जय श्री बालाजी
पंचम भाव
सबसे प्यारा भाव। हो भी क्यो न हो। प्रेम का भाव जो है। पूर्वजो का भाव जो है। पुत्र पुत्री का भाव जो है और इनसे प्यारा ओर कौन है। बूद्धि का भाव जो है। धर्म कर्म का भाव जो है।
धर्म, बूद्धि, संतान, पित्र, आने वाला जन्म, अचानक धन प्राप्ति, सट्टा, लाटरी, प्रेम, मंत्री, मंत्र आदि आदि।
बूद्धि जैसी होगी वैसा ही तो काम करेंगे मंगल तर्क पूर्ण बूद्धि डेगा। गुरु परिपक्वता वाली बूद्धि। शुक्र एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी बूद्धि। पूर्वजो से ज्योतिष डेगा। शनी स्थिर बूद्धि। गंभीर बूद्धि। राहु गजब बूद्धि। ककेतु सूक्ष्म बूद्धि। चन्द्र तो बहुत प्यार यहां। चलायमान बूद्धि। ओर बुध के तो कहिने ही क्या यह। यहां स्वग्रही उच्च का बुद्ध बिना गयरु के ही जातंक या जातिका को विकसित कर देता है। बुध बूद्धि के साथ ग्रहण करने की क्षमता भी है अतः जातक इतनी स्पीड से ग्रहण करेगा विद्या को की पूछ्यो मत।
पंचम भाव ये तय करेगा कि आपकी बूद्धि कैसी है। शिक्षा में आपजे कितने नंबर आएंगे। पढ़ाई में आपका जितनी बूद्धि लगती है। आपकी शिक्षा की क्वालिटी को तय करेगा यही पंचम भाव। कोई घंटो पढता रहता है। कोई कम। राहु बुद्ध सेकंडों में बात समझा देते है बाकी के ग्रह अपने हिसाब से।
यर जो शेयर के रोज़ के लेट दें करते है। वो भी तो यही से देखे जाएंगे। सट्टे का काम जो रोज़ का होता है।
पूर्वज भी तो यही से देखेंगे। पूर्वजो का कितना आशीर्वाद है।
संतान पक्ष का भाव है ये तो सबको पता है।
प्रेम का भाव सप्तमेश के साथ युति द्रष्टि स्थान परिवर्तन लव लव लव 86 देगा।
शनी ककेतु प्यार में धोखा। वही ऐसा क्या गुनाह किया जो लूट गए। हा लूट गए तेरी मोहब्बत में। तड़फ तड़फ के इस दिल से आह निकलती रही।
पाप ग्रह लज्जित दोष का निर्माण इसीलिए तो करते है यहां।
आपके आराध्य देवता या देवी यही से पता लगा लो।
आपकी बूद्धि। परिवार का सुख। पराक्रम का पराक्रम। माता का धन। रोग का नाश। बीवी का लाभ। मृत्यु का कर्म। भाग्य का भाग्य। कर्म की मृत्यु। लाभ का प्रतिद्वंदी। नाश का रोग भाव जो है।
पंचम भाव हमारी विद्या, बुद्धि, पुत्र और पुत्री, योजनाओ का आदि आदि होता है. पंचम भाव से हम देखते है की हम किसी भी चीज की कितनी योजनाये बना सकते है......अब देखिये ज्यो ज्यादातर मंत्री होते है उनका ये भाव बलि रहता है..क्योंकि क्योंकि एक मंत्री एक जगह बैठ कर योजनाये बनता है...अब देखिये दसम भाव कर्म का और उसका मृत्यु भाव पंचम भाव...और ६ भाव प्रतियोगिता और नोकरी का उसका नाश भाव पंचम.....तो इस तरह पंचम भाव दसम और षष्टम से बलि है तो ऐसा जातक या जातिका बैठ के योजनाये बनाने में निपुण होता है....और एक मंत्री के लिए यही तो चाहिए....किसी भी विचारनीय भाव या गृह से पंचम भाव उसकी बुद्धि , योजना और विद्या का होता है....जैसे दसम कर्म का है तो हम उस कर्म को कितना जानते है उसके लिए २ भाव को देखिये २ भाव बलि है तो हम अपने काम को पूर्ण रूप से जानकार होंगे..जैसे कुछ लोग बोलते है न की में अपने काम की पूरी जानकार रखता हु...अपने काम का मास्टर हु.....इसी तरह देखिये की २ भाव भोजन का है भोजन की योजना ६ भाव ..अतः ६ भाव में बैठे गृह या राशी बताएँगे की हमे खाने का क्या शोख है....६ भाव में शनि चन्द्र..या चन्द्र रहू शराब की तरफ धलेलते है......इसी तरह बता सकते है ६ भाव के हिसाब से हम क्या खाते है क्या नहीं....अष्टम गूढ़ ज्ञान का...अष्टम का विद्या स्थान १२ भाव...अतः १२ भाव में शनि रहू या इनकी द्रष्टि हमें तंत्र की तरफ आकर्षित करती है....इसी तरह हम पंचम भाव से बहुत कुछ जान सकते है।
पंचम भाव पितरों का। सूर्य चन्द्र राहु केतु। पित्तरों के आशीर्वाद से शायद वही मिलता है जो भगवान के आशीर्वाद से मिलता है। पितृ दोष होना या तो आम बात हो गयी है या फिर इसका हव्वा खड़ा किया गया है।
लेकिन कुछ भी हो पित्तरोबक आशीर्वाद बहुत जरूरी है।
पीड़ित पंचम भाव हमारे पूर्वजों ओर पूर्व जन्म के धर्म और भाग्य को दर्शाता है।
पित्र सेवा और पित्र तर्पण जरूर करना चाहिए।
पंचम में पाप ग्रहों की युति लज्जित दोष का निर्माण करते है।
पीड़ित चन्द्र या सूर्य भी पित्र दोष का ही निर्माण करते है।
राहु केतु तो सीधा सीधा बात देते है कि पित्तरों की कृपा है कि नही।
पंचम का बुध भी एक तरह से पित्र दोष का निर्माण करता है।
मतलब काल सर्प हो या पित्र दोष सब राहु केतु की वजह से ही बनते है।
तो आराध्य देवता या देवी के साथ पित्रो की सेवा भी करना चाहिए। और कुलदेवता ओर देवी को तो कभी भी नही भूलना चाहिआ।
ये तो हम सबको पता है की पंचम भाव लाटरी और सट्टे का भी है.....एक बात और सोचने योग्य है की नवं से नवं होने के कारण ये भाव भाग्य देखने के लिए विशेष विचारणीय है.....नवं भाव भाग्य का है और भाग्य मतलब ये ही हो गया है...देव कृपा से...अचानक रूपसे ..आशातीत रूप से..आधिकारिक न होते हुए भी जब हमको कोई वास्तु..धन अथवा पदवी मिल जाती है ...अतः उसे जनता का धन कहना ही उपुक्त होगा...और ऐसे हम देखे तो चतुर्थ जनता का भाव हुआ और जनता का धन भाव पंचम भाव ही हुआ...
लाटरी में हम देखे तो ये घटना अचानक ही घटित होती है...हम इनाम की आशा भी नहीं करते और हमें मिल जाए ....इनाम का प्राप्त होना एक अचानक घटना होती है..और अचानक प्राप्त हुई वस्तुओ के लिए राहू और केतु नाम के दो छाया गृह विशेष रूप से विख्यात है.....तो इस तरह राहू केतु का सम्बन्ध पंचम भाव से हो जाए तो वारे न्यारे हो जाए...पंचमेश बलवान होकर केंद्र या त्रिकोण में आ जाए तो क्या काहने....बुध भी शीघ्र फल देने में समर्थ है...अब यदि एक कदम और आगे बढे तो बुध पंचमेश होकर बलवान हो और राहू से सम्बन्ध बन जाए तो शिघ्राती शीघ्र बात बन जाए।
गुरु जब मीन राशी में पंचम में हो तो अल्प संतति देते है....धनु में हो तो बहुत प्रयास के बाद देते है...कर्क और कुम्भ राशी में होने पे गुरु संतति नहीं देते..ऐसे ही फल पंचम भाव में कर्क..मीन...कुम्भ या धनु राशी में होने पे संतति सुख नहीं देते...लेकिन बाकी पंचमेश और युति और द्रष्टि सम्बन्ध भी देख लेना चाहिए..खली एक गुरु के उपर कुछ भी नहीं बोलना चाहिए...
एक बात हमेशा ध्यान रखे की गुरु सिंह राशी में निर्बल हो जाते है...जबकि गुरु और सूर्य परम मित्र है.....इसके पीछे एक तर्क तो ये है की गुरु मंत्री है और सूर्य रजा...तो राजा के घर में गुरु कैसी स्थान हानि करेंगे....और एक तर्क ये है की गुरु अपनी उच्च राशी कर्क से निकल कर नीच राशी गत होता है....इसी कारण गुरु पंचम में सिंह राशी में स्थान हानि नहीं करते....वही कुम्भ राशी राजा के गृह से सबसे अधिक दूर होने से वह वे अपने स्थान भ्रष्ट करने के स्वभाव का पूर्ण प्रभाव दिखाते है...
सिर्फ गुरु के इन परिस्थतियो के आधार पर ही फलित नहीं करना चाहिए......कहा जाता है की पंचम का गुरु यदि मंगल और सूर्य से दृष्ट है तो भी स्थान हानि नहीं कर पाटा......अगर कर्क का गुरु चंद्रमा से दृष्ट या फिर कुम्भ का गुरु शनि से दृष्ट है तो भी गुरु के योग विफल हो जायेंगे.....पंचम भाव पर पंचमेश की द्रष्टि भी उस भाव को बल देगी..अतः इन प्रिश्तियो में योग विफल हो जाएगा..ये तो हम सब जानते ही है की पूर्ण कुडंली अध्यन के बाद ही पूर्ण फलादेश किया जा सकता है..यहाँ तो हम सिर्फ गुरु के पंचम में होने की स्थितियों पे चर्चा ही कर रहे है सिर्फ....
भाव..भावेश..भाव कारक सबके अध्यन के बाद ही फलित करना चाहिए...
हरीश मिश्र
श्री मारुती astro वर्ल्ड