ग्रंथ का परिमाण
श्लोक संख्या(लम्बाई)
१०५८० ऋचाएँ
रचना काल
७००० - १५०० ईसा पूर्व
ऋग्वेद सनातन धर्म अथवा हिन्दू धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है। इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रुप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है।

ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युञ्जय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है।

ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-

ॠग्वेद के कई सूक्तों में विभिन्न वैदिक देवताओं की स्तुति करने वाले मंत्र हैं। यद्यपि ॠग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्तोत्रों की प्रधानता है।
ॠग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें १०२८ सूक्त हैं और कुल १०,५८० ॠचाएँ हैं। इन मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ बड़े हैं।
इस ग्रंथ को इतिहास की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण रचना माना गया है। इसके श्लोकों का ईरानी अवेस्ता के गाथाओं के जैसे स्वरों में होना, इसमें कुछ गिने-चुने हिन्दू देवताओं का वर्णन और चावल जैसे अनाज का न होना इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है।
 एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, वेद पहले एक संहिता में थे पर व्यास ऋषि ने अध्ययन की सुगमता के लिए इन्हें चार भागों में बाँट दिया। इस विभक्तिकरण के कारण ही उनका नाम वेद व्यास पड़ा। इनका विभाजन दो क्रम से किया जाता है -

(१) अष्टक क्रम - यह पुराना विभाजन क्रम है जिसमें संपूर्ण ऋक संहिता को आठ भागों (अष्टक) में बाँटा गया है। प्रत्येक अष्टक ८ अध्याय के हैं और हर अध्याय में कुछ वर्ग हैं। प्रत्येक अध्याय में कुछ ऋचाएँ (गेय मंत्र) हैं - सामान्यतः ५।
(२) मण्डल क्रम - इसके अतर्गत संपूर्ण संहिता १० मण्डलों में विभक्त हैं। प्रत्येक मण्डल में अनेक अनुवाक और प्रत्येक अनुवाक में अनेक सूक्त और प्रत्येक सूक्त में कई मंत्र (ऋचा)। कुल दसों मण्डल में ८५ अनुवाक और १०१७ सूक्त हैं। इसके अतिरिक्त ११ सूक्त बालखिल्य नाम से जाने जाते हैं।
वेदों में किसी प्रकार की मिलावट न हो इसके लिए ऋषियों ने शब्दों तथा अक्षरों को गिन कर लिख दिया था। कात्यायन प्रभृति ऋषियों की अनुक्रमणी के अनुसार ऋचाओं की संख्या १०,५८०, शब्दों की संख्या १५३५२६ तथा शौनककृत अनुक्रमणी के अनुसार ४,३२,००० अक्षर हैं। शतपथ ब्राह्मण जैसे ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि प्रजापति कृत अक्षरों की संख्या १२००० बृहती थी। अर्थात १२००० गुणा ३६ यानि ४,३२,००० अक्षर। आज जो शाकल संहिता के रूप में ऋग्वेद उपलब्ध है उनमें केवल १०५५२ ऋचाएँ हैं।

ऋग्वेद में ऋचाओं का बाहुल्य होने के कारण इसे ज्ञान का वेद कहा जाता है।
[9:36PM, 9/14/2015] ‪+91 91651 67768‬: भाष्य

सबसे पुराना भाष्य (यानि टीका, समीक्षा) किसने लिखा यह कहना मुश्किल है पर सबसे प्रसिद्ध उपलब्द्ध प्राचीन भाष्य आचार्य सायण का है। आचार्य सायण से पूर्व के भाष्यकार अधिक गूढ़ भाष्य बना गए थे। यास्क ने ईसापूर्व पाँचवीं सदी में (अनुमानित) एक कोष लिखा था जिसमें वैदिक शब्दों के अर्थ दिए गए थे। लेकिन सायण ही एक ऐसे भाष्यकार हैं जिनके चारों वेदों के भाष्य मिलते हैं। ऋग्वेद के परिप्रेक्ष्य में क्रम से इन भाष्यकारों ने ऋग्वेद की टीका लिखी -

स्कन्द स्वामी - ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार वेदों का अर्थ समझने और समझाने की क्रिया कुमारिल-शंकर के समय शुरु हुई। स्कन्द स्वामी का काल भी यही माना जाता है - सन् ६२५ के आसपास। ऐसी प्रसिद्धि है कि शतपथ ब्राह्मण के भाष्यकार हरिस्वामी (सन् ६३८) को स्कन्द स्वामी ने अपना भाष्य पढ़ाया था। ऋग्वेद भाष्य के प्रथमाष्टक के अन्त में प्राप्त श्लोक से पता चलता है कि स्कन्द स्वामी गुजरात के वलभी के रहने वाले थे। इसमें प्रत्येक सूक्त के आरंभ में उस सूक्त के ऋषि-देवता और छन्द का उल्लेख किया गया है। साथ ही अन्य ग्रंथों से उद्धरण प्रस्तुत किया गया है। ऐसा माना जाता है कि स्क्न्द स्वामी ने प्रथम चार मंडल पर ही अपना भाष्य लिखा था, शेष भाग नारायण तथा उद्गीथ ने मिलकर पूरा किया था।
माधव भट्ट- प्रसिद्ध भाष्यकारों में माधव नाम के चार भाष्यकार हुए हैं। एक सामवेद भाष्यकार के रूप में ज्ञात हैं तो शेष तीन ऋक् के - लेकिन इन तीनों को सटीक पहचानना ऐतिहासिक रूप से संभव न हो पाया है। एक तो आचार्य सायण खुद हैं जिन्होंने अपने बड़े भाई माधव से प्रेरणा लेकर भाष्य लिखा और इसका नाम माधवीय भाष्य रखा। कुछ विद्वान वेंकट माधव को ही माधव समझते हैं पर ऐसा होना मुश्किल लगता है। वेंकट माधव नामक भाष्यकार की जो आंशिक ऋग्टीका मिलती है उससे प्रतीत होता है कि इनका वेद ज्ञान उच्च कोटि का था। इनके भाष्य का प्रभाव वेंकट माधव तथा स्कन्द स्वामी तक पर मिलता है। इससे यह भी प्रतीत होता है कि इनका काल स्कन्द स्वामी से भी पहले था।
वेंकट माधव - इनका लिखा भाष्य बहुत संक्षिप्त है। इसमें न कोई व्याकरण संबंधी टिप्पणी है और न ही अन्य कोई टिप्पणी। इसमें एक विशेष बात यह है कि ब्राहमण ग्रंथों से सुन्दर रीति से प्रस्तुत प्रमाण।
धानुष्कयज्वा - विक्रम की १६वीं शती से पूर्व वेद् भाष्यकार धानुष्कयज्वा का उल्लेख मिलता है जिन्होंने तीन वेदों के भाष्य लिखे।
आनंदतीर्थ - चौदहवीं सदी के मध्य में वैष्णवाचार्य आन्नदतीर्थ जी ने ऋग्वेद के कुछ मंत्रों पर अपना भाष्य लिखा है।
आत्मानंद - ऋग्वेद भाष्य जहाँ सर्वदा यज्ञपरक और देवपरक मिलते हैं, इनके द्वारा लिखा भाष्य आध्यात्मिक लगता है।
सायण - ये मध्यकाल का लिखा सबसे विश्वसनीय, संपूर्ण और प्रभावकारी भाष्य है। विजयनगर के महाराज बुक्का (वुक्काराय) ने वेदों के भाष्य का कार्य अपने आध्यात्मिक गुरु और राजनीतिज्ञ अमात्य माधवाचार्य को सौंपा था। पमन्चु इस वृहत कार्य को छोड़कर उन्होंने अपने छोटे भाई सायण को ये दायित्व सौंप दिया। उन्होंने अपने विशाल ज्ञानकोश से इस टीका का न सिर्फ संपादन किया बल्कि सेनापतित्व का दायित्व भी २४ वर्षों तक निभाया।