‬: चाण्डाल योग या दोष

 

 

 

बृहस्पति और राहु जब साथ होते हैं या फिर एक दूसरे को किन्ही भी भावो में बैठ कर देखते हो, तो गुरू चाण्डाल योग निर्माण होता है। चाण्डाल का अर्थ निम्नतर जाति है। कहा गया कि चाण्डाल की छाया भी ब्राह्मण को या गुरू को अशुद्ध कर देती है। गुरु चंडाल योग को संगति के उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं। जिस प्रकार कुसंगति के प्रभाव से श्रेष्ठता या सद्गुण भी दुष्प्रभावित हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार शुभ फल कारक गुरु ग्रह भी राहु जैसे नीच ग्रह के प्रभाव से अपने सद्गुण खो देते है। जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही हावी हो जाती है, उसी प्रकार राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता के तीव्र प्रभाव में गुरु की सौम्य, सकारात्मकता को भी निष्क्रीय कर देता है। राहु चांडाल जाति, स्वभाव में नकारात्मक तामसिक गुणों का ग्रह है, इसलिए इस योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता है। जिस जातक की कुंडली में गुरु चांडाल योग यानि कि गुरु-राहु की युति हो वह व्यक्ति क्रूर, धूर्त, मक्कार, दरिद्र और कुचेष्टाओं वाला होता है। ऐसा व्यक्ति षडयंत्र करने वाला, ईष्र्या-द्वेष, छल-कपट आदि दुर्भावना रखने वाला एवं कामुक प्रवत्ति का होता है, उसकी अपने परिवार जनो से भी नही बन पाती तथा वह खुद को अकेला महसूस करने लग जाता है और उसका मन हमेशा व्याकुल रहता है।

 

उपाय - गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। एक अच्छा ज्योतिषी कुण्डली देख कर यह बता सकता है कि हमे गुरु को शांत करना उचित रहेगा या राहु के उपाय जातक से करवाने पड़ेंगे। अगर चाण्डाल दोष गुरु या गुरु के मित्र की राशि या गुरु की उच्च राशि में बने तो उस स्थिति में हमे राहु देवता के उपाय करके उनको ही शांत करना पड़ेगा ताकि गुरु हमे अच्छे प्रभाव दे

[8:31PM, 8/20/2016] ‪+91 98291 90340‬: ग्रहण योग या दोष

 

 

 

जब सूर्य या चन्द्रमा की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है। चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण दोष की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है। चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है। माँ के सुख में कमी आती है। किसी भी कार्य को शुरू करने के बाद उसे सदा अधूरा छोड़ देना व नए काम के बारे में सोचना इस योग के लक्षण हैं। मैंने अपने ३ साल के छोटे से अनुभव में ऐसी कई कुण्डलियाँ देखी है जिनमे यह योग बन रहा था और जातक किसी न किसी फोबिया या किसी न किस प्रकार का डर से ग्रसित थे। जिन लोगो में दिमाग में हमेशा यह डर लगा रहता है, उदाहरण के लिए समझे कि "मैं पहड़ो पर जैसे मनाली या शिमला घूमने जाऊँगा तो बस पलट जाएगी। रेल से वहां जाऊंगा तो रेल में बम बिस्फोट हो जायेगा।" इस प्रकार के सारे नकारात्मक विचार इसी दोष के कारण मन में आते है। अमूमन किसी भी प्रकार के फोबिया अथवा किसी भी मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेसन ,सिज्रेफेनिया आदि इसी दोष के प्रभाव के कारण माने गए हैं यदि यहाँ चंद्रमा अधिक दूषित हो जाता है या कहें अन्य पाप प्रभाव में भी होता है, तो मिर्गी ,चक्कर व पूर्णत: मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है। सूर्य द्वारा बनने वाला ग्रहण योग पिता सुख में कमी करता है। जातक का शारीरिक ढांचा कमजोर रह जाता है। आँखों व ह्रदय सम्बन्धी रोगों का कारक बनता है। सरकारी नौकरी या तो मिलती नहीं या उसको निभाना कठिन होता है डिपार्टमेंटल इन्क्वाइरी, सजा, जेल, परमोशन में रुकावट सब इसी दोष का परिणाम है। 

 

उपाय - जरूरी नही की हम हज़ारो रुपए लगा कर, भारी भरकम उपाय कर के ही ग्रहों का या भगवन का पूजन कर उपाय करे जैसे की आजकल ज्योतिष बताते है। बरन हम छोटे छोटे उपाय करके भी भगवन तथा ग्रहों को प्रसन्न कर सकते है। बस उस किये गए उपाय में सच्ची श्रधा भाव तथा उस परम पिता परमेश्वर में विश्वास हो