ज्योतिष चर्चा
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मकर राशि एवं लग्न सम्पूर्ण परिचय
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(भो, ज, जी खी खू, खे, ग, गी)
यदि किसी जातक को अपने जन्म की तारीख वार समय आदि का विवरण ज्ञात नही है। तो वह अपने नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार अपनी राशि निर्धारित कर सकते हैं।
मृग वदने लग्नस्थे कृशगामो भीरुरेण वक्त्रश्च।
वात व्याधिभिरार्त: प्रदीप्त चक्षु तुंगोग्र नास: स्यात।।
धीरो विचक्षण: क्लेशी पुत्र वान्नृपति प्रिय:।
कृपालु सत्य सम्पन्नों वदान्यो सुमगो लास:।।
अर्थात मकर लग्न में उत्पन्न जातक दुर्बल एवं कृषि शरीर, कुछ डरपोक प्रकृति, हिरण के समान मुख वाला, वायु जनित रोग की संभावना अधिक, चमकीली आंखें, ऊंची नाक वाला, अल्प संतति, धैर्यवान, विभिन्न कलाओं एवं विधाओं का जानकार अर्थात सुपठित व्यक्ति होता है। ऐसा व्यक्ति सुप्रतिष्ठित, परोपकारी एवं पुत्र आदि संतान से युक्त, सत्य प्रिय एवं दान शील स्वभाव का होता है। शनि क्षीण हो तो जातक में आलसी होने की प्रवृत्ति भी होती है।
आकाश मंडल में मकर राशि चक्र की दसवी राशि मानी जाती है। नक्षत्र मंडल में मेश सम्पात बिंदु से इसका विस्तार 270 अंश से 300 अंश तक माना जाता है। मकर राशि का प्रतीकात्मक चिन्ह मकर और हिरण का मिश्रित रूप है। अर्थात इस राशि के ऊपर का मुख हिरण के समान है तथा नीचे का आधा भाग मगरमच्छ के सदृश दिखाई देता है। यह राशि पृथ्वी तत्व वाली चर राशि और स्त्री संज्ञक है। इस राशि का स्वामी शनि है। इस राशि के अंतर्गत उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अंतिम तीन चरण (भो,जा,जी) श्रवण के चारों चरण (खी, खू, खे, खो) आते है तथा धनिष्ठा के प्रथम दो चरण (गा, गी) आते हैं।
जातक की लग्न राशि के अतिरिक्त जन्म नक्षत्र एवं उसके स्वामी तथा नाम राशि का भी जातक के व्यक्तित्व एवं जीवन पर विशेष प्रभाव होता है। जैसे उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का स्वामी मंगल होता है तो किसी जातक का जन्म जिस नक्षत्र में होगा उस जातक की जन्मकुंडली गत ग्रहों एवं राशियों के अतिरिक्त जन्म नक्षत्र का भी जातक के जीवन पर प्रभाव होगा।
काल पुरुष में इस राशि का संबंध हड्डियों अंगों के जोड़ तथा घुटनों से होता है। मंगल इस राशि (मकर) के 28 डिग्री अंशों पर परमोच्च स्थिति में होता है। ग्रह मैत्री चक्र अनुसार मकर राशि शुक्र के लिए मित्र राशि चंद्र, मंगल, बुध एवं गुरु के लिए नीच राशि और सूर्य के लिए शत्रु राशि होती है। गुरु इस राशि के 5 अंश पर नीच माना जाता है।
मकर राशि के अन्य पर्यायवाची नाम👉 मृग, नक्र, कुरंग, मृगास्य, हरिण, कुरंगास्य, मृगवक्त्र, शिशुमार, अजिंयोनि इत्यादि। इंग्लिश में इसे कैप्रिकॉर्न (capricorn) तथा उर्दू में जदी कहते है।
मकर राशि पृथ्वी तत्व प्रधान, चर संज्ञक, चंचल, सौम्य, स्त्री, वैश्य जाति, वात प्रकृति, पिंगल एवं पित्र श्वेत वर्ण, रजोगुणी, रात्रि बली, वैश्य जाति, शीत स्वभाव, पृष्ठोंदई, वृद्धावस्था वाली, रुक्ष शरीर,सम एवं मध्यम शरीर, दक्षिण दिशा की स्वामिनी अर्थात दक्षिण दिशा में बली होती है। इस राशि का पूर्वार्ध चतुष्पद वश्य तथा उत्तरार्ध का वश्य जलचर है।
विशेष गुण/विशेषताएं👉 मकर राशि सेवा और त्याग सहानुभूति एवं समर्पण की राशि मानी जाती है। इस राशि के जातक गंभीर, परिश्रमी, रचनात्मक एवं मौलिक विचारों से युक्त तथा अनुसंधानात्मक, धैर्यवान होते हुए भी प्रतिशोध एवं बदले की भावना से युक्त, कुछ रहस्यात्मक एवं आध्यात्मिक प्रकृति के होते हैं। कुछ परिस्थितियों में मकर लग्न के जातकों में स्वार्थ की भावना विशेष होती है।
सायन सूर्य 22 दिसंबर से 19 जनवरी तक मकर राशि में संचार करता है। सायन सूर्य प्रवेश के आधार पर ही उत्तरायण का प्रारंभ भी आधुनिक काल में प्राय 22 दिसंबर से माना जाता है। जबकि निरयण सूर्य प्रतिवर्ष 14 जनवरी से 12 फरवरी के मध्य मकर राशि में संचार करता है। प्राचीन भारत में (लगभग 50 वर्ष पूर्व) उत्तरायण का प्रारंभ निरयण मकर संक्राति से ही माना जाता था। इस राशि का प्रिय रत्न नीलम है तथा प्रिय धातु लोहा, शीशा, जस्ता, कांसा, पेट्रोल स्टील आदि तथा कोयला, तेल, रबड़ केमिकल, काली मिर्च, तिल चमड़ा आदि होते हैं।
मकर लग्न में शुभाशुभ एवं योगकारक ग्रह
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मकर लग्न में शुक्र केंद्र त्रिकोण का स्वामी होने से विशेष शुभ एवं राजयोग कारक होता है। जातक नरम स्वभाव का तथा सुंदर स्त्री, भूमि, वाहन, धनादि सुखों से युक्त होता है।
सूर्य👉 यहां सूर्य के अष्टम एच होने पर भी विशेष दोष कारक नहीं होता तृतीय पंचम नवम दशम एवं एकादश भाव में शुभ फल देता है अन्य भागों में अशुभ फलदाई होता है
चंद्र👉 2,4,5, 10, 11और वे भाव में शुभ परंतु लग्न तथा अन्य भागों में अशुभ अथवा मिश्रित फल दायक रहता है।
मंगल👉 मंगल सुखेश एवं लाभेश होने से मिश्रित फलदाई होगा 1,3,4,6, 9, 10, तथा 11वें भाव में शुभ तथा अन्य भागों में मिश्रित फल दायक रहेगा।
बुध👉 बुध यहां षष्ठेश होने से अपनी दशा में रोग एवं विघ्नकारक होगा किंतु भाग्येश होने से (कुंडली में शुभ हो तो) जातक को बुद्धिमान व भाग्य में उन्नति भी कराता है। शुक्र के योग से विशेष योग कारक होता है।
गुरु👉 गुरु तृतीय एवं द्वादशेश होने से शुभ फलदाई नहीं हो पाता यदि कुंडली में गुरु स्पष्ट हो तो जातक के स्वभाव को चिड़चिड़ा, तुनक मिजाज तथा पारिवारिक जनों के साथ तनाव देता है। 3, 5, 7, 9, 10 एवं 11 वे भाव में कुछ शुभ फल मिलेगा।
शुक्र👉 शुक्र पंचमेश व कर्मेश होने से शुभ फलदायक 6, 7, 8 एवं 12 विभागों में प्रायः अशुभ फली अन्य भागों में शुभ फल प्रदान करेगा।
शनि 👉 लग्नेश व धनेश होने के कारण शनि (शुभ भाव में हो तो) जातक को धनसंपदा, वाहन आदि सुखों का लाभ देता है 6, 8, 10 एवं 11 वे भाव में अशुभ तथा अन्य भागों में शुभ फल देता है।
राहु👉 कुंडली में राहु अन्य ग्रहों के सहचर्य से शुभाशुभ फल करता है मकर लग्न में राहु 3, 4, 7, 8, 11 एवं 12 वे भाव में अशुभ फल तथा अन्य भाव में शुभ फल करता है।
केतु👉 केतु भी अन्य ग्रहों के सहचर्य से शुभाशुभ फल प्रदान करता है। मकर लग्न में केतु 1,2,5,6,9 एवं दसवें भाव में अपनी दशा कालीन शुभ फल तथा अन्य भागों में अशुभ फल प्रदान करता है।
मकर लग्न के जातक
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(भो, ज, जी खी खू, खे, ग, गी)
यदि किसी जातक को अपने जन्म की तारीख वार समय आदि का विवरण ज्ञात नही है। तो वह अपने नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार अपनी राशि निर्धारित कर सकते हैं।
मृग वदने लग्नस्थे कृशगामो भीरुरेण वक्त्रश्च।
वात व्याधिभिरार्त: प्रदीप्त चक्षु तुंगोग्र नास: स्यात।।
धीरो विचक्षण: क्लेशी पुत्र वान्नृपति प्रिय:।
कृपालु सत्य सम्पन्नों वदान्यो सुमगो लास:।।
अर्थात मकर लग्न में उत्पन्न जातक दुर्बल एवं कृषि शरीर, कुछ डरपोक प्रकृति, हिरण के समान मुख वाला, वायु जनित रोग की संभावना अधिक, चमकीली आंखें, ऊंची नाक वाला, अल्प संतति, धैर्यवान, विभिन्न कलाओं एवं विधाओं का जानकार अर्थात सुपठित व्यक्ति होता है। ऐसा व्यक्ति सुप्रतिष्ठित, परोपकारी एवं पुत्र आदि संतान से युक्त, सत्य प्रिय एवं दान शील स्वभाव का होता है। शनि क्षीण हो तो जातक में आलसी होने की प्रवृत्ति भी होती है।
शारीरिक गठन एवं व्यक्तित्त्व
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मकर लग्न में उत्पन्न जातक बाल्यकाल में सुंदर पतला एवं इकहरा शरीर, सामान्य मध्यम कद, परंतु 16 वर्ष की आयु के बाद शारीरिक गठन में सुधार होकर आकर्षक व्यक्तित्व होता है। मकर जातक का सुंदर कमनिय एवं अंडाकार चेहरा, लंबी एवं ऊंची नाक, तीखे नयन नक्श, पतली कमर, सुंदर बड़ी एवं चमकीली गहरी आंखें, आंखों के गिर्द कुछ कालीमा रहे, शरीर के नीचे का भाग अर्थात (कमर से नीचे) प्राय: कृष होता है। राशि स्वामी शनि शुभ होने से घने, काले एवं कुछ रूखे बाल, बड़ा सिर, मुख कुछ चौड़ाई लिए, दांत भी कुछ बड़े दिखाई देंगे, सुंदर एवं पुष्ट गर्दन तथा कंधों में कुछ झुकाव की प्रकृति होगी, शरीर पर बाल अधिक होंगे, यदि शनि निर्बल हो तो सिर पर बाल कम होंगे, घुटनों पर तिल अथवा चोट आदि का चिन्ह होने की भी संभावना है।
अधिक सूक्ष्म फलादेश के लिए जातक की चलित एवं नवमांश कुंडली, ग्रह गोचर, ग्रह दशा को भी ध्यान में रखना चाहिए।
चारित्रिक विशेषताएं एवं गुण
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मकर लग्न में उत्पन्न जातक तीव्र बुद्धिमान, संवेदनशील, परिश्रमी, स्वतंत्र विचारक, उच्चाकांक्षी, धार्मिक प्रवृत्ति, रचनात्मक एवं मौलिक विचारों से युक्त, गंभीर, अध्ययनशील, सेवाभावी, अपने कार्य व्यवसाय के प्रति दायित्व व निष्ठा रखने वाला, ईमानदार एवं कर्तव्य परायण होता है। शनि, शुक्र और बुध शुभ हो तो जातक विचारशील, मितव्ययी, दूरदर्शी, विवेकशील, भला-बुरा परखने में कुशल, जिस कार्य को करने का संकल्प कर ले उसे पूरी लगन एवं तन्मयता से करने वाला, व्यवहारकुशल, मिलनसार, प्रत्येक कार्य में व्यवसायिक बुद्धि एवं दृष्टिकोण रखने वाला तथा अपने उद्देश्य एवं स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहने वाला होता है। ऐसे जातक अपने दिल की बात जल्दी प्रकट नहीं करते रहस्यों को छिपाने में कुशल होते हैं।
मकर लग्न पृथ्वी तत्व प्रधान एवं चर राशि होने से जातक सहनशील, धैर्यवान, उर्वरक बुद्धि, किसी विषय पर गंभीरता से विचार करने के बाद ही निर्णय लेने वाला तथा निश्चय के बाद शीघ्र ही कार्य पूर्ति के लिए संलग्न हो जाने की प्रवृत्ति, भौतिक उन्नति के लिए प्रयत्नशील, सृजनात्मक क्षमता से युक्त, तीव्र स्मरणशक्ति वाला, दूसरों के द्वारा किए गए उपकार तथा अपकार जल्दी नहीं भुला पाता, इनमें प्रतिशोध की भावना प्रबल होती है। जातक की मानसिक व आत्मिक शक्ति भी तीव्र होती है। अनेक कठिनाइयों एवं विघ्न बाधाओं के होते हुए भी परिश्रमी एवं कार्यशील रहता है। उत्तरदायित्व की भावना के कारण मकर जातक में प्रदर्शन एवं दिखावे की प्रवृत्ति नहीं होती, कुछ रचनात्मक प्रकृति होने के कारण मकर जातक को समझ पाना सरल नहीं होता। इनके जीवन का प्रारंभिक भाग विशेष संघर्षपूर्ण एवं कठिन परिस्थितियों में गुजरता है।
जन्म कुंडली में गुरु एवं शुक्र शुभ हो तो जातक विनम्र स्वभाव वाला, व्यवहार कुशल, नीति के अनुसार आचरण करने वाला, तर्क-वितर्क करने में कुशल, दया भावना से युक्त, परोपकारी स्वभाव, न्यायप्रिय, स्वयं विश्वसनीय होते हुए भी किसी दूसरे पर जल्दी भरोसा ना करने वाला होगा, शुक्र के कारण संगीत गायन कला एवं साहित्य की ओर विशेष रुचि होगी, सौंदर्य अनुभूति भी विशेष होती है। चंद्र, गुरु शुभ हो तो जातक को धार्मिक साहित्य, योग, ज्योतिष, तंत्र आदि विषयों में भी अभिरुचि रहती है। शनि व गुरु के प्रभाव से मकर जातक को प्रदर्शन एवं आडंबर करने की प्रकृति नहीं होती। शनी एक आध्यात्मिक ग्रह है अतः जीवन में पहले कष्ट-दुख देकर बाद में अध्यात्म की ओर जाने को विवश कर देता है। जीवन में बड़ा परिवर्तन करता है।
चंद्रमा और शुक्र शुभ हो तो जातक कल्पनाशील, किसी विषय को शीघ्र समझने की योग्यता, नवीनता एवं परिवर्तन प्रिय, देश विदेश की यात्राएं करने का शौकीन, नई-नई युक्तियों की रचना में कुशल, प्रबंधात्मक योग्यता विशेष होती है। धन-संपदा, मान-सम्मान पद-प्रतिष्ठा आदि प्राप्ति की उत्कृष्ट इच्छा होती है। ऐसा जातक समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए अथक परिश्रम करता है। अपने सामर्थ्य से अधिक मानसिक व शारीरिक परिश्रम करने से कई बार रोगी भी होने की संभावना होती है। चंद्र यदि क्षीण या निर्बली हो तो जातक का मन अस्थिर, चंचल एवं उद्विग्न होता है तथा घरेलू जीवन भी असुखद एवं अशांत रहता है। लग्न में गुरु अशुभ हो तो जातक स्वाभिमानी, वृथा अभिमान करने वाला, शिक्षा के पक्ष में कठिनाइयों एवं संघर्ष के बाद सफलता प्राप्त करने वाला होता है। स्वास्थ्य में कमी, स्त्री सुंदर, सुशील एवं भाग्यशाली होती है। बुध और शनि अशुभ हो तो जातक मिथ्याभिमानी, ईर्ष्यालु, स्वार्थ परक, कठोर, केवल अपनी बात को सर्वोपरि रखने की प्रकृति तथा दूसरों की आलोचना करने वाला एवं असंतोषी प्रकृति का होता है।
स्वास्थ्य और रोग👉 मकर लग्न के जातक की जन्म कुंडली में एवं नवमांश में यदि लग्न में शनि-चंद्र शुभस्थ स्वक्षेत्रीय या उच्च हो अथवा लगन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव दृष्टि आदि से हो तो जातक का स्वास्थ्य अच्छा तथा सुंदर एवं प्रभावी व्यक्तित्व होता है। शुक्र, शनि का शुभ संबंध हो तो त्वचा सुंदर और कोमल होती है। यदि कुंडली में शनि, चंद्र, बुध, सूर्य अशुभ हो तो या लग्न अथवा लग्नेश शनि पर राहु, मंगल आदि अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक के स्वास्थ्य में कमी होती है। उसे उदर एवं त्वचा संबंधित रोग, पित्ताशय में गड़बड़ी, मंदाग्नि, पाचन प्रक्रिया में खराबी, स्नायु दुर्बलता, त्वचा में रूखापन, मानसिक विकृति, खून की कमी, ज्वर, घुटनों पसलियों एवं जोड़ों में दर्द, अनिद्रा, खांसी, शीत, वात आदि रोग तथा पथरी आदि रोगों का भय रहता है। शनि उत्तराषाढ़ नक्षत्र में हो तो हृदय संबंधी, शनी मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा में हो तो पथरी संबंधी, मंगल अनुराधा या धनिष्ठा में हो तो ज्वार या लीवर संबंधी दोष कारक होता है। मकर जातक की कुंडली में यदि मंगल, सूर्य, बुध, शनि आदि अशुभ हो तो जातक को नेत्र एवं मस्तिष्क रोग, अव्यवस्थित रक्तचाप, नाक, कान व गले के रोगों का भय होता है। अशुभ शुक्र एवं शनि के कारण मकर जातक कभी नैराश्य एवं उदासीनता की भावना से पीड़ित होकर नशा आदि व्यसनों से भी ग्रस्त हो सकते हैं।
उपयोगी परामर्श👉 मकर लग्न के जातकों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक गर्म एवं अत्यधिक ठंडी वस्तुओं के सेवन से बचना चाहिए। नियमित व्यायाम, प्राणायाम तथा संतुलित भोजन से वह अनेक रोगों से बच सकते हैं। इसके अतिरिक्त आशावादी चिंतन और सक्रियता को जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।
मकर लग्न की जातिकाये
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मकर लग्न में उत्पन्न युवती का मध्यम कद, सुंदर पतला एवं इकहरा शरीर, बाल्यावस्था में कुछ मोटी परंतु 16 वर्ष की आयु के पश्चात शारीरिक संरचना में सुधार होकर आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी, सुंदर कमनीय कुछ लंबा एवं अंडाकार चेहरा, लंबी नाक, नीली व गहरी आंखें तथा तीखे नयन नक्श, पतली कमर, घने काले एवं कुछ रूखे बाल, शनि बलानवित् हो तो शरीर पर बाल अधिक होंगे, शनि यदि निर्बली हो तो सिर पर बाल कम होंगे, लग्नस्थ शनि होने पर घुटनों पर तिल-मस्से या चोट आदि का निशान होगा। व मकर जातिका नारी सुलभ, शहद सौंदर्य आकर्षण से युक्त होती है।
स्वभावगत विशेषताएं👉
मृगोदये स्त्री सुभगा सुसत्या, तीर्थानुरक्ता हतशत्रुपक्षा।
प्रधान कृत्या प्रथिता च लोके, गुणान्वित पुत्रवती सदैव।।
मकर लग्न की जातिका तीव्र स्मरण शक्ति रखने वाली, बुद्धिमान, महत्वकांक्षी, मितव्ययी, विचारशील, स्वतंत्रता प्रिय, धार्मिक विचार वाली, भाग्यशालीनी, सत्य निष्ठा, ईमानदार, तीर्थों आदि धार्मिक स्थलों पर जाने की इच्छुक, सब कामों में प्रमुख रहने वाली, अग्रणी, विनम्र स्वभाव, गुणवती, पुत्रआदि संतान सुख तथा नारी सुलभ सौंदर्य आकर्षण से युक्त, आत्मविश्वास संयुक्ता एवं व्यवहार कुशल होती है।
ऐसी जातिका कर्तव्य परायण, अध्ययन शील प्रकृति, रचनात्मक कार्यों में रुचि रखने वाली, स्वाभिमानी, सिद्धांतवादी, किंतु आलोचनात्मक प्रकृति, तर्क-वितर्क करने में कुशल, किसी के साथ मित्रता बहुत सोच विचार के बाद करती है। प्रायः अंतर्मुखी प्रकृति होती है। अंतरंग मित्रों की संख्या भी कम होती।
पृथ्वी तत्व प्रधान राशि होने से मकर जातिका धैर्यशील, परिश्रमी, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए उपकार को ना भुलाने वाली, परोपकारी प्रवृत्ति, बुरा-भला परखने में अपूर्व क्षमता रखने वाली, जिस काम को करने का संकल्प कर ले उसे पूरी लगन एवं तन्मयता से करने वाली, अतिथि सेवा करने में तत्पर, अपने स्वार्थ व उद्देश्य के प्रति सावधान, परंतु रहस्यात्मक प्रकृति होने से अपने अंतर मन के भावों को जल्दी प्रकट नहीं होने देती, छोटे से छोटे विषय पर भी गंभीर विचार करने वाली, मितव्ययी, छोटी-छोटी बचते करने में कुशल, व्यवहारिक एवं सुनियोजित ढंग से कार्य करने वाली तथा भौतिक सुख-सुविधाओं एवं भौतिक उन्नति के लिए विशेष प्रयत्न करने वाली होती है।
यदि शनि एकादश भाव में तथा गुरु धर्म भाव में हो तो जातिका आध्यात्मवादी, त्यागी सेवापरायण तथा सादा जीवन व्यतीत करने वाली होती है। मकर जातिका की कुंडली में शुक्र, चंद्र शुभस्थ हो तो जातिका की मानसिक एवं कल्पना शक्ति अच्छी होगी। जातिका को संगीत, गायन, नृत्य, अभिनय, कला एवं साहित्य की ओर भी विशेष अभिरुचि होगी। व्यवसायिक तौर पर उन से लाभान्वित भी होती है।
शिक्षा👉 शुक्र के अतिरिक्त कुंडली में बुध और गुरु ग्रह शुभ भी शुभस्थ हो तो जातिका उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सफल होती है। तथा उच्च शिक्षा के उपरांत नौकरी प्राप्त करने में भी सफल होती है। दशम भाव में सूर्य, राहु अशुभ हो तथा चंद्र भी पाप ग्रह से युक्त हो तो अच्छी सर्विस एवं विवाह आदि के संबंध में अच्छे अवसर भी हाथ से निकल जाते हैं।
यदि पंचम भाव में राहु केतु मंगल सूर्य आदि अशुभ ग्रह हों अथवा इन ग्रहों की दशा अंतर्दशा लगी हो तो जातक को उच्च विद्या प्राप्ति में अड़चनें अथवा विलंब होता है।
यदि गुरु धर्म स्थान में तथा शनि एकादश में हो तो जातिका उच्च दर्शनवाद, दार्शनिक सेवापरायण, त्यागी तथा आध्यात्मिकवादी होकर अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करने वाली बन जाती हैं। ऐसे जातिका को विशेष प्रेरणा की आवश्यकता होती है। महत्वपूर्ण कार्य करने की झिझक में कई बार इनसे अच्छे अवसर भी निकल जाते हैं।
पारिवारिक एवं गृहस्थ जीवन👉 कुंडली में चंद्र, शुक्र, शनि, बुध आदि ग्रह शुभस्थ होने पर मकर जातिका प्रेम और सौंदर्य के संबंध में हृदय की सहज सुंदर एवं उच्च आदर्श भावनाओं से अनुप्रेरित होती है। वह प्रदर्शन को अधिक महत्व नहीं देती है। स्वभाव वश वह शालीन मिलनसार एवं विशिष्ट गुणों से युक्त होगी। पारिवारिक परिवेश के अनुसार स्वयं को ढाल लेने वाली तथा अपने गुणों से परिवार एवं समाज में आदर व प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाली होगी। स्वतंत्र प्रिया होने पर भी विवाह या प्रेम संबंधों में अपने माता पिता की आज्ञा के विरुद्ध आचरण करने से परहेज करती है। मकर जातिका द्वारा किए गए प्रेम विवाह कम ही सफल होते देखे गए हैं। परंपरा से किए गए विवाह के पश्चात मकर जातिका अपने पति को तथा गृहस्थ जीवन में विशेष सहयोग प्रदान करती है। अपने पति एवं दांपत्य जीवन के प्रति पूर्णतया समर्पित एवं निष्ठावान होती है। चंद्र एवं गुरु-शुक्र शुभस्थ हो तथा भली प्रकार से जन्मपत्री मिलान करके विवाह किया गया हो तो वैवाहिक जीवन अनुकूल, जीवन साथी सुंदर, आवास तथा धन आदि सुख साधनों से संपन्न होती है। यदि सप्तम भाव में मंगल, राहु, सूर्य आदि अशुभ ग्रह हो अथवा शनि, मंगल ग्रह की दृष्टि हो तथा कुंडली में चंद्र, शुक्र की स्थिति भी अच्छी ना हो तो वैवाहिक सुख में कमी होती है।
उपयुक्त जीवन साथी👉 मकर लग्न राशि की जातिका के लिए वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, मकर, कुंभ और मीन लग्न राशि वाले जातक के साथ विवाह अथवा व्यवसायिक संबंध शुभ एवं लाभदायक रहते हैं।
स्वास्थ्य एवं रोग👉 यदि मकर जातिका की कुंडली में चंद्र बुध मंगल या शनि ग्रह अशुभ स्थान में हो तो जातिका को वायु कब जनित रोग जुकाम खांसी खून की कमी अनियमित मासिक धर्म चर्म रोग जोड़ों में दर्द तनाव अनिद्रा आदि रोगों की संभावना होती है।
सावधानी👉 मकर जातिका को अत्यधिक अंतर्मुखी एवं स्वार्थ प्रकृति, एकांतवास, नैराश्य की भावना से बचना चाहिए। दूसरों की निंदा एवं आलोचना करने की प्रकृति को भी त्यागना तथा हमेशा प्रसन्न रहना आपके सुखमय जीवन के लिए अधिक लाभदायक सिद्ध।
उपयुक्त व्यवसाय👉 मकर जातिका की कुंडली में बुध, शुक्र, शनि, चंद्र आदि ग्रह शुभ स्थान में हो तो जातिका अध्यापन, कंप्यूटर, लेखा-जोखा, फैशन डिजाइनिंग, ब्यूटी पार्लर, बुटीक, शिल्पकार, एक्टिंग, डांस, मॉडलिंग, गृहसज्जा, वकालत, बैंकिंग, टेलीविजन, विज्ञान, डॉक्टर (चिकित्सा), हस्तकला, वस्त्र आदि क्षेत्रों में विशेष सफल हो सकती है।
मकर लग्न जातकों की शिक्षा-कैरियर, व्यवसाय-आर्थिक स्थिति तथा प्रेम संबंध एवं वैवाहिक सुख
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शिक्षा एवं कैरियर
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मकर लग्न की कुंडली में पंचम भाव एवं पंचमेश शुक्र, बुध, चंद्र, शनि आदि शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो जातक उच्च व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने में सफल होता है। ऐसा जातक वकालत, डिजाइनिंग, कंप्यूटर, अध्यापन, नृत्य, कला, संगीत, आदि क्षेत्रों में विशेष सफल होता है। शुक्र, बुध, शनि, मंगल आदि ग्रहों की दशा अंतर्दशा भी लगी हो तो इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिक व वस्त्र, हस्तकला क्षेत्र में विशेष अधिक सफलता मिलती है। यदि पंचम भाव में राहु, केतु, मंगल, सूर्य आदि अशुभ ग्रह हो अथवा इन ग्रहों की दशा अंतर्दशा लगी हो तो जातक को उच्च विद्या प्राप्ति में अड़चनें अथवा विलंब होता है। यदि गुरु धर्म स्थान में तथा शनि एकादश में हो तो जातक उच्चदर्शनवान, दार्शनिक, सेवा परायण, त्यागी तथा आध्यात्मवादी होकर अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करने वाले बन जाते हैं। ऐसे जातक को विशेष प्रेरणा की आवश्यकता होती है। महत्वपूर्ण कार्य करने की झिझक में कई बार इनसे अच्छे अवसर भी निकल जाते हैं।
व्यवसाय और आर्थिक स्थिति
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मकर लग्न के जातक मानसिक एवं शारीरिक दोनों रूप में परिश्रम एवं उच्चाकांक्षी होने के कारण अपने तथा परिवार की उन्नति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। गुप्त रूप से दूरगामी योजनाएं बनाने में कुशल, व्यापार व्यवसाय एवं राजनीति में अपने व्यवहार कुशलता एवं बुद्धि चातुर्य के कारण सफल होने का सामर्थ्य एवं योग्यता रखते हैं। जन्म कुंडली में शनि, बुध, शुक्र, चंद्र, गुरु आदि ग्रह शुभस्थ एवं शुभ ग्रहो द्वारा दृष्ट हो तो मकर जातक निम्नलिखित व्यवसाय में विशेष लाभान्वित एवं सफल होते हैं।
अनुसंधान एवं शोध कार्य, वैज्ञानिक, गुप्तचर विभाग, सेना अधिकारी, किसान अथवा कृषि उद्योग से संबंधित व्यापारी, अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर, शिल्पकार, कंप्यूटर, कारखानों से संबंधित कार्य, केरे- विक्रय करने वाले व्यापारी, भूमि जायदाद एवं ठेकेदारी से संबंधित कार्य, ज्योतिषी, इंश्योरेंस, कमीशन एजेंट, खिलाड़ी, लेखन, प्रकाशन, प्रिंटिंग प्रेस संबंधी कार्य, पेट्रोलियम, तेल, वकालत, अभिनय, नृत्य, संगीत, फोटोग्राफी, राजनीतिज्ञ, कर्मकांड पंडित, लोहा, स्टील, ज्वेलर्स, पत्थर संबंधित, कोयला, गाय, भैंस आदि पशुओं से संबंधित, चमडा या रबड़ उद्योग आदि। वस्त्र उद्योग, सौंदर्य प्रसाधन संबंधी कार्य, किराना व्यापारी, स्टेशनरी, औषधि विक्रेता, हस्तशिल्प, तकनीकी व्यवसाय द्वारा विशेष लाभान्वित होने की संभावना होती है। परंतु ध्यान रहे जातक उसी उद्योग व्यवसाय में सफल होता है जिसकी कुंडली में दशम भाव या दशमेश ग्रह अथवा उससे संबंधित जो ग्रह बलि हो जैसे की कुंडली में सूर्य बली हो तो जातक बिजली उद्योग से संबंधित कार्य या अर्ध सरकारी मेडिकल आदि क्षेत्रों से विशेष लाभान्वित। चंद्र शुभ एवं बली हो तो जातक सेल्समैन, तेल, कोलड्रिंक, वस्त्र डिजाइनिंग, सिनेमा, टेलीविज़न संबंधी कार्य, मंगल से बिजली संबंधी, बेकरी, पुलिस, सेना, भूमि-जायदाद, दंत चिकित्सा सुरक्षा आदि। बुध से अध्यापन, अकाउंट्स, वकालत, शिल्प, ज्योतिष, डाक तार विभाग, इंजीनियरिंग, संपादन, पत्राचार आदि। गुरु से भौतिक चिकित्सा, अध्यापन, व्यापार, उच्च पदाधिकारी, ज्योतिष उपाध्याय, पुरोहित, शुक्र से सौंदर्य प्रसाधन, मिठाई विक्रेता, कंप्यूटर, टेलीविजन, संगीत, अभिनएय एवं कलात्मक वस्तुओं के व्यवसाय, राहु शनि से पत्थर, सीमेंट, लोहा, कल पुर्जे, कोयला, तेल, पेट्रोल, जायदाद संबंधित कार्य, मशीनरी, अनुसंधान आदि से संबंधित कार्यों में सफलता मिलती है।
आर्थिक स्थिति
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मकर जातक की कुंडली में यदि शुक्र, शनि, चंद्र, बुध आदि ग्रह शुभ भावस्थ हो अथवा इन में पारस्परिक दृष्टि या योग आदि का संबंध हो एवं इन्हीं ग्रहों में से किसी ग्रह की दशा अंतर्दशा चल रही हो तो जातक को व्यवसाय में समुचित धनार्जन करने के अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं। कुंडली में गुरु, चंद्र, शुक्र शुभ हो तो विवाह के पश्चात जातक को यथेष्ट धन लाभ होता हैं। यदि चंद्र, शुक्र अशुभ भावों में अथवा अशुभ ग्रह युक्त हो तो जातक को आर्थिक एवं पारिवारिक परेशानियां बनी रहती है यदि शनि, गुरु युक्त या दृष्ट हो कर मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त हो तो जातक अत्यंत संघर्ष एवं कठिनाइयों के बाद ही आजीविका का अर्जन करता है।
प्रेमसंबंध एवं वैवाहिक सुख
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मकर लग्न के जातक में प्रेम और सौंदर्य अनुभूति की भावना प्रबल होती है। प्रेम संबंध बनाने में मकर जातक अत्यंत सावधानी बरतते हैं। वृष, कन्या व कर्क लग्न जातकों की भांति मकर जातक अपनी प्रेमाभीव्यक्ति शीघ्र प्रकट नहीं कर पाते तथा ना ही प्रेम के प्रकटीकरण में आडंबर के प्रदर्शन को अधिक महत्व देते हैं। मकर जातकों का प्रेम रहस्यमय किंतु निर्मल तथा उच्च भावनाओं से प्रेरित होता है। अपने आदर्शों के अनुकूल यदि जीवन साथी ना मिल पाए तो वह आजीवन अविवाहित रहना अधिक पसंद करते हैं। यदि शनि नीच राशि का है तथा मंगल शुक्र का योग पंचम, सप्तम, नवम, द्वादश भाव में हो तो जातक अत्यधिक कामुक विलास प्रिय एवं विजातीय स्त्रियों से संबंध रखता है। यदि कुंडली में सप्तमेश चंद्र भावों तथा सप्तम भाव पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो जातक अपने वैवाहिक जीवन के प्रति गंभीर उत्तरदायित्वपूर्ण एवं सुखी होता है। उसकी स्त्री सुंदर सुशील एवं परिवार में सहयोग करने वाली होती है। यदि चंद्र एवं शुक्र अस्त हो या सप्तम भाव में राहु, सूर्य, मंगल आदि अशुभ ग्रह हो तो जातक का दांपत्य जीवन परेशानियों से युक्त होता है।
उपयुक्त जीवन साथी
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मकर लग्न के जातक को वृष, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, कुम्भ या मीन राशि वाली कन्या के साथ विवाह अथवा व्यवसायिक संबंध रखने पर प्राय: शुभ एवं लाभदायक रहते हैं।
मकर लग्न में शुभाशुभ एवं योगकारक ग्रह
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मकर लग्न में शुक्र केंद्र त्रिकोण का स्वामी होने से विशेष शुभ एवं राजयोग कारक होता है। जातक नरम स्वभाव का तथा सुंदर स्त्री, भूमि, वाहन, धनादि सुखों से युक्त होता है।
सूर्य👉 यहां सूर्य के अष्टम एच होने पर भी विशेष दोष कारक नहीं होता तृतीय पंचम नवम दशम एवं एकादश भाव में शुभ फल देता है अन्य भागों में अशुभ फलदाई होता है
चंद्र👉 2,4,5, 10, 11और वे भाव में शुभ परंतु लग्न तथा अन्य भागों में अशुभ अथवा मिश्रित फल दायक रहता है।
मंगल👉 मंगल सुखेश एवं लाभेश होने से मिश्रित फलदाई होगा 1,3,4,6, 9, 10, तथा 11वें भाव में शुभ तथा अन्य भागों में मिश्रित फल दायक रहेगा।
बुध👉 बुध यहां षष्ठेश होने से अपनी दशा में रोग एवं विघ्नकारक होगा किंतु भाग्येश होने से (कुंडली में शुभ हो तो) जातक को बुद्धिमान व भाग्य में उन्नति भी कराता है। शुक्र के योग से विशेष योग कारक होता है।
गुरु👉 गुरु तृतीय एवं द्वादशेश होने से शुभ फलदाई नहीं हो पाता यदि कुंडली में गुरु स्पष्ट हो तो जातक के स्वभाव को चिड़चिड़ा, तुनक मिजाज तथा पारिवारिक जनों के साथ तनाव देता है। 3, 5, 7, 9, 10 एवं 11 वे भाव में कुछ शुभ फल मिलेगा।
शुक्र👉 शुक्र पंचमेश व कर्मेश होने से शुभ फलदायक 6, 7, 8 एवं 12 विभागों में प्रायः अशुभ फली अन्य भागों में शुभ फल प्रदान करेगा।
शनि 👉 लग्नेश व धनेश होने के कारण शनि (शुभ भाव में हो तो) जातक को धनसंपदा, वाहन आदि सुखों का लाभ देता है 6, 8, 10 एवं 11 वे भाव में अशुभ तथा अन्य भागों में शुभ फल देता है।
राहु👉 कुंडली में राहु अन्य ग्रहों के सहचर्य से शुभाशुभ फल करता है मकर लग्न में राहु 3, 4, 7, 8, 11 एवं 12 वे भाव में अशुभ फल तथा अन्य भाव में शुभ फल करता है।
केतु👉 केतु भी अन्य ग्रहों के सहचर्य से शुभाशुभ फल प्रदान करता है। मकर लग्न में केतु 1,2,5,6,9 एवं दसवें भाव में अपनी दशा कालीन शुभ फल तथा अन्य भागों में अशुभ फल प्रदान करता है।
क्रमशः आगे के लेख ने हम कुम्भ राशि एवं लग्न के विषय में विस्तृत चर्चा करेंगे।
पं देवशर्मा
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