सभी भाइयों को राम राम जी

 

प्राचीन आर्यावर्त के आर्य पुरषो ने अध्यात्म-ज्ञान के साथ-साथ दुष्टों के दमन के लिये अस्त्र-शस्त्रों की भी सृष्टि की थी।

 

अस्त्र उसे कहा जाता है जिसे मन्त्रों के द्वारा दूरी से चलाया जाता हैं।प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का

अधिकार होता है और मन्त्र-द्वारा उसका संचालन होता है। इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं।कुछ प्रमुख रूप इस प्रकार हैं

 

1 आग्नेय: यह विस्फोटक बाण है।यह जल के समान अग्नि बरसाकर सब कुछ भस्मीभूत कर देता है।इसका प्रतिकार पर्जन्य है।

 

2 पर्जन्य: यह आग्नेय का प्रतिकार बाण है।यह जल बरसाकर अग्नि को शांत कर देता है।

 

3 पन्नग: इससे सर्प पैदा होते हैं।इसके प्रतिकार स्वरूप गरुड़ बाण छोड़ा जाता है।

 

4 गरुड़: इस बाण के चलते

ही गरुड़ उत्पन्न होते है, जो सर्पों को खा जाते हैं।

 

महाअस्त्र: इनमे तीन दिव्यास्त्र आते है:

 

1 ब्रह्मास्त्र: ये परमपिता ब्रह्मा जी का अस्त्र है।यह अचूक और विकराल अस्त्र है।शत्रु का नाश करके छोड़ता है। इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही हो सकता है।

 

2 वैष्णव: ये भगवान विष्णु

का अस्त्र है।इस अस्त्र का कोई प्रतिकार ही नहीं है।इसे

चलाने पर कोई शक्ति इसका मुक़ाबला नहीं कर सकती।

इसका केवल एक ही प्रतिकार

है और वह यह है कि शत्रु नम्रतापूर्वक अपने को इस के आगे अर्पित कर दे।इस बाण के सामने झुक जाने पर यह

अपना प्रभाव नहीं करता।

 

3 पाशुपत: ये भगवान शिव का अस्त्र है।इससे पूरी सृष्टि का विनाश हो जाता हैं यह अस्त्र महाभारतकाल में केवल

अर्जुन के पास था।इस अस्त्र का संधान केवल दुष्टों पर किया जा सकता है अन्यथा ये पलट कर चलाने वाले को

ही समाप्त कर देता है।