जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है।

- हजारीप्रसाद द्विवेदी (कुटज,पृ.11)

सोमनाथ का संदेश

शरद पूर्णिमा को सरदार पटेल की जयन्ती भी हो, या सरदार की जयन्ती के दिन शरद पूर्णिमा भी हो तो इसे अटल जी के शब्दों में मणिकांचन जैसा सुयोग ही कहा जाएगा। भगवान सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की स्वर्ण जयन्ती का समारोह देशभक्तों में जहां आत्मबल भर गया वहीं इस समारोह ने दुनिया को भारत की अजेय सनातन शक्ति का भी संदेश दिया। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की गाथा भारतीय मन की संघर्ष गाथा भी है। देश स्वतंत्र हुआ ही था कि भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल ने सोमनाथ के तट पर समुद्र का जल अंजुलि में भर मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया था। उस समय की देव-दुर्लभ नेतृत्व श्रृंखला में सरदार के साथ कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और बाबू राजेन्द्र प्रसाद जैसे लोग भी थे। पं. नेहरू ने लाख प्रयत्न किए कि राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसाद सोमनाथ-मंदिर का उद्घाटन करने न जाएं, लेकिन वे उसी प्रकार विफल रहे जैसे आज के दुराग्रही कांग्रेसी और कम्युनिस्ट विफल हो रहे हैं। पं. नेहरू इतने बौखला गए थे कि उन्होंने आकाशवाणी को निर्देश दे दिया कि वह सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू के भाषण को प्रसारित न करे। मगर उससे क्या होता है! सोमनाथ पुनर्निर्माण की पचासवीं जयंती पर भारत की शा·श्वत संस्कृति, सनातन धर्म के स्मरण के साथ-साथ राजेन्द्र बाबू सरदार पटेल, मुंशी जैसे आग्रही वीर भारतीयों का ही श्रद्धा के साथ स्मरण हुआ। इतिहास दूध का दूध और पानी का पानी साफ कर देता है।

यह अवसर हमें इस बात का भी स्मरण दिलाता है कि सोमनाथ विध्वंस से लेकर उसके पुनर्निर्माण तक और पुनर्निर्माण के समय से उसकी स्वर्ण जयन्ती तक का समय हिन्दुओं ने किन उतार-चढ़ावों से होते हुए गुजारा और आज वे किस स्थिति में हैं। यह सत्य है कि आज इस देश में हिन्दुओं का बहुमत है। बहुतांश में हिन्दू करदाताओं से प्राप्त राजस्व से शासन-प्रशासन चलता है। पार्टी चाहे कोई भी हो, पर चुनकर आने वाले और राजनीति में सक्रिय अधिकांशत: हिन्दू ही हैं। इसके बावजूद हिन्दू आस्था और हिन्दू मान-बिन्दुओं की रक्षा के लिए आज कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। जिस समय हम सोमनाथ पुनर्निर्माण स्वर्ण जयन्ती का समाचार प्रकाशित कर रहे हैं उस समय बंगलादेश में हिन्दुओं पर भीषण अत्याचार हो रहे हैं और देश की राजधानी दिल्ली में हिन्दुओं के विरुद्ध ईसाई साम्राज्यवादियों का एक शत्रुतापूर्ण मतान्तरण कार्यक्रम घोषित हुआ है। कश्मीर से विस्थापित हिन्दू आज भी विस्थापित ही हैं और पूर्वाञ्चल में भारत की संस्कृति और धर्म के विरुद्ध आक्रामक विद्रोही संगठन सक्रिय हैं। हवा में जिहाद की बारूदी गंध प्रबलतर होती जा रही है। पड़ोस में जिहाद के खिलाफ अमरीकी युद्ध चल रहा है और हमारा देश भी "तैयार रहो' वाली स्थिति के लिए सिद्ध किया जा रहा है। अर्थात् सीधी सी बात है कि सोमनाथ पुनर्निर्माण का कार्य अभी अधूरा है। हमने मंदिर बनाया जरूर है पर मंदिर और अर्चकों की समुचित सुरक्षा का काम अभी बाकी है।

सोमनाथ पुनर्निर्माण स्वर्ण जयन्ती समारोह स्वयं में समूचे भारत के लिए अद्भुत प्रेरणा का बिन्दु बना है। सरदार पटेल ने जो कार्य शुरू किया उसकी अभ्यर्थना में पटेल के सच्चे उत्तराधिकारी ही जुटे। शेष तो हिन्दू-संघ के विपरीत खेमे में दिख रहे हैं। यह ठीक है कि इस कार्यक्रम को और विशाल तथा वृहद् स्वरूप दिया जा सकता था। यदि विभिन्न हिन्दू संगठनों के प्रमुख भी यहां आते और अन्य राजनीतिक दलों के नेता भी आमंत्रित होते तो संदेश का वजन और व्याप बढ़ जाता। परन्तु इस सरकार ने सोमनाथ के विकास के लिए बहुत महत्वाकांक्षी योजनाएं तैयार की हैं। श्री आडवाणी की पहल पर 5 करोड़ रुपए तत्काल सोमनाथ क्षेत्र के विकास और सौन्दर्यीकरण के लिए स्वीकृत किए गए हैं। सोमनाथ के पास एक त्रिवेणी घाट भी बनाया गया है, जो मोरारजी भाई देसाई को समर्पित किया गया है। अटल जी ने भी अपने भाषण में इस दिशा में काफी कुछ करने का वि·श्वास दिलाया है। यह सब संतोष का विषय है। परन्तु ईंट-पत्थर-गारे का काम करते हुए सोमनाथ के संदेश को भूलना नहीं होगा कि दृढ़निश्चयी, पराक्रमी हिन्दू-संघ ही विजय पाने का अधिकारी होगा।