यह एक निर्विवाद ऐतिहासिक सत्य है कि साम्प्रायिक दंगों जन्म इस्लाम के साथ ही हुआ है , क्योंकि यह अरब संस्कृति की पैदायश जो हमेशा लड्ते रहते थे. जैसे जब मुसलमानों के सामने कोई गैर मुस्लिम नही होता तो वह अपने ही किसी फिरके से लड़ने लगते हैं . वैसे तो इस्लाम के कई फिरके हैं जो खुद को सच्चा बताते हैं , लेकिन शिया सुन्नी दंगों की खबरें आये दिन आती रहती हैं , कुछ लोग इन दंगों का कारण वैचारिक मतभेद मान लेते हैं , परन्तु यह झगड़ा सत्ता , संपत्ति और वर्चस्व का है , जो मुहम्मद साहब के जीवन में ही शुरू हो गया था . जैसा कि अक्सर किसी भी दंगे की शुरूआत पहले एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप , गालियो से होती है . जो बाद में उग्र होनेपर हत्या तक पहुच जाती है , और यदि दंन्गे रुक भी जाते हैं तो विरोधी एक दूसरे को गालियांदेने से बाज नहीं आते ,इस से फिर से दंगा शुरू हो जाता है ,शिआ सुन्नी एक ऐसा विवाद है को क़यामत तक चलता रहेगा ,
इसके पीछे मुहम्मद साहब का पुत्री प्रेम और उनके ससुर की धोखेबाजी और सत्ता लोभ है ,क्रमशः इस बात को इस लेख में स्पष्ट किया जा रहा है.
1-विवाद का काऱण
यदि हम निष्पक्ष रूप इस्लाम का इतिहास देखें तो पता चलेगा कि शिया और सुन्नी के विभाजन का प्रारम्भ सन 622 ई ० में उसी समय हो गया था ,जब मक्का के लोगों ने मुहम्मद साहब का बहिष्कार कर दिया था और वह अपनी औरते ,रखैलों और साथियों के साथ मदीना बस गए थे, कुछ समय तो यह लोग शांति से रहे लेकिन बाद में रास्ते में गुजरने वाले काफिलों को लूटने लगे , और मुहम्मद साहब हरेक लूट का हिस्सा लेने लगे ,इस से मुहम्मद साहब के लोगों की इतनी हिम्मत बढ़ गयी कि वह काफिलों कि जगह बस्तियां और काबिले भी लूटने लगे , और मुहम्मद साहब खुद लूट का नेतृत्व करने लगे , जैसे सन 625 में बनू नादिर कबीले को लूटा , और सन 627 में बनू क़ुरैज़ा काबिले को लूटा , ऐसे अनेकों लूट में मुहम्मद साहब का घर दौलत से भर गया ,लेकिन मुहम्मद साहब तो पूरे अरब बाद विश्व पर इस्लामी राज्य स्थापित करना चाहते थे , मुहम्मद साहब के आखिरी वर्षों तक , अरब सीरिया और अफरीका का कुछ भाग इस्लाम के अधीन हो गया था ,और इस्लामी हुकूमत यानि मुहम्मद साहब के पास संपत्ति और सत्ता इकट्ठी हो गयी थी , उस समय मुहम्मद के ससुर अबूबकर चाहतेथे कि उन्हीं को मुहम्मद साहब का असली वारिस घोषित कर दिया जाये ,परतु मुहम्मद साहब अपनी बेटी फातिमा के प्रति अधिक लगाव रखते थे , इसलिए वह वह अपने दामाद अली को अपना वारिस बनाने का इरादा रखते जैसा इन हदीसों में दिया है ,
2-रसूल का पुत्रीप्रेम
अल मिस्वार बिन अखरम ने कहा कि रसूल ने बताया फातिमा मेरे जिस्म का हिस्सा है ,और यदि कोई उसे नाराज करता है , समझो उसने मुझे नाराज किया है "
، أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم قَالَ " فَاطِمَةُ بَضْعَةٌ مِنِّي، فَمَنْ أَغْضَبَهَا أَغْضَبَنِي ".
सही बुखारी -जिल्द 5 किताब 57 हदीस 61
अल मिस्वार बिन अखरम ने कहा कि रसूल ने बताया फातिमा मेरा ही अंश है इसलिए जो भी उसे सताएगा समझो उसने मुझे ही सताया है ,
Fatima is a part of me. He in fact tortures me who tortures her.
अल बरा ने कहा कि जब मक्का के लोग रसूल के साथ समझौता करने पर राज़ी हो गए तो ,रसूल ने अली से कहा , कि संधि पत्र लिखने के लिए कागज लाओ , तब रसूल ने खुद अपने हाथों से वह संधि पत्र लिखा "
" Allah's Apostle said (to `Ali), "Let me see the paper." When `Ali showed him the paper, the Prophhet then wrote with his own hand
. فَقَالَ عَلِيٌّ وَاللَّهِ لاَ أَمْحَاهُ أَبَدًا. قَالَ " فَأَرِنِيهِ ". قَالَ فَأَرَاهُ إِيَّاهُ، فَمَحَاهُ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم بِيَدِهِ،
सईद बिन जुबैर ने कहा कि इब्ने अब्बास ने बताया ,उस दिन गुरुवार था ,और मेरी आँखों से आंसू निकल रहे थे ,तभी रसूल ने कहा मुझे जानवर के कंधे की चौड़ी हड्डी और दावत कलम लाकर दो , मैं अपनी वसीयत लिखना चाहता हूँ , ताकि मेरे बाद तुम लोग किसी विवाद में न पड़ जाओ "
इब्ने अब्बास ने कहा कि जब रसूल ने कहा था कि मैं वसीयत लिखना चाहता हूँ , और मुझे लिखने का सामान दो, तभी उमर आये और बोले इसकी कोई जरुरत नही . हमारे लिए कुरान ही काफी है . इस बात पर लोग बहस करने लगे और शोर होने लगा , तब नाराज होकर रसूल ने उबेदद्दुल्लाह से कहा इन लोगों को यहाँ से निकालो , और रसूल की वसीयत नही लिखी जा सकी "
" . قَالَ عُبَيْدُ اللَّهِ فَكَانَ ابْنُ عَبَّاسٍ يَقُولُ إِنَّ الرَّزِيَّةَ كُلَّ الرَّزِيَّةِ مَا حَالَ بَيْنَ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم وَبَيْنَ أَنْ يَكْتُبَ لَهُمْ ذَلِكَ الْكِتَابَ مِنِ اخْتِلاَفِهِمْ وَلَغَطِهِمْ .
सही मुस्लिम - किताब 13 हदीस
इब्ने अब्बास ने बताया जब रसूल का अंतिम समय आया तो उनके घर में जो लोग थे उन में उमर बिन खत्ताब भी था , जब रसूल ने अपनी वसीयत लिखने की इच्छा प्रकट की तो उमर बोले इसकी जरूरत नहीं , हमारे लिए कुरान ही काफी है . इस बात पर लोगों में मतभेद हो गया और शोरगुल होने लगा , तब रसूल ने लोगों से कहा मुझे अकेला छोड़ दो. इस तरह उमर के कारन रसूल की वसीयत लिखने से रह गयी
ـ " هَلُمَّ أَكْتُبْ لَكُمْ كِتَابًا لَنْ تَضِلُّوا بَعْدَهُ
". قَالَ عُبَيْدُ اللَّهِ فَكَانَ ابْنُ عَبَّاسٍ يَقُولُ إِنَّ الرَّزِيَّةَ كُلَّ الرَّزِيَّةِ مَا حَالَ بَيْنَ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم وَبَيْنَ أَنْ يَكْتُبَ لَهُمْ ذَلِكَ الْكِتَابَ مِنِ اخْتِلاَفِهِمْ وَلَغَطِهِمْ.
सही बुखारी - ज़िल्द 9 किताब 92 हदीस 468
5-तबर्रा क्या है ?
शिया मान्यता के अनुसार जो लोग अल्लाह से विमुख हो गए हों , या जिन्होंने रसूल के घर वालों को कष्ट पहुंचाया था , उन पर " लानत - لعنة " (curse ) यानी धिक्कार करना परम कर्तव्य यानी " फरीजा - فريضة " है . और ऐसे धिक्कार के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उसे " तबर्रा - تبرأ " कहा जाता है . अरबी में इस शब्द का अर्थ अलग होना (disassociation ) है . इसका तात्पर्य है कि शिआ सुन्नियों से अलग हैं .शिया परंपरा के अनुसार तबर्रा के लिए अक्सर कुछ शेर ( छंद ) या पूरी नज्म भी इस्तेमाल की जाती है ,कुछ शायरों ने तो तबर्रा की पूरी किताबें भी लिखी हैं ,जिनके नमूने दिए जा रहे हैं .
6-तबर्रा करने का स्थान
कुछ समय पहले एक शिया मौलवी " मुहम्मद नबी अल तुसरकानी - محمد نبي التوسيركاني " ने ईरानी अखबार "अल लैलाई अखबार -لئالئ الأخبار " में तबर्रा करने के बारे में शिया लोगों को एक चेतावनी प्रकाशित की थी , जिसका शीर्षक " तम्बीह -تنبيه " था . जिसमे तबर्रा करने की विधि और स्थान के बारे में पूरी जानकारी दी गयी है , जिसे अरबी के साथ हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है
सावधान -आप लोगों को पता होना चाहिए कि तबर्रा करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान पेशाबघर और शौचालय है , जहाँ आप पेशाब या शौच करते समय अकेले होते हैं ,आप तबर्रा इस तरह करिये " हे अल्लाह लानत हो उमर पर ,अबू बकर पर ,उस्मान पर ,मुआविया पर,यजीद पर उसकी औलाद पर ,लानत हो इब्न जियाद पर ,इब्न सअद पर ,शिमर पर और उमर की फ़ौज पर हे अल्लाह लानत हो आयशा पर हफसा पर हिन्दा पर ,उम्मल हकम पर और लानत हो उन पर जो इनकी तारीफ़ करते हैं अल्लाह क़ियामत तक इन सभी लानत होती रहे .
” تنبيه: اعلم أن أشرف الأمكنة والأوقات والحالات وأنسبها للعن عليهم – عليهم اللعنة – إذا كنت في المبال، فقل عند كل واحد من التخلية والاستبراء والتطهير مرارا بفراغ من البال: اللهم العن عمر، ثم أبا بكر وعمر، ثم عثمان وعمر، ثم معاوية وعمر، ثم يزيد وعمر، ثم ابن زياد وعمر، ثم ابن سعد وعمر، ثم شمر وعمر، ثم عسكرهم وعمر. اللهم العن عائشة وحفصة وهند وأم الحكم والعن من رضي بأفعالهم إلى يوم القيامة“.
source: لئالئ الأخبار – La’ali’ al-Akhbar 4/92, by al-Muhaqqiq al-Tusirkani.
शिया शायरी के रूप में भी विभिन्न विषयों परऔर भाषाओं में तबर्रा करते हैं ,उर्दू में तबर्रा के कुछ नमूने दिए जा रहे हैं ,
1.अली के विरोधियों पर लानत
अली का नाम भी ले लूँ तो यह इबादत है , यही तो खून की पाकीजगी की अलामत है
नबी से इश्क का दावा , बुग्जे हैदर भी ,यह हाल है जिसका उस पे खुदा की लानत है .
2.जाकिर नायक को गाली
हुसैन कुर्सो तस्लीम की रवानी है ,यजीद सड़ी हुई नालयो का पानी है ,
हुसैन वालों पे फतवे लगाए जो ,समझो ,बनू उमैय्या का खानदानी है ,
तूभी यजीद का हामी है ,सुन ले नायक , हरेक यजीद को कुत्ते कि मौत आनी है
जो शख्स यजीद लानती को हजरत कहे कभी , बुग्जे अली वाली में कितना अमीक है ,
अए जाकिर नायक तुझ पे तबर्रा बेशुमार कत्ले इमाम हुसैन में तू भी शरीक है
3.शिया लोगों का दावा
जुल्म बेशक मजीद हो जाये , बच्चा बच्चा शहीद हो जाये ,
हम हुसैनी हैं , हुसैनी रहेंगे , चाहे पूरी दुनिया यजीद हो जाए .
4.सुन्नी भोले हैं
रोज पढ़ते हैं मगर गौर नही कर पाते
आज के हाफिजे कुरान बड़े भोले हैं ,
घर से निकले थे खरीदार ये जन्नत के ,
बेच कर आ गए ईमान बड़े भोले है
5.सहाबियों पर धिक्कार
माना कि ये असहाब अकीदत के निशां थे ,तस्लीम किया कि अहमदे मुरसल की जां थे .
नामूसे सहाबा के खतीबों से ज़रा पूछो ,यह लोग मुहम्मद के जनाजे में कहाँ थे
6. तबर्रा करूंगा
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करूँगा खुल के तबर्रा अली के दुश्मन पर , फुरूए दीन का हिसाब है क्या किया जाये
जो रोकता है तबर्रा से उसको अये मौला ,लगा ऐसा तमाचा कि मजा आये
इन सबूतों के आहार पर शिया आरोप लगाते हैं कि उम्र बिन खत्ताब ने षडयंत्र करके अली को रसूल का वारिस होने से वंचित कर दिया था . इसलिए शिया अली के सिवा सभी खलीफाओं और सहाबियों के आलावा मुहम्मद साहब की पत्नियों पर भी लानत करते हैं . जिससे सुन्नी चिढ जाते हैं , और दंगा हो जाता है . और यह विवाद कभी समाप्त नहीं होगा . सुन्नी अपने षड्यन्त्र पर पर्दा डालने के लिए यह झूठ भी बोलतेहैं कि मुहम्मद साहब अनपढ़ थे जबकि वह लिख सकते थे.जिस तरह से सत्ता प्राप्ति के लिए इस्लाम बना था , उसी तरह आ