चन्द्र कृतोरिष्ट भंग योग
परिभाषा--(१)पूर्ण चन्द्र शुभ ग्रह में या शुभ अशों में होतो कुडंली में चन्द्र कृतोरिष्ट भंग योग बनता है।
(२) चन्द्र वृषभ या कर्क राशि में हो या मित्र राशि में, शुभ वर्ग में या शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो यही योग बनता है।
(३) शुक्ल पक्ष में रात्रि में जन्म हो या कृष्ण पक्ष में दिन में जन्म होतो यही योग बनता है।
फल--कुडंली में ६ठे,८वें चन्द्र, हो या चन्द्र द्वारा कुडंली में अरिष्ट होतो इस प्रकार का योग बनने पर चन्द्र से बना अरिष्ट नष्ट हो जाता है।
टिप्पणी---कुडंली में जिन स्थितयों में चन्द्र अरिष्ट करता है वे इस प्रकार है।
(१) कुडंली में छठे या आठवें भाव में पड़ कर।
(२)-सूर्य के साथ बैठ कर(अस्त हो कर)
(३)सूर्य से सप्तम स्थान हो कर
(४)शत्रु क्षेत्री हो कर या शत्रु ग्रह की राशि में होने से।
(५) शत्रु ग्रह के साथ होने से।
(६)शत्रु ग्रह से दृष्ट होने पर।
इन छ:स्थितयों में होने से चन्द्र शुभ फल नही देते।यह सब ग्रहों से तेज़ चलता है और पृथवी के अति निकट भी है अत: चन्द्र का सर्वाधिक गहरा प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है।और अशुभ चन्द्र जातक की भाग्योन्नति में रोडे़ अटकाता रहता है।
परन्तु ऊपर जो चन्द्र कृतोरिष्ट भंग योग दिए गए हैं, उन में से कोई भी कुडंली में होने से चन्द्रमा का अरिष्ट समाप्त हो जाता है और वह शुभ प्रदाता बन जाता है।