारों से एकत्रित भोजन करवाया गया। भोजन एकत्रित करने के लिए शहर की 142 संघ शाखाओं के स्वयंसेवकों की 950 टोलियां बनाई गई थीं। इन टोलियों ने घर-घर जाकर भोजन बांधने के लिए थैलियां वितरित की थीं। बस्तियों में भोजन एकत्र करने के लिए करीब एक हजार केन्द्र बनाए गए थे। प्रत्येक परिवार से दो स्वयंसेवकों का भोजन पैकेट तैयार करने का आग्रह किया गया था, लेकिन सैकड़ों परिवारों ने तीन या अधिक पैकेट तैयार किए।
संचलन में शामिल होने से पहले शहर के स्वयंसेवकों ने 13 अक्तूबर को सुबह नौ से दस बजे के बीच बस्तियों से भोजन पैकेट इकट्ठे किए और अमरूदों का बाग पहुंचाए।