15 अगस्त 1947 में भारत आज़ाद नही हुआ , 99 साल की लीज पर है भारत । ( तथ्य पढ़े )

 

99 साल की लीज पर भारत

 

युद्ध भूमि में भारत कभी नहीं हारा, लेकिन अपने ही चन्द जयचन्दों से हारा है। अपनों ने जो समझौते किये, यह उससे हारा है, अपनी मूर्खता से हारा है। उन्हीं समझौतों में एक “सत्ता के हस्तांतरण का समझौता” भी शामिल है। पाकिस्तान गान्धी की लाश पर बन रहा था, लेकिन इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 का न तो गान्धी ने विरोध किया, न ही जिन्ना ने, न ही नेहरू ने और न ही सरदार पटेल ने। सभी ने ब्रिटिश उपनिवेश यानी ब्रिटेन की दासता स्वीकार की थी। वाकई मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता है जो कश्मीर को उपनिवेश इण्डिया से उपनिवेश पाकिस्तान में मिलाने के लिए रक्त बहाते हैं। भारत को छद्म स्वतन्त्रता देने का विचार तो 1942 में ही कर लिया गया था, 1948 तक का समय सुनिश्चित करना तो महज़ एक बहाना था। 1947 के जून महीने में यह ज्ञात हुआ कि मुहम्मद अली जिन्ना, जो वास्तव में पुन्जामल ठक्कर का पोता था, की टी.बी. की बीमारी अन्तिम स्तर पर है और अधिक से अधिक 1 वर्ष की आयु शेष बची है।

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भारत की (छद्म) स्वतन्त्रता और भारत- विभाजन की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया गया । 4 जुलाई सन् 1947 से आरम्भ हुई यह प्रक्रिया 14 अगस्त सन् 1947 तक मात्र 40 दिनों में ही कूटनीतिक षड्यन्त्रों के तहत सम्पूर्ण हुई। गान्धी ने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा जिसे सुनकर वर्तमान पाकिस्तानी पंजाब में रहने वाले हिन्दुओं ने वर्तमान भारतीय क्षेत्रों में आकर बसने के निर्णय को बदल दिया । 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बन गया और हिन्दू वहीं फँस गये। इस प्रकार नरसंहार का एक ऐतिहासिक काल आरम्भ हुआ । 3 करोड़ हिन्दू पाकिस्तान के जबड़े में फँसे रह गये और इस भयानक नरसंहार के बीच किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि आखिर हुआ क्या?

1946 के चुनावों के बाद जो सर्वदलीय संसद बनी उसमें विभाजन के प्रस्ताव को पारित करने हेतु संयुक्त रूप से 157 वोट समर्थन हेतु डाले गये, जिसमें प्रमुख पार्टियाँ थीं कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्यूनिस्ट पार्टी। समर्थन में पहला हाथ नेहरू ने उठाया था । विरोध में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के 13 वोट पड़े और रामराज्य परिषद के 4 वोट पड़े। विभाजन का प्रस्ताव पारित हो गया।

उसके बाद की समस्त प्रक्रिया दिल्ली में औरंगजेब रोड स्थित मुहम्मद अली जिन्ना के घर पर ही सम्पूर्ण हुई। जिन्ना इतना धूर्त था कि जहाँ भू-तल पर नेहरू-गाँधी लार्ड माउंटबैटन के साथ कानूनी सहमतियाँ बना रहे थे वहीं प्रथम तल पर जिन्ना अपनी कुछ सम्पत्तियाँ और औरंगजेब रोड पर स्थित अपने घर को बेचने की प्रक्रिया पूरी कर रहा था।

मुहम्मद अली जिन्ना एक वकील था। नेहरू एक वकील था । गान्धी एक वकील था। उस समय के अधिकतर नेता वकील ही थे। वे सब जानते थे कि यह सम्पूर्ण स्वतन्त्रता नहीँ, अपितु अल्पकालिक स्वतन्त्रता है। जी हाँ अल्पकालिक स्वतन्त्रता! यह छद्म स्वतन्त्रता ही थी इससे अधिक और कुछ नहीं। सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। अर्थात् सत्ता तो अंग्रेजों के पास ही रहेगी और उनकी देखरेख में शासन की व्यवस्था सम्भालेंगे आत्मा से बिके और चरित्र से गिरे हुए कुछ लोग। सत्ता के इस हस्तान्तरण का साक्षी बना “Transfer of Power Agreement ” जो कि लगभग 4000 पेजों में बनाया गया था और जिसे अगले 50 वर्षों हेतु सार्वजनिक न करने का नियम भी साथ में लागू किया गया । सन् 1997 में इस Agreement को सार्वजनिक होने से बचाने हेतु समय से पहले ही तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल ने इसकी अवधि 20 वर्ष और बढ़ा दी और यह 2019 तक पुन: सार्वजनिक होने से बच गया। ऐसे सत्ता के हस्तान्तरण के Agreements ब्रिटिश सरकार के अधीन भारत समेत समस्त 54 देशों के हैं साथ हुए हैं जिनमें आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि 54 देश हैं।

यह 54 देश ब्रिटिश राज के उपनिवेश कहलाते हैं। इन 54 देशों के नागरिक ब्रिटेन की रियाया (प्रजा) हैं अर्थात् ब्रिटेन के ही नागरिक हैं। इन 54 देशों के समूह को “राष्ट्रमण्डल” के नाम से जाना जाता है जिसे आप Common Wealth के नाम से भी जानते हैं अर्थात् संयुक्त सम्पत्ति ।

यदि आप सबको कोई आशंका हो तो उदाहरण के तौर पर आप यूँ समझ लें कि ब्रिटेन समेत सभी ब्रिटिश उपनिवेश अथवा राष्ट्रमण्डल देशों के भारत में विदेशमन्त्री तथा राजदूत नहीं होते अपितु विदेश मामलों के मन्त्री तथा उच्चायुक्त होते हैं और ठीक इसी प्रकार भारत के भी इन देशों में विदेश मामलों के मन्त्री तथा उच्चायुक्त ही होते हैं।

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1. Minister of Foreign Affairs

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2. High Commissioner

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जैसे कि भारत की विदेश मन्त्री हैं सुषमा स्वराज, तो यह सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा विदेश मन्त्री के तौर पर केवल रूस, जापान, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, बेल्जियम आदि स्वतन्त्र देशों में ही रहता है। परन्तु ब्रिटिश उपनिवेशिक अर्थात् राष्ट्रमण्डल देशों जैसे आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों में सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा Minister of Foreign Affairs का ही रहता है।

आखिर भारत जैसे गुलाम देश की नागरिक क्वीन एलिज़ाबेथ की विदेश मन्त्री कैसे हो सकती है क्योंकि यह कनाडा, आस्ट्रेलिया, भारत आदि देश तो क्वीन एलिज़ाबेथ के ही अधिकार क्षेत्र या मालिकाना क्षेत्र में आते हैं जिसे आजकल आप Territory के नाम से समझते हैं।

इसी प्रकार उपनिवेशिक राष्ट्रमण्डल देशों में भारत का कोई राजदूत (Ambassodor) नहीं होता अपितु मात्र उच्चायुक्त (High Commissioner) ही होता है। Transfer of Power Agreement की शर्तें लगभग 4000 पेजों में विस्तार से लिखी गई हैं।

जिसके कुछ अंश निम्नलिखित हैं।

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1. गोरे हमारी भूमि को 99 वर्षों के लिये हम भारतवासियों को ही किराये पर दे गये।

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2. भारत का संविधान अभी भी ब्रिटेन के अधीन है।

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3. ब्रिटिश नैशनैलिटी अधिनियम 1948 के अन्तर्गत हर भारतीय, आस्ट्रेलियाई, कनाडियन चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो, इसाई हो, बोद्ध हो अथवा सिक्ख ही क्यों न हो, ब्रिटेन की प्रजा है।

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4. भारतीय संविधान के अनुच्छेदों 366, 371, 372 व 395 में परिवर्तन की क्षमता भारत की संसद तथा भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है।

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5. गोपनीय समझौतों (जिनका खुलासा आज तक नहीं किया जाता) के तहत ही हमारे देश से 10 अरब रुपये पेंशन प्रतिवर्ष महारानी एलिजावेथ को जाता है।

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6. इन्हीं गोपनीय समझौतों के तहत प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-मांस ब्रिटेन को दिया जाता है। यही वह गोपनीयता है, जिसकी शपथ भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा अन्य समस्त मन्त्री तथा प्रशासनिक अधिकारी लेते हैं। अत: उपरोक्त समस्त पदाधिकारी समस्त स्वतन्त्र देशों की भाँति मात्र पद की शपथ नहीं लेते अपितु “पद एवं गोपनीयता” की शपथ लेते हैं।

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7. अनुच्छेद 348 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय व संसद की कार्यवाही केवल अंग्रेजी भाषा में ही होगी।

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8. राष्ट्रमण्डल समूह के किसी भी देश पर भारत पहले हमला नहीं कर सकता।

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9. भारत किसी भी राष्ट्रमण्डल समूह के देश को जबरदस्ती अपनी सीमा में नहीं मिला सकता।

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ऐसे बहुत से नियम एवं शर्तें लिखित रूप से दर्ज़ हैं Trasfer of Power Agreement में और यदि भविष्य में भारत किसी भी नियम या शर्त को भंग करता है तो

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1. भारत का संविधान तत्काल प्रभाव से Null & Void हो जायेगा।

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2. छद्म स्वतन्त्रता भी छीन ली जायेगी।

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3. भारत में 1935 का Goverment of India Act तत्काल प्रभाव से लागू हो जायेगा क्योंकि उसी के आधार पर ही Indian Independence Act 1947 का निर्माण किया गया था ।

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4. ब्रिटिश राज पुन: लागू हो जायेगा पूर्ण रूप से।

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Indian Independence Act 1947

http://www.legislation.gov.uk/ukpga/Geo6/10-11/30

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British Nationality Act 1947

http://lawmin.nic.in/legislative/textofcentralacts/1947.pdf

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British Nationality Act 1948

http://www.uniset.ca/naty/BNA1948.htmr

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1. आज कश्मीर यदि पाकिस्तान को दे दो तो भी वह ब्रिटेन की रानी का ही रहेगा।

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2. आज सिक्खों को खालिस्तान दे दिया जाए तो वह भी रानी का ही रहेगा।

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3. पूरा पाकिस्तान, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका भी रानी का ही है।

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4. भारत आज भी क्वीन एलिज़ाबेथ के अधीन है। यह कहना छोड़िए कि हम स्वतन्त्र हैं। आज तक बिना रक्त बहाये किसी को स्वतन्त्रता नहीं मिली।

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अब भविष्य में पुन: किसी गाँधी-नेहरू पर विश्वास न करना। आज वासुदेव बलवन्त फडके, वीर सावरकर, नाथूराम गोडसे, डाक्टर मुंजे, चन्द्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, रोशनसिंह, मदनलाल ढींगरा आदि देशभक्त क्यों पैदा होने बन्द हो गये? क्योंकि भारत की जनता को छद्म स्वतन्त्रता और गाँधी-नेहरू आदि की झूठी कहानियाँ सुना-सुनाकर खोखला कर दिया गया है।

नई पीढ़ी अपने कैरियर और मौज-मस्ती को लेकर आत्म-मुग्ध है। हाथों में झूलते बीयर के गिलास और होठों पर सुलगती सिगरेट के धुएँ में उड़ता पराक्रम और शौर्य की विरासत नष्ट-सी होती दिखाई दे रही है। आज चाणक्य भी आ जायें तो निस्संदेह उन्हें सम्पूर्ण भारत देश में एक भी योग्य पराक्रमी पुरुष प्राप्त नहीं होगा ।

लाखों करोड़ों युवाओं के रूप में कभी यह राष्ट्र “ब्रह्मचर्य की शक्ति” के रूप में समस्त विश्व में प्रसिद्ध था और आज विडम्बना देखो कि उसी देश के वीर्यवान व्यक्ति अपने बल-बुद्धि-प्रज्ञा समान ओज को युवावस्था में ही नष्ट कर डालते हैं। सेना आपकी रक्षक है किन्तु भारत में सेना का मनोबल तोड़ने के लिये 1947 से ही लगातार षड्यन्त्र जारी है। 1947 में भारतीय सेना जब पाकिस्तानियों को पराजित कर रही थी तब सेना वापस बुला ली गयी। सैनिक हथियार बनाने और परेड करने के स्थान पर जूते बनाने लगे। परिणाम 1962 में चीन के हाथों पराजय के रूप में आया। 1965 में जीती हुई धरती के साथ हम अपने प्यारे प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री को खो बैठे। सन् 1971 में पाकिस्तान के 93 हजार युद्धबन्दी छोड़ दिये गये लेकिन भारत के लगभग 54 सैनिक वापस नहीं लिये गये। एलिजाबेथ के लिये इतना कुछ करने के बावजूद इन्दिरा और राजीव दोनों मारे गये। आप सबसे विनम्र निवेदन है कि आप संगठित हों और एकजुट होकर अपने धर्म तथा राष्ट्र की रक्षा करें। बचा लीजिये इस नष्ट होते सनातन वैदिक धर्म तथा आर्यों की इस पवित्र भूमि स्वरूप इस राष्ट्र को। हम परतन्त्र क्यों रहें? हम ब्रिटेन के नागरिक क्यों बने रहें? हम ब्रिटेन के गुलाम क्यों बने रहें ? राष्ट्रमण्डल का विरोध करो। सत्ता-हस्तान्तरण के अनुबन्ध का विरोध करो । क्वीन एलिज़ाबेथ की दासता का विरोध करो। क्या आप में आर्यत्व अभी भी जीवित है ? क्या आप आर्यावर्त के नाम से प्रसिद्ध इस भारत भूमि को दासता की बेड़ियों से मुक्त कर सकते हैं ? क्या आप वीर सावरकर, वासुदेव बलवन्त फड़के चन्द्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ आदि का अवतार बन सकते हैं? जो लड़ना ही भूल जायें वे न तो स्वयं सुरक्षित रहेंगे और न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित रख सकेगे ।

कृपया ज्यादा से ज्यादा शेयर करके सबको सच्चाई बताये

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