कुंडली और नवम भाव 

नवम भाव भाग्य है, पिता है, विदेश यात्रा, पंचम भाव से पंचम होकर शिक्षा भी यहीं से देखा जाता है, संतान भी यहीं से देखा जाता है, एकादश भाव से एकादश होकर आय भी यहीं से देखा जाता है, अगर ऐसा बोले कि पूरी कुंडली की चाबी नवम भाव है, पूरी कुंडली का जो कैप्टन है वह नवम भाव है

नवम भाव और धन की स्थिति - 

 नवम भाव एकादश भाव से एकादश होकर आय को दर्शाता है इसीलिए अगर नवम भाव में बैठा कोई भी ग्रह धनेश या लाभेश के नक्षत्र में हो, तो वह ग्रह जो नवम भाव में बैठा है उसकी महादशा में जातक प्रचुर धन का कमाता है

 नवम भाव का स्वामी यानी भाग्येश अगर धन भाव में बैठे हैं या भाग्येश लाभ भाव में बैठा हो तो ऐसी परिस्थिति में भी इन की महादशा अंतर्दशा में प्रचुर धन की प्राप्ति होती है

नवम भाव का स्वामी अगर पंचम भाव में बैठ जाए तो ये एक बहुत बड़ा राज योग होता है, क्योंकि पंचम भाव में बैठकर यह नवम भाव से नवम हुआ, ऐसी परिस्थिति में नवमेश की महादशा अंतर्दशा में जातक को सरकारी सुख या सरकारी सत्ता या बहुत बड़ी सफलता अवश्य प्राप्त होता है

नवम भाव के स्वामी का रत्न धारण करना हमेशा से शुभ माना जाता है क्योंकि यह कुंडली का कैप्टन है तो इसको एक्टिवेट करने के लिए इस के स्वामी ग्रह का रत्न अवश्य धारण करके रखें

नवम भाव का स्वामी अगर पाप ग्रह राहु या अष्टमेश के संबंध में हो तो भाग्य की हानि कराता है

नवम भाव का स्वामी पिता की स्थिति को भी दर्शाता है अगर नवम भाव में कोई बैठा ग्रह अष्टमेश के नक्षत्र में हो या नवम भाव का स्वामी कहीं पर भी अष्टमेश के नक्षत्र में हो तो पिता के लिए अच्छा नहीं माना जाता है

नवम भाव पर अगर किसी योगकारक ग्रह की दृष्टि हो तो जातक का भाग्य प्रबल होता है

सबसे बेहतरीन स्थिति नवम भाव में शुक्र की मानी जाती है भाग्य भाव में बैठा शुक्र प्रचुर मान प्रतिष्ठा धन दिलाता है

नवम भाव पर अगर योगकारक बृहस्पति की दृष्टि हो या बृहस्पति बैठा हो तो जातक को सारा सुख सुविधा आराम से घर बैठे ही प्राप्त हो जाता है

नवमेश अगर दशम भाव बैठा हो या दशमेश नवम भाव में बैठा हो तो यह एक बहुत बड़ा राज योग माना जाता है

नवम भाव में अगर सूर्य या नवम भाव का स्वामी का संबंध सूर्य से हो तो जातक को सरकारी सुख प्राप्त होती है

नवम भाव या उसके स्वामी का संबंध चंद्रमा से हो तो जातक को स्त्री पक्ष से लाभ प्राप्त होता है

नवम भाव या उसके स्वामी का संबंध मंगल से हो तो खनन पेट्रोलियम ईट संबंधित व्यवसाय में सफलता प्राप्त होता है पर नवम भाव में बैठा मंगल पिता के लिए अच्छा नहीं होता है

नवम या उसके स्वामी का संबंध बुध ग्रह से हो तो जातक कुशल व्यापारी होता है

नवम या उसके स्वामी का संबंध गुरु ग्रह से हो तो जातक अत्यधिक धार्मिक होता है तांत्रिक भी होता है

नवम का समय या उसके स्वामी का संबंध शुक्र से हो तो पत्नी के द्वारा भाग्योदय अवश्य प्राप्त होता है

नवम या उसके स्वामी का संबंध शनि से हो तो संभवत ऐसे जातक को भाग्य हेतु कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है जातक दीर्घायु स्वस्थ होता है पिता का पूर्ण सुख प्राप्त होता है

नवम या उसके स्वामी का संबंध राहु से हो तो भाग्य संबंधित समस्याएं बारंबार हानि होती है जातक एक बार भाग्योदय और बारंबार हानि प्राप्त करने वाला होता है यहां राहु के स्थिति पितृदोष की भी कारक माना जाता है

नवम भाव और उसके स्वामी का केतु के साथ होने का अर्थ यह है कि यहां पर बैठा केतु जातक को धार्मिक बनाएगा, जातक के पिता उच्च पद या सरकारी विभाग में कार्यरत होंगे, पर यह केतु पिता और पुत्र के के संबंध के लिए बहुत अच्छा नहीं माना जाता है

Er. Bibhash Mishra
Research Scholar
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