.              * नवम स्थान    के    कारकत्व *

* भाग्य :    नवम स्थान पंचम स्थान से पंचम है अतः पूर्व पुण्यों के पूर्व जन्मों के संचित फल जातक इस जन्म में भोगता है, यही वह भाग्य है जिसे जातक भोगता है, नवम स्थान जातक के संचित भाग्य का सूचक है

* गुरु :    जीवन को सफल बनाने हेतु आवश्यक मार्गदर्शक गुरु है, नवम स्थान, गुरु स्थान है, क्योंकि उसी के मार्गदर्शन से वर्तमान कर्म जीवन के अंतिम लक्ष्य,  मोक्ष की ओर उन्मुख होते हैं

* पिता :    व्यक्ति का पिता उसके आरंभिक पगों का मार्गदर्शन करता है, वह बालक के जीवन का वास्तविक एवं प्रथम गुरु है, यही कारण है कि नवम स्थान पिता से संबद्ध है

* पितृ स्थान :    पितृ हमारे पूर्वज हैं, नवम स्थान पिता व पितरों से संबंधित है

* सत्कर्म :    नवम स्थान धर्म स्थान है व पंचम स्थान से पंचम है, इस प्रकार इस स्थान मेे स्थित शुभ ग्रह जातक को सत्कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं

* देव प्रतिष्ठा :   नवम स्थान देव मूर्ति स्थापना से भी संबद्ध है, क्योंकि यह हमारे धर्म से भी संबंधित है, यदि नवमेश लग्न में हो एवं गुरु का संयोग हो तो जातक के द्वारा देवालय निर्माण की संभावना होती है

* तीर्थ स्नान :   नवम स्थान तीर्थों व धार्मिक स्थलों से संबद्ध है, अतः यदि यह चन्द्र से युत हो तो जातक पवित्र नदी इत्यादि मेे स्नान करेगा

* संतान :   नवम स्थान पंचम स्थान से पंचम है, अतः यह भावातभावम है, अतः यह श्रेष्ठ व योग्य संतति का स्वरूप दर्शाता है

* विदेश :   नवम स्थान दीर्घ यात्राओं से भी संबंधित है, क्योंकि यह तृतीय स्थान जो लघु यात्रा सूचक है, से सप्तम स्थान है, यदि तृतीय व द्वादश स्थान का नवम स्थान से कोई संबंध हो तो जातक अपने निवास से दूर की यात्रा करेगा, यदि चतुर्थ स्थान का नवम स्थान से कोई संबंध हो तो जातक विदेशवास करेगा, सप्तम स्थान व उच्चस्थ ग्रह से नवम स्थान का संबंध हो तो जातक को विदेश में यश व ख्याति प्रदान करेगा

बुध व राहु यदि नवम स्थान मेे हों तो जातक नास्तिक होगा