*किस दिशा मे #विवाह होगा*

*विवाह की #दिशा और #ससुराल की दूरी*

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ससुराल की दूरीः- सप्तम भाव में वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ राशि स्थित हो, तो लड़की की शादी उसके जन्म स्थान से 90 किलोमीटर के अंदर ही होगी।

यदि सप्तम भाव में चंद्र, शुक्र तथा गुरु हों, तो लड़की की शादी जन्म स्थान के समीप होगी।

यदि सप्तम भाव में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर हो, तो विवाह उसके जन्म स्थान से 200 किलोमीटर के अंदर होगा।

अगर सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन राशि स्थित हो, तो विवाह जन्म स्थान से 80 से 100 किलोमीटर की दूरी पर होगा।

यदि सप्तमेश सप्तम भाव से द्वादश भाव के मध्य हो, तो विवाह विदेश में होगा या लड़का शादी करके लड़की को अपने साथ लेकर विदेश चला जाएगा।

शादी की आयुः- यदि जातक या जातिका की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में सप्तमेश बुध हो और वह पाप ग्रह से प्रभावित न हो, तो शादी 17 से 18 वर्ष की आयु सीमा में होता है।

सप्तम भाव में सप्तमेश मंगल पापी ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो शादी 27-28 वें वर्ष में होगी। सप्तम भाव को सभी ग्रह पूर्ण दृष्टि से देखते हैं तथा सप्तम भाव में शुभ ग्रह से युक्त होकर चर राशि हो तो जातिका का विवाह दी गई आयु में संपन्न हो जाता है।

यदि किसी लड़की या लड़के की जन्मकुंडली में बुध स्वराशी मिथुन या कन्या का होकर सप्तम भाव में बैठा हो, तो विवाह बाल्यावस्था में होगा।

आयु के जिस वर्ष में गोचरस्थ गुरु लग्न, तृतीय, पंचम, नवम या एकादश भाव में आता है, उस वर्ष शादी होना निश्चित समझना चाहिए। परंतु शनि की दृष्टि सप्तम भाव या लग्न पर नहीं होनी चाहिए। अनुभव में देखा गया है कि लग्न या सप्तम में बृहस्पति की स्थिति होने पर उस वर्ष शादी हुई है।

कब होगाः- यह जानने की दो विधियां यहां प्रस्तुत हैं। जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में स्थित राशि अंक में 10 जोड़ दें। योगफल विवाह का वर्ष होगा। सप्तम भाव पर जितने पापी ग्रहों की दृष्टि हो, उनमें प्रत्येक की दृष्टि के लिए 4-4 वर्ष जोड़ योगफल विवाह का वर्ष होगा। पति का अपनाः- लड़की की कुंडली में दसवां भाव उसके पति का भाव होता है। दशम भाव अगर शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो या दशमेश से युक्त या दृष्ट हो, तो पति का अपना मकान होता है।

पति का मकान बहुत विशालः- राहु, केतु, शनि से भवन बहुत पुराना होगा। मंगल ग्रह में मकान टूटा होगा। सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु एवं शुक्र से भवन सुंदर, सीमेंट का दो मंजिला होगा। अगर दशम स्थान में शनि बलवान हो तो मकान बहुत विशाल होगा।

विदेश में पति या ससुरालः- यदि सप्तमेश सप्तम भाव से द्वादश भाव के मध्य हो तो विवाह विदेश में होगा या लड़का शादी करके लड़की को अपने साथ लेकर विदेश चला जाएगा। कुंडली में जहां शुक्र स्थित है उस से सातवें स्थान पर जो राशि स्थित है उस राशि के स्वामी की दिशा में ही विवाह होता है।

ग्रहों के स्वामी व उनकी दिशा निम्न प्रकार हैः-

राशि स्वामी दिशा

मेष, वृष्चिक मंगल दक्षिण

वृष, तुला शुक्र आग्नेय कोण

मिथुन, कन्या बुध उत्तर

कर्क चंद्रमा वायव्य कोण

सिंह सूर्य पूर्व

धनु, मीन गुरु ईशान

मकर, कुम्भ शनि पश्चिम

मतान्तर से मिथुन के स्वामी राहु व धनु के स्वामी केतु माने गए हैं तथा इनकी दिशा नैऋत्य कोण मानी गयी है।

उदाहरण के लिए किसी कन्या का जन्म लग्न मेष है व शुक्र उसके पंचम भाव में बैठे हैं तो शुक्र से 7 गिनने पर 11 वां भाव आता है, जहां कुम्भ राशि है। इसके स्वामी शनि हैं। राशि की दिशा पश्चिम है। इसलिए इस कन्या का ससुराल जन्म स्थान से पश्चिम दिशा में होगा।

कन्या के पिता को चाहिए कि वह इस दिषा से प्राप्त विवाह प्रस्तावों पर प्रयास करें ताकि समय व धन की बचत होकर सहायता मिल जाती हैं।

विवाह दिशा निर्धारण में विद्वानों के दो मत हैं। प्रथम मत के अनुसार शुक्र के सातवें स्थान का स्वामी जिस दिशा का अधिपति होता है, उसी दिशा में कन्या (बेटी) का विवाह होता है। दूसरे मत के अनुसार सप्तमेश जिस ग्रह के घर में बैठा होता है, उस ग्रह की दिशा में ही कन्या का विवाह होता है। प्रकारान्तर से दोनों मत मान्य हैं।

प्रथम मत कभी-कभी गलत भी हो सकता है परन्तु दूसरा मत बड़ा ही सटीक है। अतः इसी मत के विषय में यहां विस्तार से बताया जा रहा है। सप्तमेश अगर सूर्य हो और वह अपनी ही राशि में बैठा हो अथवा कोई भी ग्रह सप्तमेश होकर सिंह राशि में बैठा हो तो पूर्व दिशा में विवाह होगा अथवा इसके ठीक उल्टा पश्चिम दिशा में होगा। सप्तमेश अगर कर्क राशि में बैठा हो तो पश्चिमोत्तर दिशा में अर्थात वायव्य कोण में अथवा इसके ठीक विपरीत अग्निकोण (पूर्व-दक्षिण के कोण) पर विवाह का योग होता है। सप्तमेश यदि मंगल की राशि मेष अथवा वृश्चिक में बैठा हो तो दक्षिण दिशा में अथवा इसके ठीक विपरीत उत्तर दिशा में विवाह होता है।

सप्तमेश यदि बुध की राशि मिथुन अथवा कन्या में बैठा हो तो उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में कन्या का विवाह होना बताया जाता है। सप्तमेश अगर गुरू की राशि धनु अथवा मीन में हो तो विवाह ईशान कोण अर्थात पूर्वोत्तर (नैत्रृत्य) दिशा में विवाह होने का योग बनता है। सप्तमेश यदि शुक्र की राशि वृष या तुला में स्थित हो तो विवाह आग्नेय (पूर्व-दक्षिण) अथवा वायव्य (पश्चिमोत्तर) दिशा में होता है। सप्तमेश अगर शनि की राशि मकर अथवा कुम्भ में स्थित हो तो पश्चिम दिषा अथवा ठीक उल्टा पूर्व दिशा में विवाह होना चाहिए।

दिशा निर्धारण के बाद कन्या के ससुराल की दूरी को इन विधियों से जाना जा सकता है। इसके लिए सप्तमेश अंशों को देखा जाता है तथा सूर्यादि ग्रहों की गति को भी जानना आवश्यक होता है। सप्तमेश जितनी यात्रा कर चुका हो, उतने ही किलोमीटर की दूरी पर विवाह हो सकता है। अंश का निर्धारण बहुत ही सावधानी पूर्वक किया जाता है। सप्तमेश चन्द्रमा से जितने घर आगे होगा, उतने ही प्रति घर तीस डिग्री के हिसाब से दिशा में परिवर्तन होगा। सप्तमेश जिसके गृह में बैठा होगा, उसी के अनुसार वर या कन्या का घर होगा।

मान लें कि सप्तमेश शनि स्वगृही है या अन्य कोई भी ग्रह सप्तमेश होकर शनि के घर में बैठा हो तो निश्चित रूप से वर या कन्या का घर टूटा-फूटा या पुराना खण्डहर जैसा होगा अथवा ऐसा होगा जिसमें नौकर रहते थे या निंदनीय कार्य करने वाले लोग रहते रहे थे। यह मात्र एक उदाहरण था। इसी प्रकार अन्य ग्रहों के प्रभाव के कारण भी होता है। यदि सप्तमश सूर्य के घर में बैठा हो तो ससुराल वाले घर के समीप शिव का मन्दिर अवश्य होगा।

सप्तमेश अगर कर्क राशि (चन्द्र के गृह) में बैठा हो तो कन्या का ससुराल किसी नदी या जल के समीप स्थित होगा। उस मकान में अथवा मकान के निकट दुर्गा जी का मंदिर अवश्य होना चाहिए। यह भी संभव है कि उस स्थान के निकट शराब या दवा निर्माण का भी कार्य होता हो। कन्या के ससुराल के लोग दुर्गा माता के भक्
सप्तमेश अगर (मंगल के गृह) मेष अथवा वृश्चिक में बैठा हो तो कन्या के ससुराल में या उसके घर के निकट अग्नि से संबंधित व्यवसाय (रेस्टोरेन्ट, चाय की दुकान) होगी। सप्तमेश यदि (बुध के घर) मिथुन अथवा कन्या राशि में बैठा हो तो कन्या के परिवार वाले पढ़े-लिखे एवं विष्णु के भक्त होते हैं। कन्या की सास या ससुर का चरित्र संदिग्ध होता हैं। कन्या को सास-ससुर से बचकर ही रहने की सलाह ज्योतिष शास्त्र देता है। सप्तमेश अगर वृहस्पति की राषि धनु अथवा मीन में बैठा हो तो कन्या का विवाह किसी तीर्थ स्थल में होना संभव होता है। ससुराल के लोग शिव भक्त होते हैं सप्तमेश अगर वृहस्पति की राशि धनु अथवा मीन में बैठा हो तो कन्या का विवाह किसी तीर्थ स्थल में होना संभव होता है। ससुराल के लोग शिव भक्त होते हैं।

सप्तमेश अगर शुक्र की राशि वृष अथवा तुला में बैठा हो तो जातक के ससुराल के निकट कोई नदी होती है तथा ससुराल पक्ष के लोग देवी के भक्त होते हैं। ससुराल के व्यक्ति व्यापारी तथा खुशहाल होते हैं। सप्तमेश भले ही किसी भी राशि में बैठा हो और वह राहू से संयुक्त हो तो ससुराल के लोग पितृ पक्ष मे कमजोर होते हैं।

अगर सप्तमेश केतु से प्रभावित हो तो ससुराल के लोग पितृ पक्ष से आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं। विवाह के पश्चात कन्या काफी सुखी रहती है तो वह मालकिन बनकर ससुराल वालों के हृदय पर राज्य करती रहती है