रोंगटे खड़े कर देने वाला सर्वे - द्वारा (मानव अधिकार - हिंदू) http://www.hinduhumanrights.info/brahmins-one-of-the-poorest-and-maligned-castes-in-india/

 

ब्राह्मण : भारत के सबसे गरीब और दरिद्र 'जाति' में से एक

 

ब्राह्मणों की सार्वजनिक छवि एक संपन्न, समृद्ध वर्ग की है. लेकिन असलियत ?

दिल्ली में 50 सुलभ सार्वजनिक शौचालय (यह सार्वजनिक संस्था एक ब्राह्मण द्वारा शुरू किया गया था) हैं, उन सभी को साफ और स्वच्छ ब्राह्मणों के द्वारा किया जाता है। प्रत्येक सुलभ सार्वजनिक शौचालय में 5-6 ब्राह्मण काम कर रहे हैं, आठ से दस साल पहले आय के स्रोत की तलाश में दिल्ली आए जहां उनके गांवों के अधिकांश में एक अल्पसंख्यक के रूप में थे। दलितों का एक समूह जो उत्तर प्रदेश और बिहार में है ब्राह्मणों को नौकरियों दिलवाने में मदद करता है।

 

क्या आप जानते है दिल्ली के रेलवे स्टेशनों पर कुली के रूप में अधिकांश ब्राह्मण काम कर करते है ? उनमे से एक कृपा शंकर शर्मा बताते है कि उसकी बेटी विज्ञान से स्नातक कर रही है, और उसको कोई नौकरी मिल पायेगी या नहीं पता नहीं?

 

दिल्ली में आपको ब्राह्मण रिक्शा चलाते मिल जायेगे . पटेल नगर में 50 फीसदी ब्राह्मण रोजगार के अवसरों की कमी के कारण और उनके गांवों में कम शिक्षा के कारण शहर में रिक्शा चलाने को मजबूर है।

 

क्या आप जानते है वनारस में रिक्शा चलाने बाले अधिकतर ब्राह्मण है ?

 

इस नौकरशाही और राजनीति में भी यही हाल है। तमिल वर्ग के बौद्धिक ब्राह्मण अधिकांश ब्राह्मण तमिलनाडु के बाहर पलायन कर चुके है। उत्तर प्रदेश और बिहार विधानसभा में संयुक्त रूप से 600 में से केवल 5 सीटें ब्राह्मणों (2006) के पास बची थी, बाकि सब यादव के हाथों में हैं।

 

कश्मीर घाटी के 400,000 ब्राह्मण (सम्मानीय कश्मीरी पंडित) भयावह स्थिति में जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। उनके नगण्य वोट बैंक के कारण, किसी को इनकी चिंता नहीं है।

 

और यह अकेले उत्तर तक सीमित नहीं है. आंध्र प्रदेश 75 फीसदी ब्राह्मण घरेलू नौकर और रसोइयों का काम करते है। आंध्र प्रदेश के ब्राह्मण समुदाय पर एक अध्ययन (Brahmins of India by J Radhakrishna, published by Chugh Publications), में आंध्र जिले में आज सभी पुरोहितों गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।

 

भारत की असली 'दलित' कौन हैं?

 

इस अध्ययन के अनुसार वास्तव में ब्राह्मण छात्रों की संख्या में एक भारी गिरावट आई है। ब्राह्मणों की औसत आय गैर ब्राह्मणों की तुलना में कम होने के कारण भारी संख्या में ब्राह्मण छात्र 5-18 वर्ष आयु वर्ग में पूर्व मैट्रिक स्तर पर 36 फीसदी और प्राथमिक स्तर पर 44 फीसदी ब्राह्मण छात्र शिक्षा को छोड़ चुके है।

 

एक अध्ययन से यह भी पता चला हे कि 55 प्रतिशत ब्राह्मण 650 रुपये प्रति माह की एक प्रति व्यक्ति आय की गरीबी रेखा से नीचे रहते है। भारत की कुल आबादी का 45 फीसदी हिस्सा सरकारी आंकणों के अनुसार गरीबी रेखा के नीचे है और बेसहारा ब्राह्मणों का प्रतिशत अखिल भारतीय आंकड़ा से भी 10 फीसदी नीचे है।

 

देश के अन्य भागों में ब्राह्मणों की हालत अच्छी है, विश्वास करने का कोई कारण नहीं है। कर्नाटक के वित्त मंत्री ने राज्य विधानसभा (2006) में खुलासा किया था कि प्रदेश के विभिन्न समुदायों के प्रति व्यक्ति आय - 

ईसाई रु. 1562/-, वोकलीगस रु. 914/-, मुसलमान रु.794/-, अनुसूचित जाति रु.680/-, अनुसूचित जनजाति रु. 577/- और ब्राह्मण रु. 537/- है।

 

जाति योग्यता से ऊपर नहीं होनी चाहिए।

 

आंध्र प्रदेश के एक अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मणों का सबसे बड़ा प्रतिशत आज घरेलू नौकरों के रूप में कार्यरत हैं. उन के बीच बेरोजगारी की दर 75 प्रतिशत के से अधिक है. ब्राह्मणों के सत्तर प्रतिशत अभी भी उनके वंशानुगत व्यवसाय पर भरोसा कर रहे हैं. (दान सांख्यिकी विभाग के अनुसार) विभिन्न मंदिरों में सैकड़ों ब्राह्मण पुजारियों के रूप में प्रति माह केवल रु 500/- रुपए पर जी रहे हैं।

 

आज वेद अध्ययन कर जीवन व्यतीत करने वाला ब्राह्मण पुजारियों को उपहास और अपमान का पात्र बना है जिसके अनगिनत उदाहरण हैं।

 

भारत सरकार मस्जिदों में इमामों के वेतन के लिए 1,000 करोड़ रुपये (10 अरब डॉलर) और 200 करोड़ रुपये (2 अरब डॉलर) हज सब्सिडी के रूप में देती है। लेकिन ऐसी कोई मदद ब्राह्मण और ऊंची जातियों के लिए उपलब्ध नहीं है. नतीजतन, ब्राह्मणों, और अन्य ऊंची जातियों का मध्यम वर्ग अत्यंत कष्ट में जीवनयापन कर रहा है।

 

क्या किसी भी ब्राह्मण को दर्द हुआ....