भृगु संम्हितां

भृगु संहिता महर्षि भृगु और उनके पुत्र शुक्राचार्य के बीच संपन्न हुए वार्तालाप के रूप में है। उसकी भाषा-शैली गीता में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के मध्य हुए संवाद जैसी है। हर बार आचार्य शुक्र एक ही सवाल पूछते हैं- "वद् नाथ दयासिन्धो जन्मलग्नशुभाशुभम् । येन विज्ञानमात्रेण त्रिकालज्ञो भविष्यति ॥"

पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रिदेवों में कौन श्रेष्ठ है, इसकी परीक्षा के लिए जब महर्षि भृगु ने श्रीविष्णु के वक्षस्थल पर प्रहार किया, तो पास बैठी विष्णुपत्नी (माँ महालक्ष्मी) ने भृगु जी को श्राप दे दिया कि अब वे किसी ब्राह्मण के घर निवास नहीं करेंगी और सरस्वती पुत्र ब्राह्मण सदैव दरिद्र ही रहेंगे। अनुश्रुति है कि उस समय महर्षि भृगृ की रचना ‘ज्योतिष संहिता’ अपनी पूर्णता के अंतिम चरण पर थी, इसलिए उन्होंने कह दिया.. ‘देवी लक्ष्मी, आपके कथन को यह ग्रंथ निरर्थक कर देगा।’ लेकिन महालक्ष्मी ने भृगुजी को सचेत किया कि इसके फलादेश की सत्यता आधी रह जाएगी। लक्ष्मी के इन वचनों ने महर्षि भृगु के अहंकार को झकझोर दिया। वे लक्ष्मी को श्राप दें, इससे पहले श्रीविष्णु ने महर्षि भृगु से कहा, ‘महर्षि आप शान्त हों! आप एक नए संहिता ग्रंथ की रचना करें। इस कार्य के लिए मैं आपको दिव्य दृष्टि देता हूं।’ तब तक माँ लक्ष्मी का भी क्रोध शान्त हो गया था और उन्हें यह भी ज्ञात हो गया कि महर्षि ने पद प्रहार अपमान की दृष्टि से नहीं अपितु परीक्षा के लिए ही किया था।

श्रीविष्णु के कथनानुसार, महर्षि भृगु ने जिस संहिता ग्रंथ की रचना की वही जगत में ‘भृगुसंहिता’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जातक के भूत, भविष्य और वर्तमान की संपूर्ण जानकारी देने वाला यह ग्रंथ भृगु और उनके पुत्र शुक्र के बीच हुए प्रश्नोत्तर के रूप में है।