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*🔥सूर्य के वेधस्थान-:🔥*
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*लाभविक्रमखशत्रुषु स्थितः शोभनो निगदितो दिवाकरः।*
*खेचरैः सुततपोजलान्त्यगैः व्यार्किभिर्यदि न विदघ्यते तदा।।*
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*३|६|१०|११ स्थानों में सूर्य शुभ फल देता है, ऐसा विद्वानों ने कहाँ है, लेकिन यह शुभ फल तभी होगा जब ५|९|४|१२ भावों में कोई ग्रह ना हों। शनि होने से शुभ फल स्थगित नहीं होगा।*
*तृतीयगत सूर्य तभी शुभ फल देगा जब नवम में शनि रहित कोई ग्रह ना हो। षष्ठ स्थान में स्थित सूर्य तभी शुभ होगा जब १२ वें भाव में कोई शनि रहित ग्रह ना हों। इसी तरह दशम का चतुर्थ स्थान और एकादश का पंचम स्थान वेधस्थान है।*
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*पिता-पुत्र का वेध नहीं-:*
*सूर्य का पुत्र शनि है, तथा चन्द्रमा का पुत्र बुध है। अतः सूर्य या चन्द्रमा के वेधस्थानों में यदि क्रमशः शनि व बुध हों या शनि-बुध के वेधस्थानों में क्रमशः सूर्य व चन्द्र हों तो वे वेध नहीं करते है।*
*वेध होने पर ग्रह अपने शुभफल को स्थगित कर देता है। इसका आशय यह कभी नहीं है कि वेधस्थानों में ग्रह होने पर शुभ भी अशुभ हो जाएगा।*
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*विध्दे सति ग्रहे शुभस्य स्थगनमात्रम् ।*
*न तत्राशुभस्यादेशः। अपितु विध्दो ग्रहः स्वस्य शुभं फलं स्थगयतीति मात्रम्।*(मिश्रः)
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*सूर्य के वेधस्थानों में यदि राहू-केतु हों तो भी शुभफल स्थगित नहीं होता है। क्योंकि राहू-केतु को भी शनि की तरह ही समझा जाता है।*
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*राहूकेतुफलं सर्वं मन्दवत् कथितं बुधैः।*
*वेधोऽपि तदवदेवोह्यो वामवेधस्तथैव च।।*
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